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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

‘मुक्तक‘

मुक्‍तक की परिभाषा-

‘अग्निपुराण’ में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया किः

”मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम्” 

अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं ।


महापात्र विश्वनाथ (13 वीं सदी) के अनुसार- 

’छन्दोंबद्धमयं पद्यं तें मुक्तेन मुक्तकं’  

अर्थात जब एक पद अन्य पदों से मुक्त हो तब उसे मुक्तक कहते हैं ।


 मुक्तक का शब्दार्थ ही है ’अन्यैः मुक्तमं इति मुक्तकं’ अर्थात जो अन्य श्लोकों या अंशों से मुक्त या स्वतंत्र हो उसे मुक्तक कहते हैं. अन्य छन्दों, पदों से प्रसंगों के परस्पर निरपेक्ष होने के साथ-साथ जिस काव्यांश को पढने से पाठक के अंतःकरण में रस-सलिला प्रवाहित हो वही मुक्तक है-

 ’मुक्त्मन्यें नालिंगितम.... पूर्वापरनिरपेक्षाणि हि येन रसचर्वणा क्रियते तदैव मुक्तकं

’मुक्तक’ वह स्वच्छंद रचना है जिसके रस का उद्रेक करने के लिए अनुबंध की आवश्यकता नहीं। वास्तव में मुक्तक काव्य का महत्त्वपूर्ण रूप है, जिसमें काव्यकार प्रत्येक छंद में ऐसे स्वतंत्र भावों की सृष्टि करता है, जो अपने आप में पूर्ण होते हैं। मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। इस परिभषा के अनुसार प्रबंध काव्यों से इतर प्रायः सभी रचनाएँ “मुक्तक“ के अंतर्गत आ जाती है !


आधुनिक युग में हिन्दी के आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसारः -‘मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है ।


लोक प्रचलित मुक्तक-

लोकप्रचलित मुक्तक का संबंध उर्दू साहित्य से है । गजल के मतला के साथ मतलासानी चिपका हुआ हो तो इसे मुक्तक कहते हैं । मुक्तक एक सामान मात्राभार और समान लय (या समान बहर) वाले चार पदों की रचना है जिसका पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त तथा तीसरा पद अतुकान्त होता है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम दो पंक्तियों में होता है !

मुक्तक के लक्षण

समग्रतः मुक्तक के लक्षण निम्न प्रकार हैं -

  1. इसमें चार पद होते हैं

  2. चारों पदों के मात्राभार और लय (या बहर) समान होते हैं

  3. पहला , दूसरा और चौथा पद में रदिफ काफिया अर्थात समतुकान्तता होता हैं जबकि तीसरा पद अनिवार्य रूप से अतुकान्त होता है ।

  4. कथ्य कुछ इस प्रकार होता है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम दो पंक्तियों में रहता है , जिनके पूर्ण होते ही पाठक/श्रोता ’वाह’ करने पर बाध्य हो जाता है !

  5. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ  ग़ज़ल के शेर जैसी होती है , इसे वक्रोक्ति , व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं !


जैसे-

(1)

आज अवसर है दृग मिला लेंगे. 

(212 222 1222)

प्यार को अपने आजमा लेंगे. 

(212 222 1222)

कोरा कुरता है आज अपना भी

(212 222 1222)

कोरी चूनर पे रंग डालेंगे.

(212 222 1222)

-श्री चन्द्रसेन ’विराट’


(2)

किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है  

(1222 1222 1222 1222)

लो हमने देख ली दुनिया जो इतनी ख़ूबसूरत है  

(1222 1222 1222 1222) 

ज़माना अपनी समझे पर मुझे अपनी खबर ये है 

(1222 1222 1222 1222)  

तुम्हें मेरी जरूरत है मुझे तेरी जरूरत है

(1222 1222 1222 1222)


      -कुमार विश्वास      


(3)

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, 

(1222 1222 1222 1222)

मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है  

(1222 1222 1222 1222)

मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है   

(1222 1222 1222 1222)

ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है.

 (1222 1222 1222 1222)

-कुमार विश्वास


(4)

भाव थे जो शक्ति-साधन के लिए, 

(2122 2122 212)

लुट गये किस आंदोलन के लिए ?

(2122 2122 212)

यह सलामी दोस्तों को है, मगर

(2122 2122 212)

मुट्ठियाँ तनती हैं दुश्मन के लिए !

(2122 2122 212)

-शमशेर बहादुर सिंह

मुक्‍तक के लिए आवश्‍यक शब्‍दावली -

मुक्‍त्‍क लिखने से पहले मुक्‍तक में प्रयुक्‍त होने वाले कुछ शब्‍दों से परिचित होना आवश्‍यक जिसमें प्रमुख रूप रदीफ, काफिया और बहर है । इन शब्‍दों से भलीभांति परिचित हाने के बाद ही सही रूप में मुक्‍तक कही जा सकती है । इसलिए इन पदों को संक्षेप में समझााने का प्रयास किया जा रहा है ।

रदीफ

रदीफ़ अरबी शब्द है इसकी उत्पत्ति “रद्” धातु से मानी गयी है । रदीफ का शाब्दिक अर्थ है ’“पीछे चलाने वाला’” या ’“पीछे बैठा हुआ’” या ’दूल्हे के साथ घोड़े पर पीछे बैठा छोटा लड़का’ (बल्हा) होता है। 


ग़ज़ल के सन्दर्भ में रदीफ़ उस शब्द या शब्द समूह को कहते हैं जो मतला (पहला शेर) के मिसरा ए उला (पहली पंक्ति) और मिसरा ए सानी (दूसरी पंक्ति) दोनों के अंत में आता है और हू-ब-हू एक ही होता है यह अन्य शेर के मिसरा-ए-सानी (द्वितीय पंक्ति) के सबसे अंत में हू-ब-हू आता है ।


उदाहरण -

(1)

हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

- (दुष्यंत कुमार)


(2)

आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,

अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,

बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -

तो उसे गीत में ला छुपाया गया !

................. ओम नीरव.


उपरोक्‍त पहले उदाहरण के अंतिम में 'चाहिए' और दूसरे उदाहरण के अंत में 'गया' शब्‍द आया है यही रदीफ है ।

मुक्तक के प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ पंक्ति के अंत के शब्द या शब्दांश एक ही होना चाहिये । अर्थात इन तीनों पंक्ति में रदिफ एक समान हो किन्तु तीसरी पंक्ति रदिफ मुक्त हो ।



काफिया

'काफिया' अरबी शब्द है जिसकी उत्पत्ति “कफु” धातु से मानी जाती है । काफिया का शाब्दिक अर्थ है ’जाने के लिए तैयार’ ।  

ग़ज़ल के सन्दर्भ में काफिया वह शब्द है जो समतुकांतता के साथ हर शेर में बदलता रहता है यह ग़ज़ल के हर शेर में रदीफ के ठीक पहले स्थित होता है  जबकि मुक्तक पहले, दूसरे एवं चौथे पंक्ति में ।

उदाहरण -

        (1)

 हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए

         इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

         मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

         हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए 

(दुष्यंत कुमार)


(2)

आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,

अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,

बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -

तो उसे गीत में ला छुपाया गया !

................. ओम नीरव.


उपरोक्‍त पहले उदाहरण में “पिघलनी”, “निकलनी”, “जलनी” शब्द रदीफ ‘चाहिए’ के ठीक पहले आये हैं और समतुकांत हैं, इसी प्रकार दूसरे उदाहरण में 'सुखाया', 'बचाया', 'छुपाया' शब्द रदीफ ‘गया’ के ठीक पहले आये हैं और समतुकांत हैं, यही काफिया है ।

बहर- 

मात्राओं के क्रम को ही बहर कहा जाता है ।  जिस प्रकार हिन्दी में गण होता है उसी प्रकार उर्दू में रूकन होता है ।

रुक्न

रुकन का अर्थ गण, घटक, पद, या निश्चित मात्राओं का पुंज होता है। जैसे हिंदी छंद शास्त्र में गण होते हैं, यगण (222), तगण (221) आदि उस तरह ही उर्दू छन्द शास्त्र ’अरूज़’ में कुछ घटक होते हैं जो ’रुक्न’ कहलाते हैं । रुकन का बहुवचन अरकान कहलाता है ।


रुक्न के दो भेद होते हैं -

  1. सालिम रुक्न (मूल रुक्न)

  2. मुज़ाहिफ रुक्न (उप रुक्न)


1. सालिम रुक्न (मूल रुक्न) - 

अरूज़शास्त्र में सालिम अरकान की संख्या सात कही गई है-


रुक्न 

रुक्न का नाम

मात्रा

फ़ईलुन  

मुतक़ारिब

122

फ़ाइलुन 

मुतदारिक 

212

मुफ़ाईलुन 

हजज़  

1222

फ़ाइलातुन

रमल  

2122

मुस्तफ़्यलुन

रजज़ 

2212

मुतफ़ाइलुन

कामिल 

11212

मफ़ाइलतुन

वाफ़िर 

12112


     

2. मुज़ाहिफ रुक्न (उप रुक्न)- 

सात मूल रुक्न के कुछ उप रुक्न भी हैं जो मूल रुक्न को तोड़ कर अथवा मात्रा जोड़ कर बनाए गये हैं

उदाहरण - 

2(फ़ा), 21( फ़ेल), 12(फ़अल), 121 (फ़ऊल), 112 (फ़इलुन), 212(फ़ाइलुन), 1122(फ़इलातुन), 1212(मुफ़ाइलुन), 21221(फाइलातान) आदि


(किसी रुक्न से उप रुक्न बनाने का नियम तथा संख्या निश्चित है जैसे - रमल(2122) मूल रुक्न के 11+17 प्रकार का वर्णन मिलाता है तथा सभी का एक निश्चित नाम है )

बहर के निर्माण में उप रुक्न की भूमिका

बहर के निर्माण में इन उप रुक्न की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । सभी ग़ज़ल इन सात सालिम व मुजाहिफ अर्कान के अनुसार ही लिखी/कही जाती है ।

बहर नामकरण के नियम-

बहर का नाम लिखते समय हम इन बातों का ध्यान देते हैं -


  1. बहर के रुक्न का नाम + रुक्न की संख्या का नाम + रुक्न सालिम हैं तो ’सालिम’ लिखेगें अथवा अर्कान में मुजाहिफ रुक्न का इस्तेमाल भी हुआ है तो मुजाहिफ रुक्न के प्रकार का उल्लेख करेंगे ।

  2. रूकन की पुनरावृत्‍ती 4 बार हो तो  मुसम्मन नाम दिया जाता है ।

  3. रूकन की आवृत्‍ती 3 बार हो तो मुसद्दस  नाम दिया जाता है ।

  4. रूकन की आवृत्‍ती 2 बार हो तो मुरब्बा नाम दिया जाता है ।

  5. यदि रूकन मूल हो तो इसे सालिम नाम दिया जाता है ।

  6. यदि मूल रूकन में मात्रा घटाई गई या बढ़ाई गई हो तो मुफरद मुजाहिफ नाम दिया जाता है ।


जैसे-

मुतकारिब

122 122 122 122 - मुतकारिब मुसम्मन सालिम

122 122 122 - मुतकारिब मुसद्दस सालिम

122 122 - मुतकारिब मुरब्बा सालिम


 मुतदारिक

212 212 212 212 - मुतदारिक मुसम्मन सालिम

212 212 212 - मुतदारिक मुसद्दस सालिम

212 212 212 मुतदारिक मुरब्बा सालिम


 रमल

2122 2122 2122 2122- रमल मुसम्मन सालिम

2122 2122 2122 - रमल मुसद्दस सालिम

2122 2122 - रमल मुरब्बा सालिम


 हजज

1222 1222 1222 1222 - हजज मुसम्मन सालिम

1222 1222 1222 - हजज मुसद्दस सालिम

1222 1222 - हजज मुरब्बा सालिम


 रजज

2212 2212 2212 2212 - रजज मुसम्मन सालिम

2212 2212 2212 2212 - रजज मुसद्दस सालिम

2212 2212 - रजज मुरब्बा सालिम


 कामिल

11212 2212 2212 2212 - कामिल मुसम्मन सालिम

2212 2212 2212 - कामिल मुसद्दस सालिम

2212 2212- कामिल मुरब्बा सालिम


 वाफिर

12112 12112 12112 12112 - वाफिर मुसम्मन सालिम

12112 12112 12112 - वाफिर मुसद्दस सालिम

12112 12112 - वाफिर मुरब्बा सालिम


प्रत्येक मुफरद सालिम बहारों से कुछ उप-बहरों का निर्माण होता है । उप-बहर बनाने के लिए मूल बहर में एक या एक से अधिक सालिम रुक्न की मात्रा को घटा कर अथवा हटा कर उप-बहर का निर्माण करते हैं । इस प्रकार बनी बहर को ’मुफरद मुजाहिफ’ बहर कहते हैं ।


मात्रा गणना का सामान्य नियम


बहर में मुक्‍तक या  ग़ज़ल लिखने के लिए तक्तीअ (मात्रा गणना) ही एक मात्र अचूक उपाय है, यदि शेर की तक्तीअ (मात्रा गणना) करनी आ गई तो देर सबेर बहर में लिखना भी आ जाएगा क्योकि जब किसी शायर को पता हो कि मेरा लिखा शेर बेबहर  है तभी उसे सही करने का प्रयास करेगा और तब तक करेगा जब तक वह शेर बाबहर  न हो जाए ।


मात्राओं को गिनने का सही नियम न पता होने के कारण ग़ज़लकार अक्सर बहर निकालने में या तक्तीअ करने में दिक्कत महसूस करते हैं । इसलिए आईये सबसे पहले तक्तीअ प्रणाली को समझते हैं-


ग़ज़ल में सबसे छोटी इकाई ’मात्रा’ होती है और हम भी तक्तीअ प्रणाली को समझने के लिए सबसे पहले मात्रा से परिचित होंगे -

मात्रा के प्रकार-

मात्रा दो प्रकार की होती है

  1. ‘एक मात्रिक’ इसे हम एक अक्षरीय व एक हर्फी व लघु व लाम भी कहते हैं और 1 से अथवा हिन्दी कवि । से भी दर्शाते हैं

  2. दो मात्रिक’ इसे हम दो अक्षरीय व दो हरूफी व दीर्घ व गाफ भी कहते हैं और 2 से अथवा हिन्दी कवि S से भी दर्शाते हैं


  • एक मात्रिक स्वर अथवा व्यंजन के उच्चारण में जितना वक्त और बल लगता है दो मात्रिक के उच्चारण में उसका दोगुना वक्त और बल लगता है ।

  • ग़ज़ल में मात्रा गणना का एक स्पष्ट, सरल और सीधा नियम है कि इसमें शब्दों को जैसा बोला जाता है (शुद्ध उच्चारण)  मात्रा भी उस हिसाब से ही गिनाते हैं ।


जैसे - 

  • हिन्दी में कमल = क/म/ल = 111 होता है मगर ग़ज़ल विधा में इस तरह मात्रा गणना नहीं करते बल्कि उच्चारण के अनुसार गणना करते हैं द्य उच्चारण करते समय हम “क“ उच्चारण के बाद “मल“ बोलते हैं इसलिए ग़ज़ल में ‘कमल’ = 12 होता है यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि “कमल” का ‘“मल’” शाश्वत दीर्घ है अर्थात जरूरत के अनुसार गज़ल में ‘कमल’ शब्द की मात्रा को 111 नहीं माना जा सकता यह हमेशा 12 ही रहेगा ।


  • ‘उधर’- उच्च्चरण के अनुसार उधर बोलते समय पहले “उ“ बोलते हैं फिर “धर“ बोलने से पहले पल भर रुकते हैं और फिर ’धर’ कहते हैं इसलिए इसकी मात्रा गिनाते समय भी ऐसे ही गिनेंगे अर्थात 

उ + धर = उ 1+ धर 2 = 12

मात्रा गणना करते समय ध्‍यान रखने योग्‍य बातें-

मात्रा गणना करते समय ध्यान रखे कि -


  1. सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं

जैसे दृ क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि 1 मात्रिक हैं


  1. - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं

जैसे = अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं

  1. - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं

जैसे = आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि 2 मात्रिक हैं


 

  1. यदि किसी शब्द में दो ’एक मात्रिक’ व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह-1 म-1मात्रा गणना करते समय हम की मात्रा 11 न होकर 2 होगी ।  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार 11 अथवा 1 नहीं किया जा सकता है

जैसे - सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

  1. परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा

जैसे द-  असमय = अ/स/मय =  अ1 स1 मय2 = 112   

  1. असमय का उच्चारण करते समय ’अ’ उच्चारण के बाद रुकते हैं और ’स’ अलग अलग बोलते हैं और ’मय’ का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए ’अ’ और ’स’ को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे 22 किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा ।  



  1. जब क्रमांक 2 अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन(1 मात्रिक क्रमांक 1के अनुसार) हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है

  2. उदाहरण द- “तुम” शब्द में “’त’” ’“उ’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता है(क्रमांक 2 अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “म” भी एक मात्रिक है (क्रमांक1 के अनुसार)  और बोलते समय “तु+म” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे 11 नहीं गिना जा सकता

  3. इसके और उदाहरण देखें = यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं

  4. परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा

  5. जैसे -  सुमधुर = सु/ म /धुर = स1 +म 1+धुर 2 = 112 


    1.  यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक 2 अनुसार) तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे 11 नहीं गिना जा सकता

    2. जैसे = पुरु = प+उ / र+उ = पुरु = 2,  

      1. इसके और उदाहरण देखें = गिरि

    3.  परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा

    4. जैसे - सुविचार = सु/ वि / चा / र = स+उ 1 व+इ 1 चा 2 र 1 = 1121


  1. ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को 1 मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि 1 मात्रिक है तो वह 2 मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी 2 मात्रिक ही रहता है ऐसे 2 मात्रिक को 11 नहीं गिना जा सकता है

उदाहरण -

  1. सच्चा = स1+च्1 / च1+आ1  = सच् 2 चा 1 = 22

  2. (अतः सच्चा को 112 नहीं गिना जा सकता है)

  3. आनन्द = आ / न+न् / द = आ2 नन्2 द1 = 221

  4. कार्य = का+र् / य = र्का 2 य 1 = 21  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा र के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)

  5. तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु 1 +म्हा 2+ रा 2 = 122

  6. तुम्हें = तु / म्हें = तु1+ म्हें 2 = 12

  7. उन्हें = उ / न्हें = उ1+ न्हें2 = 12

  1. अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध स व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध स के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध स के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध स को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है

जैसे = 

  1. रस्ता = र+स् / ता 22 होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = 212 होता है

  2. दोस्त = दो+स् /त= 21 होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = 212 होता है

  3. इस प्रकार और शब्द देखें बस्ती, सस्ती, मस्ती, बस्ता, सस्ता = 22

  4. दोस्तों = 212

  5. मस्ताना =222

  6. मुस्कान = 221     

  7. संस्कार= 2121 


  1. संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  

उदाहरण = 

पत्र= 21, वक्र = 21, यक्ष = 21, कक्ष - 21, यज्ञ = 21, शुद्ध =21 क्रुद्ध =21

गोत्र = 21, मूत्र = 21,

  1. यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं

उदाहरण = 

त्रिशूल = 121, क्रमांक = 121, क्षितिज = 12

  1. संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं

उदाहरण =

प्रज्ञा = 22  राजाज्ञा = 222,

  1. उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -

उदाहरण = 

अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/क = 2121 (’नु’ अक्षर लघु होते हुए भी ’क्र’ के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार अ के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)    

  1. विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्घ मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को 1 मात्रिक नहीं गिना जा सकता

उदाहरण = 

दुःख = 21 होता है इसे दीर्घ (2) नहीं गिन सकते यदि हमें 2 मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में ’दुख’ लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा


  • मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें -

  • तिरंगा = ति + रं + गा =  ति 1 रं 2 गा 2 = 12  

  • उधर = उ/धर उ 1 धर 2 = 12

  • ऊपर = ऊ/पर = ऊ 2 पर 2 = 22    

  • इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें =

  • मारा = मा / रा  = मा 2 रा 2 = 22

  • मरा  = म / रा  = म 1 रा 2 =12

  • मर = मर 2 = 2

  • सत्य = सत् / य = सत् 2 य 1 = 21


मात्रा गिराने का नियम-

वस्तुतः “मात्रा गिराने का नियम“ कहना गलत है क्योकि मात्रा को गिराना अरूज़ शास्त्र में “नियम“ के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत आता है द्य अरूज़ पर उर्दू लिपि में लिखी किताबों में यह ’नियम’ के अंतर्गत नहीं बल्कि छूट के अंतर्गत ही बताया जाता रहा है, परन्तु अब यह छूट इतनी अधिक ली जाती है कि नियम का स्वरूप धारण करती जा रही है इसलिए अब इसे मात्रा गिराने का नियम कहना भी गलत न होगा इसलिए आगे इसे नियम कह कर भी संबोधित किया जायेगा द्य मात्रा गिराने के नियमानुसार, उच्चारण अनुसार  तो हम एक मिसरे में अधिकाधिक मात्रा गिरा सकते हैं परन्तु उस्ताद शाइर हमेशा यह सलाह देते हैं कि ग़ज़ल में मात्रा कम से कम गिरानी चाहिए

यदि हम मात्रा गिराने के नियम की परिभाषा लिखें तो कुछ यूँ होगी -


  • “ जब किसी बहर के अर्कान में जिस स्थान पर लघु मात्रिक अक्षर होना चाहिए उस स्थान पर दीर्घ मात्रिक अक्षर आ जाता है तो नियमतः कुछ विशेष अक्षरों को हम दीर्घ मात्रिक होते हुए भी दीर्घ स्वर में न पढ़ कर लघु स्वर की तरह कम जोर दे कर पढते हैं और दीर्घ मात्रिक होते हुए भी लघु मात्रिक मान लेते है इसे मात्रा का गिरना कहते हैं “

  • अब इस परिभाषा का उदाहारण भी देख लें - 2122 (फ़ाइलातुन) में, पहले एक दीर्घ है फिर एक लघु फिर दो दीर्घ होता है, इसके अनुसार शब्द देखें - “कौन आया“  कौ2 न1 आ2 या2

  • और यदि हम लिखते हैं - “कोई आया“ तो इसकी मात्रा होती है 2222(फैलुन फैलुन) को2 ई2 आ2 या 2 परन्तु यदि हम चाहें तो “कोई आया“ को  2122 (फाइलातुन) अनुसार भी गिनने की छूट है-

  • देखें -

  • को2 ई1 आ2 या2

  • यहाँ ई की मात्रा 2 को गिरा कर 1 कर दिया गया है और पढते समय भी ई को दीर्घ स्वर अनुसार न पढ़ कर ऐसे पढेंगे कि लघु स्वर का बोध हो अर्थात “कोई आया“(22 22) को यदि  2122 मात्रिक मानना है तो इसे “कोइ आया“ अनुसार उच्चारण अनुसार पढेंगे 

मुक्‍तक/ग़ज़ल कही जाती है-

ग़ज़ल को लिपि बद्ध करते समय हमेशा शुद्ध रूप में लिखते हैं “कोई आया“ को 2122 मात्रिक मानने पर भी केवल उच्चारण को बदेंलेंगे अर्थात पढते समय “कोइ आया“ पढेंगे परन्तु मात्रा गिराने के बाद भी “कोई आया“ ही लिखेंगे । इसलिए ऐसा कहते हैं कि, ’ग़ज़ल कही जाती है ।’ कहने से तात्पर्य यह है कि उच्चारण के अनुसार ही हम यह जान सकते हैं कि ग़ज़ल को किस बहर में कहा गया है यदि लिपि अनुसार मात्रा गणना करें तो कोई आया हमेशा 2222 होता है, परन्तु यदि कोई व्यक्ति “कोई आया“ को उच्चरित करता है तो तुरंत पता चल जाता है कि पढ़ने वाले ने किस मात्रा अनुसार पढ़ा है 2222 अनुसार अथवा 2122 अनुसार यही हम कोई आया को 2122 गिनने पर “कोइ आया“  लिखना शुरू कर दें तो धीरे धीरे लिपि का स्वरूप विकृत हो जायेगा और मानकता खत्म हो जायेगी इसलिए ऐसा भी नहीं किया जा सकता है ।

मुक्‍तक ग़ज़ल “लिखी“ जाती है-

ग़ज़ल “लिखी“ जाती है ऐसा भी कह सकते हैं परन्तु ऐसा वो लोग ही कह सकते हैं जो मात्रा गिराने की छूट कदापि न लें, तभी यह हो पायेगा कि उच्चारण और लिपि में समानता होगी और जो लिखा जायेगा वही पढ़ा जायेगा  ।

मात्रा कहां और कैसे गिराई जा सकती है-

किसका मात्रा गिराया जा सकता है इसको जानने से पहले याद रखिये लघु मात्रिक को उठा कर दीर्घ मात्रिक कभी नहीं कर सकते, यदि किसी उच्चारण के अनुसार लघु मात्रिक, दीर्घ मात्रिक हो रहा है जैसे - पत्र 21 में “प“ दीर्घ हो रहा है तो इसे मात्रा उठाना नहीं कह सकते क्योकि यहाँ उच्चारण अनुसार अनिवार्य रूप से मात्रा दीर्घ हो रही है, जबकि मात्रा गिराने में यह छूट है कि जब जरूरत हो गिरा लें और जब जरूरत हो न गिराएँ । जिसका मात्रा गिराया जा सकता है ऐ इस प्रकार है-


  • आ ई ऊ ए ओ स्वर को गिरा कर 1 मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर 1 मात्रिक कर सकते हैं जो “आ, ई, ऊ, ए, ओ“ स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते न ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो ऐ, औ, अं के योग से दीर्घ हुए हों

उदाहरण =

मुझको 22 को मुझकु 21 कर सकते हैं

  • आ, ई, ऊ, ए, ओ, सा, की, हू, पे, दो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु ऐ, औ, अं, पै, कौ, रं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं स्पष्ट है कि आ, ई, ऊ, ए, ओ स्वर तथा आ, ई, ऊ, ए, ओ तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं ।

  • यह दीर्घ अक्षर शब्‍द में आवे तभी दसकी मात्रा गिराई जा सकती है ।

  • कोई, मेरा, तेरा शब्द में अपवाद स्वरूप पहले अक्षर को भी गिरा सकते हैं  ।

  • हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते ।

  • हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए


आशा और विश्‍वास है कि आप मुक्‍तक के आवश्‍यक नियम से परिचित हो गये होंगे इसी आशा के साथ अंत में उदाहरण स्‍वरूप में अपना स्‍वयं का कुछ मुक्‍तक प्रस्‍तुत कर रहा हूँ-


मेरे मुक्तक


1. 

पीसो जो मेंहदी तो, हाथ में रंग आयेगा ।

बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा ।

है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू

दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।।


2. 

अंधियारा को चीर, एक नूतन सबेरा आयेगा ।

राह बुनता चल तो सही तू, तेरा बसेरा आयेगा ।।

हौसला के ले पर, उडान जो तू भरेगा नीले नभ ।

देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा ।


3.

 क्रोध में जो कापता, कोई उसे भाते नही ।

हो नदी ऊफान पर, कोई निकट जाते नही ।

कौन अच्छा औ बुरा को जांच पाये होष खो

हो घनेरी रात तो साये नजर आते नहीं।


. 4.

कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम ,

सता कर  सता कर  मुझे मौन हो तुम ।

कभी भी कहीं का किसी का न छोड़े,

करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।।

पौन-प्राण


5.. 

काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं ।

झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।।

जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा

ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।।


6. 

तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो ।

जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।।

तुम ये लिखे हो कैसे पाती मुझे,

समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।।


7. 

बड़े बड़े महल अटारी और मोटर गाड़ी उसके पास

यहां वहां दुकान दारी  और खेती बाड़ी उसके पास ।

बिछा सके कही बिछौना इतना पैसा गिनते अपने हाथ,

नही कही सुकुन हथेली, चिंता कुल्हाड़ी उसके पास ।।


8. 

तुझे जाना कहां है जानता भी है ।

चरण रख तू डगर को मापता भी है ।।

वहां बैठे हुये क्यों बुन रहे सपना,

निकल कर ख्वाब से तू जागता भी है ।


शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

शमि गणेश मंदिर नवागढ.

शमि गणेश मंदिर नवागढ




 

गांव नवागढ़ मोर हे, छत्तीसगढ़ म एक ।

नरवरगढ़ के नाव ले, मिले इतिहास देख ।।

मिले इतिहास देख, गोड़वाना के चिन्हा ।

राजा नरवरसाय के, रहिस गढ़ सुघ्घर जुन्हा ।।

जिहांव हवे हर पाँव, देव देवालय के गढ़ ।

गढ़ छत्तीस म एक, हवय गा एक नवागढ़ ।।

 छत्तीसगढ़ हा अपन नाम के संग ‘छत्तीस‘ गढ़ ला समेटे हे । राजतंत्र के समय छत्तीसगढ़ के जीवन दायनी षिवनदी के उत्तर दिषा मा 18 अउ दक्षिण दिषा में 18 गढ़ होत रहिस । उत्तर दिषा के गढ़ मन के राजधानी रतनपुर अउ दक्षिणा दिषा के राजधानी रायपुर रहिस।  षिवनादी के उत्तर दिषा म रतनपुर राजधानी के अंतर्गत एक गढ़ रहिस ‘नरवरगढ़‘ ।  अइसे मान्यता हे के ये नाम ओ समय के तत्कालिक राजा नरवर साय के नाम म पड़े हे । बाद म येही ‘नरवरगढ़‘ हा ‘नवागढ़‘ के नाम ले जाने जाने लगिस । वर्तमान म ये नवागढ़ छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला मुख्यालय ले उत्तर दिषा में ‘बेमेतरा-मुंगेली‘ राजमार्ग म 25 किमी के दूरी म स्थित हे । नवागढ़ म पहली ‘छै आगर छै कोरी‘ यने कि 126 तालाब होत रहिस फेर अभी अतका कन नई हे तभो ले आज घला गली-गली म तरिया देखे ल मिल जथे । कहे जाथे-

‘‘हमर नवागढ़ के नौ ठन पारा,

जेती देखव जल देवती के धारा ।‘‘

नरवर साय के दो पत्नी रहिस ।  मानाबाई अउ भगना बाई ।  राजा ह अपन पत्नी मन के नाम म तालाब बनवाये हें जउन आज मानाबंद अउ भगना बंद के नाम ले प्रसिद्ध हे । नवागढ़ म बहुत अकन मंदिर हे, जेमा बहुत अकन ह प्राचीन हें । नवागढ़ के उत्ती दिषा म चांदाबन स्थित माँ षक्ति के मंदिर, षंकरनगर म स्वयंभू महादेव के मंदिर, बुड़ती म मां महामाया, माँ षारदा के मंदिर, उत्तर दिषा में भैरव बाबा के मंदिर, जुड़ावनबंद के तीर म लक्ष्मीनारायण के मंदिर, दक्षिण दिषा षंकरजी के मंदिर, मध्यभाग में राममंदिर, लखनी मंदिर, दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर,, ठाकुर देव के मंदिर स्थित हे येही मंदिर मन मा सबले जुन्ना मंदिर ‘गणेष मंदिर‘ हे -

जुन्ना मंदिर मा हवे, गणेशजी के मान ।

संग शमी के पेड़ हे, जेखर अपने शान ।।

जेखर अपने शान, हवन पूजा म जरूरी ।

गणेष देवा संग, शमी मा चढ़े खुरहुरी ।

दुलभ हे संयोग, शमी गणेष के मिलना ।

अइसन ठउरे तीन, कले ‘कल्याणे‘ जुन्ना ।।

नवागढ़ बस्ती के बीचो-बीच, देह के करेजा कस नवागढ़ म गणेष मंदिर विराजित हे, जउन जनआस्था के केन्द्र होय के साथ-साथ ऐतिहासिक अउ पुरातात्विक महत्व के घला हे ।  जनश्रुति के अनुसार नवागढ़ म नरवरसाय के पहिली भोसले राजा मन के राज रहिस । भोसले राज परिवार के ईष्ट देवता गणेषजी ल माने गे हे, येही बात ह अपन आप म प्रमाण कस लगथे के ये मंदिर के निर्माण भोसले राज परिवार द्वारा कराये गे हे । मान्यता हे के ये मंदिर के निर्माण विक्रम संवत 646 म होय हे । 646 के गणेष चतुर्थी के दिन ये मंदिर के तांत्रिक विधि ले प्राण प्रतिश्ठा कराय गे हे । 

ये मंदिर के गर्भगृह ह लगभग 6 फुट व्यास के अउ लगभग 25 फुट ऊंचा हवय । गर्भ गृह म  6 फूट के एके ठन पथरा मा भगवान गणेश के पदमासन मुद्रा उकेरे गे हे । लगभग ढाई फुट आसन म साढे तीन फुट भगवान गणेष के प्रतिमा भव्य दिखत हे । ये प्रतिमा हा नागपुर, केलझर म स्थित सिद्ध विनायक के प्रतिमामन ले भिन्न हे ऊंहा के प्रतिमा मा केवल मुँह के आकृति विषाल रूप म उकेरे गे हे जबकी इहां के प्रतिमा म पूरा देहाकृति उकेरे गे हे । 

ये मंदिर के जीर्णोधर तीन बार होय हे पहिली ईसवी सन 1880 म मंदिर म लगे षिलालेख येही जीर्णोधार ह उल्लेखित हे । दूसर जीर्णोधर सन् 1936 म तीसर जीर्णाधार अभी-अभी 2009-10 म होय हे । ये तीनो जीर्णोधार म केवल परसार म परिवर्तन करे गे जबकि गर्भगृह ह ज्यों के त्यों हे । वर्तमान म ये मंदिर के परसार (प्रसाद) के नवनिर्माण कराये गे हे । ये परसार लगभग 40 गुणा 30 वर्ग फुटके  हे ये परसार के चारो कोनो म चारठन छोटे-छोटे मंदिर बनाय गे हे जउन जुन्ना मंदिर म पहिली ले रहिस फेर ओ प्रतिमा मन के जीर्ण-षिर्ण होय के कारण प्रतिमा घला नवा रख के फेर से प्राणप्रतिष्ठा कराये गे हे । ईषान म बजरंग बली, आग्नेय म राम दरबार एक दूसर के सम्मुख व्यवस्थित हे ।  नैऋत्य म राधकृष्ण अउ वाव्वय म षिवलिंग षिवदरबार के नव निर्माण कराये गे हे । मुख्य मंदिर गणेषजी गर्भगृह अउ प्रतिमा अपन निर्माण काल ले अब तक ज्यों के त्यों हे । गणेषजी पूर्वाभीमुख हें । नवा कलेवर म सजे मंदिर परिसर अउ मुख्य द्वार ह घातेच के सुग्घर लगत हे ।

मंदिर के आघू मा उत्ती मा तब ले अब तक एक ठन शमी के पेड़ हवय, जेखर सेती ऐला ‘श्री शमी गणेश’ के नाम ले जाने जाथे । गांव के बुर्जुग मन बताथें के पहिली दू ठन शमी के पेड़ रहिस । मंदिर  गणेश के मंदिर अउ ओखर तीर शमी के पेड़ के दुर्लभ संयोग हे ।  परसिद धार्मिक पत्रिका ‘कल्याण’ के ‘गणेश विशेषांक’ मा ये बात के उल्लेख हे के अइसन संयोग भारत मा कुछ एक जगह हे जेमा एक नवागढ़ ह आय । मंदिर के उत्तर दिषा म एक ठन  कुआं हे जेखर जगत अष्टकोणीय हे ।  ये अष्टकोणीय कुंआ ह तांत्रिक विधान के कुआं आय ।  मंदिर के दक्षिण भाग म एक ठन मठ हे, मंदिर के उत्ती म मंदिर ले लगभग 50 मीटर के दूरी म चरण-पादुका हे । बुड़ती म एकअउ कुंआ हे ।

श्री शमी गणेशजी आज नवागढ़ के रहईया के संगे संग दूरिहा दूरिहा ले श्रद्धा ले के अवईया जम्मो भगत मन के मन के मुराद ला पूरा करत हे ।

अतका प्राचीन मंदिर होय के बाद भी नवागढ़ के ओ प्रसिद्धी नई हो पाये हे जेखर ये अधिकारी हे । शासन अउ स्थानीय प्रषासन के उपेक्षा के षिकार म ये मंदिर अपन स्वरूप म प्रगट नई हो पावत हे । मंदिर के आघू म पहिली दू ठन शमि पेड़ रहिस जेमा एक पेड़ ल कोनो काट डारे हे । मंदिर के बाचे एक ठन शमि वृक्ष, मठ, चरण पादुका कोन मेर हे खोजे ल लगथे काबर ये मन म मंदिर के तीर-तीर म बसइया मन के कब्जा म हे । मंदिर के धरोहर ल मुक्त कराये बर कोखरो ध्यान नई जावय । मंदिर के देख रेख करईया श्री रामधुन रजक के अनुसार ये मंदिर परिसर के क्षेत्रफल सरकारी रिकार्ड के अनुसार 1840 वर्गफुट हे फेर वर्तमान म अतका कन नई हे । ओइसने ये मंदिर के नाम म 25 एकड़ कृषि भूमि दर्ज हे फेर मंदिर के अधिकार म एको एकड़ जमीन नई हे ।

यदि ये मंदिर ला शासन के संरक्षण प्राप्त हो जय येखर धरोहर मन ल मुक्त कराके मंदिर ल सउप दे जाये त ये पुरातात्विक महत्व के मंदिर ह पूरा विष्व म अपन नाम करे म समर्थ हे ।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

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