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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

हमर लोकगीत-ददरिया


ददरिया
हमर छत्तीसगढ़ प्राकृतिक छटा ले जतका भरे-पूरे हे ओतके अपन लोकगीत ले घला अटे परे हे हर उत्सव के गीत हे इहां जन्म के बेरा सोहर, बिहाव के बेरा भड़ौनी अउ बिदाई गीत  भोजली, सेवा, बांसगीत, करमा गीत ददरिया गीत अउ ना जाने का का !  ददरिया गीत आखिर कोन छत्तीसगढि़या नई सुने हे  ददरिया ला हमर छत्तीसगढ़ के गीत मन के रानी घला कहे जाथे  ददरिया सुने पढ़े मा घाते मजा आथे  ददरिया मूल रूप ले गोड़ी गीत आवय अउ अपन मीठास ले पूरा छत्तीसगढ़ मा चारो कोती बगर गे  ददरिया गाय बर कोना वाद्य के जरूरत नई रहय, आदिवासी मन जंगल मा महुआ बीनत, परसा पान सकेलत, खेत मा काम बुता करत ददरिया गात रहिन बाद मा ददरिया ला पूरा साज-बाज ले गाय जाय लगिस  ददरिया के दू रूप देखे मा आथे -
1. श्रम गीत के रूप मा- काम बुता करत करत मनोरंजन बर सामूहिक रूप ले गाय जात रहिस जेखर ले काम-बुता गरू झन लगय समय पास होत रहय अउ काम-बुता घला होत रहय
2. श्रृंगार के रूप मा-काम बुता करत करत नायिका नायक मन प्रश्न  अउ उत्तर के रूप मा ऐला गात रहिन एक झन शुरू करतिस तेखर उत्तर ला दूसर देवत रहिथिस अउ क्रम हा चलत रहितिस
जइसे -
नायक-         करे मुखारी करौंदा रूख के
 एक बोली सुना दे अपन मुख के

नायिका-       एक ठन आमा के दुई फांकी
मोर आंखीय आंखी झूलथे तोरे आंखी ।।

ददरिया श्रृंगारिक प्रश्नोत्तर के रूप मा जादा प्रचलित होइस फेर ऐहू रूप मा काम-बुता के गोठ कोनो ना कोनो रूप मा बने रहिस
जइसे-
कोठा मा पैरा डारेच नई हंव
आगी घला मैं बारेच नई हंव ।।

          ये प्रकार ददरिया हा श्रृंगार अउ श्रम के भाव ले भरे रहिथे एक बात विशेष ध्यान दे के हे के अतका मधुर अउ प्रचलित ये श्रृंगार के प्रधान लोकगीत होय के बाद घला ऐमा कोनो अश्लीलता अउ दू अर्थी शब्द के समावेश नई होवय
अब ऐखर कला पक्ष मा ध्यान दी  ददरिया गायिकी प्रधान आय ये  पाय के अइसे लगथे ये शास्त्रीय संगीत के  दादराताल कस होथे  दादरा ताल के 6 मात्रा दू भाग खाली अउ भरी मा 3-3 मात्रा मा बटे होथे ओइसने ददरिया 3-3 शब्द या शब्द समूह मा बटे रहिथे
जइसे-
1. हे बटकी/ मा /बासी/ अउ चुटकी/ मा /नून
मैं/गावत हंव /ददरिया/ तैं /कान देके /सुन

2. मोला /जावन देना/ रे /॥अलबेला /मोला /जावन देना

3. सास/ गारी /देवे /॥ननद /मॅुह/ लेवे

ये प्रकार ददरिया मा 3-3 शब्द या शब्द समूह ला दू भाग मा बांट के गाये ले ऐखर लय पकड़ मा आथे साहित्यिक छंद के रूप मा कोनो छंद ले सीधा-सीधा नई जुड़य फेर हां ये संस्कृत के गायत्री छंद ले बहुत जादा मिलथे ।

ये विषय मा हमर जानकार रचनाकार, गायक, ददरिया प्रेमी मन कोनो बात ले असहमत होहू ता अपन मत जरूर बताहू, या कोनो बात रहिगे होही ता ओला आघू लाय मा एक कदम आघू आके सबला बताहू जेखर ले नवरचनाकार मन घला नवा ददरिया के रचना कर सकय

-रमेशकुमार सिंह चौहान

छंद सीखव जी-4


पाछू पाठ मा मात्रा गिने के तरीका छंद के प्रकार मा चर्चा करेन । अब अपन चर्चा ला कोनो छंद विशेष मा केंद्रित करथन । सबले प्रचलित छंद ‘दोहा‘ हे । दोहा के बारे मा चर्चा करे के पहिली कुछ दोहा ला ध्यान से देखथन -
श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि ।
बरनउ रघुबर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
-संत तुलसी दासजी
आवत गारी एक है, उलटत होत अनेक ।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक के एक ।।
- संत कबीर दासजी
मुहमद बाजी पैम के, ज्यौं भावै त्यों खेल ।।
तिल फूलहिं के संग ज्यौं, होइ फुलायल तेल ।।
- मलिक मोहम्मद जायसी
पांव जान पनही मिलय, घोड़ा जान असवार ।
सजन जान समधी मिलय, करम जान ससुरार ।।
- कोदूराम ‘दलित‘
जुगत करौ अइसन कुछू, हे गणपति गनराज ।
सत साहित मा बूड़ के, सज्जन बने समाज ।।
- श्री अरूण निगम
चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद ।
तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तै मतिमंद ।।
विषम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय ।
तुक बंदी सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।।
- रमेश चौहान
ये दोहा मन ला पढ़े के बाद, कोनो एक दोहा के मात्रा गिन के देखथन-
श्री-2, गुरू-2 चरन-3 सरोज-4 रज-2,
निज-2 मनु-2 मुकुर-3 सुधारि-4 ।
बरनउ-4 रघुबर-4 विमल-3 जस-2,
जो-2 दायक-4 फल-2 चारि-3 ।
कुल मात्रा -
पहिली चरण मा -2,2,3,4,2 कुल 13
दूसरा चरण मा 2,2,3,4 कुल 11
तीसर चरण मा 4,4,3,2 कुल 13
चैथा चरण मा 2,4,2,3 कुल 11
ये परकार विषम चरण (पहिली अउ तीसर) मा 13 मात्रा, अउ सम चरण मा (दूसर अउ चैथा) मा 11 मात्रा हे ।
ये परकार दोहा मा दू डांड अउ चार चरण हे जेमा 13, 11 मा यति होथे । अब ये सोचे के हे का 13,11 मात्रा भर होय ले दोहा हो जही का ता ऐखर उत्तर हे नही । केवल 13,11 भर होय ले दोहा नई होवय । आने लक्षण अउ ये दोहा मन ले समझे के कोशिश करथन -
सबो दोहा के विषम चरण के अंतला देखथन -
1. ‘सरोज रज‘ अउ ‘विमल जस‘
2. ‘एक है‘ अउ ‘उलटिए‘
3. ‘पैम के‘ अउ ‘संग ज्यौं‘
4. ‘पनही मिलय‘ अउ ‘समधी मिलय‘
5. ‘अइसन कुछू‘ अउ ‘बूड़ के‘
6. ‘डांड़ के‘ अउ ‘होय यति‘
7. ‘अंत मा‘ अउ ‘चरण रख‘
येमन ला ध्यान से देखव विषम चरण के अंत मा 1,1,1 या 2,1,2 या 1,1,2 आय हे । ये परकार दोहा के दूसर विषेशता हे विषम चरण के अंत मा 1,1,1 या 2,1,2 या 1,1,2 होना चाही ।
अब सम चरण के अंत ला देखथन-
1. ‘मुकुर सुधारि‘ अउ ‘फल चारि‘
2. ‘होत अनेक‘ अउ ‘एक के एक‘
3. ‘खेल‘ अउ ‘तेल‘
4. ‘असवार‘ अउ ‘ससुरार‘
5. ‘गनराज‘ अउ ‘समाज‘
6. ‘छंद‘ अउ ‘मतिमंद‘
7. ‘तो होय‘ अउ ‘लघु होय‘
ये मन देखे मा स्पष्ट हे के सम चरण के आखरी मा 2,1 मात्रा होना जरूरी हे अउ संगे संग दूनो सम चरण के अंत मा तुक समान होना चाही ।
कल नियम ले हम जानथन के सम कल के पाछू सम कल अउ विषम कल के पाछू विषम कल आना चाही । ये परकार दोहा के विषम चरण मा -4,4,2,3 या 3,3,2,3,2 मात्रा रखना चाही । येही परकार सम चरण मा 4,4,3 या 3,3,2,3 मात्रा होना चाही ।
ये परकार दोहा 13,11 यति के दू डांड के होथे जेखर विषम चरण के अंत मा 1,1,1, या 2,1,2 या 1,1,2 मात्रा अउ सम चरण के अंत मा 2,1 मा़त्रा होना ही चाही । ये नियम ले परे हा दोहा नई हो सकय । नियम मा बंध के दोहा लिखे जाथे अजरा लय प्रधान बना के कहई हा दोहा नई होवय ।
अउ दोहा देख लव-
मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अॅंग, तुलसी सहित विवेक ।। -तुलसी दासजी
ये दोहा के मात्रा गिन के देखी ता पाथन-
विषम चरण 4,2,2,2,3 अउ सम चरण 3,3,2,3
विषम चरण 2,4,2,3,2 अउ सम चरण 4,3,4 हे ।
विषम चरणके अंत मा पहिली 2,1,2 अउ दूसर मा 1,1,1 हे ।
सम चरण के अंत मा पहिली 2,1 दूसर मा 2,1 हे ।
ये परकार स्पष्ट हे चरणांत क नियम ओतके जरूरी जतका कुल 13, 11 होना जरूरी हे ।
आशा हे ये नियम आप मन ला समझ आ आइस होही । अउ ये नियम के उपयोग करके आपमन दोहा बनाहू । कोनो बात रहिगीस होही के स्पष्ट नई होत होही ता पूछ लेहू अउ जानकार भाई मन ओ बात ला आघू ला देहू । जेखर ले पाठक मन लाभ उठा सकय ।
ये लेख ला लिखे के पाछू अपन आप ला छंदविद के रूप प्रस्तुत करना कतई नई हे, बल्कि छत्तीसगढी मा जादा ले जादा भाई मन छंद लिखय अइसे अभिलासा हे ।
-रमेश चौहान

छंद सीखव जी-3


जय जोहार, संगी हो,
हमन पाछू के दू पाठ मा मातरा गिने के तरीका अउ ‘कल‘ पहिचाने के तरीका के बारे मा जाने हन । ये दरी के पाठ मा हम ‘गण‘ के बारे मा चरचा करबो ।
‘गण‘ सब्द अपन आप मा एक समूह ला बतावत हे । काखर समूह ला जान जव मातरा के समूह ला । ‘‘जब मातरा के समूह कोनो विसेस क्रम मा आवय ता, वो हर ‘गण‘ बनाथे ।‘ आप जानथव मातरा दू परकार के होथे गुरू अउ लघु । तीन-तीन मातरा के जतका विसेस क्रम बन सकत हे, उही हा गण कहाथे ।
जइसे -
लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू, लघु-गुरू-गुरू, गुरू-लघु-लघु आदि ।
अइसन कुल क्रमचय के संख्या आठ होथे, जेखर अलग-अलग नाम रखे गे हे । ये नाम मन ला अउ ओखर स्वरूप मातरा ला याद रखे बर विद्ववान मान एक सूत्र कहे हे -
‘‘सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा‘‘
ये सूत्र मा लाईन से तीन-तीन वर्ण ले से गण बनत जाथे -
1."य मा ता" रा ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘यगण‘ जेखर रूप ‘यमाता‘ अर्थात लघु-गुरू-गुरू अर्थात 1-2-2 हे ।
जइसे-बनाबो, बिसाबो, गवारी, समोसा, कुवारी आदि ।
2.य "मा ता रा" ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘मगण‘ जेखर रूप ‘मातारा‘ अर्थात गुरू-गुरू-गुरू अर्थात 2-2-2 हे ।
जइसे- कंछेटा, धर्मात्मा, खेते-मा आदि ।
3.य मा "ता रा ज" भा न स ल गा-
गण के नाव ‘तगण‘ जेखर रूप ‘ताराज‘ अर्थात गुरू-गुरू-लघु अर्थात 2-2-1 हे ।
जइसे-राकेष, सोम्मार, बादाम कोठार आदि
4..य मा ता "रा ज भा" न स ल गा-
गण के नाव ‘रगण‘ जेखर रूप ‘राजभा‘ अर्थात गुरू-लघु-गुरू अर्थात 2-1-2 हे ।
जइसे-रांध-तो, छोकरा, रेमटा,नाचबे, रोगहा आदि ।
5.य मा ता रा "ज भा न" स ल गा-
गण के नाव ‘जगण‘ जेखर रूप ‘जभान‘ अर्थात लघु-गुरू-लघु अर्थात 1-2-1 हे ।
जइसे-गणेष, मकान, पलंग, किसान आदि ।
6.य मा ता रा ज "भा न स" ल गा-
गण के नाव ‘भगण‘ जेखर रूप ‘भानस- अर्थात गुरू-लघु-लघु अर्थात 2-1-1 हे ।
जइसे-आवन, जावन, नाचत, घूमत आदि ।
7. य मा ता रा ज भा "न स ल" गा-
गण के नाव ‘नगण‘ जेखर रूप ‘नसल‘ अर्थात ‘लघु-लघु-लघु अर्थात 1-1-1 हे ।
जइसे-कसर, कुसुम, नगद,भनक आदि ।
8..य मा ता रा ज भा न "स ल गा"-
गण के नाव ‘सगण‘ जेखर रूप ‘सलगा‘ अर्थात लघु-लघु-गुरू अर्थात 1-1-2 हे ।
जइसे-कखरो, कतको, धनहा, किसाने आदि ।
गण के उपयोगिता -
गणित असन ये सुत्र ले देख के सोचत होहू आखिर ऐखर करबो का ता गण के का उपयोग हे ऐला जानी ।
छंद हा दू परकार के होथे-1. मात्रिक छंद 2. वार्णिक छंद
1.मात्रिक छंद- नाव देख के स्पश्ट हे जेन छंद मातरा मा निरभर होथे, ओला मात्रिक छंद कहे जाथे ।
जइसे-24 मातरा के दोहा, 32 मातरा के त्रिभंगी, 16 मातरा के चौपाई आदि ।
2.वार्णिक छंद-नाव ले स्पष्ट हे जेन छंद मा मातरा के गिनती नई करके वर्ण के गिनती करे जाथे ओला वार्णिक छंद कहे जाथे । ये वर्ण के रूप ला लघु गुरू के रूप मा देखे जाथे । ऊपर के आठो गण मन ला ले कई परकार के वर्णवृत्त बनथे ।
जइसे- रगण-रगण-रगण-रगण, सात घा भगण
अइसने वर्णवृत्त ले बने छंद ला वार्णिक छंद कहिथें ।
जइसे- नाना परकार के वर्णवृत्त ले बने नाना परकार के सवैया, चार यगण ले बने भुज्रंगप्रयात छंद आदि ।
ये परकार ले हम कहि सकत हन के गण के उपयोग वार्णिक छंद के निर्माण मा होथे । ये वर्णव़त्त के चरचा सवैया पाठ मा पूरा करबो ।
फेर आघू पाठ मा अउ चरचा करबो ।
जयजोहार ।

छंद सीखव जी-2


छंद के बारेे मा आघू बढे के पहिली पाछू के पाठ याद कर ली-
आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।
‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान ।
बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना ।
व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।।
व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर ।
आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।।
आज हमन ‘कल‘ के बारे मा जाने के कोसिस करबो । सबले पहिली देखी - ‘कल‘ काला कथे-कोनो सब्द मा मातरा के कुल भार ला ‘कल‘ कहिथे, ओखरे हिसाब से ऐखर नाम एकल, द्विकल, त्रिकल चौकल, पंचकल,षटकल होथे । ये बात ला हम ये परकार लेे समझ सकत हन -
1.. ‘र‘ मा 1 मातरा होय मा ये एकल कहाही । अइसने अ, उ, इ, क, ख, ग, घ, च, छ आदि मन घला एकल होही ।
2. ‘रा‘ मा 2 मातरा होेय के कारण ये द्विकल होही । अइसने ‘चल‘ सब्द मा ‘च‘ के 1 मातरा ‘ल‘ केे 1 मातरा कुल 2 मातरा होय मा ‘चल‘ हा द्विकल कहाही ।
अब आप देख सकत हव -खा, जा, गा, हट, फट, मर जइसन सब्द मन हा द्विकल होही ।
3. ‘राम‘ मा ‘रा‘ के 2 मातरा अउ ‘म‘ के 1 मातरा कुल 3 मातरा हे, तेखर सेती ये त्रिकल कहाही । अब ‘चलव‘ सब्द ला देखी ऐमा च+ल+व के 1+1+1 कुुल 3 मातरा हेे ऐखर सेती ये त्रिकल होही । अइसनेे ‘रेंग‘ के ‘रें‘ के 2 अउ ‘ग‘ के कुल 3 मातरा होही जेन त्रिकल बनाथे ।
अब आप देख सकत हव- धूम, घूम, गिरय, भरय, चुकय, अमर, खबर, झांक, भाग, रोय, हंन, गन्न आदि सब्द मन त्रिकल हवय ।
4. ‘रामा‘ के ‘रा‘ मा 2 मातरा अउ ‘मा‘ मा 2 मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा हे, ऐखर सेती ये चौकल होही । ‘छमछम‘ मा ‘छ+म+छ+म‘ मा चारो वर्ण के एक-एक मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा होय मा ये चौकल होही । ‘काखर‘ सब्द मा ‘का‘ के 2 मातरा अउ ‘खर‘ के 2 मातरा कुल 4 मातरा होय ले चौकल होही ।
अब आप देख सकत हव- बड़बड़, आजा, बिरबल, देखा, रमजा, चम्चा, गन्ना, मुन्ना, जब्बर, आदि सब्द मन चौकल होही ।
उम्मीद हे अब आप पंचकल,षटकल पहिचान सकत हव -
पंचकल - जोहार, जैैराम, आपके, कतीबर, जात हस, बतातो आदि ।
षटटकल- राम-राम, गजब कहे, बरा-चिला, कति जाबो, आदि ।
छंद मा ‘कल‘ के उपयोेगिता -
‘कल‘ हा छंद ला एक लय मा बांधे रखते ओला भटकन नई दय । द्विकल, चौैकल अउ षटकल ला सम मात्रिक अउ एकल, त्रिकल, पंचकल ला विसम मात्रिक कहे जाथे । छंद हमेसा सम मात्रिक बने रहे मा लय अउ गति मा बंधे रहिथे । छंद ला हमेसा सम मात्रिक मा रखे बर अइसन उपाय करे जाथे -
1. सम मात्रिक कल के तुरते पाछू विसम कल नई रखना चाही । सम मात्रिक कल के पाछू सम मात्रिक कल ही आना चाही ।
2. विसम मात्रिक कल के तुरते पाछू सम मात्रिक कल नई रखना चाही । विसम मात्रिक कल के पाछू विसम मात्रिक कल ही आना चाही ।
ये बात ला तुलसी दासजी के ये दोहा ले समझे के कोसिस करथन -
मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अॅंग, तुलसी सहित विवेक ।।
1. ‘मुखिया‘ चौकल सम मात्रिक कल के पाछू ‘मुख‘ द्विकल सम मात्रिक कल रखे गे हे ।
2. ‘खान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल के पाछू ‘पान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल रखे गे हे ।
3. ‘तुुलसी सहित विवके‘ मा ‘सहित‘ त्रिकल पाछू ‘विवके‘ चौकल रखेे गे हे, ऐ मेेरा ध्यान देहू- विवेक‘ मा ‘विवे+क‘‘ हे, ‘विवे‘ के पहिली ‘सहित‘ आयेे हे दुनो मिल के षटकल बना लेथे ।
आप सब जानथव हमर संत मन कहें हें --
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात ही, शिल पर परत निसाान ।।
.......आघूू पाठ मा अउ गोठ बात करबो.....
जय जोेहार

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