Home Page

new post

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक-4 (मात्रा गणना का समान्य नियम)


मात्रा गणना का सामान्य नियम-

क्रमांक - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे - , , , , , , , , ... आदि मात्रिक हैं ।
क्रमांक - , , स्वर अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं ।
जैसे - , , , कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं ।
क्रमांक - , , अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे -, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि मात्रिक हैं ।
क्रमांक . () - यदि किसी शब्द में दोएक मात्रिकव्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम =  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा नहीं किया जा सकता है ।
जैसे -सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
. () परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा ।
जैसे - असमय = //मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
क्रमांक () किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है।
उदाहरण - “तुमशब्द में “’’” ’“’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता हैतुएक मात्रिक है औरतुमशब्द मेंभी एक मात्रिक है और बोलते समयतु+मको एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
इसके और उदाहरण देखें - यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
  () परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे द-  सुमधुर = सु/ /धुर = +उ१ म१ धुर२ = ११२  
क्रमांक () - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं, तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
जैसे - पुरु = + / र+उ = पुरु = ,  
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
() परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा-
जैसे -  सुविचार = सु/ वि / चा / = +उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
क्रमांक () - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि मात्रिक है तो वह मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी मात्रिक ही रहता है ऐसे मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् चा = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द = / +न् / = आ२ नन्२ द१ = २२१  
कार्य = का+र् / = र्का   = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें = / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
() अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
सस्ता = २२, दोस्तों = २१२, मस्ताना = २२२, मुस्कान = २२१, संस्कार= २१२१    
क्रमांक . () - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
. () यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
. () संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण -प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,
() उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/ = २१२१ (’नुअक्षर लघु होते हुए भीक्रके योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)      क्रमांक - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को मात्रिक नहीं गिना जा सकता ।
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ () नहीं गिन सकते यदि हमें मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप मेंदुखलिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा ।
मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें -
तिरंगा = ति + रं + गा =  ति रं गा = १२२    
उधर = /धर उ१ धर२ = १२
ऊपर = /पर = पर = २२    
इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें =
मारा = मा / रा  = मा रा = २२
मरा  = / रा  = रा = १२
मर = मर =
सत्य = सत् / = सत् = २१


मात्रा गिराने का नियम-
क्रमांक  - सभी व्यंजन (बिना स्वर केएक मात्रिक होते हैं ।
जैसे दृ  ... आदि  मात्रिक हैं । यह स्वयं  मात्रिक है ।
क्रमांक  -  स्वर  अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं ।जैसे = किसिपुसु हँ  आदि एक मात्रिक हैं। यह स्वयं  मात्रिक है
क्रमांक  -      अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = सोपाजूसीनेपैसौसं आदि  मात्रिक हैं ।
इनमें से केवल      स्वर को गिरा कर  मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर  मात्रिक कर सकते हैं जो ““ स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते  ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो अं के योग से दीर्घ हुए हों ।
उदाहरण -मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं
साकीहूपेदो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु अंपैकौरं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं । स्पष्ट है कि  स्वर तथा  तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं ।
क्रमांक .
. () - यदि किसी शब्द में दो ’एक मात्रिक’ व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम =   ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा  नहीं किया जा सकता है ।
जैसे -समदमचलघरपलकल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैंद्य  दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं ।
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मल को गिरा कर  नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते ।  
. (परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा ।
जैसे दृ  असमय = //मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
असमय का उच्चारण करते समय ’’ उच्चारण के बाद रुकते हैं और ’’ अलग अलग बोलते हैं और ’मय’ का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए ’’ और ’’ को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा ।
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है अ१ स१ और मय२ को हम . अनुसार नहीं गिरा सकते     
क्रमांक  (- जब क्रमांक  अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन( मात्रिक क्रमांक  के अनुसारहो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है ।
उदाहरण द- “तुम” शब्द में “’’” ’“’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता है(क्रमांक  अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “” भी एक मात्रिक है (क्रमांक  के अनुसार)  और बोलते समय “तु+” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता । इसके और उदाहरण देखें = यदिकपिकुछरुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
 ऐसे दो मात्रिक को नहीं गिरा कर लघु नहीं कर सकते ।
 (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे दृ  सुमधुर = सु /धुर = +उ१ म१ धुर२ = ११२  
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है += म१ और धुर२ को हम . अनुसार नहीं गिरा सकते    
क्रमांक  () - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक  अनुसारतो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
जैसे = पुरु = + / + = पुरु = ,  इसके और उदाहरण देखें = गिरि
ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते
 (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा ।
जैसे दृ  सुविचार = सुवि / चा /  = +उ१ +इ१ चा२ र१ = ११२१
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है +उ१ +इ१    
क्रमांक  () - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को  मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि  मात्रिक है तो वह  मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी  मात्रिक ही रहता है ऐसे  मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है ।
उदाहरण -सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच्  चा  = २२ (अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता हैआनन्द =  / +न् /  = आ२ नन्२ द१ = २२१ , कार्य = का+र् /  = र्का     = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा  के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तुम्हारा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें =  / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
क्रमांक  (अनुसार दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते
 (अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध  व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध  के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध  के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध  को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है ।
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /२१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
सस्ता = २२ दोस्तों = २१२मस्ताना = २२२ मुस्कान = २२१      संस्कार२१२१
क्रमांक  (अनुसार हस्व व्यंजन स्वयं लघु होता है ।
क्रमांक . () - संयुक्ताक्षर जैसे = क्षत्रज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र२१वक्र = २१यक्ष = २१कक्ष - २१यज्ञ = २१शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१मूत्र = २१,
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं।
. (यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं ।
उदाहरण = त्रिशूल = १२१क्रमांक = १२१क्षितिज = १२
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं ।
. (संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं ।
उदाहरण =प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२पत्रों = २२  
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वर के जुडने से दीर्घ होते हैं तथा यह क्रमांक  के अनुसार लघु हो सकते हैं ।
 (उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/ = २१२१ (’नु’ अक्षर लघु होते हुए भी ’क्र’ के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार  के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं ।
क्रमांक  – विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को  मात्रिक नहीं गिना जा सकता ।
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (नहीं गिन सकते यदि हमें  मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में ’दुख’ लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा ।
क्रमांक  अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं ।
अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकतेपरन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है ।
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें - मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि ’’ स्वर तथा ’’ स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते हैद्य जैसे - “जै“  को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप “है“ “हैं“ और “मैं“ को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है ।
कुछ अशआर की तक्तीअ की जाये जिसमें मात्रा को गिराया गया हो -
उदाहरण - 
जिंदगी में / आज पहली / बार मुझको / डर लगा२१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
उसने मुझ पर / फूल फेंका / था मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
तू मुझे काँ / टा समझता / है तो मुझसे / बच के चल
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
राह का पत् / थर समझता / है तो फिर ठो / कर लगा
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
गे आगे / मैं नहीं हो / ता कभी नज् / मी मगर
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
आज भी पथ / राव में पह / ला मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
उदाहरण - 

उसे अबके / वफाओं से / गुज़र जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२   /  १२२२   /   १२२२
मगर इस बा मुझको अपने घर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मैं अपनी मुट् / ठियों में कै /  कर लेता / जमीनों को
१२२२     /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मगर मेरे / क़बीले को / बिखर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
वो शाखों से / जुदा होते / हुए पत्ते / पे हँसते थे
१२२२    /  १२२२   /  १२२२   /   १२२२
बड़े जिन्दा / नज़र थे जिन / को मर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२

उदाहरण - 

कैसे मंज़र / सामने  / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
गाते गाते / लोग चिल्ला / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२

अब तो इस ता / लाब का पा / नी बदल दो
      २१२२  /   २१२२   /  २१२२
ये कँवल के /  फूल कुम्हला / ने लगे हैं
    २१२२  /    २१२२   /  २१२२

एक कब्रिस् / तान में घर / मिल रहा है
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
जिसमें तहखा / नों से तहखा / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि हम किन दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं ।
अब मात्रा गिराने को काफी हद तक समझ चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि कौन सा दीर्घ मात्रिक गिरेगा और कौन सा नहीं गिरेगा ।
अब हम इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं कि शब्द में किस स्थान का दीर्घ गिर सकता है और किस स्थान का नहीं गिर सकता -
नियम  के अनुसार हम जिन दीर्घ को गिरा कर लघु मात्रिक गिन सकते हैं शब्द में उनका स्थान भी सुनिश्चित है अर्थात हम शब्द के किसी भी स्थान पर स्थापित दीर्घ अक्षर को  नियम अनुसार  नहीं गिरा सकते
उदाहरण - पाया २२ को पाय अनुसार उच्चारण कर के २१ गिन सकते हैं परन्तु पया अनुसार १२ नहीं गिन सकते ।

प्रश्न उठता है किजब पा और या दोनों में एक ही नियम (क्रमांक  अनुसारलागू है तो ऐसा क्यों कि ’या’ को गिरा सकते हैं ’पा’ को नहीं ?
इसका उत्तर यह है कि हम शब्द के केवल अंतिम दीर्घ मात्रिक अक्षर को ही गिरा सकते हैं शब्द के आखि़री अक्षर के अतिरिक्त किसी और अक्षर को नहीं गिरा सकते ।
कुछ और उदाहरण देखें -
उसूलों - १२२ को गिरा कर केवल १२१ कर सकते हैं इसमें हम “सू“ को गिरा कर ११२ नहीं कर सकते क्योकि ’सू’  अक्षर शब्द के अंत में नहीं है  
तो -  को गिरा कर  कर सकते हैं क्योकि यह शब्द का आखि़री अक्षर है ।
बोलो - २२ को गिरा कर २१ अनुसार गिन सकते हैं 
नोट - इस नियम में कुछ अपवाद भी देख लें -
कोईमेरातेरा शब्द में अपवाद स्वरूप पहले अक्षर को भी गिरा सकते हैं)    
कोई - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
मेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
तेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
-----------------------------------------------------------------------------------------
अब यह भी स्पष्ट है कि शब्द में किन स्थान पर दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं

अब यह जानना शेष है कि किन शब्दों की मात्रा को कदापि नहीं गिरा सकते -

हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - “मीरा“ शब्द में अंत में “रा“ है जो क्रमांक  अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में  रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२को “मीर“ उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते । “मीरा“ शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते  यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा ।
 “आगरा“ शब्द में अंत में “रा“ है जो क्रमांक  अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में “रा“  रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२को “आगर“ उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकतेद्य “आगरा“ शब्द सदैव २१२ ही रहेगा द्य इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते द्य यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा ।

ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए ।
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में “ना“ है जो क्रमांक  अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में “ना“  रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए  परन्तु अब इस नियम में काफी छूट लिये जाने लगे हैं क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं ।

उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है  और लगभग स्वीकार्य है द्य मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए ।

यह भी याद रखें कि यह नियम केवल हिन्दी के तत्सम शब्दों के लिए है   उर्दू के शब्दों के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है क्योकि उर्दू की शब्दावली में तद्भव शब्द नहीं पाए जाते ।

(अगर किसी उर्दू शब्द का बदला हुआ रूप प्रचलन में आया है तो वह  शब्द उर्दू भाषा से से किसी और भाषा में जाने के कारण बदला है जैसे उर्दू का अलविदाअ २१२१ हिन्दी में अलविदा २१२ हो गयासहीह(१२१) बदल कर सही(१२)  हो गया शुरुअ (१२१बदल कर शुरू(१२हो गया मन्अ(२१बदल कर मना(१२हो गयाऔर ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका स्वरूप बदल गया मगर इनको उर्दू का तद्भव शब्द कहना गलत होगा )

-------------------------------------------------------
अब जब सारे नियम साझा हो चुके हैं तो कुछ ऐसे शब्द को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता हूँ जिनकी मात्रा को गिराया जा सकता है


मेरे मुक्तक
1. पीसो जो मेंहदी तोहाथ में रंग आयेगा 
बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा 
है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू
दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।।

2. अंधियारा को चीरएक नूतन सबेरा आयेगा 
 राह बुनता चल तो सही तूतेरा बसेरा आयेगा ।।
 हौसला के ले परउडान जो तू भरेगा नीले नभ 
 देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा 

2. क्रोध में जो कापताकोई उसे भाते नही 
हो नदी ऊफान परकोई निकट जाते नही 
कौन अच्छा  बुरा को जांच पाये होश खो
हो घनेरी रात तो साये नजर आते नहीं।

3. कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम ,
सता कर  सता कर  मुझे मौन हो तुम 
कभी भी कहीं का किसी का  छोड़े,
करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।।
पौन-प्राण

4. काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं 
झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।।
जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा
ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।।

5. तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो 
जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।।
तुम ये लिखे हो कैसे पाती मुझे,
समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।।

6. बड़े बड़े महल अटारी और मोटर गाड़ी उसके पास
यहां वहां दुकान दारी  और खेती बाड़ी उसके पास 
बिछा सके कही बिछौना इतना पैसा गिनते अपने हाथ,
नही कही सुकुन हथेलीचिंता कुल्हाड़ी उसके पास ।।

7. तुझे जाना कहां है जानता भी है 
चरण रख तू डगर को मापता भी है ।।
वहां बैठे हुये क्यों बुन रहे सपना,
निकल कर ख्वाब से तू जागता भी है 


संकलन-रमेशकुमार सिंह चौहान




लोकप्रिय पोस्ट