वैदिक संस्कृति-
भारतीय संस्कृति को वैदिक संस्कृति भी कहते हैं क्योंकि प्राय: हर बातों का संबंध किसी न किसी रूप में वेदों से जुड़ा होता है । यही कारण है कि कुछ विद्वान यह मानते हैं कि विश्व में जो भी ज्ञान है या भविष्य में जो भी ज्ञान होने वाला वह सभी ज्ञान वेदों पर ही अवलंबित है अवलंबित रहेंगे । ज्योतिष को भी वेदों का ही अंग माना गया है ।
वेदों के अँग- वेदों के 6 प्रमुख अंग माने गये हैं । ये हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त,ज्योतिष और छन्द । ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है । नेत्र का कार्य देखना होता है इस लिये ज्योतिष का कार्य भविष्य को देखना है ।
ज्योतिष क्या है ?
ज्योतिष का शाब्दिक अर्थ ज्योति या प्रकाश करने वाला होता है । वेदो के अनुसार- ''ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणं बोधकं शास्त्रम्'' अर्थात ज्योतिष सूर्य आदि ग्रहों का बोध कराने वाला शास्त्र है । वर्तमान भारतीय ज्योतिषाचार्यो के अनुसार -'ज्योतिष ग्रह आदि (राशि, नक्षत्र) और समय का ज्ञान कराने वाला वह विज्ञान है, जो जीवन-मरण के रहस्यों और सुख-दुख के संबंध को एक ज्योति अर्थात ज्ञान के रूप में प्रस्तुत करता है । वास्तव ज्योतिष गणित विज्ञान का अँग है जो समय और अक्षांश-देशांश के जटिल काल गणानों से प्राप्त हाने वाली एक सारणी है जिस सारणी का अर्थ करना फलादेश कहलाता है ।
क्या ज्योतिष पर विश्वास करना चाहिये ?
'देर के ढोल सुहाने' और घर की मुर्गी दाल बराबर' ये दो कथन हमारे भारतीय समाज में सहज में ही सुनने को मिल जाते हैं । यह अनुभवगम्य भी लगता है नई पीढ़ी को वैचारिक स्वतंत्रता के नाम पर विदेशी संस्कृती 'दूर के ढोल सुहाने' जैसे रूचिकर लगते हैं और भारतीय संस्कृति 'घर की मुर्गी दाल बराबर' लगती है । इस संदर्भ में ऐसे वैचारिक लोगों को अपने आप से एक प्रश्न पूछना चाहिये कि Western astrology प्रचलन में क्यो है ? Western astrology भी ग्रहों की गणना पर आधरित है जो गणना से अधिक फलादेश कहने पर विश्वास करती है । आप पर कोई दबाव नहीं है कि आप ज्योतिष पर विश्वास करें । हॉं इतना आग्रह जरूर है कि जो ज्योतिष पर विश्वास करते हैं उनकी आप अवहेलना भी न करें ।
पाश्चात्य ज्योतिष एवं वैदिक ज्योतिष में अंतर-
दोनों में पहला अंतर तो समय का ही है । जहॉं वैदिक ज्योतिष वैदिक कालिन है वहीं पाश्चात्य ज्योतिष को ग्रीस के बौद्धिक विकास से जोड़ कर देखा जाता है ।
दूसरा प्रमुख अंतर इनके दृष्टिकोण का है जहॉं पाश्चात्य ज्योतिष व्यक्ति के व्यक्तित्व एवं मनोविज्ञान पर जोर देता है वहीं वैदिक ज्योतिष जीवन-मृत्यु दोनों का सर्वांग चित्रण करता है ।
पाश्चात्य ज्योतिष सायन सिद्धांत पर आधारित सूर्य प्रधान है जबकि वैदिक ज्योतिष निरयन सिद्धांत पर आधारित नवग्रह, 12 राशि और 27 नक्षत्रों पर विचार करती है ।
वैदिक ज्योतिष का महत्व-
पाश्चात्य ज्योतिष केवल संभावित घटनाओं का प्रत्यक्ष चित्रण करने में विश्वास करती हैं वही वैदिक ज्योतिष जीवन और जीवन के बाद मृत्यु के बारे में सटिक व्याख्या करने पर जोर देती है । वैदिक ज्योतिष में दशा प्रणाली अंतरदशा, महादशा आदि को अपने आप सम्मिलित करती है जो सटिक भविष्यवाणी करने में मदद करती है । वेदिक ज्योतिष भविष्य के उजले पक्ष के साथ-साथ स्याह पक्ष को भी उजागर करती है । सबसे बड़ी विशेषता वैदिक ज्योतिष समस्या को बतलाने के साथ-साथ उस समस्या से निपटने का उपाय भी सुझाती है ।
ज्योतिष पर प्रश्नवाचक चिन्ह क्यों ?
किसी भी बात पर प्रश्न तभी उठााया जाता है जब वह उसके अनुकूल न हो । लेकिन ज्योतिष के संदर्भ अधिकांश प्रश्न ज्योतिष के मूल्यांकन किये बिना ही उठा दिया जाता है कि यह अंधविश्वास है । अंधविश्वास वही न होगा जिसका बिना परीक्षण के उस पर विश्वास कर लिया जाये । इसी संदर्भ में यह भी तो कहा जाता है जो इसे ज्योतिष को अंधविश्वास कह रहे हैं वह स्वयं तो अंधविश्वासी नहीं है किसी न कहा ज्योतिष अंधविश्वास है और वह बिना परिक्षण किये उसके राग में अपना राग मिला दिये । पहले परीक्षण किया जाना चाहिये फिर परिणाम कहा जाना चाहिये । ज्योतिष विज्ञान है या अंध विश्वास आपके परीक्षण पर निर्भर करता है ।
दूसरी बात जैसे किसी व्यक्ति से कहा जाये इस विज्ञान के युग में आप आक्सीजन और हाइड्रोजन से पानी बनाकर दिखाओं तो हर कोई पानी बनाकर नहीं दिखा सकता । यदि कोई इससे पानी नहीं बनापाया तो क्या विज्ञान झूठा हो गया । जिसप्रकार एक कुशल विज्ञानी ही प्रयोगशाला में आक्सीजन और हाइड्रोजन के योग से पानी बना सकता है ठीक उसी प्रकार केवल और केवल एक कुशल ज्योतिषाचार्य ही ज्योतिष ज्ञान के फलादेश ठीक-ठाक कह सकता है ।
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