इॅंखर जनम तब के मध्यप्रदेश अउ आज के छत्तीसगढ़ मा, दुरूग जिला के ‘टिकरी‘ गांव (अर्जुन्दा) मा 5 मार्च 1910 के श्री रामभरोस के घर होइस । रामभरोसाजी एक साधारण किसान रहिस, ऐ पायके दलितजी के बचपना हा किसान अउ बनिहार मन के बीच मा बीतिस । अर्जुन्दा मा इंखर प्राथमिक षिक्षा-दीक्षा होइस । पाछू नार्मल स्कूल बिलासपुर अउ नार्मल स्कूल रायपुर ले षिक्षा ग्रहण करीन । सन् 1931 ले 1967 तक आर्य कन्या गुरूकुल दुरूग मा षिक्षक रहिन । खुदे लिखथें -
‘लइका पढ़ई के सुघर, करत हववं मैं काम,
कोदूराम दलित हवय, मोर गवंइहा नाम ।
मोर गवंइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया
जन हित खातिर गढ़े हववं मैं ये कुण्डलिया,
शउक मुहू ला घलो हवय कविता गढ़ई के
करथवं काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के’ ।।
ग्राम अर्जुंदा के आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी ले इन्हला काव्य-प्रेरणा मिलीस । वर्ष 1926 ले इन मन कविता लिखे बर शुरू करीन । 1926 ले जीवन पर्यन्त अपन जीवन ला साहित्य साधन मा अर्पित करिन । पायजामा, गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता उन्खर पहचान रहिस । हँसमुख अउ मिलनसार होय के सेती सबो उम्र अउ वर्ग के मनखेमन आप ले हिलमिल जात रहिन हे । इनमन अपन बात ला बेबाकी से रखत रहेंय । कविता के संबंध मा इंखर मानन हे के कविता करई हा प्राकृतिक गुण होथे । ‘दलित‘जी कहिथें -
“कवि पैदा होकर आता है,
होती कवियों की खान नहीं
कविता करना आसान नहीं ।“
रचना क्षमता प्रकृति प्रदत्त गुण होय के कारण दलित जी के रचना संसार अतका व्यापक है कि ओमा केवल छत्तीसगढ़ी ना होके हिन्दी साहित्य के सबो विधा मा रचना मिलथे । कवि के आत्मा रखे के बाद घला ओमन बहुत अकन कहानी निबंध, एकांकी, प्रहसन, पहेलियाँ, बाल गीत अउ मंचस्थ करे के लइक क्रिया-गीत (एक्शन सांग) लिखे हें । दलित जी के अधिकांश कविता हा छंद शैली मा लिखे गे हे । इनमन अपन जीवन के अनुषासन कस अपन रचना मा घला अनुषासन रखिंन ते पायके छंद हा इंखर आधार विधा रहे हे । इनमन हास्य-व्यंग्य के कुशल चितेरा रहिन । व्यंग्य अउ विनोद ले लतफत उन्खर कविता चुनाव के टिक्कस हा देखते बनथे -
बड़का चुनाव अब लकठाइस,
टिक्कस के धूम गजब छाइस ।
टिक्कस बर सब मुँह फारत हें
टिक्कस बर हाथ पसारत हें
टिक्कस बिन कुछु सुहाय नहीं
भोजन कोती मन जाय नहीं
टिक्कस बिन निदरा आय नहीं
डौकी-लइका तक भाय नहीं
टिक्कस हर बिकट जुलुम ढाइस
बड़का चुनाव अब लकठाइस “
दलितजी गांधीवादी विचार ले प्रेरित रहिन स्वाधीनता के पहले के नेता अउ आज काल के नेता मा तुलना करत आप लिखथव-
“ तब के नेता जन हितकारी ।
अब के नेता पदवीधारी ।।
तब के नेता किये कमाल ।
अब के नित पहिने जयमाल ।।
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चैथी फेल ।।
तब के नेता गिट्टी फोड़े ।
अब के नेता कुर्सी तोड़े ।।
तब के नेता डण्डे खाये ।
अब के नेता अण्डे खाये ।।
तब के नेता लिये सुराज ।
अब के पूरा भोगैं राज ।।
तब के नेता को हम माने ।
अब के नेता को पहिचाने ।।
बापू का मारग अपनावें ।
गिरे जनों को ऊपर लावें ।।
दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा घला प्रस्तुत करके नाव बटोरे हे । वो अपन समय मा कवि-सम्मेलन मन मा बहुत ‘हिट’ कवि रहिस । तत्कालीन मंचीय कवि पतिराम साव, शिशुपाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त, दानेश्वर शर्मा आदि रहिन । दलित जी ला आकाशवाणी नागपुर, इंदौर अउ भोपाल केंद्र मा आमंत्रित करे जात रहिस । शराब बंदी मा लिखे कविता म.प्र.शासन द्वारा पुरस्कृत होय हे ।
दलित जी एक साहित्यकार होय के संगे संग एक योग्य अध्यापक, समाज सुधारक अउ संस्कृत निष्ठ व्यक्ति रहिन । वो हर भारत सेवक समाज अउ आर्य समाज के सक्रिय सदस्य रहिन । जिला सहकारी बैंक के संचालक अउ म्युनिस्पल कर्मचारी सभा के दू बार मंत्री अउ सरपंच घला रहिन । आप जुझारू मनखे रहेंव । 1947 मा आजादी के बाद शिक्षक संघ के प्रांतीय आंदोलन मा कूद पड़ेंव । आप ला अउ पतिराम साव जी सहित कई आंदोलनकारी मन ला गिरफ्तार करके 15 दिन बर नागपुर जेल मा बंद कर दे गे रहिस । जेल ले छूटे के बाद इन मन ला प्रधानाध्यापक पद ले ‘रिवर्ट’ कर दे गिस । देष बर जान गंवाय शहिद मन श्रद्धाजंली देत इनमन लिखे हें -
आइस सुग्घर परव सुरहुती अऊ देवारी
चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो
जउन सिपाही जी-परान होमिस स्वदेश बर
पहिली ऊँकर आज आरती हम उतारबो ।।
दलित जी की रचनामन के प्रकाशन देश के कई ठन पत्र-पत्रिका मन मा होत रहिस । नागपुर से-नागपुर टाइम्स, नया खून, लोक मित्र,नव प्रभात ,जबलपुर से दृप्रहरी, ग्वालियर से ग्राम-सुधार, नव राष्ट्र, बिलासपुर से पराक्रम, चिंगारी के फूल, छत्तीसगढ़ सहकारी संदेश , दुर्ग से- साहू संदेश, जिंदगी, ज्वालामुखी , चेतावनी, छत्तीसगढ़ सहयोगी, राजनांदगाँव से जनतंत्र आदि पत्रिकामन मा आपके कविता छपत रहिस ।
दलित जी के जीवन हा बहुत संघर्षमय अउ अभावग्रस्त मा बितीस । एही कारण रहिस के हजारों रचना लिखे के बाद खुद खुदे के किताब नई छपा पाईन । सन् 1965 में पतिराम साव ,मंत्री हिंदी साहित्य समिति , दुर्ग के सहयोग ले एक मात्र काव्य-संकलन “सियानी-गोठ” के प्रकाशन उन्खर जीवन काल मा होय पाईस । बाद मा ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छनक-छनक पैरी बाजे‘ के परकासन कराय गे हे । “सियानीगोठ” काव्य संकलन कुण्डली शैली मा लिखे गे हे जेमा 27 कुण्डलियां के समावेश हे । उल्लेखनीय है कि कुण्डलियां के कवि मन पाचवइया लाइन मा अपन नाम जरूर डालथे फेर दलित जी हा अपन नाम नई डारिस । ते पाय के ऐखर लाभ उठात समय-समय मा कोनो-कोनो दलित जी के रचना मा अपन अधिकार जतात दिखीन । ये संकलन विविध विषय मा आधारित हे, ऐमा आध्यात्मपरक रचना “पथरा” देखे के लइक हे -
“ भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आयँ
कोन्हों खूँदे जायँ नित, कोन्हों पूजे जायँ ”
ये संकलन मा हास्य रस, मानवीय सम्वेदना, राष्ट्र-प्रेम, विज्ञान सबो विशय मा छाप दिखथे विज्ञान विषय मा ये रचना देखव-
तार मनन मा ताम के, बिजली रेंगत जाय
बुगुर बुगुर सुग्घर बरय,सब लट्टू मा आय
सब लट्टू मा आय ,चलावय इनजन मन ला
रंग-रंग के दे अँजोर ये हर सब झन ला
लेवय प्रान लगय झटका,जब एकर तन मा
बिजली रेंगत जाय, ताम के तार मनन मा ।।
उन्खर रचना पद्य मा हमर देस, कनवा समधी, दू मितान, प्रकृति वर्णन, बाल कविता अउ कृष्णजन्म । गद्य मा अलहन, कथा-कहानी । प्रषंसनीय हवय । आपके द्वारा लिखे दोहा आज घला पहटिया मन द्वारा राउत नाचा मा दोहा पारे जाथे -
गौरी के गणपति भये, अंजनी के हनुमान रे
कालिका के भैरव भये, कौशिल्या के राम. रे
गांधी जी के छेरी भइया दिन भर में नारियाय रे
ओखर दूध ला पी के भइया, बुधुवा जवान हो जाय रे
जैसे के मालिक! देहौ-लेहौ, तैसे के देबो असीस
चांउर-दार करौ सस्ती, फिर- जीयौ लाख बरीस.
छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढि़या के दषा अउ दिषा मा डांड खिंचत दलितजी कहें हे -
छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार,
हवयँ लोग मन इहाँ के, सिधवा अऊ उदार
सिधवा अऊ उदार हवयँ दिनरात कमावयँ
दे दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ
ठगथयँ ये बपुरा मन ला बंचक मन अड़बड़
पिछड़े हवय अतेक, इही कारण छत्तीसगढ़ ।
दलितजी अपन रचना मा प्रतीक के माध्यम ले जीवन सत्व ला उजागर करे हें उन्खर व्यंग अइसन तीक्ष्ण हे के उन्हला अपन जमाना के आन कवि मन ले अलग कर देथे -
मूषक वाहन बड़हर मन, हम ला
चपके हें मुसुवा साहीं
चूसीं रसा हमार अउर अब
हाड़ा -गोड़ा ला खाहीं द्य
हे गजानन ! दू गज भुइयाँ
नइ हे हमर करा
भुइयाँ देबो-देबो कहिथे हमला
कतको झन मिठलबरा
अइसने दबे कुचले संघर्ष करत मनखे मन के पीरा ला अपन अवाज देवत-देवत, खुदे संघर्ष करत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के ये दुनिया छोड़ के सदा-सदा बर चल दिहिन । अपन पाछू मा काव्य-रचना संसार के संगे-संग अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ के गें हे । उन्खर सपूत श्री अरूण कुमार निगम, अपन ददा के पद चिन्ह मा चलत आज छंद विधा मा छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी छंद के आधार स्तंभ हें । दलितजी के दामांद श्री लक्ष्माण मस्तुरिया आज छत्तीसगढ़ के पहिचान हवय ।
स्वर्गीय कोदूराम दलित के रचना हा आज घलो ओतके महत्व के हे जतका अपन जमाना मा रहिस उन्खर रचना ला फेर आम जन तक पहुॅचाय के परयास करे करे के जरूरत हवे । ऐही उदीम मा आजकाल इंटरनेट के जमाना मा भाई संजीव तिवारी दुर्ग हा ‘गुरतुर-गोठ‘ वेब पत्रिका अउ ब्लाब-‘आरंभ‘ मा कोदूराम ‘दलित‘ जइसे अउ हमर धरोहर कवि मन ला सहेजे बर सार्थक परयास करत हवें । इंखर परयास मा हमू मन गिलहरी कस सहयोग देके उदिम करी ।
आलेख स्रोत- कविता-कोश वेब साइट अउ आरंभ
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