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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

बुधवार, 15 दिसंबर 2021

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

 

 मानव जीवन में सच्चाई क्या है?

मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवाज़ हम अपने कानों से सुनते हैं, जीभ से जो स्‍वाद लेते हैं, सच्चाई है क्या? अनुभूत की अनुभूति होती है ताेे क्‍या इनमें से कोई एक या सभी सत्‍य हैं ? अथवा इनसे अलग और कुछ ऐसा है जिसे सत्य कहा जाता है। इस पर विचार करते हुए, हम पाते हैं कि शरीर का अस्तित्व आत्मा के बिना नहीं है और आत्मा का अस्तित्व होते हुए भी शरीर के बिना उसे अनुभव नहीं किया जाता है।

आत्मा शाश्वत सत्य है

शरीर और आत्मा एक दूसरे के पूरक हैं। हालांकि, यह कहा जा सकता है कि शरीर और आत्मा दोनों ही हैं  सच।  इसकी सत्यता फूल में खूशबू, फल में स्वाद के समान है। जैसे फूल में खूशबूू और फल में स्‍वाद होता है, जिसमें एक दृष्टिगोचर और दूसरा अनुभूत उसी तरह से  शरीर में आत्‍मा है । आत्मा के बिना शरीर शव हो जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथ श्रीमदभगवद गीता के अनुसार, आत्मा कभी पैदा नहीं होती है और न ही मरती है, यह शाश्वत अमर है।  जन्म शरीर का होता है और शरीर में ही बचपन, जवानी और बुढ़ापे के विभिन्न चरण होते हैं।  इसलिए, मृत्यु भी केवल शरीर की है, इसका मतलब है कि शरीर और आत्मा दोनों सत्य होने के बावजूद, आत्मा शाश्वत सत्य है। सत्य का अर्थ है शाश्वत जिसमें न लिंग भेद है, न जातिगत भेद है, न ही अन्‍य कोई भेद है। 

सत्य को तो केवल अनुभव किया जा सकता है

जो भी हो हर परिस्थिति का सच है, वही सत्य है । यदि एक हजार लोग एक दृश्य देख रहे हैं और उनसे बाद में पूछा जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति के देखने के तरीके में अंतर दिखाई देगा।  अर्थात् उन सभी लोगों ने सत्य को देखा है लेकिन सत्य को व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं जैसा कि वह है, अर्थात सत्य। इस प्रकार आँखों से देखा गया भी सत्य नहीं हो सकता । इसी प्रकार सुना भी सत्य नहीं होता । सत्य को तो केवल अनुभव किया जा सकता है । अनुभवगम्य सत्य ही ईश्वर है । सत्य ही सत्य है। ईश्वर ही ईश्वर है । ईश्वर ही सत्य है । सत्य ही ईश्वर है ।

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बदलते हुये जीवन के लिये लक्ष्‍य का निर्धारण कैसे करें और उसे कैसे प्राप्‍त करें

बदलते हुये जीवन के लिये  लक्ष्‍य का निर्धारण कैसे करें और उसे कैसे प्राप्‍त करें


How to set Goal  and achieve them for changing lief




दोस्‍तों, जीवन में तो हर कोई Success होना चाहता है किन्‍तु  सभी Success नही हो पाते । जीवन में सफलता प्राप्‍त करना एक art होने के साथ-साथ एक well planed process भी है । यदि हमको जीवन में Success होना है तो इस process को समझना होगा और follow भी करना होगा । दोस्‍तों आज हम इसी topic पर चर्चा करेंगे ।


दोस्‍तों जीवन में सफल होने के लिये सबसे पहले हमें अपने लिये एक लक्ष्‍य , एक Goal तय करना पड़ेगा फिर उस Goal  को  achieve करने के लिये एक  plane बनाना होगा और उस  plane को अच्‍छे से follow करना पड़ेगा । इसी  process को art of life की तरह present करना होगा ।


सबसे पहले देखते हैं कि लक्ष्‍य का निर्धारण कैसे किया जाता है How to set Goal  वास्‍तव में किसी Goal को  achieve करना जितना  कठीन होता है उससे कम कठीन Goal set करना नहीं होता । जैसे एक Shooter को Shoot करने से पहले और कहीं उससे ज्‍यादा  Target  को Focus करने में मेहनत करना पड़ता है । ठीक उसी प्रकार जब हमें Success होना है तो अपने लिये एक Target , एक Goal set करना आवश्‍यक होगा । यदि आपको कहीं जाना हो तो सबसे पहले तो उस स्‍थान को find out करेंगे जहां हमें जाना है फिर वहां जाने के रास्‍ते तलाश करेंगे जब हम पूरी तरह से sure हो जायेंगे तभी चलना प्रारंभ करेंगे । यही Condition Success होने का भी है ।


जीवन के हर मोड़ में Goal अलग प्रकार से हो सकता है । जैसे एक student के लिये परीक्षा में अच्‍छा प्रदर्शन करना Goal  हो सकता है तो Competitive contestant में winer होना Goal  होता है । एक पेशेवर व्‍यक्ति को अपने पेशे शिखर पर, pick  पर पहुँचना ही Goal  होता है ।  सबसे पहले impartent factor तो यही होगा कि हम Goal  को समझें  । for a example  यदि आपको किसी Theater में film देखनी है तो Theater पहुँचना Goal  होगा कि time पर Theater पहुँचना Goal  होगा । यदि आप पूरी film  का लुत्‍फ उठाना चाहते हैं तो time पर Theater पहुँचना Goal  set करना  होगा । इस प्रकार सबसे पहले तो अपने Goal  को पहचानना पड़ेगा । अपने Goal  को पहचान कर लेने पर ही हम अपने लिये Goal set  कर सकते हैं ।


अब प्रश्‍न उठता है अपने लक्ष्‍य का अपने Goal  का पहचान कैसे करें ? जिस विषय में आप सोते जागते सोचते रहते हैं जिसे हर समय पाने के लिये मन में टिस पैदा होता है, वही विषय आपको अपने Goal  पहचान करा सकता है । यदि आप सचमुच उस Undefined Goal  को define करना चाहते है तो आपको अपने उस उत्‍कंठा या attechment को relasie करना पड़ेगा जिसके बारे में सोते-जागते सोचते रहते हैं ।


आपका लक्ष्‍य समय के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं तो एक ही समय पर एक से अधिक लक्ष्‍य भी हो सकते हैं । ये Goal Short term या long term के हो सकते हैं । लेकिन ये सभी Goal एक दूसरे के पूरक होते हैं । जैसे कि यदि कोई Business में अपना Carrier बनाना चाहता है तो Business open करना Short term Goal होगा और Business को Successfully run करना long term Goal होगा किन्‍तु Business open किये बिना Successfully run  करना  possible इसी प्रकार यदि Successfully run  नहीं करना है तो Business open  करने का क्‍या लाभ ? इस प्रकार ये दोनों Goal  एक दूसरे के पूरक हैं, एक दूसरे के Supplement हैं ।


Goal  set कर लेने  के बाद  यह समझना होगा कि  उस Goal को  achieve कैसे करें ?  जिस प्रकार किसी स्‍थान में जानने के लिये उस स्‍थान के पहचान के बाद वहॉं पहुँचने के लिये roadmap चाहिये फिर एक माध्‍यम चाहिये उसी प्रकार Goal  set कर लेने  के बाद  उस Goal  तक पहुँचन के लिये एक roadmap  की जरूरत पड़ती है ।  जिस प्रकार कहीं जाने के हम किसी जानकर रास्‍ता पूछते हैं उसी प्रकार Goal  तक पहुँचन के लिये  किसी जानकर मतलब ऐसे व्‍यक्ति जो अपने Goal को  achieve  कर लिये हैं उनसे  रास्‍ता जानकर  अपने लिये एक एक roadmap  बनाना चाहिये ।


roadmap set कर लेने  के बाद आवश्‍यकता उस पर चलने का, उन उपायों पर follow करने का जिससे हम भी अपने Goal को  achieve कर सकते हैं । इस roadmap पर चलने का साधन हमारा मन और आत्‍म विश्‍वास होता है । जैसे किसी vehicle के माध्‍यम से travle करते हैं, उसी प्रकार Goal को  achieve करने roadmap पर चलने के लिये हमारा मन, हमारा Self-confidence ही एक vehicle या माध्‍यम है । हमारे समाज में कुछ मुहावरे प्रचलित जैसे -मन चंगा तो कठौती में गंगा', 'मन से जीते जीत है मन से हारे हार' ऐसे भी एक अदना सा व्‍यक्ति भी सलाह देते समय यह कह देता है कि मन से काम करो । मन ही आत्‍मविश्‍वास का आधार है मन का मजबूत होना ही Self-confidence इसी vehicle  से हम Goal को  achieve कर सकते हैं ।


इसके अतिरिक्‍त Goal को  achieve करने के लिये एक Plan draw करना चाहिये जिसमें time को underline करना चाहिये । क्‍योंकि समय पर किया गया कार्य का महत्‍व होता है समय निकल जाने के बाद उसका कोई महत्‍व नहीं रह पाता । इसलिये timeplane आवश्‍यक है ।


roadmap set कर लेने  के बाद और Plan draw कर लेने के पश्‍चात उस पर अब चलना आवश्‍यक होता है । इस समय सबसे बड़ा हथियार धैर्य मतलब Patience होता है ।  यह तो जानते और मानते हैं सीढ़ी चढ़ते समय पहली सीढ़ी से दूसरी, फिर तीसर और अंतिम पर पहुँचा जा सकता है सीधे-सीधे आखरी सीढ़ी पर नहीं पहुँचा जा सकता और यदि कोई उछल कर पहुँचने का प्रयास करता है तो गिरने की आशंका होती है । इसलिये step by step हमें Patience रखकर move करना होगा ।


  • यदि इन सारी बातों को pointout  किया जाये तो कुछ इस प्रकार कह सकते हैं -


  1. Identify your goal अपने लक्ष्‍य को पहचाहनये ।

  2. Set your goal अपने लक्ष्‍य को तय कीजिये ।

  3. Learn from successful people सफल व्‍यक्तियों से सीखें

  4. understand how to get success सफलता कैसे प्राप्‍त होता है इसे समझे

  5. make a raodmap and draw a plan एक रास्‍ता का चयन करें और योजना बनायें

  6. Believe in yourself अपने आप पर विश्‍वास करें ।

  7. Be patient धैर्य रखे

  8. Move towards the goal निरंतर लक्ष्‍य की ओर चलें ।

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

वैदिक ज्‍योतिष-एक मूल्‍यांकन

वैदिक संस्‍कृति-

चित्र गुगल से साभार

  • भारतीय संस्‍कृति को वैदिक संस्‍कृति भी कहते हैं क्‍योंकि प्राय: हर बातों का संबंध किसी न किसी रूप में वेदों से जुड़ा होता है । यही कारण है कि कुछ विद्वान यह मानते हैं कि विश्‍व में जो भी ज्ञान है या भविष्‍य में जो भी ज्ञान होने वाला वह सभी ज्ञान वेदों पर ही अवलंबित है अवलंबित रहेंगे । ज्‍योतिष को भी वेदों का ही अंग माना गया है ।


  • वेदों के अँग- वेदों के 6 प्रमुख अंग माने गये हैं । ये हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त,ज्योतिष और छन्द । ज्‍योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है । नेत्र का कार्य देखना होता है इस लिये ज्‍योतिष का कार्य भविष्‍य को देखना है  ।


ज्‍योतिष क्‍या है ?

  • ज्‍योतिष का शाब्दिक अर्थ ज्‍योति या प्रकाश करने वाला होता है । वेदो के अनुसार- ''ज्‍योतिषां सूर्यादि ग्रहाणं बोधकं शास्‍त्रम्'' अर्थात ज्‍योतिष सूर्य आदि ग्रहों का बोध कराने वाला शास्‍त्र है । वर्तमान भारतीय ज्‍योतिषाचार्यो के अनुसार -'ज्‍योतिष  ग्रह आदि (राशि, नक्षत्र) और समय का ज्ञान कराने वाला वह विज्ञान है, जो जीवन-मरण के रहस्‍यों और सुख-दुख के संबंध को एक ज्‍योति अर्थात ज्ञान के रूप में प्रस्‍तुत करता है । वास्‍तव ज्‍योतिष गणित विज्ञान का अँग है जो समय और अक्षांश-देशांश के जटिल काल गणानों से प्राप्‍त हाने वाली एक सारणी है जिस सारणी का अर्थ करना फलादेश कहलाता है ।


क्‍या ज्‍योतिष पर विश्‍वास करना चाहिये ?

  • 'देर के ढोल सुहाने' और घर की मुर्गी दाल बराबर'  ये दो कथन हमारे भारतीय समाज में सहज में ही सुनने को मिल जाते हैं । यह अनुभवगम्‍य भी लगता है नई पीढ़ी को  वैचारिक स्‍वतंत्रता के नाम पर विदेशी संस्‍कृती 'दूर के ढोल सुहाने' जैसे रूचिकर लगते हैं और भारतीय संस्‍कृति 'घर की मुर्गी दाल बराबर' लगती है । इस संदर्भ में ऐसे वैचारिक लोगों को अपने आप से एक प्रश्‍न पूछना चाहिये कि Western astrology प्रचलन में क्‍यो है ? Western astrology भी ग्रहों की गणना पर आधरित है जो गणना से अधिक फलादेश कहने पर विश्‍वास करती है । आप पर कोई दबाव नहीं है कि आप ज्‍योतिष पर विश्‍वास करें । हॉं इतना आग्रह जरूर है कि जो ज्‍योतिष पर विश्‍वास करते हैं उनकी आप अवहेलना भी न करें ।


पाश्‍चात्‍य ज्‍योतिष एवं वैदिक ज्‍योतिष में अंतर-

  1. दोनों में पहला अंतर तो समय का ही है । जहॉं वैदिक ज्‍योतिष वैदिक कालिन है वहीं पाश्‍चात्‍य ज्‍योतिष को ग्रीस के बौद्धिक विकास से जोड़ कर देखा जाता है । 

  2. दूसरा प्रमुख अंतर इनके दृष्टिकोण का है जहॉं पाश्‍चात्‍य ज्‍योतिष व्‍यक्ति के व्‍यक्तित्‍व एवं मनोविज्ञान पर जोर देता है वहीं वैदिक ज्‍योतिष जीवन-मृत्‍यु दोनों का सर्वांग चित्रण करता है ।

  3. पाश्‍चात्‍य ज्‍योतिष सायन सिद्धांत पर आधारित सूर्य प्रधान है जबकि वैदिक  ज्‍योतिष निरयन सिद्धांत पर आधारित नवग्रह, 12 राशि और 27 नक्षत्रों पर विचार करती है । 


वैदिक ज्‍योतिष का महत्‍व-

  • पाश्‍चात्‍य ज्‍योतिष केवल संभावित घटनाओं का प्रत्‍यक्ष चित्रण करने में विश्‍वास करती हैं वही वैदिक ज्‍योतिष  जीवन और जीवन के बाद मृत्‍यु के बारे में सटिक व्‍याख्‍या करने पर जोर देती है । वैदिक ज्‍योतिष में दशा प्रणाली अंतरदशा, महादशा आदि को अपने आप सम्मिलित करती है जो सटिक भविष्‍यवाणी करने में मदद करती है । वेदिक ज्‍योतिष भविष्‍य के उजले पक्ष के साथ-साथ स्‍याह पक्ष को भी उजागर करती है । सबसे बड़ी विशेषता वैदिक ज्‍योतिष समस्‍या को  बतलाने के साथ-साथ उस समस्‍या से निपटने का उपाय भी सुझाती है । 


ज्‍योतिष पर प्रश्‍नवाचक चिन्‍ह क्‍यों ?

  • किसी भी बात पर प्रश्‍न तभी उठााया जाता है जब वह उसके अनुकूल न हो ।  लेकिन ज्‍योतिष के संदर्भ अधिकांश प्रश्‍न ज्‍योतिष के मूल्‍यांकन किये बिना ही उठा दिया जाता है कि यह अंधविश्‍वास है । अंधविश्‍वास वही न होगा जिसका बिना परीक्षण के उस पर विश्‍वास कर लिया जाये । इसी संदर्भ में यह भी तो कहा जाता है जो इसे ज्‍योतिष को अंधविश्‍वास कह रहे हैं वह स्‍वयं तो अंधविश्‍वासी नहीं है किसी न कहा ज्‍योतिष अंधविश्‍वास है और वह बिना परिक्षण किये उसके राग में अपना राग मिला दिये । पहले परीक्षण किया जाना चाहिये फिर परिणाम कहा जाना चाहिये । ज्‍योतिष विज्ञान है या अंध विश्‍वास आपके परीक्षण पर निर्भर करता है ।


  • दूसरी बात जैसे किसी व्‍यक्ति से कहा जाये इस विज्ञान के युग में आप आक्‍सीजन और हाइड्रोजन से पानी बनाकर दिखाओं तो हर कोई पानी बनाकर नहीं दिखा सकता । यदि कोई इससे पानी नहीं बनापाया तो क्‍या विज्ञान झूठा हो गया । जिसप्रकार एक कुशल विज्ञानी ही प्रयोगशाला में आक्‍सीजन और हाइड्रोजन के योग से पानी बना सकता है ठीक उसी प्रकार केवल और केवल एक कुशल ज्‍योतिषाचार्य ही ज्‍योतिष ज्ञान के फलादेश ठीक-ठाक कह सकता है ।


शनिवार, 11 जुलाई 2020

वार्णिक एवं मात्रिक छंद कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियम

कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियम



वर्ण

‘‘मुख से उच्चारित ध्वनि के संकेतों, उनके लिपि में लिखित प्रतिक को ही वर्ण कहते हैं ।’’

हिन्दी वर्णमाला में 53 वर्णो को तीन भागों में भाटा गया हैः

1. स्वर-

अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ. अनुस्वार-अं. अनुनासिक-अँ. विसर्ग-अः
2. व्यंजनः
क,ख,ग,घ,ङ, च,छ,ज,झ,ञ. ट,ठ,ड,ढ,ण,ड़,ढ़, त,थ,द,ध,न, प,फ,ब,भ,म, य,र,ल,व,श,ष,स,ह,
3. संयुक्त वर्ण-
क्ष, त्र, ज्ञ,श्र

वर्ण गिनने नियम-

1. हिंदी वर्णमाला के सभी वर्ण चाहे वह स्वर हो, व्यंजन हो, संयुक्त वर्ण हो, लघु मात्रिक हो या दीर्घ मात्रिक सबके सब एक वर्ण के होते हैं ।
2. अर्ध वर्ण की कोई गिनती नहीं होती ।


उदाहरण- 
कमल=क+ म+ल=3 वर्ण
पाठषला= पा +ठ+ षा+ ला =4 वर्ण
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
कंप्यूटर=कंम्प्+ यू़+ ट+ र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)


मात्रा-

वर्णो के ध्वनि संकेतो को उच्चारित करने में जो समय लगता है उस समय को मात्रा कहते हैं ।

यह दो प्रकार का होता हैः
1. लघु- जिस वर्ण के उच्चारण में एक चुटकी बजाने में लगे समय के बराबर समय लगे उसे लघु मात्रा कहते हैं। इसका मात्रा भार 1 होता है ।
2. गुरू-जिस वर्ण के उच्चारण में लघु वर्ण के उच्चारण से अधिक समय लगता है उसे गुरू या दीर्घ कहते हैं ! इसका मात्रा भार 2 होता है ।

लघु गुरु निर्धारण के नियम-

  1. हिंदी वर्णमाला के तीन स्वर अ, इ, उ, ऋ एवं अनुनासिक-अँ लघु होते हैं और इस मात्रा से बनने वाले व्यंजन भी लघु होते हैं । लघु स्वरः-अ,इ,उ,ऋ,अँ लघु व्यंजनः- क, कि, कु, कृ, कँ, ख, खि, खु, खृ, खँ ..इसी प्रका
  2. इन लघु स्वरों को छोड़कर शेष स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ और अनुस्वार अं गुरू स्वर होते हैं तथा इन से बनने वाले व्यंजन भी गुरु होता है ।गुरू स्वरः- आ, ई,ऊ, ए, ऐ, ओ, औ,अं गुरू व्यंजन:- का की, कू, के, कै, को, कौ, कं,........इसी प्रकार
  3. अर्ध वर्ण का स्वयं में कोई मात्रा भार नहीं होता,किन्तु यह दूसरे वर्ण को गुरू कर सकता है । 
  4. अर्ध वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द में मात्रा के दृष्टिकोण से भी अर्ध वर्ण को छोड़ दिया जाता है । 
  5. किंतु यदि अर्ध वर्ण शब्द के मध्य या अंत में आवे तो यह उस वर्ण को गुरु कर देता है जिस पर इसका      उच्चारण भार पड़ता है । यह प्रायः अपनी बाँई ओर के वर्ण को गुरु करता है । 
  6. यदि जिस वर्ण पर अर्ध वर्ण का भार पड़ रहा हो वह पहले से गुरु है तो वह गुरु ही रहेगा ।
  7. संयुक्त वर्ण में एक अर्ध वर्ण एवं एक पूर्ण होता है, इसके अर्ध वर्ण में उपरोक्त अर्ध वर्ण नियम लागू होता है ।

उदाहरण-
रमेश=र + मे+ श=लघु़+गुरू +लघु=1+2+1=4 मात्रा
सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
तुम्हारा=तु़+म्हा+रा=लघु +गुरू+गुरू =1+2+2=5 मात्रा
कंप्यूटर=कंम्प्यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
यज्ञ=यग्य+=गुरू+लघु=2+1=3
क्षमा=क्ष+मा=लघु+गुरू =1+2=3


वर्णिक एवं मात्रिक में अंतर-

जब उच्चारित ध्वनि संकेतो को गिनती की जाती है तो वार्णिक एवं ध्वनि संकेतों के उच्चारण में लगे समय की गणना लघु, गुरू के रूप में की जाती है इसे मात्रिक कहते हैं ! मात्रिक मात्रा महत्वपूर्ण होता है वार्णिक में वर्ण महत्वपूर्ण होता है ।

उदाहरण
रमेश=र + मे+ श=लघु़+गुरू +लघु=1+2+1=4 मात्रा
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण

सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)

कंप्यूटर=कंम्प्यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
कंप्यूटर=कंम्प्+ यू़+ ट+ र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)

आशा ही नहीं विश्‍वास है आप वर्ण मात्रा गणना अच्‍छे से सीख गये होंगे ।
-रमेश चौहान

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियम एवं प्रकार

घनाक्षरी एक सनातन छंद की विधा होने के बाद भी आज काव्य मंचों में सर्वाधिक पढ़े जाने वाली विधा है । शायद ऐसा कोई काव्य मंच नहीं होगा जिसमें कोई न कोई कवि घनाक्षरी ना पढ़े । 
हिंदी साहित्य के स्वर्णिम युग जिसे एक प्रकार से छंद का युग भी कह सकते हैं, में घनाक्षरी विशेष रूप से प्रचलित रहा है । इस घनाक्षरी छंद की परिभाषा इसके मूलभूत नियम एवं इनके प्रकार पर आज पर चर्चा करेंगे। साथ ही वर्णों की गिनती किस प्रकार की जाती है ? और लघु गुरु का निर्धारण कैसे होता है ? इस पर भी चर्चा करेंगे ।

घनाक्षरी छंद की परिभाषा-
"घनाक्षरी छंद, चार चरणों की एक वर्णिक छंद होता है जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है ।" इसे कवित्त भी कहा जाता है और कहीं कहीं पर इसे मुक्तक की भी संज्ञा दी गई है ।

घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियम-

1. घनाक्षरी में चार चरण या चार पद होता है।
2. प्रत्येक पद स्वयं चार भागों में बंटे होते हैं इसे यति कहा जाता है ।
3. प्रत्येक चरण के पहले 3 यति पर 8,8,8 वर्ण निश्चित रूप से होते हैं ।
4. चौथे चरण पर 7, 8, या 9 वर्ण हो सकते हैं । इन्हीं वर्णों के अंतर से घनाक्षरी का भेद बनता है ।
5. इस प्रकार घनाक्षरी के प्रत्येक पद में कूल 31,32, या 33 वर्ण होते हैं जो 8,8,8,7 या 8,8,8,8 या 8,8,8,9 वर्ण क्रम में होते हैं ।
6. प्रत्येक पद के चौथे चरण में वर्णों की संख्या और अंत में लघु गुरु के भेद से इसके प्रकार का निर्माण होता है ।
7.इसलिए घनाक्षरी लिखने से पहले घनाक्षरी के भेद और उनकी लघु गुरु के नियम को समझना होगा ।

घनाक्षरी छंद के प्रकार-
घनाक्षरी छंद मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं जिसके चौथे चरण में वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है ।

  1.  जिसके चौथे चरण में 7 वर्ण हो-

जैसे कि ऊपर देख चुके हैं कि घनाक्षरी छंद में चार चरण होते हैं जिसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण  निश्चित रूप से होते हैैं । किंतु चौथे चरण में वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है । जब चौथे चरण में 7 वर्ण आवे तो निम्न प्रकार से घनाक्षरी छंद का निर्माण होता है-
  • मनहरण घनाक्षरी-
  • मनहरण घनाक्षरी सर्वाधिक प्रयोग में आई जाने वाली घनाक्षरी है । इसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण निश्चित रूप से होते हैं और सातवें चरण में 7 वर्ण होता है । प्रत्येक चौथे चरण का अंत एक गुरु से होना अनिवार्य होता है । इसके साथ ही चारों चरण में सम तुकांत शब्द आनी चाहिए । यदि प्रत्येक चरण का अंत लघु गुरु से हो तो गेयता की  दृष्टिकोण से अच्छी मानी जाती है।
  • जनहरण घनाक्षरी-
  • जनहरण घनाक्षरी बिल्कुल मनहरण घनाक्षरी जैसा ही है इसके भी पहले तीन चरण में 8,8,8 और चौथे चरण में 7 वर्ण होते हैं और इसका भी अंत एक गुरु से होता है । अंतर केवल इतना ही है के चरण के अंत के गुरु को छोड़ बाकी सभी वर्ण निश्चित रूप से लघु होते हैं । इस प्रकार घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 30 लघु के बाद एक गुरु हो तो जनहरण घनाक्षरी का निर्माण होता है।
  • कलाधर घनाक्षरी-
  • कलाधर घनाक्षरी भी मनहरण एवं जनहरण घनाक्षरी के समान ही होता है जिसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण एवं अंतिम चौथे चरण में 7 वर्ण होते हैं तथा जिसका अंत भी गुरु से ही होता है । अंतर केवल इसमें इतना ही है की यह गुरु से शुरू होकर एकांतर क्रम पर गुरु लघु गुरु लघु गुरु लघु क्रमवार आता है । अर्थात इसमें गुरु लघु की 15 बार आवृत्ति होती है और अंत में गुरु आता है ।

        2.जिस के चौथे चरण में 8 वर्ण होते हैं-

सभी घनाक्षरी के पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण  ही होते हैं यदि चौथे चरण में भी 8 वर्ण हो तो निम्न प्रकार के घनाक्षरी छंद बनते हैं-
  • रूप घनाक्षरी-रूप घनाक्षरी के चारों चरण में 8,8,8,8 व निश्चित रूप से होते हैं तथा जिसका प्रत्येक चरण का अंत निश्चित रूप से लघु से होता है साथ ही चारों चरण के अंत में समतुकांत शब्द होते हैं ।
  • जलहरण घनाक्षरी-जल हरण घनाक्षरी बिल्कुल रूप घनाक्षरी जैसे ही होता है इसके भी चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण होते हैं और अंतिम भी लघु से होता है ।अंतर केवल इतना होता है कि प्रत्येक चरण के अंतिम लघु से पहले एक और लघु होता है अर्थात प्रत्येक चरण का अंत दो लघु (लघु लघु) से हो तब जलहरण घनाक्षरी बनता है ।
  • डमरु घनाक्षरी-डमरु घनाक्षरी भी जलहरण घनाक्षरी और रूप घनाक्षरी के समान ही होता है जिसके चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण  र्होते हैं तथा अंत भी लघु से होता है । अंतर केवल इतना ही होता है की डमरु घनाक्षरी के सभी  वर्ण लघु होते हैं । इस प्रकार जब 8,8,8,8 क्रम के सभी वर्ण लघु लघु में हो तो डमरू छंद बनता है ।
  • किरपान घनाक्षरी छंद-इसके चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण होने के बाद भी यह पूर्ण रूप से रूपघनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी से भिन्न होता है । इसके प्रत्येक 8 वर्ण में सानुप्रास आना चाहिए अर्थात प्रत्येक यति में 2 शब्द समतुकांत शब्द होनी चाहिए । प्रत्येक चरण का अंत गुरु लघु से होता है 
  • इसे इस उदाहरण से समझ लेते हैं-"बसु वरण वरण, धरी चरण चरण, कर समर बरण, गल धरि किरपान ।यहां  वरण वरण, चरण चरण  और समर बरन में सानुप्रास है ।
  • विजया घनाक्षरी छंद-विजया घनाक्षरी छंद के प्रत्येक चरण में 8, 8,8,8 वर्ण होते हैं । प्रत्येक यति में अर्थात सभी 8 8 वर्ण का अंत नगण (लघु लघु लघु) या लघु गुरु से होना चाहिए ।

    3. जिसके चौथे चरण में 9 वर्ण हो-

    इस प्रकार के घनाक्षरी छंद के पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण एवं चौथे चरण में 9 वर्ण होते हैं  ।
  • देव घनाक्षरी छंद-छंद में 8,8,8,9 वर्णक्रम होते हैं और प्रत्येक चरण का अंत नगण (लघु लघु लघु) अर्थात तीन बार लघु से होता है ।

  • वर्ण गिनने नियम-

  1. हिंदी वर्णमाला के सभी वर्ण चाहे वह स्वर हो, व्यंजन हो, संयुक्त वर्ण हो, लघु मात्रिक हो या दीर्घ मात्रिक सबके सब एक वर्ण के होते हैं ।
  2. अर्ध वर्ण की कोई गिनती नहीं होती ।
उदाहरण- 
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण
सत्य=सत्+य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)

लघु गुरु निर्धारण के नियम-

  1. हिंदी वर्णमाला के तीन स्वर अ, इ, उ, लघु होते हैं और इस मात्रा से बनने वाले व्यंजन भी लघू होते हैं 
  2. इन लघु स्वरों को छोड़कर शेष स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ और इन से बनने वाले व्यंजन सभी गुरु होती हैं ।
  3.  चंद्रबिंदु और ऋ की मात्रा जिस पर आवे वह लघु होता है ।
  4. अर्ध वर्ण का स्वयं में कोई भार नहीं होता । इसलिए अर्ध वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द में मात्रा के दृष्टिकोण से भी अर्ध वर्ण को छोड़ दिया जाता है । 
  5. किंतु यदिअर्ध वर्ण, शब्द के मध्य या अंत में आवे तो यह उस वर्ण को गुरु कर देता है जिस पर इसका उच्चारण भार आवे । या पराया अपनी पाई और के वर्ण को गुरु करता है ।केवल "ह"वर्ण के पहले कोई अर्ध वर्ण आवे तो 'ह' गुरु हो जाता है ।
  6. यदि जिस वर्ण पर अर्ध वर्ण का भार पड़ रहा हो वह पहले से गुरु है तो वह गुरु ही रहेगा ।
उदाहरण-
रमेश=र+म+श=लघु+गुरु+लघु
सत्य=सत्+य=गुरु+लघु
तुम्हारा=तु+म्हा+रा=लघु+गुरु+गुरू
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=गुरु+गुरु+लघु+लघु
लघु का मात्रा भार एक एवं गुरु का मात्रा भार-2 होता है ।

वर्णिक एवं मात्रिक में अंतर-

जब लघु गुरु में भेद किए बिना ही वर्णों की गिनती की जाती है तो इसे वार्णिक कहते हैं । किंतु जब इसमें लघु एवं गुरु के मात्र का भार क्रम से एक और दो के आधार पर गिनती की जाती है तो इसे मात्रिक कहते हैं ।
उदाहरण
रमेश=र+म+श=लघु+गुरु+लघु=1+2+1=3 3 मात्रा किंतु इसमें तीन वर्ण है ।
सत्य=सत्+य=गुरु+लघु=2+1=3 मात्रा किंतु दो वर्ण
तुम्हारा=तु+म्हा+रा=लघु+गुरु+लघु=1+2+1=4 मात्रा किंग 3 वर्ण
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=गुरु+गुरु+लघु+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा किंतु चार वर्ण ।

घनाक्षरी छंद के उदाहरण-
रखिये चरण चार, चार बार यति धर
तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ ।
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण वर्ण गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ ।
गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।

आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ सानुप्रास, ‘कृपाण’ नाम करण ।।
यदि प्रति यति अंत, रखे नगण-नगण
हो ‘विजया’ घनाक्षरी, सुजश मन भरण ।
आठ-आठ आठ-नव, अंत तीन लघु रख
नाम देवघनाक्षरी, गहिये वर्ण शरण ।।
वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमन
नियम-धियम आप, धैर्य धर  जानिए ।।
आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रख
चार बार यति कर,  चार पद तानिए ।।
गति यति लय भर, चरणांत गुरु धर
साधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।
सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम, 
चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए ।।

-रमेश चौहान


आशा ही नहीं विश्वास है आप घनाक्षरी छंद को अच्छे से समझ पाए होंगे ।

मंगलवार, 26 मई 2020

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता है

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता है




भूमि की सतह और भूमि के अंदर जल स्रोतों में अंतर संबंध होते हैं ।जब भूख सतह पर जल अधिक होगा तो स्वाभाविक रूप से भूगर्भ जल का स्तर भी अधिक होगा ।
भू सतह पर वर्षा के जल नदी नालों में संचित होता है यदि नदी नालों की सुरक्षा ना की जाए तो आने वाला समय अत्यंत विकट हो सकता है ।
नदी नालों पर तीन स्तर से आक्रमण हो रहा है-
1. नदी नालों के किनारों पर भूमि अतिक्रमण से नदी नालों की चौड़ाई दिनों दिन कम हो रही है, गहराई भी प्रभावित हो रही है जिससे इसमें जल संचय की क्षमता घट रही है। स्थिति यहां तक निर्मित है कि कई छोटे नदी नाले विलुप्त के कगार पर हैं ।
2. नदी नालों पर गांव, शहर, कारखानों की गंदे पानी गिराए जा रहे हैं ।  जिससे इनके जल विषैले हो रहे हैं जिससे इनके जल जनउपयोगी नहीं होने के कारण लोग इन पर ध्यान नहीं देते और इनका अस्तित्व खतरे में लगातार बना हुआ है ।
3. लोगों में नैतिकता का अभाव भी इसका एक बड़ा कारण है । भारतीय संस्कृति में नदी नालों की पूजा की जाती है जल देवता मानकर उनकी आराधना की जाती है किंतु इनकी सुरक्षा उनके बचाव कि कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेते।

पूरे देश में नदी नालों की स्थिति का आकलन मैं सिर्फ अपने गांव और आसपास को देखकर लगा सकता हूं जिस नदी नाले  में हम बचपन  में तैरा करते थे वहां आज पानी का एक बूंद भी नहीं है ।
नदी तट पर जहां हम खेला करते थे वहां आज कुछ झोपड़ी तो कुछ महल खड़े हो गए हैं ।

कुछ इसी प्रकार की स्थिति गांव और शहर के तालाबों का हो गया है तालाब केवल कूड़ा दान प्रतीत हो रहा है ।
जल स्रोत बचाएं पानी बचाएं ।

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