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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

छंद सीखव जी-2


छंद के बारेे मा आघू बढे के पहिली पाछू के पाठ याद कर ली-
आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।
‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान ।
बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना ।
व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।।
व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर ।
आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।।
आज हमन ‘कल‘ के बारे मा जाने के कोसिस करबो । सबले पहिली देखी - ‘कल‘ काला कथे-कोनो सब्द मा मातरा के कुल भार ला ‘कल‘ कहिथे, ओखरे हिसाब से ऐखर नाम एकल, द्विकल, त्रिकल चौकल, पंचकल,षटकल होथे । ये बात ला हम ये परकार लेे समझ सकत हन -
1.. ‘र‘ मा 1 मातरा होय मा ये एकल कहाही । अइसने अ, उ, इ, क, ख, ग, घ, च, छ आदि मन घला एकल होही ।
2. ‘रा‘ मा 2 मातरा होेय के कारण ये द्विकल होही । अइसने ‘चल‘ सब्द मा ‘च‘ के 1 मातरा ‘ल‘ केे 1 मातरा कुल 2 मातरा होय मा ‘चल‘ हा द्विकल कहाही ।
अब आप देख सकत हव -खा, जा, गा, हट, फट, मर जइसन सब्द मन हा द्विकल होही ।
3. ‘राम‘ मा ‘रा‘ के 2 मातरा अउ ‘म‘ के 1 मातरा कुल 3 मातरा हे, तेखर सेती ये त्रिकल कहाही । अब ‘चलव‘ सब्द ला देखी ऐमा च+ल+व के 1+1+1 कुुल 3 मातरा हेे ऐखर सेती ये त्रिकल होही । अइसनेे ‘रेंग‘ के ‘रें‘ के 2 अउ ‘ग‘ के कुल 3 मातरा होही जेन त्रिकल बनाथे ।
अब आप देख सकत हव- धूम, घूम, गिरय, भरय, चुकय, अमर, खबर, झांक, भाग, रोय, हंन, गन्न आदि सब्द मन त्रिकल हवय ।
4. ‘रामा‘ के ‘रा‘ मा 2 मातरा अउ ‘मा‘ मा 2 मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा हे, ऐखर सेती ये चौकल होही । ‘छमछम‘ मा ‘छ+म+छ+म‘ मा चारो वर्ण के एक-एक मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा होय मा ये चौकल होही । ‘काखर‘ सब्द मा ‘का‘ के 2 मातरा अउ ‘खर‘ के 2 मातरा कुल 4 मातरा होय ले चौकल होही ।
अब आप देख सकत हव- बड़बड़, आजा, बिरबल, देखा, रमजा, चम्चा, गन्ना, मुन्ना, जब्बर, आदि सब्द मन चौकल होही ।
उम्मीद हे अब आप पंचकल,षटकल पहिचान सकत हव -
पंचकल - जोहार, जैैराम, आपके, कतीबर, जात हस, बतातो आदि ।
षटटकल- राम-राम, गजब कहे, बरा-चिला, कति जाबो, आदि ।
छंद मा ‘कल‘ के उपयोेगिता -
‘कल‘ हा छंद ला एक लय मा बांधे रखते ओला भटकन नई दय । द्विकल, चौैकल अउ षटकल ला सम मात्रिक अउ एकल, त्रिकल, पंचकल ला विसम मात्रिक कहे जाथे । छंद हमेसा सम मात्रिक बने रहे मा लय अउ गति मा बंधे रहिथे । छंद ला हमेसा सम मात्रिक मा रखे बर अइसन उपाय करे जाथे -
1. सम मात्रिक कल के तुरते पाछू विसम कल नई रखना चाही । सम मात्रिक कल के पाछू सम मात्रिक कल ही आना चाही ।
2. विसम मात्रिक कल के तुरते पाछू सम मात्रिक कल नई रखना चाही । विसम मात्रिक कल के पाछू विसम मात्रिक कल ही आना चाही ।
ये बात ला तुलसी दासजी के ये दोहा ले समझे के कोसिस करथन -
मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अॅंग, तुलसी सहित विवेक ।।
1. ‘मुखिया‘ चौकल सम मात्रिक कल के पाछू ‘मुख‘ द्विकल सम मात्रिक कल रखे गे हे ।
2. ‘खान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल के पाछू ‘पान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल रखे गे हे ।
3. ‘तुुलसी सहित विवके‘ मा ‘सहित‘ त्रिकल पाछू ‘विवके‘ चौकल रखेे गे हे, ऐ मेेरा ध्यान देहू- विवेक‘ मा ‘विवे+क‘‘ हे, ‘विवे‘ के पहिली ‘सहित‘ आयेे हे दुनो मिल के षटकल बना लेथे ।
आप सब जानथव हमर संत मन कहें हें --
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात ही, शिल पर परत निसाान ।।
.......आघूू पाठ मा अउ गोठ बात करबो.....
जय जोेहार

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