Home Page

new post

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

छंद सीखव जी-3


जय जोहार, संगी हो,
हमन पाछू के दू पाठ मा मातरा गिने के तरीका अउ ‘कल‘ पहिचाने के तरीका के बारे मा जाने हन । ये दरी के पाठ मा हम ‘गण‘ के बारे मा चरचा करबो ।
‘गण‘ सब्द अपन आप मा एक समूह ला बतावत हे । काखर समूह ला जान जव मातरा के समूह ला । ‘‘जब मातरा के समूह कोनो विसेस क्रम मा आवय ता, वो हर ‘गण‘ बनाथे ।‘ आप जानथव मातरा दू परकार के होथे गुरू अउ लघु । तीन-तीन मातरा के जतका विसेस क्रम बन सकत हे, उही हा गण कहाथे ।
जइसे -
लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू, लघु-गुरू-गुरू, गुरू-लघु-लघु आदि ।
अइसन कुल क्रमचय के संख्या आठ होथे, जेखर अलग-अलग नाम रखे गे हे । ये नाम मन ला अउ ओखर स्वरूप मातरा ला याद रखे बर विद्ववान मान एक सूत्र कहे हे -
‘‘सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा‘‘
ये सूत्र मा लाईन से तीन-तीन वर्ण ले से गण बनत जाथे -
1."य मा ता" रा ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘यगण‘ जेखर रूप ‘यमाता‘ अर्थात लघु-गुरू-गुरू अर्थात 1-2-2 हे ।
जइसे-बनाबो, बिसाबो, गवारी, समोसा, कुवारी आदि ।
2.य "मा ता रा" ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘मगण‘ जेखर रूप ‘मातारा‘ अर्थात गुरू-गुरू-गुरू अर्थात 2-2-2 हे ।
जइसे- कंछेटा, धर्मात्मा, खेते-मा आदि ।
3.य मा "ता रा ज" भा न स ल गा-
गण के नाव ‘तगण‘ जेखर रूप ‘ताराज‘ अर्थात गुरू-गुरू-लघु अर्थात 2-2-1 हे ।
जइसे-राकेष, सोम्मार, बादाम कोठार आदि
4..य मा ता "रा ज भा" न स ल गा-
गण के नाव ‘रगण‘ जेखर रूप ‘राजभा‘ अर्थात गुरू-लघु-गुरू अर्थात 2-1-2 हे ।
जइसे-रांध-तो, छोकरा, रेमटा,नाचबे, रोगहा आदि ।
5.य मा ता रा "ज भा न" स ल गा-
गण के नाव ‘जगण‘ जेखर रूप ‘जभान‘ अर्थात लघु-गुरू-लघु अर्थात 1-2-1 हे ।
जइसे-गणेष, मकान, पलंग, किसान आदि ।
6.य मा ता रा ज "भा न स" ल गा-
गण के नाव ‘भगण‘ जेखर रूप ‘भानस- अर्थात गुरू-लघु-लघु अर्थात 2-1-1 हे ।
जइसे-आवन, जावन, नाचत, घूमत आदि ।
7. य मा ता रा ज भा "न स ल" गा-
गण के नाव ‘नगण‘ जेखर रूप ‘नसल‘ अर्थात ‘लघु-लघु-लघु अर्थात 1-1-1 हे ।
जइसे-कसर, कुसुम, नगद,भनक आदि ।
8..य मा ता रा ज भा न "स ल गा"-
गण के नाव ‘सगण‘ जेखर रूप ‘सलगा‘ अर्थात लघु-लघु-गुरू अर्थात 1-1-2 हे ।
जइसे-कखरो, कतको, धनहा, किसाने आदि ।
गण के उपयोगिता -
गणित असन ये सुत्र ले देख के सोचत होहू आखिर ऐखर करबो का ता गण के का उपयोग हे ऐला जानी ।
छंद हा दू परकार के होथे-1. मात्रिक छंद 2. वार्णिक छंद
1.मात्रिक छंद- नाव देख के स्पश्ट हे जेन छंद मातरा मा निरभर होथे, ओला मात्रिक छंद कहे जाथे ।
जइसे-24 मातरा के दोहा, 32 मातरा के त्रिभंगी, 16 मातरा के चौपाई आदि ।
2.वार्णिक छंद-नाव ले स्पष्ट हे जेन छंद मा मातरा के गिनती नई करके वर्ण के गिनती करे जाथे ओला वार्णिक छंद कहे जाथे । ये वर्ण के रूप ला लघु गुरू के रूप मा देखे जाथे । ऊपर के आठो गण मन ला ले कई परकार के वर्णवृत्त बनथे ।
जइसे- रगण-रगण-रगण-रगण, सात घा भगण
अइसने वर्णवृत्त ले बने छंद ला वार्णिक छंद कहिथें ।
जइसे- नाना परकार के वर्णवृत्त ले बने नाना परकार के सवैया, चार यगण ले बने भुज्रंगप्रयात छंद आदि ।
ये परकार ले हम कहि सकत हन के गण के उपयोग वार्णिक छंद के निर्माण मा होथे । ये वर्णव़त्त के चरचा सवैया पाठ मा पूरा करबो ।
फेर आघू पाठ मा अउ चरचा करबो ।
जयजोहार ।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट