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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शनिवार, 21 अक्टूबर 2017

तीज-त्यौहारः भैया दूज

तीज-त्यौहारः भैया दूजतीज-त्यौहार हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है । हर खुशी, हर प्रसंग, हर संबंध, जड़-चेतन के लिये कोई ना कोई पर्व निश्चित है । छत्तीसगढ़ में हर अवसर के लिये कोई ना कोई पर्व है । खुशी का पर्व हरियाली या हरेली, दीपावली, होली आदि, संबंध का पर्व करवा-चौथ, तीजा-पोला, रक्षा बंधन आदि, जड़-चेतन के लिये वट-सावित्री, नाग-पंचमी आदि । छत्तीसगढ़ हिन्दी...

मंगलवार, 23 मई 2017

‘स्वच्छता के निहितार्थ एवं व्यवहारिक पक्ष‘‘

‘स्वच्छता के निहितार्थ एवं व्यवहारिक पक्ष‘‘भारत के प्राचीन संस्कृति सदैव सामाजिक सारोकार से जुड़ी रही किन्तु आधुनिकता के अंधी दौड़ में व्यक्तिनिष्ठ जीवनषैली का विकास होने लगा सामाज के प्रति सामूहिक दायित्व क्षीण प्रतित होने लगा ।  जहां पहले सामाजिक सरोकार व्यक्ति-व्यक्ति के मनो-मस्तिश्क में था वहीं अब सामाजिक दायित्व कुछ सामाजिक संगठन  एवं...

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

‘‘गांव होवय के देश सबो के आय‘‘

‘‘गांव होवय के देश सबो के आय‘‘ मनखे जनम  जात एक ठन सामाजिक प्राणी आवय ।  ऐखर गुजारा चार झन के बीचे मा हो सकथे । अकेल्ला मा दूये परकार के मनखे रहि सकथे एक तन मन ले सच्चा तपस्वी अउ दूसर मा बइहा भूतहा जेखर मानसिक संतुलन डोल गे हे ।  सामाजिक प्राणी के सबले छोटे इकाई घर परिवार होथे, जिहां जम्मोझन जुर मिल के एक दूसर के तन...

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

‘मुक्तक‘

मुक्‍तक की परिभाषा-‘अग्निपुराण’ में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया किः”मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम्” अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं ।महापात्र विश्वनाथ (13 वीं सदी) के अनुसार- ’छन्दोंबद्धमयं पद्यं तें मुक्तेन मुक्तकं’  अर्थात जब एक पद अन्य पदों से मुक्त हो तब उसे मुक्तक कहते हैं । मुक्तक का शब्दार्थ ही है ’अन्यैः मुक्तमं इति मुक्तकं’ अर्थात जो अन्य श्लोकों या अंशों से मुक्त...

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