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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

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बुधवार, 27 अप्रैल 2016

‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘

‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘



आज के यक्ष प्रश्न होगे हे, गांव-गांव, शहर-शहर मा ‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘ जेन ला देखव तेन हा कहत हे- पानी के कम उपयोग कर बाबू, पानी के बचत कर ।  गांव-गांव, शहर-शहर मा पानी के मारा-मारी हे । अइसे पहिली बार होय हे के पानी बर पहरा लगाये जात हे । पुलिस ला पानी बचाय बर लगाये जात हे । कोनो समस्या न तत्कालिक पैदा होवय न तत्कालिक जावय । तत्कालिक करे गे उपाय केवल समस्या ला कम करे के होथे ओखर जर-मूल ले नाश करे बर ओखर कारण ला जान के कारण ला दूर करे के दीर्घकालिक योजना मा काम करे ला पड़थे । आये पूरा हा ओसकबे करही, दूरदिन हा टरबे करही । फेर ये दिन दुबारा देखे ला झन परय । येखर बर काम करे के जरूरत हवे ।
जम्मो जीव जन्तु अउ  वनस्पती के जीवनयापन पानी के बिना सम्भव नई हे। प्रकृति तभे तो भुईंया मा पानी के अथाह मात्रा दे हवय । भुईंया मा पानी के मात्रा लगभग 75 प्रतिषत हवय । मात्रा के आधार मा भुईंया के पानी करीब 160 करोड़ घन कि0मी0 उपलब्ध हे। लगभग 97.5 प्रतिशत पानी नमकीन हे। केवल 2.5 प्रतिशत पानी ताजा जल के रूप मा उपलब्ध हवय फेर येही पानी बर्फीली क्षेत्र मा बर्फ के रूप मा होय के कारण सिर्फ 0.26 प्रतिशत पानी हा नदियां, झील, मा  मनखे के उपयोग बर उपलब्ध है। 0.26 प्रतिशत जल ला कहूं मात्रा मा देखी ता दुनिया के आबादी करीब 700 करोड़ के आधार मा प्रति व्यक्ति 6,00,000 घन मी0 पानी उपलब्ध हे। पानी के अतका मात्रा ला कहू एक आदमी हा कूद-कूद के  नहाय-धोय, पीये-खाये बर उपयोग करय तभो पानी बच जही । त ये पानी के संकट काबर ?
पानी के उपलब्धता दू प्रकार ले होथे पहिली भुईंया के ऊपर (भूतलीय जल) अउ दूसर भुईंया के भीतर (भू-गर्भी जल) । जब ये उपलब्धता मा कमी आही या के उलब्ध जल उपयोग के लइक नई रहिही ता जल संकट होबे करही । पानी के संग्रहण अउ संरक्षण मा कमी होय ले जल संकट होबे करही ।  प्राकृतिक जल प्रकृति के जीव जंतु के जीवन बर पर्याप्त हे ।  पानी के कमी तब जनावत हे जब येखर उपयोग औद्योगिक रूप ले अउ कृशि मा आवश्यकता ले जादा होय लगीस ।
धंधा मा जइसे आय-व्यय के लेखा-जोखा करे जाथे ओइसने येखर उलब्धता अउ उपयोग ला समझे ला परही । उपलब्धता भूतलीय अउ भूगर्भी हे । भुईंया के ऊपर मा पानी संरक्षित रहे ले भुईंया भीतर के जल स्तर संरक्षित रहिथे । भुईंया के ऊपर के पानी सागर, नदिया, नरवा, तरिया, कुंआ, पोखर, बावली अउ बांध ले होथे जेन हा वर्षा के जल ला संरक्षित करथे । लइका लइका जानथे वर्षा के पानी ला कहू नई रोकबे ता बोहा के सागर मा जाही जेन हमर काम के नई हे । पानी के उपयोग जीव जंतु के जीवन यापन के संगे संग अब औद्योगिक रूप ले अउ उन्नत कृषि मा होत हे ।
एक अनुमान के अनुसार औद्योग अउ कृषि हा 70 प्रतिशत भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करे लग गे हे । मनखे मन घला आज कल पानी बर भूतलीय जल ले जादा भूगर्भी जल मा निर्भर हे, घर-घर बोर, पानी मोटर ले भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करत हें । वैज्ञानिक मन बार-बार चेतावत हे भुईंया के भीतर के पानी के स्तर लगातार गिरत हे । जल स्तर गिरत काबर हे, येखर कारण मा जाबे ता पाबे भुईंया के ऊपर के पानी अउ भुईया के भीतर के पानी मा असंतुलन हे । भुईया के भीतर के पानी के स्तर हा भुईंया के ऊपर के पानी के स्तर मा निर्भर करथे, भुईंया के ऊपर के पानी के स्तर निर्भर करथे नदिया नरवा तरिया अउ बांध के पानी मा, वर्षा जल के संरक्षण मा । अपन चारो कोती देख लव ये जल स्रोत के का हाल-चाल हे । एक तो पहिली ले ये जल स्रोत हाल बेहाल रहिस ऊपर ले ये साल वर्षा घला कम होइस दुबर ला दू अषाढ़ पानी के त्राही त्राही मचे हे ।
ये प्रकार जल संकट के जर-मूल, भुईंया के ऊपर के पानी के स्रोत के संरक्षण नई होना हेे, अउ आवष्यकता ले जादा भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करे ले भुईंया के भीतर के पानी स्तर मा गिरावट आवय । हमला कहूं जल संकट ला जर-मूल ले मिटाना हे त जल स्रोत ला संरक्षित करेच ला परही । भुईंया के भीतर के पानी के दोहन कम करे ला परही ।
ये समस्या के मूल कारण मनखे मन के बेपरवाह अउ लालची होना हे ।  मनखे मन नदिया, नरवा, तरिया बांध मा बेजा कब्जा करके कोनो खेती करत हे ता कोनो कोनो घर-कुरिया बनाये बइठे हे ।  सोचव अइसन करे ले कतका कन हमर भूतलीय जल स्तर खतम होगे । बाचे-खुचे नदिया, नरवा तरिया मा मनखे मन कचरा ला फेक-फेक के घुरूवा बना डारे हे । औद्योग के गंदा पानी ला नदिया, नरवा, तरिया मा रिको-रिको के सत्यानाष कर डरे हें । जब जम्मो झन प्रकृति के सत्यानाष करबो ता का ओ हर हमर सत्यानाष नई करही ।
‘पानी बचाओ‘ के नारा ला हमन गलत ढंग ले समझे हन कहूं हमला एक हउला पानी मिलय ता ओमा एक लोटा पानी बचा ली । अइसनहा करे मा का होही । पानी तभे बाचही जब येखर संरक्षण होही, ये तभे संभव हे जब प्रकृति के नदिया, नरवा भरे-भरे अउ साफ-सुथरा रहिही । हमर पुरखा मन ये बात ला जानत रहिन तभे तरिया, कुंआ खनवाना ला पुण्य मान के करत रहिन ।  आस्था मा गिरावट आय ले आज हम तरिया कुंआ ला पाटत हन । बिना बीजा बोय, धान लुये कस बोर ले पानी खीचत हन । ये समस्या के निदान वैज्ञानिक ढंग ले कम अउ नैतिक रूप ले जादा होही । मनखे-मनखे अपन नैतिक जिम्मेदारी ला मानही तभे प्रकृति हा ओला संग देही । आम तौर मा हम मान लेथन ये सब बुता सरकार के आय हमला का करे ला हे । ये सोच जबतक जींदा रहिही तब ये संकट हा बने रहिही । संकट के निदान करना हे ता हर आदमी ला गिलहरी कस अपन सहयोग दे ला परही ।

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