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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शनिवार, 21 जुलाई 2018

‘‘गुरू की सर्वव्यापकता‘‘

‘‘गुरू की सर्वव्यापकता‘‘ - रमेशकुमार सिंह चौहान भारतीय जीवनशैली गुरू रूपी सूर्य के तेज से आलोकित है । भारतीय साहित्य  संस्कृत से लेकर विभिन्न भारतीय भाषाओं तक गुरू महिमा से भरा पड़ा है । भारतीय जनमानस में गुरू पूर्णतः रचा बसा हुआ है । गुरू स्थूल से सूक्ष्म, सहज से क्लिष्ठ, गम्य से अगम्य, साधारण से विशेष, जन्म से मृत्यु, तक व्याप्त है । ‘‘गुरू...

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक-4 (मात्रा गणना का समान्य नियम)

मात्रा गणना का सामान्य नियम- क्रमांक १ - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं जैसे - क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ट ... आदि १ मात्रिक हैं । क्रमांक २ - अ, इ, उ स्वर व अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं । जैसे - अ, इ, उ, कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं । क्रमांक ३ - आ, ई, ऊ ए ऐ ओ औ अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं जैसे -आ, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि २ मात्रिक...

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