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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

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शुक्रवार, 23 मार्च 2018

स्वतंत्रता सेनानी भागवत प्रसाद उपाध्याय

स्वतंत्रता  सेेनानी भागवत प्रसाद उपाध्याय

किसी भूमि के टुकड़े को राष्ट्र कहके तब पुकारा जाता है, जब उस स्थान पर ऐसे लोग निवास करते हो जो उस मिट्टी से प्रेम करते हों । उस मिट्टी में निवास करते हुये एक संस्कृति विकसित कर लेते हों और जीवन पर्यन्त अपनी मिट्टी और संस्कृति से प्रेम करते हों ।  लोगों के उस मिट्टी के प्रति जो अनुराग, जो श्रद्धा होता है, उसे राष्ट्रीयता की संज्ञा दी जाती है । इसी श्रद्धा और अनुराग से हम भारतीय अपने राष्ट्र को भारत माता कहते हैं । जब-जब माँ भारती पर आक्रांताओं ने आक्रमण किया तब-तब हमारे वीर सपूतों ने अपने प्राण उत्सर्ग करते हुये आक्रांताओं को इस पावन मिट्टी से खेदड़ दिया ।  ऐसे ही वीर सपूतों ने देश को अंग्रेजो से मुक्त कराया । देश के आजादी में जिन-जिन महापुरूषों ने अपना योगदान दिया है, उन्हें आज हम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप पूजते हैं ।  भारत के कोने-कोने से माँ भारती के  लाल सामने आये जो अंग्रेजों के विरूद्ध उठ खड़े हुये ।  हमारे देश में असंख्या स्वतंत्रता सेनानी हुये कुछ लोगों का नाम जन परिचित हैं कुछ लोगों का नाम इतिहास के पृष्ठों में दबे पड़े हैं, तो कुछ आज भी अनाम हैं ।
भारत में अंग्रेजी दास्ता खत्म होने के पश्चात देश में जगह-जगह ऐसे वीर सपूतों के योगदान को चिरस्थाई बनाने के लिये जयस्तम्भ बनवाये गये हैं।  ऐसे ही एक जयस्तम्भ ग्राम नवागढ, तत्कालिक जिला-दुर्ग वर्तमान जिला बेमेतरा़ के ग्राम पंचायत मुख्यालय में विकासखण्ड़ के वीर शहीदों का नाम जयस्तम्भ में स्वर्णीम अक्षरों में अंकित है ।  इस शिलालेख के अनुसार नवागढ़ विकासखण्ड़ में तीन शहीदों का नाम श्री बिसाहू प्रसाद चुरावन प्रसाद, श्री भागवत प्रसाद गोपाल उपाध्याय एवं श्री भगवती प्रसाद महादिन मिश्रा उल्लेखित है ।  जिला कार्यालय बेमेतरा से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री बिसाहू प्रसाद ग्राम जेवरा विख. बेमेतरा, श्री भागवत उपाध्याय ग्राम तेन्दुवा विख. नवागढ़ एवं श्री भगवती प्रसाद मिश्रा ग्राम अंधियारखोर वि.ख. नवागढ़ निवासी रहे हैं ।
स्वतंत्रता सेनानी श्री भागवत प्रसाद उपाध्याय एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में दर्ज हैं, जो आजादी की लड़ाई में भाग लेने के साथ-साथ आजादी पश्चात देश के नवनिर्माण में भी अपनी महती सेवा अर्पित किये हैं ।

श्री भागवत प्रसाद उपाध्याय का जन्म एक छोटे से ग्राम तेन्दुवा में एक साधारण किसान  पंडित गोपाल प्रसाद उपाध्याय के घर माता ललिता बाई के गर्भ से 23 जून 1927 को हुआ । आप अपने माता-पिता के केवल एक अकेले संतान थे । आपके परिवार के संस्कारित एवं धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण आपके बाल्यकाल पर परिवार का पूरा प्रभाव पड़ा ।  इस कारण आप बाल्यकाल से ही सामाजिक, धार्मिक एवं राश्ट्रीय संवेदनाओं से पूरित रहे जिसकी परिणीति आपके स्वतंत्रता सेनानी होना रहा ।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम-पुरान तह. मुंगेली जिला-बिलासपुर में हुआ ।  आपके पिता पंड़ित होने के कारण आपको धार्मिक एवं संस्कृत की शिक्षा के लिये संस्कृत पाठशाला दुग्धाधारी, रायपुर में आपको प्रवेश दिलाया ।  जहां आप पूरे लगन से संस्कृत एवं संस्कृति की शिक्षा दुग्धाधरी मठ में रह कर करने लगे ।
आपके किशोरा अवस्था लगभग 15 वर्ष की आयु में देश में महात्मा गांधी द्वारा ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो‘ का आव्हान किया गया जिसका पूरे देश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी व्यापक प्रभाव पड़ा । इस प्रभाव से बालक भागवत प्रसाद भी अछूते नहीं रहे ।  उनके कोमल मन मस्तिष्क में माँ भारती को दासता से मुक्त कराने की कल्पना साकार होने लगा । मन ही मन मातृभूमि के लिये मर-मिटने की प्रतिज्ञा कर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े ।
किशोर भागवत उपाध्यायजी दुग्धाधारी मठ में रहते हुये अपने सहपाठियों के साथ स्कूल-स्कूल विद्यार्थीयों से संपर्क बढ़ाते हुये एक टोली बना लिये । जिसके माध्यम से रायपुर के गलियों में हाथों में तख्ती, झंड़ा लेकर अपने ओजस्वी उद्बोधन से गांधी जी के आव्हान अंग्रेजों भारत छोड़ो को बुलंद करने लगे । छत्तीसगढ़ में ‘भारत छोड़ो आंदोलन‘ को कुचलने के लिये गोरी अंग्रेज पुलिस ने दमन चक्र चलाया और आंदोलन के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया । यह आंदोलन इतना सुदृढ़ था का नेतृत्व का संकट नही आया और तुरंत दूसरे कतार के नेता आंदोलन के नेतृत्व करने लगे ।
श्री केयुर भूषण, मोतीलाल त्रिपाढ़ी, मिश्राजी आदि देशभक्तों ने आंदोलन का कमान अपने हाथों में ले लिये, इन्ही नेतृत्व के साथ भागवत प्रसाद उपाध्यायजी अपने सहपाठियों और मातृभूमि के प्रति समर्पित साथियों श्री दीनबन्धु, श्री गजाधर, श्री बिसाहू राम, श्री चेतन प्रसाद, श्री हर प्रसाद द्विवेदी, श्री विष्णु प्रसाद श्री चिंताराम द्विवेदी जैसे सैकड़ो स्वप्राण अर्पित करने वालों ने एक साथ अंग्रेजों, भारत छोड़ो के नारे से अंग्रेजों को ललकारने लगे ।  इस आंदोलन की तीव्रता इतनी अधिक थी इन नन्हे सेनानियों से अंग्रेज दहलने लगे ।
27 सितम्बर 1942 को कालीबाड़ी चौंक में प्रदर्शन कर रहे इन नन्हे सेनानियों के नेतृत्व कर रहे भागवत प्रसाद उपाध्याय सहित अन्य 22 विद्यार्थियों को भयभीत अंग्रेज पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया । इन बच्चों पर मुकदमा चलाते हुये इन्हे 6 माह की सजा सुनाई गई । इस प्रकार भागवत प्रसादजी को उनके मित्रों के साथ रायपुर जेल में बंद कर दिया गया ।
करावास अवधी में जेल के अंदर ही सभी सेनानी माँ भारती के चरणों में प्राण उत्सर्ग करने ललायित रहे ।  इस अवधि में किसी भी समय अपने उत्साह को कमजोर नही पड़ने दिये ।  इसी की परिणिती रही कि 20 मार्च 1943 को जेल से रिहा होने के पश्चात उपाध्यायजी पुनः दुगूने उत्साह के साथ इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुये मित्रों, सहपाठियों एवं ग्रामिणों को अपने ओजस्वी उद्बोधनों से प्रेरित करते रहे और आंदोलन को गति देते रहे ।
इस बीच उपाध्यायजी का रायपुर में शिक्षा पूर्ण हो गया और आगे की शिक्षा के लिये उन्हे नागपुर जाना पड़ा ।  भारी मन से उपाध्यायजी रायपुर छोड़कर 1945 में नागपुर चले गये किन्तु वह अपने अंतस में धधक रहे आग को कमजोर नही पड़ने दिये । नये स्थान में नये मित्रों के साथ स्वतंत्रता आंदोलन के अभिन्न अंग बने रहे । अब तक युवा हो चले उपाध्यायजी नागपुर के गलियों-कूचों में स्वतंत्रता आंदोलन के धधक को प्रज्जवलित करते रहे । श्री उपाध्यायजी जैसे देश के असंख्य आंदोलनकारियों के परिश्रम के फलस्वरूप अंत्वोगत्वा 15 अगस्त 1947 को देश आजादा हो गया ।
आजादी के पश्चात महाकैशल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के द्वारा इन सेनानियों का सम्मान किया गया । कांग्रेस कमेटी के सभापति श्री गोंविन्ददासजी के द्वारा श्री भागवतप्रसाद उपाध्याय को प्रशस्ती पत्र के रूप में ताम्रपत्र प्रदान किया गया । 15 अगस्त 1972 को तत्कालिन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उपाध्यायजी के अविस्मरणीय योगदान के लिये कृतज्ञ राष्ट्र की ओर से ताम्रपत्र प्रदान किया गया । सरकार द्वारा आपको स्वतंत्रता सेनानी सम्मान निधि प्रदान किया गया ।
आजादी के पश्चात अब इन सेनानियों का कर्तव्य था कि देश का नवनिर्माण किया जाये । देश में समरसता लाते हुये देश का समग्र विकास किया जाये ।  इस दिशा में उपाध्यायजी पूरे मनोवेग से लग गये और अपने जन्मस्थली तेंदुवा में आकर सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने लगे ।  इसी बीच देश में पंचायती राज व्वस्था लागू की गई ।  श्री उपाध्याय ग्राम पंचतायत तेन्दुवा के निर्विरोध प्रथम सरपंच निर्वाचित हुये ।
सरपंच रहते हुये ग्राम पंचायत के सर्वागिण विकास में अपनी महती योगदान दिये जिसके परिणाम स्वरूप पुनः ग्राम पंचायत के निर्विरोध सरपंच निर्वाचित हुये । जनजागृति लाने एवं शिक्षा का अलख जगाते हुये आपने अपनी सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते रहे । 23 अगस्त 1992 को हृदयगति रूक जाने के कारण आप इस दुनिया को छोड़कर चले गये ।   आपने अपने पीछे चार पुत्र एवं पांच पुत्रियों का भरापूरा परिवार के अतिरिक्त समर्पण एवं त्याग का यश पताका छोड़ गये, जो आज तक खुले गगन में लहरा रहा है ।
आपके योगदान को चिरस्थयी बनाने के लिये आपके स्परण में शसकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय संबलपुर का नामकरण आपके नाम से ‘पं. भागवत प्रसाद उपाध्याय शा.उ.मा.वि. संबलपुर रखा गया है ।  आपके अविस्परणिय योगदान के लिये छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा 2009 में ‘छत्तीसगढ़ गौरव योजना‘ के तहत आपके जन्मस्थली ग्राम तेन्दुवा के सर्वागिण विकास का संकल्प लिया गया ।
जिस प्रकार माता-पिता का ऋण आजीवन नही चुकाया जा सकता उसी प्रकार देश के इन अमर सेनानियों का कर्ज भी नही चुकाया जा सकता ।  उन समस्त वीर अमर शहीद सेनानियों के साथ श्री भागवत प्रसाद उपाध्याय को समूचा राष्ट्र सदैव नमन करता रहेगा ।




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