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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

जेवारा (जंवारा)



हमर छत्तीसगढ़ मा शक्ति के अराधना के एक विशेषा महत्व हे । छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल से ले के मैदानी क्षेत्र तक आदि शक्ति के पूरा साल भर पूजा पाठ चलत रहिथे । आदि शक्ति अराधना के विशेषा पर्व होथे, जेला नवरात के नाम से जाने जाथे । नवारात पर्व एक साल मा चार बार होथे । दू नवारात ला गुप्त नवरात अउ दून ठन ला प्रगट नवरात कहे जाथे । प्रगट नवरात ला हम सब झन जानथन । पहिली नवरात नवासाल के शुरूच दिन ले शुरू होथे चइत नवरात जेला वासंतीय नवरात के नाम ले जाने जाथे । दूसर नवरात होथे कुंवार महिना के अंजोरी पाख के एकम ले नौमी तक । दूनों नवरात मा देवी के अराधना करे जाथे । मंदिर देवालय मा अखण्ड़ जोत जलाये जाथे । दूनों नवरात मा पूजा पाठ अराधना के एके जइसे महत्व हे फेर लोकाचार लोकाव्यवहार मा दूनों मा कुछ आधारभूत अंतर हे । कुवार नवरात मा मां दुर्गा के प्रतिमा बना के गांव-गांव उत्सव मनाये जाथे । ये काम चइत नवरात मा नई होवय । चइत नवरात कुछ भक्त मन अपन घर मा मां के अराधना करे बर अखण्ड़ जोत जलाथे जेखर साथ गेहू बोये जाथे ऐही ला जंवारा कहिथे ।
वास्तव मा गेहूं के पौधा ला ही जंवारा कहे जाथे, फेर पर्व मा श्रद्धा से आदिषक्ति के वास येमा माने जाथे । येही जेवारा बोना कहे जाथे । येही हा दू प्रकार के होथे- ंपहिली सेत जंवारा, दूसर मारन वाले जेवारा । दूनो जंवारा के बोये के, पूजा पाठके, सेवा करे के विधि सब एक होथे ।  अंतर केवल ऐखर विसर्जन के दिन के रीत मा होथे । सेत जंवारा मा केवल नारियल के भेट करत जंवारा विर्सजन करे जाथे जबकि मारन जंवारा मा बलि प्रथा के निर्वाहन करे जाथे ।
जंवारा चइत महिना के एकम ले लेके पुन्नी तक मनाये जाथे । सेत जंवारा के पर्व मंदिर के पर्व के साथ षुरू होथे अउ होही तिथि मा विसर्जित घला होथे यने कि एकम ले षुरू होके नवमी तक । जबकि मारन जंवारा एकम से लेके अश्टमी तक कोनो दिन षुरू होथे अउ षुरू होय के आठ दिन बाद विसर्जित होथे ।
जंवारा पर्व के चार प्रमुख चरण होथे -
1.बिरही    2. घट स्थापना या जोत जलाना 3.अष्टमी या अठवाही  4. विर्सजन
    सबले पहिली बिरही होथे बिरही यने के गहूं मा जरई जमाना (अंकुरण) आय लेकन येहू ला पूजा पाठ अउ श्रद्धा ले करे जाथे, षुरू दिन सूर्यास्त के बाद पूजा पाठ के बाद साफ गहू ला भींगो के रात भर छोड़ दे जाथे । वैज्ञानिक रूप ले रात भर भींगे गहू अंकुरत हो जाथे । दूसर दिन बा्रम्हण पुरोहित के षोधे गे समय मा पूजा पाठ करके अखण्ड़ दीपक जलाये जाथे जउन हा विसर्जन तक पूरा नव दिन-रात जलथे । येही ला जोत कहे जाथे ।  ये जोत के साथ-साथ नवा-नवा चुरकी मा साफ बोये के लइक माटी डाल के बिरही (जरई आय गहूं) ला सींच दे जाथे । जब गहू जाम जथे ता येला बिरवा कहे जाथे, जउन हा रोज रोज बाढ़त जाथे । ये बिरवा मा दाई वास माने जाथे । बिरवा जल्दी जल्दी बाढ़य बढ़िया रहय ये सोच ले के रोज मां सेवा करे जाथे । मां के सेवा करे के येमारा अर्थ बिरवा अउ जोती के देख-रेख करना अउ मां ला खुष रखें मां बढ़ई करना, गुणगान करना, होथे । मां के गुणगाण करत जउन गीत गाये जाथे होही ला जस गीत कहे जाथे । ये गीत के गवईया मन ला सेऊक कहे जाथे । सेऊक मन ढ़ोलक, मांदर, झांझ, मंजिरा के संग मा के गीत गाथें, ये गीत अपन अलगे लय होथे । जउन एतका मधुर होथे कुछ भगत मन गीत के लय मा झूमें लगथें जेला, देवता चढ़ना कहे जाथे । ये गाना बजना लगातार नव दिन तक चलत रहिथे । आठवां दिन ला अठवाही कहे जाथे, ये दिन मां के पूजा पाठ के षांति अउ होय भूलचूक के माफी बर हूम-हवन करे जाथे । येही दिन हिती-प्रीतू मन ओखर घर जांके जंवारा (फूलवारी) मा नारियल के भेंट चढ़ाथे । आखिर नवां दिन जोत अउ जंवारा के विर्सजन करे जाथे । विर्सजन गांव भर के लइका सियान आये सगा-पहूना मन भाग लेथे । सेउक मन जसगीत गात चलते । सेत मा सब झन नरियर के भेंट करत रहिथे । मारन मा जोत विर्सजन मा घर ले नदिया ले जाये के बेरा घर मा ही भेड़वा बोकरा के बली दे जाथे । बाकी विधि एके रहिथे ।
    जसगीत मा आदिषक्ति के गुणगान ही रहिथे कोनो पौराणिक कथा के आधार मा मां के स्तुति करना हे । चूंकि मां के रूप ला जंवारा मा, जोत मा निहीत मान लेथन ता ये जोत अउ जंवारा के स्तुति करना जस आय । जस मने दाई के यषगान करना आय । छत्तीसगढ़ मा गाये गे गीत के विधा ददरिया, करमा, भडौनी, सोहर, लोरिक चंदा, जस अइसे कहू गिनती करे जाये ता सबले जाथा जस गीत ही पाये जाही ।          

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