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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

मंगलवार, 26 मई 2015

‘कला परम्परा‘ के सरजक -माननीय डी.पी. देशमुख


             हमर छत्तीसगढ़ के माटी मा तइहा ले आज तक नाना परकार के परम्परा अउ संस्कृति रचे बसे हवय जेमा के बहुत अकन परम्परा काल के गाल मा समावत हे, ये परम्परा मन नंदावत जात हे, फेर ऐला बहुत हद तक हमर कलाकार अउ कलमकार मन साधे रखें हे ।  हमर छत्तीसगढ मा कला अउ साहित्य के नाना विधा के साधक मन भरे परे हे, चाहे वो संगीत के लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत या सुगम संगीत होय, नाच मा लोक नाचा, शास्त्रीय नृत्य, होय आनी-बानी साज के वादक होय, मझे सुर साधक होय।  साहित्य के लोक साहित्य ला आगे बढ़इहा, छत्तीसगढ़ी भासा ला समरथ बनइया, हिन्दी, उर्दू के गजलकार, गीतकार होय ।   हर क्षेत्र मा हमर राज्य के कलाकार कलमकार संघर्ष करत अपन दायित्व के निर्वहन करत आत हे, ये कलाकार कलमकार म के जादा ले जादा मन हा गुमनामी ले डुबे हे, ओला कोनो नई जानय, ओ मन अपन परिचय के मोहताज हे । ओखर काम हा ओखरे तक सीमट के रहिगे हे ।  ये दुनिया मा जिहां एक कोति हर आदमी अपन सुवारथ ले सब काम करथें, दू पइसा जिहां ले मिलही उहीं मेरा काम करथे, अइसन समय मा ये संघर्ष करत सरसती के लइका मन बर संगी बन के आदरणीय डी.पी. देशमुख जी आघू आइन, रिफ्रेक्टरीज प्लांट के जन सम्पर्क अधिकारी डी.पी.देशमुख अपन कर्मठता अउ जिवंतता के परिचय देत एक दुर्लभ अउ दुस्कर काम ला अपन हाथम लेइन । वो मन बिना कोई सुवारथ के बिना कोई लाग लपेट के हर परकार के कलाकार कलमकार मन ला समेटत ऊंखर पहिचान बर ‘कला परम्परा‘ पत्रिका के श्रृंखला चलावत हे । आदरणीयदेशमुख जी अपन माटी के करजा चुकावत सरलग ‘कला-परम्परा‘ परकासित करत हे जेमा छत्तीसगढ के परम्परा-संसकृति अउ ऐखर संरक्षक लोककलाकार कलमकार मन ला पहिचान दे के अथक परयास करके सफल होत दिखत हे ।
श्री देशमुखजी हा ‘कला परम्परा‘ के शुरूवात ले छत्तीसगढ के कला अउ परम्परा, हमर संस्कृति, हमर पहिचान ला देश दुनिया मा बगराय के बिड़ा उठायें हें । ऐखर दूसर अंक ला लोककला, साहित्य अउ संस्कृति ला समरपित करत 175 रचनाकार मन के साहित्यक योगदान ला डाडी खिंच के बतायें हे । ‘कला परम्परा‘ के तीसर अंक ला लोककलाकार मन ला समरपित करत लगभग 800 लोककलाकार मन के छायात्रित जीवन परिचय लोककला के क्षेत्र मा ऊंखर योगदान ला दुनिया मा बगराये हें । ‘कला परम्परा‘ के चउथा अंक ला छत्तीसगढ के पर्यटन तीरथ धाम ला समरपित करत अपन जिवटता के परिचय दिईन । ये अंक मा एक गाइड के रूप मा काम करत हमर राज्य के घूमे के लइक ठउर के रोचक फोटु सहित जानकारी उपलब्ध कराये हें । ये अंक मा प्राकृतिक सौंदर्य के ठउर, सबो धरम के धार्मिक ठउर, उहां जाइके के रद्दा रूके के ठउर के संबंध मा सुंदर जानकारी परोसे गे हे जेखर ले सैलानी मन ला कोनो तकलीफ झन होवय, हमर राज्य के गौरव ला देष परदेश मा बगराय जा सकय । ‘जेन काम ला छत्तीसगढ के पर्यटन विभाग ला करना रहिस ओ काम ला श्री देशमुख हा अपन सीमित संसाधन ले कर देखाइन‘- अइसन उद्गार ये अंक के विमोचन बखत हमर राज्य के माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह हा कहे रहिस ।
‘कला परम्परा‘ के पांचवा अंक साहित्य बिरादरी ला समर्पित हे जेमा, 1001 साहित्कारमन के नाम, पता संपर्क, साहित्यीक उपलब्धि जम्मो परकार जानकारी ऐमा दे गे हे । एखर संगे-संग 175 मूर्धन्य साहित्यकारमन के जीवनवृत्त ला ऐमा समेटे गे हे । ये अंक साहित्य बिरादरी मन के परिचय ग्रन्थ आय । ये परिचय ग्रन्थ ले साहित्यकार मन जिहां एक दूसर के परिचय प्राप्त करत हे ऊंहे दूसर कोती साहित्य प्रेमी मन अपन रूचि के साहित्यकार ला जान सकत हे ।  साहित्य बिरादरी के अंक मा सबो झन के संपर्क नम्बर हे जेखर ले एक-दूसर साहित्यीक बंधु मन साहित्यीक अभिरूची के चरचा कर सकत हे, या एक-दूसर ले व्यक्ति गत सुख-दुख बांट सकते हे । ये एक ठन किताब हा गुमनामी मा खोय साहित्यकार मन के नाम ला दुनिया मा बगराय के काम करत हे । ये बुता हा कोनो छोटे बुता नो हय, बहुते बड़े काम आय ।   अतका झन साहित्कार ला एक किताब मा समेटना ।
‘कला परम्परा‘ के अवइया छठवा अंक ला छत्तीसगढ के तीज तिहार ला समरपित करे गे हे, जेमा हमर बिसरत परम्परा ला सकेले के काम होही ।
ये परकार हम देखी ता ‘कला परम्परा‘ के संपादक श्री डी.पी. देशमुख अउ ऊंखर पूरा टीम बधाई के पात्र हे, सुवागत के पात्र हे, वंदन के पात्र हे । ‘कला परम्परा‘ के पहिली ले लेके पाचवां अंक तक सबो हा पूरा छत्तीसगढ़, पूरा देश अउ दुनिया बर उपयोगी हे ।  ये उपयोगी हे आम जनता बर जेन अपन संस्कृति ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी हे ऊंखर बर जेन छत्तीसगढ़ ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी उन लइका मन बर जउन मन नाना परकार प्रतियोगी परीक्षा देवावत हें, ये उपयोगी हे उन कलाकार बर जेन मन गुमनामी मा जिये बर मजबूर हें, ये उपयोगी उन साहित्कार मन बर जेला कोनो नइ जानत हे । ‘कला परम्परा‘ हर परकार ले हर परकार के आदमी मन बर उपयोगी हे ।
आदरणीय डी.पी. देशमुख अउ ओखर सहयोगी ‘कला परम्परा‘ के संरक्षक श्री कैलाष धर दीवान, प्रधान संपादक श्री मनोज अग्रवाल, सहित श्री सहदेव देश्‍ामुख, श्री अशोक सेमसन, श्रीमती पूनम अग्रवाल, डॉ. आरती दीवान, श्रीमती नीता देशमुख, डॉ. राजेन्द्र हरमुख, चेमन हरमुख आदि मन के ये मेहनत हा आदर के योग्य हे । हम जम्मो झन आपमन के ये परयास के दिल ले प्रसंसा करत हन अउ ईश्वर ले प्रार्थना करत हन के आप के पांव मा कांटा झन गड़य, आपके रद्दा के हर बाधा दूर होवय अउ आप मन अपन लक्ष्य ला पाके क्षितिज मा चमकव ।
-रमेश कुमार चैहान,
       मिश्रापारा, नवागढ़,
     
 जिला-बेमेतरा, मो. 09977069545

शनिवार, 23 मई 2015

हमर छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामील करायके परयास

         छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूचची मा सामिल कराय के परयास के संबंध मा चरचा करे के पहिली हमला ये  जानेे ल परही के ये आठवी अनुसूची आय का अउ ऐखर ले का फायदा नुकसान हवय ।  आठवी अनुसूची  हमर भारतीय संविधान के अइसे अनुसूची आय जेमा भारत मा प्र्रचलित भासा ला संवैधानिक दर्जा दे जाथे ।  भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ 35 (भासा) मा कहे गे हे भारतीय संघ के जम्मो कार्यपालिका अउ न्यायपालिका के भासा अंग्रेजी, हिन्दी अउ आठवी अनुसूची मा मान्यतता प्राप्त  क्षेत्रीय भासा होही । भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ अनुच्छेद 351 के अनुसार आठवी अनुसूची मा सामिल भासा के विकास अउ ओखर परचार के जिम्मा केन्द्र सरकार के होही । ये संबंध मा केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिसा निर्देस राज्य सरकार बर बंधनकारी होही । अभी तक ये अनुसूची मा 22 भासा ला सामिल करे गे हे ।
छत्तीसगढ़ी के आठवीं अनुसूची मा सामिल होय ले फायदे फायदा हे, सबले जादा फायदा हमर छत्तीसगढि़या नवजवान साथी मन ला हो ही संघ लोक सेवा आयोग अउ राज्य लोक सेवा आयोग के परीक्षा मा ऐ एक भासा के रूप मा मान्य होही । आठवी अनुसूूची मा सामिल होेय के बाद  हमर छत्तीसगढ़ी राजभासा आयाोग ला मानव संसाधन विभाग द्वारा योजना राषि दे जाहीं, संगे संग भासा विकास प्राधिकरण द्वारा आर्थिक सहयोग दे जाही । भारत सरकार के गजट के परकासन छत्तीसगढ़ी मा घला होही । राष्ट्रपति के अभिभासन ला छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करके आकाषवाणी अउ दूरदरसन ले परसारित कराय जाही । ये जम्मो फायदा कोनो भी छत्तीसगढ़ी भासी संगी ला होही चाहे वो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी होय, चाहे आने राज्य या देस के ।
अब सवाल उठते आखीर कोनो भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय बर का करे ला परते ।  कोन हा कोन भासा ला ये सूची मा जोड़ सकते हे । भारतीय संविधान के आठवी अनुसूची में भासा ला जोड़े के अधिकार केंद्र सरकार ला हे कोन भासा ला जोड़े जाय ये संबंध मा कोनो इसपस्ट उल्लेख नइ हे।
आठवी अनुसूची मा पहिली 14 भासा -असमिया, बंग्ला, गुजराती, हिन्दी कन्नड, कशमीरी, मराठी मलयालम, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगू अउ उर्दू रहिस । 1967 मा 21वां संविधान संशोधन करके कोंकणी अउ मणीपुरी ला, 1992 मा 71वां संविधन संषोधन करके नेपाली ला अउ 2003 मा 91वं संशोधन करके बोडो, डोगरी, संथाली अउ मैथली ला सामिल करे गे हे । ऐखर ले इस्पस्ट हे छत्तीसगढी ला ऐमा सामिल करे बर फेर संविधान संशोधन करे ला परही ।
             अनुच्छेद 345 अउ 346 हा राज्य ला भासा के संबंध मा छूट दे रखे हे । जेखर अधिन छत्तीसगढ के राज भासा हिन्दी के गे संग छत्तीसगढी ला बनाय गे हे । अनुच्छेद 347 के अनुसार कोनो राज्य मा कहू कोनो भासा के बोलइया मन के संख्या जादा होय ता उंहा के राज्य सरकार हा, ये सबंध मा राष्ट्रपति ला अभिज्ञात दे सकत हे, जेखर आधार मा राष्ट्रपति अभिज्ञा देते अउ वो भासा ला आठवी सूची मा सामिल करे के रद्दा खुल जाथे ।
छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची मा सामिल करे के मांग ऐखर राज भासा बने के संगे संग षुरू होगे हे ।  छत्तीसगढी राजभासा आयोग ये दिशा मा अपन पहिली सम्मेलन ‘राजभासा कुंभ‘ 2013 ले कर दे हवय । ये सम्मेलन के समापन समारोह मा खुदे ये संबंध हमर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह हा ये भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय के आस्वासन दे हवय । ‘छत्तीसगढी ला  जन भासा बनाय के जरूरत नइ हे ये खुदे एक जनभासा बने हवय । हमर राज्य के पढ़े-लिखे संगी मन आज तक ये भासा ला उपेक्षा ले देखत रहिन ।  जेन मनखे के परिवार नानपन ले घर मा छत्तीसगढ़ी बोलत रहिन ओ मन दू आखर पढ-लिख के ये भासा ला बोले ला बंद कर दिहीन । छत्तसगढ़ी मा बोलइया मन ला देहाती अउ गवार कहे लगीन । अइसन धारणा ला मिटाय बर ‘छत्तीसगढ़ी बर सकलाव‘ के नारा देत राजभासा आयोग हा अपन दूसर सम्मेलन 2014 मा छत्तीसगढ़ी ला पढ़े-लिखे मन के भासा बनाय के पुर जोर कोसिस करीन ।  राजभासा अपन तीसर प्रांतीय अधिवेष्न 2015 ला तो ‘आठवी अनुसूची मा छत्तीसगढ़ी‘ ला समर्पित करे रहिस ।
अइसनो बात नइ हे के एकेल्ला राजभासा ऐ दिसा मा कोसिस करत हे । बहुत अकन साहित्यिक संस्था मन घला ये दिसा मा परयासरत हे । छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2009 मा कवरधा मा अपन प्रांतीय अधिवेसन कराइन जेमा छत्तीसगढ़ के पहिली अध्यक्ष पंडित ष्यामलाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार डाँ विनय पाठक मन सिरकत करीन । ये सम्मेलन के मुख्य विषय रहिस ”छत्तीसगढ़ी भाखा अउ आठवीं अनुसूची”।
ये विसय मा घात दिन ले गोष्ठी, सम्मेलन, चरचा-परिचरचा चलत हवय फेर येमा अभी तक सफलता नइ मिले हे । ऐखर कारण मा जाहू ता ऐकेठन कारन दिखही, इच्छा शक्ति के कमी । नेता के अउ आम जनता के ।  आठवी सूची के विसय सब्बो ढंग ले एक राजनीतिक इच्छा शक्ति मा निरभर हे ।  राजनीतिक इच्छाशक्ति के उदय जन दबाव मा निरभर करथे ।
छत्तीसगढी ला ‘जनभासा‘ ले राजभासा अउ ‘राजभासा‘ ले आठवी अनुसूची के भासा बनाय पर ‘छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ के गठन करे गे हे ।  जेखर संयोजक श्री नंदकिशोर शुक्ल हे, जेमा जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा, सुधीर शर्मा, जयप्रकाश शर्मा, चेतन भारती, सुशील भोले, वैभव पाण्डेय, संजीव साहू अउ राकेश चैहान मन सदस्य हें ।  छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ हा छत्तीसगढी ला आठवी अनुसूची मा सामिल कराये बर जनजागरण करे बर एक ठन अलग समिति के गठन करे हे, जेन हा घर-घर जाके दस्तक देही । ये समिति हा हमर राज्य के संसद, विधायक अउ जनप्रतिनिधि मन के दस्खत ले के एक ज्ञापन बनाही जेला महामहिम राश्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष अउ संसदीय कार्यमंत्री ला दे जाही । ऐमा हमर राज के पंच विभूति पद्मश्री डाॅ सुरेन्द्र दुबे, डांॅ महादेव प्रसाद पाण्डे, डाॅ जे.एम. नेल्सन, श्री अनुज शर्मा अउ भारती बंधुमन घला सामिल होही ।
अब तक के परयास ला देखे मा हम पाथन के ये दिसा मा साहित्यकार मन पूरा जोर जगा दें हे, जगह-जगह ये विसय मा चरचा-गोष्ठी करावत हवे अउ आम जनता ला जगावत हवे ।  ऐखर सकारात्म परिणाम घला देखे मा आवत हे । छत्तीसगढ़ी ला हे के दृश्टि ले देखइया मन के संख्या मा दिनो दिन कमी आवत हे ।
मोर सोच हे हमार राज्य के गांव-देहात मा बसे जनता मन छत्तीसगढी ला अपन दिनचरया के भासा पहिली ले बना रखे हे ।  समस्या तो सहर अउ सहरीकरण के परभाव मा आये लोगन के हे जेन मन पति-पत्नि छत्तीसगढी मा गोढियाते अउ अपने लइका मेर हिन्दी झाड़थे ।  बहुत झन अइसे वक्ता, नेता हे जेन हा छत्तीसगढ़ी बर मंच मा छत्तीसगढ़ी मा तगड़ा भाशण देथें अउ मंच के घालहे मा हिन्दी अंग्रेजी मा सोर मचाथे । ऐखरो एक ठन कारण हे छत्तीसगढी पहिली ले जनभासा रहिस हे, पढे-लिखे मन अपन ला उंखर ले अलग दिखे बर उन्ला गंवार अउ छत्तीसगढी ला गंवार मन के भासा देखाय के प्रपंच कर डारिन फेर छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी के राज भासा बने  ले सोच मा फरक परे हे अउ ये सोच जेन दिन मर जाही अउ ये भासा बर अपन पन के भाव जेन दिन जाग जाग जाही, उही दिन हमर भासा आठवीं अनुसूची मा सामिल हो जाही ।

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