Home Page

new post

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

मंगलवार, 26 मई 2015

‘कला परम्परा‘ के सरजक -माननीय डी.पी. देशमुख

             हमर छत्तीसगढ़ के माटी मा तइहा ले आज तक नाना परकार के परम्परा अउ संस्कृति रचे बसे हवय जेमा के बहुत अकन परम्परा काल के गाल मा समावत हे, ये परम्परा मन नंदावत जात हे, फेर ऐला बहुत हद तक हमर कलाकार अउ कलमकार मन साधे रखें हे ।  हमर छत्तीसगढ मा कला अउ साहित्य के नाना विधा के साधक मन भरे परे हे, चाहे वो...

शनिवार, 23 मई 2015

हमर छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामील करायके परयास

         छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूचची मा सामिल कराय के परयास के संबंध मा चरचा करे के पहिली हमला ये  जानेे ल परही के ये आठवी अनुसूची आय का अउ ऐखर ले का फायदा नुकसान हवय ।  आठवी अनुसूची  हमर भारतीय संविधान के अइसे अनुसूची आय जेमा भारत मा प्र्रचलित भासा ला संवैधानिक दर्जा दे जाथे ।  भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ 35 (भासा) मा कहे गे हे भारतीय संघ के जम्मो कार्यपालिका अउ न्यायपालिका के भासा अंग्रेजी, हिन्दी...

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

गांव होवय के देश सबो के आय

मनखे जनम जात एक ठन सामाजिक प्राणी आवय । ऐखर गुजारा चार झन के बीचे मा हो सकथे । एक्केला मा दूये परकार के मनखे रहि सकथे एक तन मन ले सच्चा तपस्वी अउ दूसर मा बइहा भूतहा जेखर मानसिक संतुलन डोल गे हे । सामाजिक प्राणी के सबले छोटे इकाई घर परिवार होथे, जिहां जम्मोझन जुर मिल के एक दूसर के तन मन ले संग देथें अपने स्वार्थ भर ला नई देखंय कहू कोनो एको झन अपन स्वार्थ ला अपन अहम ला जादा महत्व दे लगिन ता ओ परिवार के पाया ह डोले लगथें अउ ओ धसक जाथे । परिवार ला...

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

‘‘साहित्य में क्षेत्रीय बोलियों का योगदान‘‘

‘‘साहित्य में क्षेत्रीय बोलियों का योगदान‘‘                             -रमेशकुमार सिंह चैहान आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार -‘साहित्य जनता की चित्त-वृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब अर्थात समाज का दर्पण है।‘  जब साहित्य समाज का दर्पण है, तो समाज के सभी आयामों का प्रतिबिम्ब दर्पण में अंकित होंगी ही । जब हम भारतीय समाज के संदर्भ में अध्ययन करते...

लोकप्रिय पोस्ट