
श्री देशमुखजी हा ‘कला परम्परा‘ के शुरूवात ले छत्तीसगढ के कला अउ परम्परा, हमर संस्कृति, हमर पहिचान ला देश दुनिया मा बगराय के बिड़ा उठायें हें । ऐखर दूसर अंक ला लोककला, साहित्य अउ संस्कृति ला समरपित करत 175 रचनाकार मन के साहित्यक योगदान ला डाडी खिंच के बतायें हे । ‘कला परम्परा‘ के तीसर अंक ला लोककलाकार मन ला समरपित करत लगभग 800 लोककलाकार मन के छायात्रित जीवन परिचय लोककला के क्षेत्र मा ऊंखर योगदान ला दुनिया मा बगराये हें । ‘कला परम्परा‘ के चउथा अंक ला छत्तीसगढ के पर्यटन तीरथ धाम ला समरपित करत अपन जिवटता के परिचय दिईन । ये अंक मा एक गाइड के रूप मा काम करत हमर राज्य के घूमे के लइक ठउर के रोचक फोटु सहित जानकारी उपलब्ध कराये हें । ये अंक मा प्राकृतिक सौंदर्य के ठउर, सबो धरम के धार्मिक ठउर, उहां जाइके के रद्दा रूके के ठउर के संबंध मा सुंदर जानकारी परोसे गे हे जेखर ले सैलानी मन ला कोनो तकलीफ झन होवय, हमर राज्य के गौरव ला देष परदेश मा बगराय जा सकय । ‘जेन काम ला छत्तीसगढ के पर्यटन विभाग ला करना रहिस ओ काम ला श्री देशमुख हा अपन सीमित संसाधन ले कर देखाइन‘- अइसन उद्गार ये अंक के विमोचन बखत हमर राज्य के माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह हा कहे रहिस ।
‘कला परम्परा‘ के पांचवा अंक साहित्य बिरादरी ला समर्पित हे जेमा, 1001 साहित्कारमन के नाम, पता संपर्क, साहित्यीक उपलब्धि जम्मो परकार जानकारी ऐमा दे गे हे । एखर संगे-संग 175 मूर्धन्य साहित्यकारमन के जीवनवृत्त ला ऐमा समेटे गे हे । ये अंक साहित्य बिरादरी मन के परिचय ग्रन्थ आय । ये परिचय ग्रन्थ ले साहित्यकार मन जिहां एक दूसर के परिचय प्राप्त करत हे ऊंहे दूसर कोती साहित्य प्रेमी मन अपन रूचि के साहित्यकार ला जान सकत हे । साहित्य बिरादरी के अंक मा सबो झन के संपर्क नम्बर हे जेखर ले एक-दूसर साहित्यीक बंधु मन साहित्यीक अभिरूची के चरचा कर सकत हे, या एक-दूसर ले व्यक्ति गत सुख-दुख बांट सकते हे । ये एक ठन किताब हा गुमनामी मा खोय साहित्यकार मन के नाम ला दुनिया मा बगराय के काम करत हे । ये बुता हा कोनो छोटे बुता नो हय, बहुते बड़े काम आय । अतका झन साहित्कार ला एक किताब मा समेटना ।
‘कला परम्परा‘ के अवइया छठवा अंक ला छत्तीसगढ के तीज तिहार ला समरपित करे गे हे, जेमा हमर बिसरत परम्परा ला सकेले के काम होही ।
ये परकार हम देखी ता ‘कला परम्परा‘ के संपादक श्री डी.पी. देशमुख अउ ऊंखर पूरा टीम बधाई के पात्र हे, सुवागत के पात्र हे, वंदन के पात्र हे । ‘कला परम्परा‘ के पहिली ले लेके पाचवां अंक तक सबो हा पूरा छत्तीसगढ़, पूरा देश अउ दुनिया बर उपयोगी हे । ये उपयोगी हे आम जनता बर जेन अपन संस्कृति ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी हे ऊंखर बर जेन छत्तीसगढ़ ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी उन लइका मन बर जउन मन नाना परकार प्रतियोगी परीक्षा देवावत हें, ये उपयोगी हे उन कलाकार बर जेन मन गुमनामी मा जिये बर मजबूर हें, ये उपयोगी उन साहित्कार मन बर जेला कोनो नइ जानत हे । ‘कला परम्परा‘ हर परकार ले हर परकार के आदमी मन बर उपयोगी हे ।
आदरणीय डी.पी. देशमुख अउ ओखर सहयोगी ‘कला परम्परा‘ के संरक्षक श्री कैलाष धर दीवान, प्रधान संपादक श्री मनोज अग्रवाल, सहित श्री सहदेव देश्ामुख, श्री अशोक सेमसन, श्रीमती पूनम अग्रवाल, डॉ. आरती दीवान, श्रीमती नीता देशमुख, डॉ. राजेन्द्र हरमुख, चेमन हरमुख आदि मन के ये मेहनत हा आदर के योग्य हे । हम जम्मो झन आपमन के ये परयास के दिल ले प्रसंसा करत हन अउ ईश्वर ले प्रार्थना करत हन के आप के पांव मा कांटा झन गड़य, आपके रद्दा के हर बाधा दूर होवय अउ आप मन अपन लक्ष्य ला पाके क्षितिज मा चमकव ।
-रमेश कुमार चैहान,
मिश्रापारा, नवागढ़,
जिला-बेमेतरा, मो. 09977069545
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