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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शनिवार, 11 जुलाई 2020

वार्णिक एवं मात्रिक छंद कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियम

कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियम



वर्ण

‘‘मुख से उच्चारित ध्वनि के संकेतों, उनके लिपि में लिखित प्रतिक को ही वर्ण कहते हैं ।’’

हिन्दी वर्णमाला में 53 वर्णो को तीन भागों में भाटा गया हैः

1. स्वर-

अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ. अनुस्वार-अं. अनुनासिक-अँ. विसर्ग-अः
2. व्यंजनः
क,ख,ग,घ,ङ, च,छ,ज,झ,ञ. ट,ठ,ड,ढ,ण,ड़,ढ़, त,थ,द,ध,न, प,फ,ब,भ,म, य,र,ल,व,श,ष,स,ह,
3. संयुक्त वर्ण-
क्ष, त्र, ज्ञ,श्र

वर्ण गिनने नियम-

1. हिंदी वर्णमाला के सभी वर्ण चाहे वह स्वर हो, व्यंजन हो, संयुक्त वर्ण हो, लघु मात्रिक हो या दीर्घ मात्रिक सबके सब एक वर्ण के होते हैं ।
2. अर्ध वर्ण की कोई गिनती नहीं होती ।


उदाहरण- 
कमल=क+ म+ल=3 वर्ण
पाठषला= पा +ठ+ षा+ ला =4 वर्ण
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
कंप्यूटर=कंम्प्+ यू़+ ट+ र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)


मात्रा-

वर्णो के ध्वनि संकेतो को उच्चारित करने में जो समय लगता है उस समय को मात्रा कहते हैं ।

यह दो प्रकार का होता हैः
1. लघु- जिस वर्ण के उच्चारण में एक चुटकी बजाने में लगे समय के बराबर समय लगे उसे लघु मात्रा कहते हैं। इसका मात्रा भार 1 होता है ।
2. गुरू-जिस वर्ण के उच्चारण में लघु वर्ण के उच्चारण से अधिक समय लगता है उसे गुरू या दीर्घ कहते हैं ! इसका मात्रा भार 2 होता है ।

लघु गुरु निर्धारण के नियम-

  1. हिंदी वर्णमाला के तीन स्वर अ, इ, उ, ऋ एवं अनुनासिक-अँ लघु होते हैं और इस मात्रा से बनने वाले व्यंजन भी लघु होते हैं । लघु स्वरः-अ,इ,उ,ऋ,अँ लघु व्यंजनः- क, कि, कु, कृ, कँ, ख, खि, खु, खृ, खँ ..इसी प्रका
  2. इन लघु स्वरों को छोड़कर शेष स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ और अनुस्वार अं गुरू स्वर होते हैं तथा इन से बनने वाले व्यंजन भी गुरु होता है ।गुरू स्वरः- आ, ई,ऊ, ए, ऐ, ओ, औ,अं गुरू व्यंजन:- का की, कू, के, कै, को, कौ, कं,........इसी प्रकार
  3. अर्ध वर्ण का स्वयं में कोई मात्रा भार नहीं होता,किन्तु यह दूसरे वर्ण को गुरू कर सकता है । 
  4. अर्ध वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द में मात्रा के दृष्टिकोण से भी अर्ध वर्ण को छोड़ दिया जाता है । 
  5. किंतु यदि अर्ध वर्ण शब्द के मध्य या अंत में आवे तो यह उस वर्ण को गुरु कर देता है जिस पर इसका      उच्चारण भार पड़ता है । यह प्रायः अपनी बाँई ओर के वर्ण को गुरु करता है । 
  6. यदि जिस वर्ण पर अर्ध वर्ण का भार पड़ रहा हो वह पहले से गुरु है तो वह गुरु ही रहेगा ।
  7. संयुक्त वर्ण में एक अर्ध वर्ण एवं एक पूर्ण होता है, इसके अर्ध वर्ण में उपरोक्त अर्ध वर्ण नियम लागू होता है ।

उदाहरण-
रमेश=र + मे+ श=लघु़+गुरू +लघु=1+2+1=4 मात्रा
सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
तुम्हारा=तु़+म्हा+रा=लघु +गुरू+गुरू =1+2+2=5 मात्रा
कंप्यूटर=कंम्प्यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
यज्ञ=यग्य+=गुरू+लघु=2+1=3
क्षमा=क्ष+मा=लघु+गुरू =1+2=3


वर्णिक एवं मात्रिक में अंतर-

जब उच्चारित ध्वनि संकेतो को गिनती की जाती है तो वार्णिक एवं ध्वनि संकेतों के उच्चारण में लगे समय की गणना लघु, गुरू के रूप में की जाती है इसे मात्रिक कहते हैं ! मात्रिक मात्रा महत्वपूर्ण होता है वार्णिक में वर्ण महत्वपूर्ण होता है ।

उदाहरण
रमेश=र + मे+ श=लघु़+गुरू +लघु=1+2+1=4 मात्रा
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण

सत्य=सत्य+=गुरु+लघु =2+1=3 मात्रा
सत्य=सत्+ य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)

कंप्यूटर=कंम्प्यू+ट+र=गुरु़+गुरु़+लघु़+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा
कंप्यूटर=कंम्प्+ यू़+ ट+ र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)

आशा ही नहीं विश्‍वास है आप वर्ण मात्रा गणना अच्‍छे से सीख गये होंगे ।
-रमेश चौहान

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