तीज-त्यौहारः भैया दूज
तीज-त्यौहार हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ है । हर खुशी, हर प्रसंग, हर संबंध, जड़-चेतन के लिये कोई ना कोई पर्व निश्चित है । छत्तीसगढ़ में हर अवसर के लिये कोई ना कोई पर्व है । खुशी का पर्व हरियाली या हरेली, दीपावली, होली आदि, संबंध का पर्व करवा-चौथ, तीजा-पोला, रक्षा बंधन आदि, जड़-चेतन के लिये वट-सावित्री, नाग-पंचमी आदि । छत्तीसगढ़ हिन्दी वर्ष के बारहवों माह में कोई ना कोई पर्व उल्लेखित है -
मोर छत्तीसगढ़ मा, साल भर तिहार हे
लगे जइसे दाई हा, करे गा सिंगार हे।
(अर्थात छत्तीसगढ़ में वर्ष के प्रत्येक माह में कोई ना कोई त्यौहार होता है, इन त्यौहारों से ही छत्तीसगढ़ की मातृभूमि मां के रूप में इन त्यौहारों से ही अपना श्रृंगार करती हैं ।)
संबंध के पर्व में पति के लिये वट-सावित्री, करवा-चौथ, तीजा (हरितालिका) आदि, पुत्र के लिये हल षष्ठी प्रसिद्ध है, इसी कड़ी में भाई-बहन के लिये दो त्यौहार प्रचलित है । एक रक्षा बंधन एवं दूसरा भैया दूज, ‘भैया-दूज‘ छत्तीसगढ़ में ‘भाई-दूज‘ के नाम से प्रचलित है ।
बाल्यकाल के शरारत एवं मस्ती के साथी भाई-बहन होते हैं । बाल्यकाल से ही एक-दूसरे के प्रति स्नेह रखते हैं । इस स्नेह का प्रदर्शन दो अवसरो पर करते रक्षा-बंधन एवं भाई-दूज पर । ऐसे तो ये दोनों पर्व प्रत्येक आयु वर्ग के भाई-बहनों द्वारा मनाया जाता है किन्तु व्यवहारिक रूप से देखने को मिलता है कि रक्षा- बंधन के प्रति छोटे आयु वर्ग के भाई-बहन अधिक उत्साह रखते हैं जबकि भाई-दूज के प्रति बड़े आयु वर्ग द्वारा अधिक उत्साह देखा गया है । दृष्टव्य है -
ये राखी तिहार,
लागथे अब,
आवय नान्हे नान्हे मन के ।
भेजय राखी,
संग मा रोरी,
दाई माई लिफाफा मा भर के ।
माथा लगालेबे,
तै रोरी भइया,
बांध लेबे राखी मोला सुर कर के ।
नई जा सकंव,
मैं हर मइके,
ना आवस तहू तन के ।
सुख के ससुरार भइया
दुख के मइके,
रखबे राखी के लाज
जब मैं आहंव आंसू धर के ।
(अर्थात राखी का त्यौहार केवल बच्चों का लगने लगा हैं क्योंकि बहने इस दिन अपने भाई को राखी बांधने नही जा पाती । बहनें लिफाफे में राखी एवं रोरी भर कर भाई को भेज देती हैं और कहती हैं-भैया मुझे याद कर रोरी लगा कर अपने कलाई में राखी बांध लेना । मैं तो महिला अबला हूं मैं मायके नहीं जा पाई किंतु आप पुरूश होकर भी उत्साह के साथ मेरे ससुराल नही आये । भैया सुख में मेरा ससुराल ही हैं किन्तु दुख में मायका है, यदि किसी कारण वष मैं दुख में मयाके आ गई तो मेरा देख-भाल कर लेना ।)
भाई-दूज का पर्व दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ में भी अन्य राज्यों की भांति यह पर्व हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है । इस पर्व में बहने अपने भाई के आनंदमयी दीर्घायु जीवन की कामना करतीं हैं । इस दिन बहने भाई के लिये स्वादिष्ट एवं अपने भाई के पसंद का पकवान बनाती हैं । भाई अपने हर काम को छोड़कर इस दिन अपनी बहन के यहां जाते हैं । इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोरी तिलक लगाती फिर पूजा अर्चन कर अपने हाथ से एक निवाला खिलातीं हैं । भाई भोजन करने के उपरांत बहन की रक्षा का शपथ करता है फिर सगुन के तौर पर कोई ना कोई उपहार अपनी बहन को भेट करता है ।
भाई-दूज के संबंध में एक कथा प्रचलित है -भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करे । अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ल द्वितिया का दिन आया । यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया । यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया । यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
मोर छत्तीसगढ़ मा, साल भर तिहार हे
लगे जइसे दाई हा, करे गा सिंगार हे।
(अर्थात छत्तीसगढ़ में वर्ष के प्रत्येक माह में कोई ना कोई त्यौहार होता है, इन त्यौहारों से ही छत्तीसगढ़ की मातृभूमि मां के रूप में इन त्यौहारों से ही अपना श्रृंगार करती हैं ।)
संबंध के पर्व में पति के लिये वट-सावित्री, करवा-चौथ, तीजा (हरितालिका) आदि, पुत्र के लिये हल षष्ठी प्रसिद्ध है, इसी कड़ी में भाई-बहन के लिये दो त्यौहार प्रचलित है । एक रक्षा बंधन एवं दूसरा भैया दूज, ‘भैया-दूज‘ छत्तीसगढ़ में ‘भाई-दूज‘ के नाम से प्रचलित है ।
बाल्यकाल के शरारत एवं मस्ती के साथी भाई-बहन होते हैं । बाल्यकाल से ही एक-दूसरे के प्रति स्नेह रखते हैं । इस स्नेह का प्रदर्शन दो अवसरो पर करते रक्षा-बंधन एवं भाई-दूज पर । ऐसे तो ये दोनों पर्व प्रत्येक आयु वर्ग के भाई-बहनों द्वारा मनाया जाता है किन्तु व्यवहारिक रूप से देखने को मिलता है कि रक्षा- बंधन के प्रति छोटे आयु वर्ग के भाई-बहन अधिक उत्साह रखते हैं जबकि भाई-दूज के प्रति बड़े आयु वर्ग द्वारा अधिक उत्साह देखा गया है । दृष्टव्य है -
ये राखी तिहार,
लागथे अब,
आवय नान्हे नान्हे मन के ।
भेजय राखी,
संग मा रोरी,
दाई माई लिफाफा मा भर के ।
माथा लगालेबे,
तै रोरी भइया,
बांध लेबे राखी मोला सुर कर के ।
नई जा सकंव,
मैं हर मइके,
ना आवस तहू तन के ।
सुख के ससुरार भइया
दुख के मइके,
रखबे राखी के लाज
जब मैं आहंव आंसू धर के ।
(अर्थात राखी का त्यौहार केवल बच्चों का लगने लगा हैं क्योंकि बहने इस दिन अपने भाई को राखी बांधने नही जा पाती । बहनें लिफाफे में राखी एवं रोरी भर कर भाई को भेज देती हैं और कहती हैं-भैया मुझे याद कर रोरी लगा कर अपने कलाई में राखी बांध लेना । मैं तो महिला अबला हूं मैं मायके नहीं जा पाई किंतु आप पुरूश होकर भी उत्साह के साथ मेरे ससुराल नही आये । भैया सुख में मेरा ससुराल ही हैं किन्तु दुख में मायका है, यदि किसी कारण वष मैं दुख में मयाके आ गई तो मेरा देख-भाल कर लेना ।)
भाई-दूज का पर्व दीपावली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ में भी अन्य राज्यों की भांति यह पर्व हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है । इस पर्व में बहने अपने भाई के आनंदमयी दीर्घायु जीवन की कामना करतीं हैं । इस दिन बहने भाई के लिये स्वादिष्ट एवं अपने भाई के पसंद का पकवान बनाती हैं । भाई अपने हर काम को छोड़कर इस दिन अपनी बहन के यहां जाते हैं । इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोरी तिलक लगाती फिर पूजा अर्चन कर अपने हाथ से एक निवाला खिलातीं हैं । भाई भोजन करने के उपरांत बहन की रक्षा का शपथ करता है फिर सगुन के तौर पर कोई ना कोई उपहार अपनी बहन को भेट करता है ।
भाई-दूज के संबंध में एक कथा प्रचलित है -भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करे । अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ल द्वितिया का दिन आया । यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया । यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया । यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो । मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की । इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
उपरोक्त कथा के आधार पर ऐसा माना जाता है कि भाई-दूज के दिन यदि भाई-बहन एक साथ यमुना नदी में स्नान करते है तो उनके पाप का क्षय होता है । भाई-बहन दीर्घायु होते हैं, उन्हें यमराज का आशीष प्राप्त होता है ।
भाई-दूज का त्यौहार हमारे भारतीय चिंतन का प्रतिक है, जिसमें प्रत्येक संबंध को मधुर बनाने, एक-दूजे के प्रति त्याग करने का संदेश निहित है । हमारे छत्तीसगढ़ में केवल सहोदर भाई-बहनों के मध्य ही यह पर्व नही मनाया जाता अपितु चचेरी, ममेरी, फूफेरी बहनों के अतिरिक्त जातीय बंधन को तोड़कर मुहबोली बहन, शपथ पूर्वक मित्रता स्वीकार किये हुये (मितान, भोजली, महाप्रसाद आदि) संबंधों का निर्वहन किया जाता है । हमारे छत्तीसगढ़ में यह पर्व सर्वधर्म सौहाद्रर्य के रूप में भी दिखाई देता है, कई हिन्दू बहने मुस्लिम को भाई के रूप में स्वीकार कर भाई-दूज मनाती है तो वहीं कई मुस्लीम बहने हिन्दू भाई को स्नेह पूर्वक भोजन करा कर इस पर्व को मनाती है ।
इस प्रकार आज के संदर्भ में यह पर्व केवल पौराणिक महत्व को ही प्रतिपादित नहीं करता अपितु यह सामाज में सौहाद्रर्य स्थापित करने में भी मददगार है, जो आज के सामाज की आवश्यकता भी है ।
-रमेश कुमार चौहान
मिश्रापारा, नवागढ़
जिला-बेमेतरा
मो.9977069545