जय जोहार, संगी हो,
हमन पाछू के दू पाठ मा मातरा गिने के तरीका अउ ‘कल‘ पहिचाने के तरीका के बारे मा जाने हन । ये दरी के पाठ मा हम ‘गण‘ के बारे मा चरचा करबो ।
‘गण‘ सब्द अपन आप मा एक समूह ला बतावत हे । काखर समूह ला जान जव मातरा के समूह ला । ‘‘जब मातरा के समूह कोनो विसेस क्रम मा आवय ता, वो हर ‘गण‘ बनाथे ।‘ आप जानथव मातरा दू परकार के होथे गुरू अउ लघु । तीन-तीन मातरा के जतका विसेस क्रम बन सकत हे, उही हा गण कहाथे ।
जइसे -
लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू, लघु-गुरू-गुरू, गुरू-लघु-लघु आदि ।
जइसे -
लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू, लघु-गुरू-गुरू, गुरू-लघु-लघु आदि ।
अइसन कुल क्रमचय के संख्या आठ होथे, जेखर अलग-अलग नाम रखे गे हे । ये नाम मन ला अउ ओखर स्वरूप मातरा ला याद रखे बर विद्ववान मान एक सूत्र कहे हे -
‘‘सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा‘‘
ये सूत्र मा लाईन से तीन-तीन वर्ण ले से गण बनत जाथे -
ये सूत्र मा लाईन से तीन-तीन वर्ण ले से गण बनत जाथे -
1."य मा ता" रा ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘यगण‘ जेखर रूप ‘यमाता‘ अर्थात लघु-गुरू-गुरू अर्थात 1-2-2 हे ।
जइसे-बनाबो, बिसाबो, गवारी, समोसा, कुवारी आदि ।
गण के नाव ‘यगण‘ जेखर रूप ‘यमाता‘ अर्थात लघु-गुरू-गुरू अर्थात 1-2-2 हे ।
जइसे-बनाबो, बिसाबो, गवारी, समोसा, कुवारी आदि ।
2.य "मा ता रा" ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘मगण‘ जेखर रूप ‘मातारा‘ अर्थात गुरू-गुरू-गुरू अर्थात 2-2-2 हे ।
जइसे- कंछेटा, धर्मात्मा, खेते-मा आदि ।
गण के नाव ‘मगण‘ जेखर रूप ‘मातारा‘ अर्थात गुरू-गुरू-गुरू अर्थात 2-2-2 हे ।
जइसे- कंछेटा, धर्मात्मा, खेते-मा आदि ।
3.य मा "ता रा ज" भा न स ल गा-
गण के नाव ‘तगण‘ जेखर रूप ‘ताराज‘ अर्थात गुरू-गुरू-लघु अर्थात 2-2-1 हे ।
जइसे-राकेष, सोम्मार, बादाम कोठार आदि
गण के नाव ‘तगण‘ जेखर रूप ‘ताराज‘ अर्थात गुरू-गुरू-लघु अर्थात 2-2-1 हे ।
जइसे-राकेष, सोम्मार, बादाम कोठार आदि
4..य मा ता "रा ज भा" न स ल गा-
गण के नाव ‘रगण‘ जेखर रूप ‘राजभा‘ अर्थात गुरू-लघु-गुरू अर्थात 2-1-2 हे ।
जइसे-रांध-तो, छोकरा, रेमटा,नाचबे, रोगहा आदि ।
गण के नाव ‘रगण‘ जेखर रूप ‘राजभा‘ अर्थात गुरू-लघु-गुरू अर्थात 2-1-2 हे ।
जइसे-रांध-तो, छोकरा, रेमटा,नाचबे, रोगहा आदि ।
5.य मा ता रा "ज भा न" स ल गा-
गण के नाव ‘जगण‘ जेखर रूप ‘जभान‘ अर्थात लघु-गुरू-लघु अर्थात 1-2-1 हे ।
जइसे-गणेष, मकान, पलंग, किसान आदि ।
गण के नाव ‘जगण‘ जेखर रूप ‘जभान‘ अर्थात लघु-गुरू-लघु अर्थात 1-2-1 हे ।
जइसे-गणेष, मकान, पलंग, किसान आदि ।
6.य मा ता रा ज "भा न स" ल गा-
गण के नाव ‘भगण‘ जेखर रूप ‘भानस- अर्थात गुरू-लघु-लघु अर्थात 2-1-1 हे ।
जइसे-आवन, जावन, नाचत, घूमत आदि ।
गण के नाव ‘भगण‘ जेखर रूप ‘भानस- अर्थात गुरू-लघु-लघु अर्थात 2-1-1 हे ।
जइसे-आवन, जावन, नाचत, घूमत आदि ।
7. य मा ता रा ज भा "न स ल" गा-
गण के नाव ‘नगण‘ जेखर रूप ‘नसल‘ अर्थात ‘लघु-लघु-लघु अर्थात 1-1-1 हे ।
जइसे-कसर, कुसुम, नगद,भनक आदि ।
गण के नाव ‘नगण‘ जेखर रूप ‘नसल‘ अर्थात ‘लघु-लघु-लघु अर्थात 1-1-1 हे ।
जइसे-कसर, कुसुम, नगद,भनक आदि ।
8..य मा ता रा ज भा न "स ल गा"-
गण के नाव ‘सगण‘ जेखर रूप ‘सलगा‘ अर्थात लघु-लघु-गुरू अर्थात 1-1-2 हे ।
जइसे-कखरो, कतको, धनहा, किसाने आदि ।
गण के नाव ‘सगण‘ जेखर रूप ‘सलगा‘ अर्थात लघु-लघु-गुरू अर्थात 1-1-2 हे ।
जइसे-कखरो, कतको, धनहा, किसाने आदि ।
गण के उपयोगिता -
गणित असन ये सुत्र ले देख के सोचत होहू आखिर ऐखर करबो का ता गण के का उपयोग हे ऐला जानी ।
छंद हा दू परकार के होथे-1. मात्रिक छंद 2. वार्णिक छंद
गणित असन ये सुत्र ले देख के सोचत होहू आखिर ऐखर करबो का ता गण के का उपयोग हे ऐला जानी ।
छंद हा दू परकार के होथे-1. मात्रिक छंद 2. वार्णिक छंद
1.मात्रिक छंद- नाव देख के स्पश्ट हे जेन छंद मातरा मा निरभर होथे, ओला मात्रिक छंद कहे जाथे ।
जइसे-24 मातरा के दोहा, 32 मातरा के त्रिभंगी, 16 मातरा के चौपाई आदि ।
जइसे-24 मातरा के दोहा, 32 मातरा के त्रिभंगी, 16 मातरा के चौपाई आदि ।
2.वार्णिक छंद-नाव ले स्पष्ट हे जेन छंद मा मातरा के गिनती नई करके वर्ण के गिनती करे जाथे ओला वार्णिक छंद कहे जाथे । ये वर्ण के रूप ला लघु गुरू के रूप मा देखे जाथे । ऊपर के आठो गण मन ला ले कई परकार के वर्णवृत्त बनथे ।
जइसे- रगण-रगण-रगण-रगण, सात घा भगण
जइसे- रगण-रगण-रगण-रगण, सात घा भगण
अइसने वर्णवृत्त ले बने छंद ला वार्णिक छंद कहिथें ।
जइसे- नाना परकार के वर्णवृत्त ले बने नाना परकार के सवैया, चार यगण ले बने भुज्रंगप्रयात छंद आदि ।
जइसे- नाना परकार के वर्णवृत्त ले बने नाना परकार के सवैया, चार यगण ले बने भुज्रंगप्रयात छंद आदि ।
ये परकार ले हम कहि सकत हन के गण के उपयोग वार्णिक छंद के निर्माण मा होथे । ये वर्णव़त्त के चरचा सवैया पाठ मा पूरा करबो ।
फेर आघू पाठ मा अउ चरचा करबो ।
फेर आघू पाठ मा अउ चरचा करबो ।
जयजोहार ।
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