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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

संबंध पहले जन्म लिया या प्यार

लाख टके का प्रश्न है कि संबंध पहले जन्म लिया या प्यार । नवजात शिशु को कोई प्यार करता है इसलिये उसे पुत्र-पुत्री के रूप में स्वीकार करता है अथवा पुत्र-पुत्री मान कर उससे प्यार करता है । यदि पहले तर्क को सही माना जाये तो कोई भी व्यक्ति  किसी भी बच्चे को प्यार कर अपने संतान के रूप में स्वीकार कर सकता है अथवा स्वयं के संतान उत्पन्न होने पर कुछ दिन सोचेंगे कि इससे प्यार करे या ना करे कुछ दिनों पश्चात उस नवजात से प्रेम नही हो पाया तो उसे अपना संतान मानने से इंकार कर देंगे । दूसरे तर्क को सही माना जाये तो संतान उत्पन्न होने पर मेरा संतान है यह संबंध स्थापित कर उससे प्रेम स्वमेव हो जाता है इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति से संबंध स्थापित करने के पष्चात उससे प्रेम कर सकते हैं ।

‘प्यार किया नही जाता प्यार हो जाता है‘ इस पंक्ति का यदा कदा हर  युवक कभी न कभी उपयोग किया ही होगा किन्तु इस पर गंभीर चिंतन शायद ही कोई किया हो । पहले भाग ‘प्यार किया नही जाता‘ का अभिप्राय अनायास ही बिना उद्यम के प्यार हो जाता है । अब यदि ‘प्यार‘ के उद्गम पर चिंतन किया जाये तो स्वभाविक प्रष्न उठता है सर्वप्रथम आपको प्यार का एहसास कब और क्यों हुआ ?  जवाब आप कुछ भी सोच सकते है किन्तु सत्य यह है कि आपको सबसे पहले प्यार अपने मां से हुआ जब आपकी क्षुधा शांत हुई । क्षुधा प्रदर्षित करने के लिये आपको रोने का उद्यम करना पड़ा । दूसरे भाग ‘प्यार हो जाता है‘ का अभिप्राय मन में अपना पन मान लेने से उनके प्रति एक मोह जागृत होता है, इसे कहते है ‘प्यार हो जाता है‘ । जैसे माता-पिता अपने षिषु को जब अपना संतान मान लेते हैं तो उनके प्रति अगाध प्रेम उत्पन्न हो जाता है । किन्तु यदि किसी कारण वश यदि किसी पिता को यह ज्ञात ना हो कि वह शिशु उसी का संतान है तो उसे कदाचित वह प्यार उस शिशु से ना हो । जब कोई्र व्यक्ति किसी वस्तु अथवा किसी व्यक्ति को अपना मान लेता है तो वह उसके प्रति आषक्त हो जाता है यही आषक्ति वह प्यार है । आषक्ति, मोह व प्यार में कुछ अंतर होते हुये भी ये तीनो अंतर्निहित हैं ।
प्यार अपनेपन के भाव में अवलंबित है, अपनापन कब होता है ?  जब हम किसी सजीव-निर्जिव, वस्तु-व्यक्ति के सतत संपर्क में रहते है तो धीरे-धीरे उसके प्रति आकर्षण उसी प्रकार उत्पन्न होता है, जैसे चुंबक के संपर्क में रहने पर लौह पदार्थ में चुम्कत्व उत्पन्न हो जाता है। इसी का परिणाम है कि हम अपने परिवार, अपने घर अपनी वस्तु अपने पालतू जानवर, अपने पड़ोसी, अपने गांव, अपने देष से प्यार करने लगते हैं । प्यार का पैरामीटर अपनापन है । प्यार उसी से होता है जिसके प्रति अपनापन होता है । अपनापन का विकास जिस क्रम होता है उसी क्रम में प्रेम उत्पन्न हो जाता है । अपनेपन में ‘प्यार किया नही जाता प्यार हो जाता है ।

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