Home Page

new post

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक-3 (बहर)


बहर
          मात्राओं के क्रम को ही बहर कहा जाता है  जिस प्रकार हिन्दी में गण होता है उसी प्रकार उर्दू में रूकन होता है
रुक्न = गण, घटक, पद, निश्चित मात्राओं का पुंज जैसे हिंदी छंद शास्त्र में गण होते हैं, यगण (२२२), तगण (२२१) आदि उस तरह ही उर्दू छन्द शास्त्रअरूज़में कुछ घटक होते हैं जोरुक्नकहलाते हैं
बहुवचन=अरकान

रुक्न के दो भेद होते हैं -
- सालिम रुक्न (मूल रुक्न)
- मुज़ाहिफ रुक्न (उप रुक्न)

) सालिम रुक्न (मूल रुक्न) - अरूज़शास्त्र में सालिम अरकान की संख्या सात कही गई है-
रुक्न          -   रुक्न का नाम       -  मात्रा
फ़ईलुन         -     मुतक़ारिब       -  १२२
फ़ाइलुन         -   मुतदारिक        -  २१२
मुफ़ाईलुन      -  हजज़                -  १२२२
फ़ाइलातुन      -  रमल                -  २१२२
मुस्तफ़्यलुन   -  रजज़                -  २२१२
मुतफ़ाइलुन    -  कामिल              -  ११२१२
मफ़ाइलतुन    -  वाफ़िर               -  १२११२
) मुज़ाहिफ रुक्न (उप रुक्न)- सात मूल रुक्न के कुछ उप रुक्न भी हैं जो मूल रुक्न को तोड़ कर अथवा मात्रा जोड़ कर बनाए गये हैं।
उदाहरण - (फ़ा), २१( फ़ेल), १२(फ़अल), १२१ (फ़ऊल), ११२ (फ़इलुन), २१२(फ़ाइलुन), ११२२(फ़इलातुन), १२१२(मुफ़ाइलुन), २१२२१(फाइलातान)आदि।
बहर की सूची
क्रमांक
रुक्न का नाम      
मात्रा
बहर  का नाम
1
मुतकारिब
१२२ १२२ १२२ १२२
मुतकारिब मुसम्मन सालिम
2

१२२ १२२ १२२
मुतकारिब मुसद्दस सालिम
3

१२२ १२२
मुतकारिब मुरब्बा सालिम
4
मुतदारिक
२१२ २१२ २१२ २१२
मुतदारिक मुसम्मन सालिम
5

२१२ २१२ २१२
मुतदारिक मुसद्दस सालिम
6

२१२ २१२
मुतदारिक मुरब्बा सालिम
7
रमल
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
रमल मुसम्मन सालिम
8

२१२२ २१२२ २१२२
रमल मुसद्दस सालिम
9

२१२२ २१२२
रमल मुरब्बा सालिम
10
हजज
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
हजज मुसम्मन सालिम
11

१२२२ १२२२ १२२२
हजज मुसद्दस सालिम
12

१२२२ १२२२
हजज मुरब्बा सालिम
13
 रजज
२२१२ २२१२ २२१२ २२१२
रजज मुसम्मन सालिम
14

२२१२ २२१२ २२१२
रजज मुसद्दस सालिम
15

२२१२ २२१२
रजज मुरब्बा सालिम
16
 कामिल
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
कामिल मुसम्मन सालिम
17

११२१२ ११२१२ ११२१२
कामिल मुसद्दस सालिम
18

११२१२ ११२१२
कामिल मुरब्बा सालिम
19
 वाफिर
१२११२ १२११२ १२११२ १२११२
वाफिर मुसम्मन सालिम
20

१२११२ १२११२ १२११२
वाफिर मुसद्दस सालिम
21

१२११२ १२११२
वाफिर मुरब्बा सालिम
प्रत्येक मुफरद सालिम बहरों से कुछ उप-बहरों का निर्माण होता है। उप-बहर बनाने के लिए मूल बहर में एक या एक से अधिक सालिम रुक्न की मात्रा को घटा कर अथवा हटा कर उप-बहर का निर्माण करते हैं  इस प्रकार बनी बहर कोमुफरद मुजाहिफबहर कहते हैं ।

आगे पढ़ने के लिये इस लिंक को देखें-

मुक्तक-4 (मात्रा गणना का समान्य नियम)


मुक्तक-2 (रदिफ एवं काफिया)


रदीफ
रदीफ़ अरबी शब्द है इसकी उत्पत्तिरद्धातु से मानी गयी है।  रदीफ का शाब्दिक अर्थ है ’“पीछे चलाने वाला’” या ’“पीछे बैठा हुआ’” यादूल्हे के साथ घोड़े पर पीछे बैठा छोटा लड़का’ (बल्हा)  ग़ज़ल के सन्दर्भ में रदीफ़ उस शब्द या शब्द समूह को कहते हैं जो मतला (पहला शेर) के मिसरा उला (पहली पंक्ति) और मिसरा सानी (दूसरी पंक्ति) दोनों के अंत में आता है और हू--हू एक ही होता है यह अन्य शेर के मिसरा--सानी (द्वितीय पंक्ति) के सबसे अंत में हू--हू आता है
उदाहरण -
हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
- (दुष्यंत कुमार)
इस उदाहरण मे ‘चाहिए‘ रदिफ़ है ।
          मुक्तक के प्रथम, द्वितीय एवं चतुर्थ पंक्ति के अंत के शब्द या शब्दांश एक ही होना चाहिये अर्थात इन तीनों पंक्ति में रदिफ एक समान हो किन्तु तीसरी पंक्ति रदिफ मुक्त हो
जैसे-
आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,
अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,
बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -
तो उसे गीत में ला छुपाया गया !
................. ओम नीरव.
इस उदाहरण मेगयारदिफ़ है
काफिया
अरबी शब्द है जिसकी उत्पत्तिकफुधातु से मानी जाती है काफिया का शाब्दिक अर्थ हैजाने के लिए तैयार  ग़ज़ल के सन्दर्भ में काफिया वह शब्द है जो समतुकांतता के साथ हर शेर में बदलता रहता है यह ग़ज़ल के हर शेर में रदीफ के ठीक पहले स्थित होता है  जबकि मुक्तक में पहले, दूसरे एवं चौथे पंक्ति में
उदाहरण -
         हो गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
         इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
         मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
         हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।  (दुष्यंत कुमार)
इस उदाहरण मेअलनीकाफिया है
रदीफ से परिचय हो जाने के बाद हमें पता है कि प्रस्तुत अशआर में चाहिए हर्फ़--रदीफ है इस ग़ज़ल मेंपिघलनी”, “निकलनी”, “जलनीशब्द हर्फ -- रदीफचाहिएके ठीक पहले आये हैं और समतुकांत हैं ।

आँसुओं का समंदर सुखाया गया ,
अन्त में बूँद भर ही बचाया गया ,
बूँद वह गुनगुनाने लगी ताल पर -
तो उसे गीत में ला छुपाया गया !
................. ओम नीरव.
इस उदाहरण मे  काफियाआयाहै
प्रस्तुत अशआर में गया हर्फ़--रदीफ है इस ग़ज़ल मेंसुखाया”, “बचाया”, “छुपायाशब्द हर्फ -- रदीफगयाके ठीक पहले आये हैं और समतुकांत हैं

आगे पढ़ने के लिये इस लिंक को देखें-
मुक्तक-3 (बहर)

लोकप्रिय पोस्ट