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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

रविवार, 1 मार्च 2020

डायबिटिज के लिये डाइट प्लान

डायबिटिज के लिये डाइट प्लान

डायबिटीज का रोग वर्तमान में बहुत तीव्रगति से बढ़ रहा है । षारीरिक श्रम का अभाव तथा खान-पान में असंतुलन इस रोग का सामान्य कारण है मधुमेहरोगियों को एक तो गोलियों पर या इन्षुलिन पर निर्भर रहना पड़ता है ।  गोलियों का असर सिर्फ कुछ दिनों तक दिखायी देता है ।  जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, ऐलोपैथीकी गोलियोँ काम नहीं करतीं परिणामतः रक्त षर्करा बढ़ने लगता है, आँखें कमजोर होना, हृदय-विकार होना, किडनी का कमजोर होना प्रारंभ हो जाता है ।
आयुर्वेदीय साहित्य में षरीर एवं व्याधि दोनों को आहारसम्भव माना गया है-‘‘अहारसम्भवं वस्तु रोगाष्चाहारसम्भवः’’ ।  षरीर के उचित पोशण एवं रोगानिवारणार्थ सम्यक आहार-विहार (डाइट प्लान) का होना आवष्यक है । विषेश कर मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों के लिये इसका विषेश महत्व है, डाइट प्लान की सहायता से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है ।
डायबिटिज डाइट प्लान क्या है ?
डायबिटिज के लिये डाइट प्लान एक स्वस्थ-भोजन योजना है, जो प्राकृतिक रूप से पोषक तत्वों से भरपूर होता है , जिसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भोजन का चयन इस प्रकार हो कि उसमें वसा और कैलोरी की मात्रा कम हो। डायबिटिज डाइट प्लान में ऐसे आहार स्वीकार्य होते हैं जो षर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता हो । 
डायबिटिज डाइट प्लान की आवश्यकता क्यों है?
जब हम अतिरिक्त कैलोरी और वसा खाते हैं, तो हमारे शरीर में रक्त शर्करा में अवांछनीय वृद्धि हो जाता है। यदि रक्त शर्करा को नियंत्रित नहीं रखा जाता है, तो यह गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है, जैसे कि उच्च रक्त शर्करा का स्तर (हाइपरग्लाइसेमिया) जो लगातार रहने पर तंत्रिका, गुर्दे और हृदय की क्षति जैसे दीर्घकालिक जटिलताओं का कारण बन सकता है।
मधुमेह वाले अधिकांश लोगों के लिए, वजन घटाने से रक्त शर्करा को नियंत्रित करना आसान हो जाता है और अन्य स्वास्थ्य लाभ मिलते है। यदि हमको अपना वजन कम करने की आवश्यकता है, तो डाइट प्लान की आवष्यकता होती है । जिस प्रकार किसी भी कार्य को प्रिप्लान करने पर सफलता की संभावना अधिक होती है, उसी प्रकार डाइट प्लान भी रोग नियंत्रण में सफल होता है ।
डायबिटिज डाइट प्लान कैसे करें ?
इस संबंध में मैं कल्याण के आरोग्य विषेशांक में विद्वानों, डाक्टरों द्वारा दिये सुझावों का सरांष देना चाहूँगा जिसके अनुसार-डायबिटिज के रोगी को प्रातः भ्रमणोपरांत घर में जमा हुआ दही स्वेच्छानुसार थोड़ा सा जल, जीरा तथा नमक मिलाकर पीये । दही के अलावा चाय-दूध कुछ न ले ।  इसके साथे मेथी दाने का पानी, जाम्बुलिन, मूँग-मोठ आदि का प्रयोग रकें, इसके 3-4 घंटे बाद ही भोजन करें ।
भोजन में जौ-चने के आटे की रोटी, हरी षाक-सब्जी, सलाद और छाछ-मट्ठा  का सेवन करें ।  भोजन करते हुए छाछ को घूँट-घूँट  करके पीना चाहिये ।  भोजन के प्ष्चात फल लेना चाहिये । 
भोजन फुरसत के अनुसार नहीं निष्चित समय में ही लेना चाहिये । जितना महत्व भोजन चयन का उसके समतुल्य सही समय पर भोजन करना भी है ।  सही समय में सही भोजन रक्त षर्करा की मात्रा को सामान्य अवस्था में बनाये रखने में सहायक होता है ।
आहार में वसा, प्रोटीन कार्बोहाइर्डेट पदार्थ जैसे दूध, घी, तेल, सूखे मेवे, फल, अनाज, दाल आदि का प्रयोग नियंत्रित रूप से संतुलित मात्रा ग्रहण करें, अर्थात अधिक मात्रा में सेवन न करें । रेषोदार खाद्य पदार्थ जैसे हरी षाक, सलाद, आटे का चोकर, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, समूची दाल का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिये ।
डायबिटिज के रोगियों को उचित डाइट के साथ-साथ दिनचर्या में सुधार करना चाहिये नित्य वायुसेवन (मार्निंग वाक), व्यायाम (वर्क आउट) भी करना चाहिये ।
डायबिटिज के लक्षण पाये जाने पर रोगियों चिंतित होन के बजाय अपने आहार-विहार एवं दिनचर्या  पर ध्यान देना चाहिये इसी से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है ।
-रमेशकुमार चौहान

शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

परिवार का अस्तित्व

       परिवार का अस्तित्व


हम बाल्यकाल से पढ़ते आ रहे हैं की मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और समाज का न्यूनतम इकाई परिवार है । जब हम यह कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं तो इसका अर्थ क्या होता है ?  किसी मनुष्य का जीवन समाज में  उत्पन्न होता है और समाज में ही विलीन हो जाता है । सामाज का नींव परिवार है ।

परिवार क्या है  ?

कहने के लिये हम कह सकते हैं-"वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह, जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति  सम्मिलित होता है परिवार कहलाता है ।" इस परिभाषा के अनुसार परिवार में रक्त संबंधों के सारे संबंधी साथ रहते हैं जिसे  आजकल संयुक्त परिवार कह दिया गया । और व्यवहारिक रूप से पति पत्नी और बच्चों के समूह को ही परिवार में माना जा रहा है ।

 परिवार का निर्माण 

  परिवार का निर्माण  तभी संभव है  जब अलग अलग-अलग रक्त से उत्पन्न  महिला-पुरुष  एक साथ रहें । भारत में पितृवंशीय परिवार अधिक प्रचलित है । इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि परिवार में नारी का स्थान कमतर है वस्तुतः परिवार का अस्तित्व ही नारी पर निर्भर है । नारी अपना जन्म स्थान छोड़कर पुरुष के परिवार का निर्माण करती है । व्यक्ति की सामाजिक मर्यादा परिवार से  निर्धारित होती है। नर-नारी के यौन संबंध परिवार के दायरे में निबद्ध होते हैं। यदि नारी पुरुष के साथ रहने से इंकार कर दे तो परिवार का निर्माण संभव ही नहीं है,  इसी बात को ध्यान में रखकर लड़की की माता-पिता अपनी बेटी को बाल्यावस्था से इसके लिये मानसिक रूप तैयार करती है । परिवार में पुरुष का दायित्व परिवार का भरण-पोषण करना और परिवार को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने का दायित्व दिया  गया है । पुरूष इस दायित्व का निर्वहन तभी न करेंगे जब परिवार का निर्माण होगा । परिवार का निर्माण नारी पर ही निर्भर है ।

विवाह का महत्व

        परिवार विवाह से उत्पन्न होता है और इसी संबंध पर टिका रहता है । भारतीय समाज में विवाह को केवल महिला पुरुष के मेल से नहीं देखा जाता । अपितु  दो परिवारों, दो कुटुंबों के मेल से देखा जाता है । परिवार का अस्तित्व तभी तक बना रहता है जब तक नारी  यहां नर के साथ रहना स्वीकार करती है जिस दिन वह नारी पृथक होकर अलग रहना चाहती है उसी दिन परिवार टूट जाता है यद्यपि परिवार नर नारी के संयुक्त उद्यम से बना रहता है तथापि पुरुष की तुलना में परिवार को बनाने और बिगाड़ने में नारी का महत्व अधिक है । यही कारण है कि विवाह के समय बेटी को विदाई देते हुए बेटी के मां बाप द्वारा उसे यह शिक्षा दी जाती है के ससुराल के सारे संबंधियों को अपना मानते हुए परिवार का देखभाल करना ।

 बुजुर्ग लोग यहां तक कहा करते थे कि बेटी मायका जन्म स्थल होता है और ससुराल जीवन स्थल ससुराल में हर सुख दुख सहना और अपनी आर्थी ससुराल से ही निकलना । किसी भी स्थिति में मायका में जीवन निर्वहन की नहीं सोचना । इसी शिक्षा को नारीत्व की शिक्षा कही गयी ।

परिवारवाद पर ग्रहण

        नारीत्व की शिक्षा ही परिवार के लिये ग्रहण बनता चला गया । ससुराल वाले कुछ लोग इसका दुरूपयोग कर नारियों पर अत्याचार करने लगे । यह भी एक बिड़बना है कि परिवार में एक नारी के सम्मान को पुरूष से अधिक एक नारी ही चोट पहुँचाती है । सास-बहूँ के संबंध को कुछ लोग बिगाड़ कर रखे हैं । अत्याचार का परिणाम यह हुआ कि अब परिवार पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लगने लग गया है । नारी इस नारीत्व की शिक्षा के विरूद्ध होने लगे ।  परिणाम यह हुआ कि आजकल कुछ उच्च शिक्षित महिलाएं आत्मनिर्भर होने के नाम पर परिवार का दायित्व उठाने से इंकार करने लगी हैं । 

परिवार का अपघटन

       परिवार का अर्थ पति-पत्नि और बच्चे ही कदापि नहीं हो सकता । परिवार में जितना महत्व पति-पत्नि का है उससे अधिक महत्व सास-ससुर और बेटा-बहू का है । आजकल के लोग संयुक्त परिवार से भिन्न अपना परिवार बसाना चाहते हैं । यह चाहत ही परिवार को अपघटित कर रहा है ।

पति-पत्नि के इस परिवार को देखा जाये तो बहुतायत यह दिखाई दे रहा है कि महिला पक्ष के संबंधीयों से इनका संबंध तो है किन्तु पुरूष के संबंधियों से इनका संबंध लगातार बिगड़ते जा रहे हैं ।

कोई बेटी अपने माँ-बाप की सेवा करे इसमें किसी को कोई आपत्ती नहीं, आपत्ति तो इस बात से है कि वही बेटी अपने सास-ससुर की सेवा करने से कतराती हैं ।

 हर बहन अपने भाई से यह आपेक्षा तो रखती हैं कि उसका भाई उसके माँ-बाप का ठीक से देख-रेख करे किन्तु वह यह नहीं चाहती कि उसका पति अपने माँ-बाप का अधिक ध्यान रखे ।

यही सोच आज परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा कर रहा है ।   शतप्रतिशत महिलायें ऐसी ही हैं  यह कहना नारीवर्ग का अपमान होगा, ऐसा है भी नहीं किन्तु यह कटु सत्य इस प्रकार की सोच रखनेवाली महिलाओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रहीं हैं ।

कुछ पुरूष नशाखोरी, कामचोरी के जाल में फँस कर अपने परिवारिक दायित्व का निर्वहन करने से कतरा रहे हैं, यह भी परिवार के विघटन का एक बड़ा कारण है ।

परिवार का संरक्षण

संयुक्त परिवार से भिन्न अपना परिवार बसाने की चाहत पर यदि  अंकुश नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीय परिवार की अभिधारणा केवल इतिहास की बात होगी ।  हमें इस बात पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है कि-महिलाओं पर अत्याचार क्यों ? महिलाओं का अपमान क्यों ? जब परिवार की नींव ही महिलाएं हैं तो  महिलाओं का सम्मान क्यों नही ? इसके साथ-साथ इस बात पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि महिला अपने ससुराल वालों का सम्मान क्यों नहीं कर सकती ? क्या एक आत्मनिर्भर महिला परिवार का दायित्व नहीं उठा सकती ?  चाहे वह महिला सास हो, बहू हो, ननद हो, भाभी हो या देरानी-जेठानी । पत्नि और बेटी के रूप एफ सफल महिला अन्य नातों में असफल क्यों हो रही हैं ? इन सारे प्रश्नों का सकारात्मक उत्तर ही परिवार को संरक्षित रख सकता है ।

सोमवार, 1 जुलाई 2019

शुगर से बचाव

डायबिटिज क्या है ?

        डायबिटीज या शुगर या मधुमेह एक ऐसी बीमारी है जो तब होती है जब हमारा रक्त शर्करा बहुत अधिक होती है ।  रक्त ग्लूकोज हमारे ऊर्जा का मुख्य स्रोत है और हमारे द्वारा खाए गए भोजन से आता है। इंसुलिन, एक हार्मोन है जो अग्न्याशय द्वारा बनाया जाता है,  भोजन से ग्लूकोज को हमारी कोशिकाओं में ऊर्जा के लिए उपयोग करने में मदद करता है। कभी-कभी  हमारा शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या अच्छी तरह से इंसुलिन का उपयोग नहीं करता ।  तब ग्लूकोज हमारे  रक्त में रहता है और हमारी कोशिकाओं तक नहीं पहुंचता है।  समय के साथ, हमारे रक्त में बहुत अधिक ग्लूकोज इकत्रित होने लगता है, इसे ही मधुमेह कहा जाता है ।  

         डायबिटीज या शुगर एक गंभीर समस्या है। पिछले कुछ दशकों में डायबिटीज के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई है। डायबिटीज के बारे में लोगों को जागरूक करने और इससे बचाव के लिए हर साल 14 नवंबर को विश्व डायबिटीज दिवस मनाया जाता है। डायबिटीज की स्थिति में मरीज के खून में शुगर घुलने लगता है, जिसके कारण कई तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है। ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ जाने पर हार्ट अटैक, किडनी फेल्योर, फेफड़ों और लिवर की कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। डायबिटीज शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है इसलिए इससे बचाव बहुत जरूरी है।  हालाँकि मधुमेह का कोई इलाज नहीं है, फिर भी  मधुमेह के प्रबंधन और स्वस्थ रहने के लिए कदम उठा सकते हैं।

डायबिटीज के  प्रकार-

मधुमेह सामान्यतः तीन प्रकार की होती है-

टाइप 1 डायबिटीज़-

यह एक असंक्राम‍क या स्वप्रतिरक्षित रोग है। स्वप्रतिरक्षित रोग का प्रभाव जब शरीर के लिए लड़ने वाले संक्रमण, प्रतिरक्षा प्रणाली के खिलाफ होता है तो यह स्‍थिति टाइप1 डायबिटीज़ की होती है। टाइप 1 डायबिटीज़ में प्रतिरक्षा प्रणाली पाचनग्रंथियां में इन्सुलिन पैदा कर बीटा कोशिकाओं पर हमला कर उन्‍हें नष्ट कर देती है। इस स्‍थिति में पाचन ग्रंथिया कम मात्रा में या ना के बराबर इन्सुलिन पैदा करती हैं। टाइप 1 डायबिटीज़ के मरीज़ को जीवन के निर्वाह के लिए प्रतिदिन इन्सुलिन की आवश्यकता होती है।

टाइप 2 डायबिटीज़-

टाइप 2 मधुमेह में शरीर इंसुलिन को अच्छी तरह से नहीं बनाता या उपयोग नहीं करता है। किसी भी उम्र में टाइप 2 मधुमेह विकसित हो सकता हैं, यहां तक कि बचपना में भी। हालांकि, इस प्रकार का मधुमेह ज्यादातर मध्यम आयु वर्ग और वृद्ध लोगों में होता है। टाइप 2 मधुमेह का सबसे आम प्रकार है



 45 वर्ष या अधिक आयु के लोगों में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की अधिक संभावना होती है ।यदि माता-पिता को मधुमेह होने पर टाइप 2 होनी की संभावाना रहती है । शरीर का अधिक वजन होने पर,  शारीरिक निष्क्रियता,  और कुछ स्वास्थ्य समस्याएं जैसे उच्च रक्तचाप होने पर टाइप 2 मधुमेह के विकास की संभावना को प्रभावित करते हैं। यदि महिला को गर्भवती होने पर  गर्भकालीन मधुमेह हो, तो टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना अधिक होती है। 

गर्भावधि मधुमेह-

गर्भवती होने पर गर्भकालीन मधुमेह कुछ महिलाओं में विकसित होता है। ज्यादातर बार, इस प्रकार का मधुमेह बच्चे के जन्म के बाद दूर हो जाता है। हालाँकि, यदि आपको गर्भकालीन मधुमेह होने पर जीवन में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने की अधिक संभावना है। कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान निदान किया गया मधुमेह वास्तव में टाइप 2 मधुमेह है।

अन्य प्रकार के मधुमेह-

कम सामान्य प्रकारों में मोनोजेनिक मधुमेह शामिल है, जो मधुमेह का एक विरासत में मिला हुआ रूप है, और सिस्टिक फाइब्रोसिस से संबंधित मधुमेह है।

मधुमेह अन्य बीमारियों का जनक- 
मधुमेह नियंत्रित नहीं होने पर अन्यों रोगों को पैदा कर सकता है, जिनमें प्रमुख रूप से दिल की बीमारी, आघात, गुर्दे की बीमारी, आँखों की समस्या, दंत रोग, नस की क्षति, पैरों की समस्या आदि ।

 हृदय रोग और स्ट्रोक
मधुमेह रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है और हृदय रोग और स्ट्रोक का कारण बन सकता है। आप अपने रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को प्रबंधित करके हृदय रोग और स्ट्रोक को रोकने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं; और धूम्रपान नहीं करके।

निम्न रक्त शर्करा (हाइपोग्लाइसीमिया)-
हाइपोग्लाइसीमिया तब होता है जब आपका रक्त शर्करा बहुत कम हो जाता है। कुछ मधुमेह की दवाएं कम रक्त शर्करा को अधिक संभावना बनाती हैं। आप अपनी भोजन योजना का पालन करके और अपनी शारीरिक गतिविधि, भोजन और दवाओं को संतुलित करके हाइपोग्लाइसीमिया को रोक सकते हैं। नियमित रूप से आपके रक्त शर्करा का परीक्षण करने से भी हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने में मदद मिल सकती है।

तंत्रिका क्षति (मधुमेह न्यूरोपैथी)-
मधुमेह न्यूरोपैथी तंत्रिका क्षति है जो मधुमेह से उत्पन्न हो सकती है। विभिन्न प्रकार के तंत्रिका क्षति आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करते हैं। आपके मधुमेह का प्रबंधन तंत्रिका क्षति को रोकने में मदद कर सकता है जो आपके पैरों और अंगों और आपके दिल जैसे अंगों को प्रभावित करता है।

गुर्दे की बीमारी-
मधुमेह गुर्दे की बीमारी, जिसे मधुमेह अपवृक्कता भी कहा जाता है, मधुमेह के कारण गुर्दे की बीमारी है। आप अपने मधुमेह के प्रबंधन और अपने रक्तचाप के लक्ष्यों को पूरा करके अपने गुर्दे की रक्षा करने में मदद कर सकते हैं।

पैर की समस्या-
मधुमेह तंत्रिका क्षति और खराब रक्त प्रवाह का कारण बन सकता है, जिससे पैर की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। सामान्य पैर की समस्याएं, जैसे कि एक कॉलस, दर्द या एक संक्रमण हो सकता है जिससे चलना मुश्किल हो जाता है। 

नेत्र रोग-
मधुमेह आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है और कम दृष्टि और अंधापन को जन्म दे सकता है। आंखों की बीमारी को रोकने का सबसे अच्छा तरीका आपके रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल का प्रबंधन करना है; और धूम्रपान नहीं करने के लिए। इसके अलावा, साल में कम से कम एक बार आंखों की जांच करवाएं।

दंत समस्याएं-
मधुमेह से आपके मुंह में समस्याएं हो सकती हैं, जैसे संक्रमण, मसूड़ों की बीमारी या शुष्क मुंह। अपने मुंह को स्वस्थ रखने में मदद करने के लिए, अपने रक्त शर्करा का प्रबंधन करें, अपने दांतों को दिन में दो बार ब्रश करें, अपने दंत चिकित्सक को वर्ष में कम से कम एक बार देखें, और धूम्रपान न करें।

यौन और मूत्राशय की समस्याएं-
मधुमेह वाले लोगों में यौन और मूत्राशय की समस्याएं अधिक होती हैं। इरेक्टाइल डिसफंक्शन, सेक्स में रुचि की कमी, मूत्राशय के रिसाव, और बनाए रखा मूत्र जैसी समस्याएं हो सकती हैं यदि मधुमेह आपके रक्त वाहिकाओं और नसों को नुकसान पहुंचाता है।

मधुमेह के लक्षण-
मधुमेह के सामान्य लक्ष्णों में भूख बढ़ना, प्यास बढ़ना, पेशाब अधिक बार जाना, आँखों से साफ न दिखना,, जल्दी थकान आना, घाव, चोट का जल्दी ठीक न होना होता है । पुरूषों में सामान्यतः सेक्स के प्रति अरूचि या शक्ति में कमी होना इसका लक्ष्ण हैं ।  महिलाओं में मूत्र में संक्रमण, सूखापन, खुजली आदि लक्ष्ण हैं ।

मधुमेह के सामान्य परीक्षण एवं सामान्य स्तर-
उपवास रक्त शर्करा परीक्षण- रात भर के उपवास के बाद रक्त का नमूना लिया जाएगा। 100 मिलीग्राम / डीएल (5.6 मिमीओल / एल) से कम उपवास रक्त शर्करा का स्तर सामान्य है। 100 से 125 मिलीग्राम / डीएल (5.6 से 6.9 मिमील / एल) से उपवास रक्त शर्करा के स्तर को प्रीबायोटिक माना जाता है। यदि यह 126 मिलीग्राम / डीएल (7 मिमील / एल) या दो अलग-अलग परीक्षणों पर अधिक है, तो आपको मधुमेह है।
मौखिक ग्लूकोज सहिष्णुता परीक्षण। इस परीक्षण के लिए, आप रात भर उपवास करते हैं, और उपवास रक्त शर्करा के स्तर को मापा जाता है। फिर आप एक शर्करा तरल पीते हैं, और अगले दो घंटों के लिए रक्त शर्करा के स्तर की समय-समय पर जांच की जाती है। सामान्य या गैर-मधुमेह वाले व्यक्तियों में खाली पेट 72 से 99 मिलीग्राम/डीएल की रेंज में ब्लड शुगर होना चाहिए और खाने के दो घंटे बाद 140 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए। वहीं, मधुमेह के मरीज़ का ब्लड शुगर लेवल खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल या अधिक होता है, जबकि खाने के दो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल या उससे ज़्यादा होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रिडाइिअटिज पेंसेट का शुगर लेबल खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल से कम और भोजन केदो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल से कम  हो तो उसका शुगर नियंत्रण में है उसे घबराने की जरूरत  नहीं है ।

मधुमेह का उपचार-ऐसे तो चिकित्सा के सभी पद्धतियों में मधुमेह का उपचार होने के साथ-साथ लाखों घरेलू नूसखें हैं किन्तु कोई भी उपचार इसे जड़ से खत्म नहीं कर सकता  अतः मधुमेह से बचाव अथवा इसे नियंत्रित करने की उपाय ही इसका सर्वोत्तम उपचार है ।

शुगर से बचाव या नियत्रंण के उपाय- शुगर एक लाइलाज बीमारी है ।  इसे जड़ से खत्म नही किया जा सकता किन्तु इससे बचा जा सकता है ।   यदि हो वो भी जाये तो घबराने की बजाये इसे नियत्रिंत करने के उपाय कियो जाने चाहिये ।

वजन को नियंत्रण में रखें - हमेशा अपने वज़न का ध्यान रखें। मोटापा अपने साथ कई बीमारियों को लेकर आता है और डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। अगर आपका वज़न ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ा हुआ या कम है, तो उस पर तुरंत ध्यान दें और वक़्त रहते इसे नियंत्रित करें।

तनाव से दूर रहें - मधुमेह होने के पीछे तनाव भी ज़िम्मेदार होता है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि अपने मन को शांत रखें और उसके लिए आप योगासन व ध्यान यानी मेडिटेशन का सहारा लें।
नींद पूरी करें - पर्याप्त मात्रा में नींद नहीं लेने से या नींद पूरी नहीं होने से भी कई बीमारियां होती हैं। डायबिटीज़ भी उन्हीं में से एक है। इसलिए समय पर सोएं और समय पर उठें।
धूम्रपान से दूर रहें - धूम्रपान से न सिर्फ लंग्स पर असर होता है, बल्कि अगर कोई मधुमेह रोगी धूम्रपान करता है, तो उसे ह््दय संबंधी रोग होने का ख़तरा बढ़ जाता है।

व्यायाम करें - शारीरिक क्रिया स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर कोई शारीरिक श्रम नहीं होगा, तो वज़न बढ़ने का ख़तरा बढ़ जाता है और फ़िर मधुमेह हो सकता है। इसलिए, जितना हो सके व्यायाम करें। अगर व्यायाम करने का मन न भी करें तो सुबह-शाम टहलने जरूर जाएं, योगासन करें या सीढ़ियां चढ़ें।

सही आहार - शुगर के मरीज़ों को अपने खान-पान का ख़ास ध्यान रखना चाहिए। शुगर में परहेज करने के लिए जितना हो सके बाहरी और तैलीय खाद्य पदार्थों से दूर रहें, क्योंकि इससे वज़न बढ़ने का ख़तरा रहता है और फिर मधुमेह। सही आहार अपनाएं, प्रोटीन व विटामिन युक्त खाद्य पदार्थों को अपने डाइट में शामिल करें।
सही मात्रा में पानी पिएं - आपने एक कहावत तो सुनीं ही होगी कि ‘जल ही जीवन है’। हमारे शरीर को पानी की सख्त ज़रूरत होती है, क्योंकि एक व्यस्क के शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है। सबसे ज़्यादा पानी एक शिशु और बच्चे में होता है।  पानी से कई बीमारियां ठीक होती हैं। मधुमेह के रोगियों के लिए भी पानी बहुत आवश्यक है। इसलिए, जितना हो सके पानी पिएं।


नियमित रूप से जांच - अपने ब्लड शुगर लेवल को जानने के लिए नियमित रूप से अपना डायबिटीज़ टेस्ट कराते रहें और उसका एक चार्ट बना लें, ताकि आपको अपने डायबिटीज़ के घटने-बढ़ने के बारे में पता रहे।

नियमित जांच से प्राप्त आंकड़ों पर कड़ी नजर रखें और हर स्थिंति में शुगर लेबल को  खाली पेट 126 मिलीग्राम/डीएल से कम और भोजन के दो घंटे बाद 180 मिलीग्राम / डीएल से कम  करने का प्रयास करें । यही सर्वोत्म उपचार होगा ।

शनिवार, 21 जुलाई 2018

‘‘गुरू की सर्वव्यापकता‘‘


‘‘गुरू की सर्वव्यापकता‘‘
- रमेशकुमार सिंह चौहान



भारतीय जीवनशैली गुरू रूपी सूर्य के तेज से आलोकित है । भारतीय साहित्य  संस्कृत से लेकर विभिन्न भारतीय भाषाओं तक गुरू महिमा से भरा पड़ा है । भारतीय जनमानस में गुरू पूर्णतः रचा बसा हुआ है । गुरू स्थूल से सूक्ष्म, सहज से क्लिष्ठ, गम्य से अगम्य, साधारण से विशेष, जन्म से मृत्यु, तक व्याप्त है । ‘‘गुरू शब्द ‘गु+रू‘ का मेल है जिसमें गुकार को अंधकार एवं रूकार को तेज अर्थात प्रकाश कहते हैं । जो अंधकार का निरोध करता है, उसे ही गुरू कहा जाता है-

‘‘गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते ।।‘‘

‘‘वास्तव में जीवन में अज्ञानता का अंधकार और ज्ञान का प्रकाश होता है ।  जो शक्ति अज्ञानता के अंधकार को नष्ट कर ज्ञान रूपी प्रकाश हमारे अंदर प्रकाशित कर दे वही गुरू है ।‘‘ यही गुरू का सर्वमान्य व सहज परिभाषा है । गुकार अज्ञानता पर अवलंबित है ।  अज्ञान निशा को ज्ञान रवि ही नष्ट कर सकता है । दिवस-निशा के क्रम में जैसे सूर्य शाश्वत एवं सर्वव्यापी है उसी प्रकार गुरू सर्वव्याक हैं ।

स्थूल से सूक्ष्म, सहज से क्लिष्ठ, गम्य से अगम्य, साधारण से विशेष, जन्म से मृत्यु, तक गुरू के व्यापीकरण में गुरू के विभिन्न रूप हैं किन्तु उद्देश्य केवल एक ही है अज्ञानता, अबोधता को दूर करना -

‘‘प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा ।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ।।‘‘

प्रेरणा देनेवाले, सूचन देनेवाले, सच बतानेवाले, रास्ता दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और बोध करानेवाले । ये सब गुरु ही हैं ।  वास्तव में गुरू प्रेरक, सूचनातदाता, सत्यवाचक, पथप्रदर्शक, शिक्षक और बोध कराने वालों का समुच्चय है । जैसे स्वर्ण धातु का एक रज भी स्वर्ण होता है उसी प्रकार इन छः गुणों में से एक भी गुण होने पर भी वह गुरू ही है ।  इन सभी रूपों में गुरू अपने शिष्य को अंधेरे से प्रकाश की ओर अभिप्रेरित करता है ।

प्रेरक के लिये आजकल मेंटर शब्द प्रयुक्त हो रहा है, जो व्यवसायिक अथवा अव्यवसायिक रूप से विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिये उपाय सुझाते हैं । मेंटर अपने अनुभव को चमत्कारिक रूप से लोगों के मन में इस प्रकार अभिप्रेरित करता है कि वह अपने उद्देश्य की ओर सहज भाव से अग्रसर हो सके । प्रेरक अपने सत्यापित तथ्यों के आधार पर लोगों के मनोभाव को परिवर्तित करने में सफल रहता है । किसी एक लक्ष्य को पाने के लिये ललक उत्पन्न कर सकता है ।  भारत में विवेकानंद को कौन नही जानता, भारतीय युवाओं के लिये तब से आज तक विवेकानंद जी प्रेरक बने हुये हैं । विवेकानंदजी भारतीय समाज के लिये गुरू हैं ।  जनजागृति करने वाले समाजसेवक, समाजसुधारक प्रेरणा के पुंज होते हैं- समाज के प्रेरक महात्मा गांधी, डॉ. भीवराव अम्बेडकर, गुरू घासीदास जैसे महापुरूष गुरू के रूप में स्थापित हैं ।

सदियों से प्रेरक के लिये साहित्य को सर्वोपरी माना गया है । यही कारण है कि हमारे देश में साहित्यकार कवि श्रेष्ठ कबीरदासजी गुरू श्रेष्ठ के रूप में स्थापित हैं ।  सूरदास, तुलसीदास, रैदास, रहिम जैसे प्रेरक कवि भारतीय समाज में गुरू के रूप स्थापित हैं ।  ‘‘सभी धर्मो के पावन धर्म ग्रन्थ सदैव से गुरू सदृश्य ही हैं ।‘‘  इस बात की पुष्टि ‘गुरू ग्रंथ साहिब‘ से होती है । जिसे गुरू गोंविद सिंह ने गुरू रूप में प्रतिस्थापित किया है ।
सूचक अर्थात सूचना देने वाले, लोगों को संभावित समस्याओं के प्रति आगाह करते हुये सूचना देते रहते है, अमुक काम करने से लाभ होगा इसे करना चाहिये या अमुक काम करने से नुकसान होगा इसे नहीं करना चाहिये । इनकी सूचनाओं में नीतिपरक तथ्य निहित होते हैं ।  किसी विषय-विशेष की सूचना देते हैं जिससे समाज का कल्याण हो । जैसे-

मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान को एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।।
-तुलसीदास

वाचक का समान्य अर्थ बोलने वालों से न होकर सत्य बोलने वालो से है । अपने वाणी की सहायता से जो सत्य का दिग्दर्शन कराता हो । सत्य भौतिक जगत का अथवा अध्यात्मिक जगत का हो सकता है । कथा वाचक, उपदेशक आदि इस रूप में समाज को जागृत कर रहे हैं । आज इस रूप में सर्वाधिक व्यक्ति गुरू पदवी धारण किये हुये हैं । विभिन्न गुरू प्रधान समूह, परिवार, संस्था अथवा पंथ के रूप में आज हमारे समाज में स्थापित हैं जो समाज के मानसिक उत्थान के लिये सतत् प्रयासरत हैं । इनमें प्रमुख रूप से पं. श्री राम शर्मा का गायत्री परिवार, दादा लेखराज जिसे बाद में ब्रह्माबाबा कहा गया का ‘प्रजापति ब्रह्म कुमारी विश्वविद्यालय‘, श्री नारायणमाली की संस्था,  पं. रविशंकरजी की संस्था, ‘राधास्वामी‘ जैसी संस्था हैं । कथा वाचक के रूप में अनगिनत गुरू हमारे सम्मुख हैं ।

दिग्दर्शक सत्यपथगामी होते हैं जो प्रत्यक्षीकरण से शिष्य को सत्य से भेंट कराते हैं । रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंदजी के पूछे जाने पर कि- क्या आप ने ईश्वर को देखा है? उत्तर में केवल हां ही नहीं कहते अपितु विवेकानंदजी को प्रत्यक्षतः ईश्वर का दिग्दर्शन कराते हैं । हमारे जीवन में कोई ना कोई ऐसा होता है जो हमारे लिये पथप्रदर्शक का कार्य करता है ।

शिक्षक ज्ञात ज्ञान को हस्तांतरित करता है ।  सांसारिक रूप से ज्ञात जानकारी को एक विषय के रूप  में हमें बांट कर उस विषय में हमें दक्ष करता है ।  ज्ञान के इस हस्तांतरण को ही शिक्षा कहते हैं ।  इसी शिक्षा के आधार पर हम सांसारिक दिनचर्या सफलता पूर्वक कर पाते हैं । विषय विशेष के आधार पर शिक्षक विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं यथा स्कूली शिक्षक, संगीत शिक्षक, खेल शिक्षक आदि आदि ।

    बोध कराने से अभिप्राय स्मृति में लाना है । रामचरित मानस के प्रसंग में जामवंतजी द्वारा हनुमान को बल बुद्धि का स्मरण कराना ‘बोध‘ कराना है ।  जो अपने अंदर तो है, किन्तु हम अज्ञानतावष उसे जान नही पाते उन्हे बोध कराने की शक्ति गुरू में ही है । अध्यात्मिक रूप से ‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी‘ अर्थात ‘जीव ईश्वर का अंश है‘ का बोध कराने वाले हमारे अध्यात्मिक गुरू होते हैं । सांसारिक रूप से भी हमारी क्षमताओं का बोध हमारे गुरू ही करते हैं ।

इस प्रकार गुरू विभिन्न रूपों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जीवन के सफल संपादन में महती भूमिका निभाते हैं ।  इन विभिन्न रूपों में गुरू का लक्षण कैसे होता है-
धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।।

गुरू धर्म को जानने वाला, धर्म को करने वाला, सदा धर्म परायण, सभी शास्त्रों अर्थात ज्ञान के तत्व को जानने वाला होता है । ‘धारयति इति धर्मः‘‘ अर्थात मनुष्य मात्र को धारण करने योग्य ज्ञान के समूह को ही धर्म कहते हैं । जिस ग्रंथ में धारण करने योग्य तथ्य सविस्तार लिखे हों, उसे ही शास्त्र समझें ।

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते।।

गुरू जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निश्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं ।

 गुरू शक्ति उस अदृश्य ऊर्जा की भांति है अवलोकन नहीं अनुभव किया जा सकता है ।  गुरु और शिष्य का रिश्ता ऊर्जा पर आधारित होता है। वे आपको एक ऐसे आयाम में स्पर्श करते हैं, जहां आपको कोई और छू ही नहीं सकता। इसी भाव से हिन्दू धर्म ग्रन्थों में गुरु की अलौकिक महिमा गायी गयी है-

ध्यानमूलं गुर्रुमूर्तिम पूजा मूलं गुरुर्पदम्।
मन्त्र मूलं गुरुर्वाक्यम् मोक्ष मूलं गुरु कृपा ।।

     गुरू इतना व्यापक है कि ध्यान का मूल गुरू प्रतिमा, पूजा का मूल गुरू पद, मंत्र का मूल गुरू वाक्य और मोक्ष का मूल गुरू कृपा को कहा गया है । गुरू का व्यापीकरण इतना है कि  गुरू की तुलना सृष्टि संचालक त्रिदेव से कर दिया गया है-

गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

अर्थात गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम । क्योंकि-

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च ।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम् ।।

     बहुत कहने से क्या ? करोडों शास्त्रों से भी क्या ? चित्त की परम् शांति, गुरु के बिना मिलना दुर्लभ है ।

शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च ।
नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम् ।।

शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोडकर गुरु को सन्मुख देखना चाहिए ।  अतः गुरू की परम शक्ति को शुद्ध अंतःकरण से बार-बार नमस्कार करता हूँ ।

-रमेशकुमार सिंह चौहान
मिश्रापारा, नवागढ्
जिला-बेमेतरा, छत्तीसगढ़








शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

मुक्तक-4 (मात्रा गणना का समान्य नियम)


मात्रा गणना का सामान्य नियम-

क्रमांक - सभी व्यंजन (बिना स्वर के) एक मात्रिक होते हैं
जैसे - , , , , , , , , ... आदि मात्रिक हैं ।
क्रमांक - , , स्वर अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं ।
जैसे - , , , कि, सि, पु, सु हँ  आदि एक मात्रिक हैं ।
क्रमांक - , , अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे -, सो, पा, जू, सी, ने, पै, सौ, सं आदि मात्रिक हैं ।
क्रमांक . () - यदि किसी शब्द में दोएक मात्रिकव्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम =  ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा नहीं किया जा सकता है ।
जैसे -सम, दम, चल, घर, पल, कल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
. () परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा ।
जैसे - असमय = //मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
क्रमांक () किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन हो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है।
उदाहरण - “तुमशब्द में “’’” ’“’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता हैतुएक मात्रिक है औरतुमशब्द मेंभी एक मात्रिक है और बोलते समयतु+मको एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
इसके और उदाहरण देखें - यदि, कपि, कुछ, रुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
  () परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे द-  सुमधुर = सु/ /धुर = +उ१ म१ धुर२ = ११२  
क्रमांक () - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं, तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
जैसे - पुरु = + / र+उ = पुरु = ,  
इसके और उदाहरण देखें = गिरि
() परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा-
जैसे -  सुविचार = सु/ वि / चा / = +उ१ व+इ१ चा२ र१ = ११२१
क्रमांक () - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि मात्रिक है तो वह मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी मात्रिक ही रहता है ऐसे मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है
उदाहरण -
सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच् चा = २२
(अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता है)
आनन्द = / +न् / = आ२ नन्२ द१ = २२१  
कार्य = का+र् / = र्का   = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तु/ म्हा/ रा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें = / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
() अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /= २१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
सस्ता = २२, दोस्तों = २१२, मस्ताना = २२२, मुस्कान = २२१, संस्कार= २१२१    
क्रमांक . () - संयुक्ताक्षर जैसे = क्ष, त्र, ज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र= २१, वक्र = २१, यक्ष = २१, कक्ष - २१, यज्ञ = २१, शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१, मूत्र = २१,
. () यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं
उदाहरण = त्रिशूल = १२१, क्रमांक = १२१, क्षितिज = १२
. () संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं
उदाहरण -प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२,
() उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/ = २१२१ (’नुअक्षर लघु होते हुए भीक्रके योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)      क्रमांक - विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को मात्रिक नहीं गिना जा सकता ।
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ () नहीं गिन सकते यदि हमें मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप मेंदुखलिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा ।
मात्रा गणना के लिए अन्य शब्द देखें -
तिरंगा = ति + रं + गा =  ति रं गा = १२२    
उधर = /धर उ१ धर२ = १२
ऊपर = /पर = पर = २२    
इस तरह अन्य शब्द की मात्राओं पर ध्यान दें =
मारा = मा / रा  = मा रा = २२
मरा  = / रा  = रा = १२
मर = मर =
सत्य = सत् / = सत् = २१


मात्रा गिराने का नियम-
क्रमांक  - सभी व्यंजन (बिना स्वर केएक मात्रिक होते हैं ।
जैसे दृ  ... आदि  मात्रिक हैं । यह स्वयं  मात्रिक है ।
क्रमांक  -  स्वर  अनुस्वर चन्द्रबिंदी तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन एक मात्रिक होते हैं ।जैसे = किसिपुसु हँ  आदि एक मात्रिक हैं। यह स्वयं  मात्रिक है
क्रमांक  -      अं स्वर तथा इनके साथ प्रयुक्त व्यंजन दो मात्रिक होते हैं
जैसे = सोपाजूसीनेपैसौसं आदि  मात्रिक हैं ।
इनमें से केवल      स्वर को गिरा कर  मात्रिक कर सकते है तथा ऐसे दीर्घ मात्रिक अक्षर को गिरा कर  मात्रिक कर सकते हैं जो ““ स्वर के योग से दीर्घ हुआ हो अन्य स्वर को लघु नहीं गिन सकते  ही ऐसे अक्षर को लघु गिन सकते हैं जो अं के योग से दीर्घ हुए हों ।
उदाहरण -मुझको २२ को मुझकु२१ कर सकते हैं
साकीहूपेदो आदि को दीर्घ से गिरा कर लघु कर सकते हैं परन्तु अंपैकौरं आदि को दीर्घ से लघु नहीं कर सकते हैं । स्पष्ट है कि  स्वर तथा  तथा व्यंजन के योग से बने दीर्घ अक्षर को गिरा कर लघु कर सकते हैं ।
क्रमांक .
. () - यदि किसी शब्द में दो ’एक मात्रिक’ व्यंजन हैं तो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक अर्थात दीर्घ बन जाते हैं जैसे ह१+म१ = हम =   ऐसे दो मात्रिक शाश्वत दीर्घ होते हैं जिनको जरूरत के अनुसार ११ अथवा  नहीं किया जा सकता है ।
जैसे -समदमचलघरपलकल आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं ।
ऐसे किसी दीर्घ को लघु नहीं कर सकते हैंद्य  दो व्यंजन मिल कर दीर्घ मात्रिक होते हैं तो ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं ।
उदहारण = कमल की मात्रा १२ है इसे क१ + मल२ = १२ गिनेंगे तथा इसमें हम मल को गिरा कर  नहीं कर सकते अर्थात कमाल को ११ अथवा १११ कदापि नहीं गिन सकते ।  
. (परन्तु जिस शब्द के उच्चारण में दोनो अक्षर अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ दोनों लघु हमेशा अलग अलग अर्थात ११ गिना जायेगा ।
जैसे दृ  असमय = //मय =  अ१ स१ मय२ = ११२    
असमय का उच्चारण करते समय ’’ उच्चारण के बाद रुकते हैं और ’’ अलग अलग बोलते हैं और ’मय’ का उच्चारण एक साथ करते हैं इसलिए ’’ और ’’ को दीर्घ नहीं किया जा सकता है और मय मिल कर दीर्घ हो जा रहे हैं इसलिए असमय का वज्न अ१ स१ मय२ = ११२  होगा इसे २२ नहीं किया जा सकता है क्योकि यदि इसे २२ किया गया तो उच्चारण अस्मय हो जायेगा और शब्द उच्चारण दोषपूर्ण हो जायेगा ।
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है अ१ स१ और मय२ को हम . अनुसार नहीं गिरा सकते     
क्रमांक  (- जब क्रमांक  अनुसार किसी लघु मात्रिक के पहले या बाद में कोई शुद्ध व्यंजन( मात्रिक क्रमांक  के अनुसारहो तो उच्चारण अनुसार दोनों लघु मिल कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है ।
उदाहरण द- “तुम” शब्द में “’’” ’“’” के साथ जुड कर ’“तु’” होता है(क्रमांक  अनुसार), “तु” एक मात्रिक है और “तुम” शब्द में “” भी एक मात्रिक है (क्रमांक  के अनुसार)  और बोलते समय “तु+” को एक साथ बोलते हैं तो ये दोनों जुड कर शाश्वत दीर्घ बन जाते हैं इसे ११ नहीं गिना जा सकता । इसके और उदाहरण देखें = यदिकपिकुछरुक आदि शाश्वत दो मात्रिक हैं
 ऐसे दो मात्रिक को नहीं गिरा कर लघु नहीं कर सकते ।
 (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दोनो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही अर्थात ११ गिना जायेगा
जैसे दृ  सुमधुर = सु /धुर = +उ१ म१ धुर२ = ११२  
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है += म१ और धुर२ को हम . अनुसार नहीं गिरा सकते    
क्रमांक  () - यदि किसी शब्द में अगल बगल के दोनो व्यंजन किन्हीं स्वर के साथ जुड कर लघु ही रहते हैं (क्रमांक  अनुसारतो उच्चारण अनुसार दोनों जुड कर शाश्वत दो मात्रिक हो जाता है इसे ११ नहीं गिना जा सकता ।
जैसे = पुरु = + / + = पुरु = ,  इसके और उदाहरण देखें = गिरि
ऐसे दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते
 (परन्तु जहाँ किसी शब्द के उच्चारण में दो हर्फ़ अलग अलग उच्चरित होंगे वहाँ ऐसा मात्रा योग नहीं बनेगा और वहाँ अलग अलग ही गिना जायेगा ।
जैसे दृ  सुविचार = सुवि / चा /  = +उ१ +इ१ चा२ र१ = ११२१
यहाँ उच्चारण अनुसार स्वयं लघु है +उ१ +इ१    
क्रमांक  () - ग़ज़ल के मात्रा गणना में अर्ध व्यंजन को  मात्रा माना गया है तथा यदि शब्द में उच्चारण अनुसार पहले अथवा बाद के व्यंजन के साथ जुड जाता है और जिससे जुड़ता है वो व्यंजन यदि  मात्रिक है तो वह  मात्रिक हो जाता है और यदि दो मात्रिक है तो जुडने के बाद भी  मात्रिक ही रहता है ऐसे  मात्रिक को ११ नहीं गिना जा सकता है ।
उदाहरण -सच्चा = स१+च्१ / च१+आ१  = सच्  चा  = २२ (अतः सच्चा को ११२ नहीं गिना जा सकता हैआनन्द =  / +न् /  = आ२ नन्२ द१ = २२१ , कार्य = का+र् /  = र्का     = २१  (कार्य में का पहले से दो मात्रिक है तथा आधा  के जुडने पर भी दो मात्रिक ही रहता है)
तुम्हारा = तुम्हारा = तु१ म्हा२ रा२ = १२२
तुम्हें = तु / म्हें = तु१ म्हें२ = १२
उन्हें =  / न्हें = उ१ न्हें२ = १२
क्रमांक  (अनुसार दो मात्रिक को गिरा कर लघु नहीं कर सकते
 (अपवाद स्वरूप अर्ध व्यंजन के इस नियम में अर्ध  व्यंजन के साथ एक अपवाद यह है कि यदि अर्ध  के पहले या बाद में कोई एक मात्रिक अक्षर होता है तब तो यह उच्चारण के अनुसार बगल के शब्द के साथ जुड जाता है परन्तु यदि अर्ध  के दोनों ओर पहले से दीर्घ मात्रिक अक्षर होते हैं तो कुछ शब्दों में अर्ध  को स्वतंत्र एक मात्रिक भी माना लिया जाता है ।
जैसे = रस्ता = र+स् / ता २२ होता है मगर रास्ता = रा/स्/ता = २१२ होता है
दोस्त = दो+स् /२१ होता है मगर दोस्ती = दो/स्/ती = २१२ होता है
इस प्रकार और शब्द देखें
सस्ता = २२ दोस्तों = २१२मस्ताना = २२२ मुस्कान = २२१      संस्कार२१२१
क्रमांक  (अनुसार हस्व व्यंजन स्वयं लघु होता है ।
क्रमांक . () - संयुक्ताक्षर जैसे = क्षत्रज्ञ द्ध द्व आदि दो व्यंजन के योग से बने होने के कारण दीर्घ मात्रिक हैं परन्तु मात्र गणना में खुद लघु हो कर अपने पहले के लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते है अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी स्वयं लघु हो जाते हैं  
उदाहरण = पत्र२१वक्र = २१यक्ष = २१कक्ष - २१यज्ञ = २१शुद्ध =२१ क्रुद्ध =२१
गोत्र = २१मूत्र = २१,
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं।
. (यदि संयुक्ताक्षर से शब्द प्रारंभ हो तो संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं ।
उदाहरण = त्रिशूल = १२१क्रमांक = १२१क्षितिज = १२
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं ।
. (संयुक्ताक्षर जब दीर्घ स्वर युक्त होते हैं तो अपने पहले के व्यंजन को दीर्घ करते हुए स्वयं भी दीर्घ रहते हैं अथवा पहले का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ मात्रिक गिने जाते हैं ।
उदाहरण =प्रज्ञा = २२  राजाज्ञा = २२२पत्रों = २२  
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वर के जुडने से दीर्घ होते हैं तथा यह क्रमांक  के अनुसार लघु हो सकते हैं ।
 (उच्चारण अनुसार मात्रा गणना के कारण कुछ शब्द इस नियम के अपवाद भी है -
उदाहरण = अनुक्रमांक = अनु/क्र/मां/ = २१२१ (’नु’ अक्षर लघु होते हुए भी ’क्र’ के योग से दीर्घ नहीं हुआ और उच्चारण अनुसार  के साथ जुड कर दीर्घ हो गया और क्र लघु हो गया)
क्रमांक . (अनुसार संयुक्ताक्षर स्वयं लघु हो जाते हैं ।
क्रमांक  – विसर्ग युक्त व्यंजन दीर्ध मात्रिक होते हैं ऐसे व्यंजन को  मात्रिक नहीं गिना जा सकता ।
उदाहरण = दुःख = २१ होता है इसे दीर्घ (नहीं गिन सकते यदि हमें  मात्रा में इसका प्रयोग करना है तो इसके तद्भव रूप में ’दुख’ लिखना चाहिए इस प्रकार यह दीर्घ मात्रिक हो जायेगा ।
क्रमांक  अनुसार विसर्ग युक्त दीर्घ व्यंजन को गिरा कर लघु नहीं कर सकते हैं ।
अतः यह स्पष्ट हो गया है कि हम किन दीर्घ को लघु कर सकते हैं और किन्हें नहीं कर सकतेपरन्तु यह अभ्यास से ही पूर्णतः स्पष्ट हो सकता है जैसे कुछ अपवाद को समझने के लिए अभ्यास आवश्यक है ।
उदाहरण स्वरूप एक अपवाद देखें - मात्रा गिराने के नियम में बताया गया है कि ’’ स्वर तथा ’’ स्वर युक्त व्यंजन को नहीं गिरा सकते हैद्य जैसे - “जै“  को गिरा कर लघु नहीं कर सकते परन्तु अपवाद स्वरूप “है“ “हैं“ और “मैं“ को दीर्घ मात्रिक से गिरा कर लघु मात्रिक करने की छूट है ।
कुछ अशआर की तक्तीअ की जाये जिसमें मात्रा को गिराया गया हो -
उदाहरण - 
जिंदगी में / आज पहली / बार मुझको / डर लगा२१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
उसने मुझ पर / फूल फेंका / था मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
तू मुझे काँ / टा समझता / है तो मुझसे / बच के चल
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
राह का पत् / थर समझता / है तो फिर ठो / कर लगा
   २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
गे आगे / मैं नहीं हो / ता कभी नज् / मी मगर
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
आज भी पथ / राव में पह / ला मुझे पत् / थर लगा
  २१२२  /   २१२२   /    २१२२   /   २१२
उदाहरण - 

उसे अबके / वफाओं से / गुज़र जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२   /  १२२२   /   १२२२
मगर इस बा मुझको अपने घर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मैं अपनी मुट् / ठियों में कै /  कर लेता / जमीनों को
१२२२     /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
मगर मेरे / क़बीले को / बिखर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२
वो शाखों से / जुदा होते / हुए पत्ते / पे हँसते थे
१२२२    /  १२२२   /  १२२२   /   १२२२
बड़े जिन्दा / नज़र थे जिन / को मर जाने / की जल्दी थी
१२२२    /    १२२२    /    १२२२    /   १२२२

उदाहरण - 

कैसे मंज़र / सामने  / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
गाते गाते / लोग चिल्ला / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२

अब तो इस ता / लाब का पा / नी बदल दो
      २१२२  /   २१२२   /  २१२२
ये कँवल के /  फूल कुम्हला / ने लगे हैं
    २१२२  /    २१२२   /  २१२२

एक कब्रिस् / तान में घर / मिल रहा है
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
जिसमें तहखा / नों से तहखा / ने लगे हैं
  २१२२  /   २१२२   /  २१२२
इस प्रकार यह स्पष्ट हुआ कि हम किन दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं ।
अब मात्रा गिराने को काफी हद तक समझ चुके हैं और यह भी जान चुके हैं कि कौन सा दीर्घ मात्रिक गिरेगा और कौन सा नहीं गिरेगा ।
अब हम इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं कि शब्द में किस स्थान का दीर्घ गिर सकता है और किस स्थान का नहीं गिर सकता -
नियम  के अनुसार हम जिन दीर्घ को गिरा कर लघु मात्रिक गिन सकते हैं शब्द में उनका स्थान भी सुनिश्चित है अर्थात हम शब्द के किसी भी स्थान पर स्थापित दीर्घ अक्षर को  नियम अनुसार  नहीं गिरा सकते
उदाहरण - पाया २२ को पाय अनुसार उच्चारण कर के २१ गिन सकते हैं परन्तु पया अनुसार १२ नहीं गिन सकते ।

प्रश्न उठता है किजब पा और या दोनों में एक ही नियम (क्रमांक  अनुसारलागू है तो ऐसा क्यों कि ’या’ को गिरा सकते हैं ’पा’ को नहीं ?
इसका उत्तर यह है कि हम शब्द के केवल अंतिम दीर्घ मात्रिक अक्षर को ही गिरा सकते हैं शब्द के आखि़री अक्षर के अतिरिक्त किसी और अक्षर को नहीं गिरा सकते ।
कुछ और उदाहरण देखें -
उसूलों - १२२ को गिरा कर केवल १२१ कर सकते हैं इसमें हम “सू“ को गिरा कर ११२ नहीं कर सकते क्योकि ’सू’  अक्षर शब्द के अंत में नहीं है  
तो -  को गिरा कर  कर सकते हैं क्योकि यह शब्द का आखि़री अक्षर है ।
बोलो - २२ को गिरा कर २१ अनुसार गिन सकते हैं 
नोट - इस नियम में कुछ अपवाद भी देख लें -
कोईमेरातेरा शब्द में अपवाद स्वरूप पहले अक्षर को भी गिरा सकते हैं)    
कोई - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
मेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
तेरा - २२ से गिरा कर केवल २१ और १२ और ११ कर सकते हैं पर यह  नहीं हो सकता है
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अब यह भी स्पष्ट है कि शब्द में किन स्थान पर दीर्घ मात्रिक को गिरा सकते हैं

अब यह जानना शेष है कि किन शब्दों की मात्रा को कदापि नहीं गिरा सकते -

हम किसी व्यक्ति अथवा स्थान के नाम की मात्रा कदापि नहीं गिरा सकते
उदाहरण - “मीरा“ शब्द में अंत में “रा“ है जो क्रमांक  अनुसार गिर सकता है और शब्द के अंत में  रहा है इसलिए नियमानुसार इसे गिरा सकते हैं परन्तु यह एक महिला का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम मीरा(२२को “मीर“ उच्चारण करते हुए २१ नहीं गिन सकते । “मीरा“ शब्द सदैव २२ ही रहेगा इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते  यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा ।
 “आगरा“ शब्द में अंत में “रा“ है जो क्रमांक  अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में “रा“  रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु यह एक स्थान का नाम है इसलिए संज्ञा है और इस कारण हम आगरा(२१२को “आगर“ उच्चारण करते हुए २२ नहीं गिन सकतेद्य “आगरा“ शब्द सदैव २१२ ही रहेगा द्य इसकी मात्रा  किसी दशा में नहीं गिरा सकते द्य यदि ऐसा करेंगे तो शेअर दोष पूर्ण हो जायेगा ।

ऐसा माना जाता है कि हिन्दी के तत्सम शब्द की मात्रा भी नहीं गिरानी चाहिए ।
उदाहरण - विडम्बना शब्द के अंत में “ना“ है जो क्रमांक  अनुसार गिरा सकते है और शब्द के अंत में “ना“  रहा है इसलिए नियमानुसार गिरा सकते हैं परन्तु विडम्बना एक तत्सम शब्द है इसलिए इसकी मात्रा नहीं गिरानी चाहिए  परन्तु अब इस नियम में काफी छूट लिये जाने लगे हैं क्योकि तद्भव शब्दों में भी खूब बदलाव हो रहा है और उसके तद्भव रूप से भी नए शब्द निकालने लगे हैं ।

उदाहरण - दीपावली एक तत्सम शब्द है जिसका तद्भव रूप दीवाली है मगर समय के साथ इसमें भी बदलाव हुआ है और दीवाली में बदलाव हो कर दिवाली शब्द प्रचलन में आया तो अब दिवाली को तद्भव शब्द माने तो उसका तत्सम शब्द दीवाली होगा इस इस अनुसार दीवाली को २२१ नहीं करना चाहिए मगर ऐसा खूब किया जा रहा है  और लगभग स्वीकार्य है द्य मगर ध्यान रहे कि मूल शब्द दीपावली (२२१२को गिरा कर २२११ नहीं करना चाहिए ।

यह भी याद रखें कि यह नियम केवल हिन्दी के तत्सम शब्दों के लिए है   उर्दू के शब्दों के साथ ऐसा कोई नियम नहीं है क्योकि उर्दू की शब्दावली में तद्भव शब्द नहीं पाए जाते ।

(अगर किसी उर्दू शब्द का बदला हुआ रूप प्रचलन में आया है तो वह  शब्द उर्दू भाषा से से किसी और भाषा में जाने के कारण बदला है जैसे उर्दू का अलविदाअ २१२१ हिन्दी में अलविदा २१२ हो गयासहीह(१२१) बदल कर सही(१२)  हो गया शुरुअ (१२१बदल कर शुरू(१२हो गया मन्अ(२१बदल कर मना(१२हो गयाऔर ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका स्वरूप बदल गया मगर इनको उर्दू का तद्भव शब्द कहना गलत होगा )

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अब जब सारे नियम साझा हो चुके हैं तो कुछ ऐसे शब्द को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करता हूँ जिनकी मात्रा को गिराया जा सकता है


मेरे मुक्तक
1. पीसो जो मेंहदी तोहाथ में रंग आयेगा 
बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा 
है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू
दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।।

2. अंधियारा को चीरएक नूतन सबेरा आयेगा 
 राह बुनता चल तो सही तूतेरा बसेरा आयेगा ।।
 हौसला के ले परउडान जो तू भरेगा नीले नभ 
 देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा 

2. क्रोध में जो कापताकोई उसे भाते नही 
हो नदी ऊफान परकोई निकट जाते नही 
कौन अच्छा  बुरा को जांच पाये होश खो
हो घनेरी रात तो साये नजर आते नहीं।

3. कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम ,
सता कर  सता कर  मुझे मौन हो तुम 
कभी भी कहीं का किसी का  छोड़े,
करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।।
पौन-प्राण

4. काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं 
झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।।
जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा
ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।।

5. तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो 
जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।।
तुम ये लिखे हो कैसे पाती मुझे,
समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।।

6. बड़े बड़े महल अटारी और मोटर गाड़ी उसके पास
यहां वहां दुकान दारी  और खेती बाड़ी उसके पास 
बिछा सके कही बिछौना इतना पैसा गिनते अपने हाथ,
नही कही सुकुन हथेलीचिंता कुल्हाड़ी उसके पास ।।

7. तुझे जाना कहां है जानता भी है 
चरण रख तू डगर को मापता भी है ।।
वहां बैठे हुये क्यों बुन रहे सपना,
निकल कर ख्वाब से तू जागता भी है 


संकलन-रमेशकुमार सिंह चौहान




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