‘मुक्तक’
‘अग्निपुराण’ में मुक्तक को परिभाषित करते हुए कहा गया कि- ”मुक्तकं श्लोक एवैकश्चमत्कारक्षमः सताम्” अर्थात चमत्कार की क्षमता रखने वाले एक ही श्लोक को मुक्तक कहते हैं।
महापात्र विश्वनाथ (१३ वीं सदी) के अनुसार ’छन्दोंबद्धमयं पद्यं तें मुक्तेन मुक्तकं’ अर्थात जब एक पद अन्य पदों से मुक्त हो तब उसे मुक्तक कहते हैं. मुक्तक का शब्दार्थ ही है ’अन्यैः मुक्तमं इति मुक्तकं’ अर्थात जो अन्य श्लोकों या अंशों से मुक्त या स्वतंत्र हो उसे मुक्तक कहते हैं। अन्य छन्दों, पदों ये प्रसंगों के परस्पर निरपेक्ष होने के साथ-साथ जिस काव्यांश को पढने से पाठक के अंतःकरण में रस-सलिला प्रवाहित हो वही मुक्तक है- ’मुक्त्मन्यें नालिंगितम.... पूर्वापरनिरपेक्षाणि हि येन रसचर्वणा क्रियते तदैव मुक्तकं’
’मुक्तक’ वह स्वच्छंद रचना है जिसके रस का उद्रेक करने के लिए अनुबंध की आवश्यकता नहीं। वास्तव में मुक्तक काव्य का महत्त्वपूर्ण रूप है, जिसमें काव्यकार प्रत्येक छंद में ऐसे स्वतंत्र भावों की सृष्टि करता है, जो अपने आप में पूर्ण होते हैं। मुक्तक काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। इस परिभषा के अनुसार प्रबंध काव्यों से इतर प्रायः सभी रचनाएँ “मुक्तक“ के अंतर्गत आ जाती है । आधुनिक युग में हिन्दी के आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसारः -‘मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है ।
लोक प्रचलित
मुक्तक- लोकप्रचलित मुक्तक का संबंध उर्दू साहित्य से है । गजल के मतला के साथ मतलासानी चिपका हुआ हो तो इसे मुक्तक कहते हैं । मुक्तक एक सामान मात्राभार और समान लय (या समान बहर) वाले चार पदों की रचना है जिसका पहला , दूसरा और चौथा पद तुकान्त तथा तीसरा पद अतुकान्त होता है और जिसकी अभिव्यक्ति का केंद्र अंतिम दो पंक्तियों में होता है ।
समग्रतः मुक्तक के ’लक्षण निम्न प्रकार हैं -
१. इसमें चार पद होते हैं
२. चारों पदों के मात्राभार और लय (या बहर) समान होते हैं
३. पहला , दूसरा और चौथा पद में रदिफ काफिया अर्थात समतुकान्तता होता हैं जबकि तीसरा पद अनिवार्य रूप से अतुकान्त होता है ।
४. कथ्य कुछ इस प्रकार होता है कि उसका केंद्र विन्दु अंतिम दो पंक्तियों में रहता है , जिनके पूर्ण होते ही पाठक/श्रोता ’वाह’ करने पर बाध्य हो जाता है !
५. मुक्तक की कहन कुछ-कुछ ग़ज़ल के शेर जैसी होती है , इसे वक्रोक्ति , व्यंग्य या अंदाज़-ए-बयाँ के रूप में देख सकते हैं !
जैसे-
1-
आज/ अवसर/ है/ दृग/ मिला/ लेंगे.
21/ 2 2/ 2/ 2/ 12/ 22
प्यार/ को/ अपने/ आजमा/ लेंगे.
21/ 2/
22/ 2 12/ 22
कोरा/ कुर/ ता है आज अप/ ना भी
21/ 2/
22/ 2 12/ 22
कोरी/ चू/ नर पे/ रंग डा / लेंगे.
21/ 2/
22/ 2 12/ 22
-श्री चन्द्रसेन ’विराट’
2-
किसी पत्थर/ में मूरत है/ कोई पत्थर/ की मूरत है
1222/ 1222/
1222/ 1222
लो हमने दे/ ख ली दुनिया/ जो इतनी ख़ू/ बसूरत है
1222/ 1222 1222 1222
ज़माना अप/ नी समझे पर/ मुझे अपनी/ खबर ये है
1222/ 1222 1222
1222
तुम्हें मेरी/ जरूरत है/ मुझे तेरी जरूरत है
1222 1222 1222
1222
-कुमार विश्वास
कोई दीवा/ ना कहता है,/ कोई पागल/ समझता है,
1222 1222 1222
1222
मगर धरती/ की बेचैनी को,/ बस बादल/ समझता है
1222 1222 1222
1222
मैं तुझसे/ दूर कैसा हूँ/ तू मुझसे दू/ र कैसी है
1222 1222 1222
1222
ये तेरा दिल/ समझता है/ या मेरा दिल समझता है.’
1222 1222 1222
1222
-कुमार विश्वास
3-
2122 2122 212 फाइलातुन फाइलुन
भाव थे जो शक्ति-साधन के लिए,
लुट गये किस आंदोलन के लिए ?
यह सलामी दोस्तों को है, मगर
मुट्ठियाँ तनती हैं दुश्मन के लिए !
-शमशेर बहादुर सिंह
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