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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

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गुरुवार, 10 मई 2018

‘‘लोक-चेतना लोक-संस्कृति के संवाहक-डॉ. सोमनाथ यादव‘‘

‘लोक-चेतना लोक-संस्कृति के संवाहक-डॉ. सोमनाथ यादव



किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की छाप समाज पर तब दृष्टिगोचर होता है जब वह अपने सृजनात्मक एवं समाजोपयोगी कार्य के बल पर दृढ़ता से आगे बढ़ता रहता है। एक 21-22 वर्ष के युवक द्वारा अपनी संस्कृति, अपनी परम्परा का चिंतन करते हुये ‘‘बिलासा कला मंच‘ का गठन करना एक अतिशियोक्ति से कम नहीं है । यह साहसिक कार्य करने का माद्दा बिलासपुर नगर के ठेठ ग्रामीण परिवेश वाले जूना बिलासपुर में श्री चमन लाल यादव के यहां 9 अप्रैल 1968 को जन्मे श्री सोमनाथ यादव तब कर दिखाये जब वह अभी-अभी बी.कॉम. की परीक्षा उत्तीर्ण ही किये थे, जहां इस समय एक युवक अपने कैरियर के प्रति चिंतित होकर हाथ-पैर मारते रहता है, उस अवस्था में श्री यादव ने अपनी ठेठ ग्रामीण संस्कृति को संरक्षित करने का विचार ही नहीं किया अपितु एक सैनिक की भांति तन-मन अर्पित कर प्राण-पण से समर्पित हो प्रयास भी किया।
‘बिलासा कला मंच‘, बिलासपुर नगर का बिलासा बाई केंवटिन के नाम से बसे होने के कारण केवल उन्हें याद करने का एक उपक्रम मात्र न होकर, पावन अरपा तट पर बसे बिलासपुर का कस्बाई संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुये छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल के संस्कृति को अक्षुण्ण रखने का एक उपक्रम है । बिलासा कला मंच का स्लोगन ही ‘लोक संस्कृति, हमारी जीवन शैली‘ है ।  स्वयं डॉ. सोमनाथ यादव बिलासा महोत्सव के ‘पच्चीस वर्ष की यात्रा....‘ में लिखते हैं-‘‘ 1990 में बिलासा कला मंच के बेनर तले एक दिवसीय महोत्सव प्रारंभ हुआ था। मई महीना था जूना बिलासपुर स्थित शासकीय कन्या शाला में बाँसगीत महोत्सव के रूप में इस महोत्सव का बीज बोया गया ।‘‘ डॉ. परदेशीराम वर्मा कहते हैं-‘‘बिलासा महोत्सव का संयोजन कर डॉ. सोमनाथ यादव ने बिलासा की महत्ता से प्रदेश और देश के कलाकारों, चिंतको को परिचित होने का अवसर दिया ।‘‘ वरिष्ठ भरथरी गायिका श्रीमती सुरूजबाई खाण्डे कहती हैं- ‘बिलासा महोत्सव के माध्यम से मेरे नाम की प्रसिद्धि हुई है । भरथरी को देश-विदेश में प्रस्तुत कर गौरवान्वित हूॅं । मैं सोमनाथ यादव को बहुत आशीष देती हूँ जो हमारी संस्कृति को बचाने के लिये कार्य कर रहा है ।‘‘ बिलासा महोत्सव, जो रजतीय पड़ाव को पार कर लोक संस्कृति, लोक संस्कार को अपनी बाहों में भरकर गुमनामी के अंधेरे से महानगरी प्रकाश में लाने हेतु सतत् यात्रा में गतिमान है । बिलासा महोत्सव डॉ. सोमनाथ के स्वेद धार में एक प्रवाहित धारा है जो अपने साथ ग्राम्य जीवन, ग्राम्य संस्कृति को लेकर प्रवाहित है ।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक बिलासा महोत्सव के संबंध में लिखते हैं-‘‘बिलासा महोत्सव छत्तीसगढ़ी लोकोत्सव का वह स्वरूप है जो लोकगीत, लोकनृत्य, लोकवाद्य व लोककथा के मूल रूप को सुरक्षित रखने के लिए छत्तीसगढ़ी लोककला मंडलियों से निवेदन करता है ।‘‘ डॉ.पाठक के ही शब्दों में- ‘‘डॉ. सोमनाथ यादव का जो बिलासा कला मंच की नींव रखने के दो वर्ष पश्चात बिलासा महोत्सव को मूर्त करते हैं और दोनो को प्रदेश स्तर का प्रतिष्ठापूर्ण मंच व महोत्सव बनाकर इतिहास की कड़ी बन जाते हैं ।‘‘ इस प्रकार कहा जा सकता है -‘‘बिलासा महोत्सव का परिचय डॉ. सोमनाथ यादव एवं डॉ. सोमनाथ का परिचय बिलासा महोत्सव है।‘‘ गिरीश पंकज के शब्दो में -‘‘बिलासा कला मंच यानी लोक चेतना का संवाहक‘‘। डॉ. पीसी लाल यादव के शब्दों में -‘‘लोक संस्कृति का संवाहक-बिलासा महोत्सव‘‘ । फलतः लोक-चेतना लोक-संस्कृति के संवाहक-डॉ. सोमनाथ यादव हैं।

डॉ. सोमनाथ यादव बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वह केवल बिलासा कला मंच के संस्थापक ही नहीं है अपितु पत्रकार, संपादक, लेखक, कवि, प्राध्यापक, स्काउटर के रूप में भी प्रख्यात हैं ।  इन विभिन्न क्षेत्रों में इनकी केवल उपस्थिति ही नहीं अपितु दखल भी है ।
पत्रकार के रूप में दैनिक स्वदेश बिलासपुर, दैनिक सांध्य समीक्षक समाचार, राष्ट्रीय हिन्दी पाक्षिक लोकायत नई दिल्ली में सेवा देते हुये दैनिक जागरण के ब्यूरोचीफ के पद पर भी कार्यरत रहे । पत्रकार रहते हुये लोक-स्वर को ही ध्वनित किया ।

सम्पादक के रूप में संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘बिहनिया‘ में उपसम्पादक रहते हुए छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजने का ही प्रयास किया । एक लेखक के रूप में शोधग्रन्थ-‘बांॅसगीत-गाथा‘ देकर हमारे छत्तीसगढ़ के भूले-बिसरे लोक विधा को पुनः प्रकाशवान करने का भगीरथ प्रयास किया है। उनके चुनिंदा किताबों में ‘लोकनाट्य संदर्भ छत्तीसगढ़‘, ‘छत्तीसगढ़ के लोक संगीत‘, ‘छत्तीसगढ़ की लोककथाएॅं‘‘, ‘बांॅसगीत एवं गाथा‘, ‘छत्तीसगढ़ समग्र‘, ‘एक आदर्श गॉंव‘ एवं ‘बिलासा और बिलासपुर‘ प्रमुख हैं । इन सभी किताबों का केन्द्रीय भाव एक ही है-‘छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति एक गौरवशाली परम्परा है जिसे केवल स्मरण ही नहीं करना है अपितु लोक जीवन का पुनः गुंजायमान भी करना है ।‘

हमारी लोक संस्कृति लोक भाषा के बिना पंगु है ।  इसे प्रगतिशील रहने के लिये छत्तीसगढ़ी भाषा का गतिमान होना भी आवश्यक है ।  इस बात से डॉ. सोमनाथ यादव जी भली-भांति परिचित हैं, इसी उद्देश्य को लेकर उन्होंने समाज को ‘छत्तीसगढ़ी-हिन्दी‘ शब्दकोष दिया हैं।  ‘छत्तीसगढ़ी दोहे‘ के माध्यम से हमारे छत्तीसगढ़ में बात-बात में दोहा बोलने, राउत नाचा के दोहों के संस्कृति को संरक्षित रखने का सद्प्रयास है । सांस्कृतिक केन्द्र नागपुर भारत सरकार द्वारा निर्मित डाक्यूमेंटरी फिल्म ‘लोरिक चंदा‘ श्री यादवजी का ‘चरामेति चरामेति चलिश्यामा‘ ध्येय वाक्य का अनुगमन है ।
सत्कर्मो का पुण्यफल मिलना प्राकृतिक सत्य है । डॉ. यादव को जो मान सम्मान प्राप्त हुये हैं उनकी सूची बहुत लम्बी है- एशिया पैसेपिक अवार्ड, कला गुरू सम्मान, साहित्य साधना सम्मान आदि । इसके उपरांत भी इनके कार्यो की तुलना में ये सम्मान बौने ही प्रतीत होते हैं ।
डॉ. सोमनाथ यादव के अभी तक के कर्मपथ का सूक्ष्म अवलोकन करने पर  हम पाते हैं कि वह कंटक भरी पगडंडियों पर अपने आत्मबल से आगे बढ़ रहे हैं । ‘बिलासा कला मंच‘ की स्थापना से लेकर ‘अरपा नदी बचाओ आंदोलन‘ तक लोक संस्कृति, लोक चेतना रूपी गंगा अवतरण हेतु भगीरथ प्रयास है। अरपा नदी के उद्गम से संगम तक के 165 किलोमीटर की यात्रा कर जो जनजागरण अभियान चलाया जा रहा है, वह लोक चेतना को झंकृत करने का एक नूतन पथ है ।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति, साहित्य एवं कला पर कार्य करते हुए अनेक शोधपरक किताबों का प्रकाशन करके एवं लुप्त हो रहे छत्तीसगढ़ की कला, संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन हेतु सतत् विभिन्न आयोजन करके निश्चित रूप से डॉ. सोमनाथ यादव लोक चेतना, लोक संस्कृति के संवाहक हैं ।

-रमेशकुमार सिंह चौहान
अध्यक्ष, श्रीशमीगणेश साहित्य समिति
नवागढ़, जिला-बेमेतरा (छ.ग.)
मो. 9977069545

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रमेश जी, सादर अभिवादन।

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  2. आपके सद् प्रयासों को लिपिबद्ध करने का एक छोटा सा प्रयास है, आदरणीय

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  3. सोमनाथ यादव की अग्रगामी सोच और निरंतर सक्रियता उन्हें विलक्षण व्यक्ति के रूप में स्थापित करती है। उनकी संगठन क्षमता प्रशंसनीय है, समयबद्धता अनुकरणीय है और साफगोई मजेदार है। हमारे शहर को अनेक सोमनाथ चाहिए, एक से काम नहीं चलता।

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