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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

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सोमवार, 2 मार्च 2020

‘‘छत्तीसगढ़ी ल अपन पढ़ईया चाही’’


छत्तीसगढ़ी के व्याकरण के किताब जब हिन्दी ले पहिली के आये ह त ये हा ये बात ला प्रमाणित करे बर अपन आप मा पर्याप्त हे के छत्त्तीसगढ़ी अपन आप मा कतका सक्षम हे । कोनो भी भाखा ला एक भाशा के रूप मा तभे जाने जाही  जब ओ भाशा के बोलईया, लिखईया अउ पढईया मन के संख्या एक बरोबर होवय ।
छत्तीसगढी़ बोलईया मन के तइहा ले के आज तक के कोनो कमी नई होय हे । आज के छत्तीसगढ़ अउ तीर-तखार के राज्य मन के लकठा के रहईया मन छत्तीसगढ़ी बोलत आवंत हें ।  छत्तीसगढ़िया मन जीये-खाय बर पूरा भारत मा फइल गे हे जेखर ले छत्तीसगढ़ी बोलईया मन घला फइल गे हे । इहां तक के कोनो-कोनो देष मा घला छत्तीसगढ़ी बोलईया होंगे हें। छत्तीसगढ़ी बोलईया मन संख्या के हिसाब ले कोनो कम नई हे । कई राज्य अउ कई देष के भाशा बोलईया मन के संख्या ले जादा छत्तीसगढ़ी बोलइयामन के हे ।
छत्तीसगढ़ बने के बाद ले छत्तीसगढ़ी भाशा के आंदोलन तेज होय हे जेखर परिणाम छत्तीसगढ़ी के राजभाशा घोशित होना होइस । छत्तीसगढ़ी के राजभाशा घोशित होय के बाद ले छत्तीसगढ़ी भले आज तक राज-काज के भाशा होय बर संघर्श करत हे  फेर अब छत्तीसगढ़ी धीरे-धीरे व्यापार-व्यवहार के भाशा बनत जात हे । पहिली रायपुर जाके छत्तीसगढ़ी बोलन त दुकानदार मन देहाती  कहँय अब आघू ले छत्तीसगढ़ी बोलथें । बड़े-बड़े आफिस मा घला अब बिना संकोच के छत्तीसगढ़ी बोलत हें । नेता-मंत्री मन घला विधानसभा मा छत्तीसगढ़ी बोलंय के मत बोलयं जनसभा मा जरूर छत्तीसगढ़ी बोलत हें । जेन छत्तीसगढ़ी पहिली गाँव-देहात के भाखा रहिस आज षहर-पहर के घलो भाखा होत जात हे । ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ी बोलईया मन के संख्या दिन दोगुनी रात चौगुनी होवत हे ।
छत्तीसगढ़ी कथा कहानी मन वाचिक परंपरा ले आघू रेंगत रहिन ये बात ये बताथे के छत्तीसगढ़ी ला लिखे के कमी रहिस होही । फेर छत्तीसगढ़ी व्याकरण के लिखित होना येहूँ बात ला सि़द्ध करथे के छत्तीसगढ़ी ल घला लिखे जा सकथे ।  छत्तीसगढ़ी के पहिली कहानी ला हिन्दी के पहिली कहानी मानना अउ छत्तीसगढ़ी व्याकरण ला हिन्दी के व्याकरण ले पहिली के  मानना छत्तीसगढ़ी के लिखित रूप ला घला सबल करत हे ।  हाँ ये बात ला स्वीकार करे जा सकत हे के छत्तीसगढ़ी मा लिखईया मन के पहिली कमी रहिस होही फेर लिखईया नई रहिस हे अइसे कभू नई होय हे । छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के षांतिपूर्ण आंदोलन जब ले चलिस तब ले छत्तीसगढ़ी लिखईया मन घला बाढ़त गेइन ।  छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद तो येमा बनेच इजाफा आइस ।  छत्तीसगढ़ी राजभाशा बने के बाद ले छत्तीसगढ़ी मा लिखईया मन के संख्या मा एकदम से बढ़ोत्तरी होय हे ।  जेन मनखे ला बरोबर छत्तीसगढ़ी बोले ला नई आवय, जेखर घर मा छत्तीसगढ़ी नई चलय तेनोमन अब छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार बाजे लगिन । राज्य के लगभग सबो समाचार पत्र  हा छत्तीसगढ़ी बर अलग से जगह दे लग गे हें मड़ई, चौपाल, पहट, अपन डेरा जइसे पृश्ठ मा छत्तीसगढ़ी सरलग छपत हवय । दृष्य मिडिया मा घला छत्तीसगढ़ी छपत हवय । सोषल मिडिया मा दिन-रात छत्तीसगढ़ी चलत हवय ।  नंगत ले छत्तीसगढ़ी मा लिखे किताब आवत हे । गुरतुर गोठ, ‘सुरता, साहित्य के धरोहर’ जइसे वेबसाइट घला छत्तीसगढ़ी ला लगातार छापत हवय । कोरी-खइखा छत्तीसगढ़ी ब्लॉग घला छत्तीसगढ़ी मा हवय । आज के स्थिति मा छत्तीसगढ़ी मा लिखइया मन के संख्या आन भाशा मा लिखइया मन के संख्या ले कोनो कम नई हे ।  नवा-नवा लइका मन घला अब दिन-ब-दिन छत्तीसगढ़ी लिखत हें, लिखइया जादा होय के कारण ही अब छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के मांग चलत हे । छत्तीसगढ़ बने के बीसे साल के अंदर छत्तीसगढ़ी मा लिखे किताब के खरही गंजागे हे ।
जब छत्तीसगढ़ बोलत हें, छत्तीसगढ़ी लिखत हें त छत्तीसगढ़ी पढ़त घला होहीं अइसे कोनो भी कहि सकत हें । फेर निखालिस छत्तीसगढ़ी बोलईयामन ला कहूँ छत्तीसगढ़ी पढ़े ला कहिके तो देख ओखर माथा चकरा जथे, अइसे नई हे के ओला पढ़े ला नई आवाय ओला पढ़े ला आथे फेर ओला छत्तीसगढ़ी बोलना अउ सुनना बने लगथे, ये पढ़ई बने नई लगय । रोज के पेपर पढ़इया मन घला पेपर के छत्तीसगढ़ी पत्ता के षीर्शक ला लेह-देह के पढ़ के आघू पलट लेथें ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ी अपन एक बड़े वर्ग ले पाठक बर तरसत हे । येही कारण के अतकाजड़ छत्तीसगढ़ मा छत्तीसगढ़ी किताब बेचाये के एक ठन दुकान नई हे । लोगन ‘छत्तीसगढ़ ला तो पढ़ना चाहथें फेर छत्तीसगढ़ी ला पढ़ना नई चाहंय ।’  छत्तीसगढ़ी पढ़त कोन हे जेन छत्तीसगढ़ी मा लिखत हे, जेन अपन आप ला छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मानत हे या जेन साहित्यकार होना चाहत हे । येहूँ अतका आंगा-भारू हे के अपने लिखथें, अपने छपवाथें अउ अपने पढ़थें । दूसर के छपे ला या तो पढ़बे नई करंय या सरसरी निगाह ले देख के पढ़ ढरेन कहिके डकार भर लेथें ।  साहित्यकार के सोला आना मा के चउदा आना निखालिस कवि हें, किताब छपवाथें अउ एक-दूसर ला फोकट मा बांट देथे, फेर ओहूँ फोकट के किताब ला पढ़े बर कोखरो मेरा चिटुक भर बेरा नई हे ।  ये किताब मन घर के पठेरा मा धुर्रा-खात दियार ला बलावत रहि जाथें । सोषल मिडिया मा जतका वाह-वाह के ढेर लगथे ओखर आधा मनखे मन घला ओ छत्तीसगढ़ी रचना के आधा भाग ला घला पढ लेइन त बहुत हे ।
आम छत्तीसगढ़ी भाखा के मनखे मन ला केवल ओही छत्तीसगढ़ी गीत-कविता के सुरता हे जेन ला ओमन कान ले सुने हें ।  येही कारण हे ओमन केवल ओही भर मन ला कवि मान बइठे हे जेखर मेरा बोले के सुग्घर कला हे जेखर ला ओमन मंच मा सुनत हे । ओमन ये बात ले अनजान कस लगथें के जेन मंच मा नई आवय तेनो मन कवि हे, कतको मंची कवि ले श्रेश्ठ कवि हे जेखर मूल्यांकन तभे होही जब ओला पढ़े जाही ।
छत्तीसगढ़ी भाशा ला समृद्ध बनाये बर येखर बोलईया, सुनईया, लिखईया अउ पढ़ईया सबो के बराबर विकास होवय ।  कोनो भी साहित्य के मूल्यांकन तभे न होही जब होखर कोनो पाठक होही । पाठक सीमित होही त मूल्यांकन घला आंषिक होही । छत्तीसगढ़ी भाशा राज-काज, व्यवहार के भाशा तभे हो सकत हे जब ओखर पाठक होही ।
छत्तीसगढ़ी मान-सम्मान बर, येखर विकास बर, छत्तीसगढ़ी पढ़ईया मन के ओतके जरूरत हे जतका कोनो धंधा-पानी के बाढ़ बर गा्रहक । जेन छत्तीसगढ़ी प्रेमी मन छत्तीसगढ़ी आंदोलन के झंड़ा बरदर हे, जेखर अंतस मा अपन भाशा बर मया हे, जेन छत्तीसगढ़ी वाचिक परंपरा ला लिखित रूप मा लाये के अदम साहस करें हें ओही मन ला अब येखर पढईया बनाये के घला उदिम करना चाही ।  छत्तीसगढ़ी लिखईया भर नही पहिली पाठक घला होना चाही । येखर सुरवात अपने आप ले करना चाही जइसे खुद ला एक छत्तीसगढ़ी लिखईया बनायें हें ओइसने पहिली अपन ला एक छत्तीसगढ़ी पढ़ईया घला बनावँय । अपन तीर-तखार के संगी मन ला छत्तीसगढ़ी पढ़े बर प्रोत्साहित करँय । जतका जोर-षोर से येखर स्कूली पाठ्यक्रम मा षामील करे के मांग करत हन ओतके येला पढ़े बर घला लोगन मा जन-जागृति लाये के जरूरत हे । जहां जनसमर्थन ऊहां सरकार ला पाछू आवब मा चिटको देरी नई लगय । आज छत्तीसगढ़ी के गोहर ला सुने के जरूरत हे के ‘मोला बोलईया-सुनईया, लिखईया के संगे-संग पढ़ईया घला चाही ।’



surtacg.com से

शुक्रवार, 27 जनवरी 2017

जेवारा (जंवारा)



हमर छत्तीसगढ़ मा शक्ति के अराधना के एक विशेषा महत्व हे । छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल से ले के मैदानी क्षेत्र तक आदि शक्ति के पूरा साल भर पूजा पाठ चलत रहिथे । आदि शक्ति अराधना के विशेषा पर्व होथे, जेला नवरात के नाम से जाने जाथे । नवारात पर्व एक साल मा चार बार होथे । दू नवारात ला गुप्त नवरात अउ दून ठन ला प्रगट नवरात कहे जाथे । प्रगट नवरात ला हम सब झन जानथन । पहिली नवरात नवासाल के शुरूच दिन ले शुरू होथे चइत नवरात जेला वासंतीय नवरात के नाम ले जाने जाथे । दूसर नवरात होथे कुंवार महिना के अंजोरी पाख के एकम ले नौमी तक । दूनों नवरात मा देवी के अराधना करे जाथे । मंदिर देवालय मा अखण्ड़ जोत जलाये जाथे । दूनों नवरात मा पूजा पाठ अराधना के एके जइसे महत्व हे फेर लोकाचार लोकाव्यवहार मा दूनों मा कुछ आधारभूत अंतर हे । कुवार नवरात मा मां दुर्गा के प्रतिमा बना के गांव-गांव उत्सव मनाये जाथे । ये काम चइत नवरात मा नई होवय । चइत नवरात कुछ भक्त मन अपन घर मा मां के अराधना करे बर अखण्ड़ जोत जलाथे जेखर साथ गेहू बोये जाथे ऐही ला जंवारा कहिथे ।
वास्तव मा गेहूं के पौधा ला ही जंवारा कहे जाथे, फेर पर्व मा श्रद्धा से आदिषक्ति के वास येमा माने जाथे । येही जेवारा बोना कहे जाथे । येही हा दू प्रकार के होथे- ंपहिली सेत जंवारा, दूसर मारन वाले जेवारा । दूनो जंवारा के बोये के, पूजा पाठके, सेवा करे के विधि सब एक होथे ।  अंतर केवल ऐखर विसर्जन के दिन के रीत मा होथे । सेत जंवारा मा केवल नारियल के भेट करत जंवारा विर्सजन करे जाथे जबकि मारन जंवारा मा बलि प्रथा के निर्वाहन करे जाथे ।
जंवारा चइत महिना के एकम ले लेके पुन्नी तक मनाये जाथे । सेत जंवारा के पर्व मंदिर के पर्व के साथ षुरू होथे अउ होही तिथि मा विसर्जित घला होथे यने कि एकम ले षुरू होके नवमी तक । जबकि मारन जंवारा एकम से लेके अश्टमी तक कोनो दिन षुरू होथे अउ षुरू होय के आठ दिन बाद विसर्जित होथे ।
जंवारा पर्व के चार प्रमुख चरण होथे -
1.बिरही    2. घट स्थापना या जोत जलाना 3.अष्टमी या अठवाही  4. विर्सजन
    सबले पहिली बिरही होथे बिरही यने के गहूं मा जरई जमाना (अंकुरण) आय लेकन येहू ला पूजा पाठ अउ श्रद्धा ले करे जाथे, षुरू दिन सूर्यास्त के बाद पूजा पाठ के बाद साफ गहू ला भींगो के रात भर छोड़ दे जाथे । वैज्ञानिक रूप ले रात भर भींगे गहू अंकुरत हो जाथे । दूसर दिन बा्रम्हण पुरोहित के षोधे गे समय मा पूजा पाठ करके अखण्ड़ दीपक जलाये जाथे जउन हा विसर्जन तक पूरा नव दिन-रात जलथे । येही ला जोत कहे जाथे ।  ये जोत के साथ-साथ नवा-नवा चुरकी मा साफ बोये के लइक माटी डाल के बिरही (जरई आय गहूं) ला सींच दे जाथे । जब गहू जाम जथे ता येला बिरवा कहे जाथे, जउन हा रोज रोज बाढ़त जाथे । ये बिरवा मा दाई वास माने जाथे । बिरवा जल्दी जल्दी बाढ़य बढ़िया रहय ये सोच ले के रोज मां सेवा करे जाथे । मां के सेवा करे के येमारा अर्थ बिरवा अउ जोती के देख-रेख करना अउ मां ला खुष रखें मां बढ़ई करना, गुणगान करना, होथे । मां के गुणगाण करत जउन गीत गाये जाथे होही ला जस गीत कहे जाथे । ये गीत के गवईया मन ला सेऊक कहे जाथे । सेऊक मन ढ़ोलक, मांदर, झांझ, मंजिरा के संग मा के गीत गाथें, ये गीत अपन अलगे लय होथे । जउन एतका मधुर होथे कुछ भगत मन गीत के लय मा झूमें लगथें जेला, देवता चढ़ना कहे जाथे । ये गाना बजना लगातार नव दिन तक चलत रहिथे । आठवां दिन ला अठवाही कहे जाथे, ये दिन मां के पूजा पाठ के षांति अउ होय भूलचूक के माफी बर हूम-हवन करे जाथे । येही दिन हिती-प्रीतू मन ओखर घर जांके जंवारा (फूलवारी) मा नारियल के भेंट चढ़ाथे । आखिर नवां दिन जोत अउ जंवारा के विर्सजन करे जाथे । विर्सजन गांव भर के लइका सियान आये सगा-पहूना मन भाग लेथे । सेउक मन जसगीत गात चलते । सेत मा सब झन नरियर के भेंट करत रहिथे । मारन मा जोत विर्सजन मा घर ले नदिया ले जाये के बेरा घर मा ही भेड़वा बोकरा के बली दे जाथे । बाकी विधि एके रहिथे ।
    जसगीत मा आदिषक्ति के गुणगान ही रहिथे कोनो पौराणिक कथा के आधार मा मां के स्तुति करना हे । चूंकि मां के रूप ला जंवारा मा, जोत मा निहीत मान लेथन ता ये जोत अउ जंवारा के स्तुति करना जस आय । जस मने दाई के यषगान करना आय । छत्तीसगढ़ मा गाये गे गीत के विधा ददरिया, करमा, भडौनी, सोहर, लोरिक चंदा, जस अइसे कहू गिनती करे जाये ता सबले जाथा जस गीत ही पाये जाही ।          

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘

‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘



आज के यक्ष प्रश्न होगे हे, गांव-गांव, शहर-शहर मा ‘पानी के कमी कइसे दूर होही ?‘ जेन ला देखव तेन हा कहत हे- पानी के कम उपयोग कर बाबू, पानी के बचत कर ।  गांव-गांव, शहर-शहर मा पानी के मारा-मारी हे । अइसे पहिली बार होय हे के पानी बर पहरा लगाये जात हे । पुलिस ला पानी बचाय बर लगाये जात हे । कोनो समस्या न तत्कालिक पैदा होवय न तत्कालिक जावय । तत्कालिक करे गे उपाय केवल समस्या ला कम करे के होथे ओखर जर-मूल ले नाश करे बर ओखर कारण ला जान के कारण ला दूर करे के दीर्घकालिक योजना मा काम करे ला पड़थे । आये पूरा हा ओसकबे करही, दूरदिन हा टरबे करही । फेर ये दिन दुबारा देखे ला झन परय । येखर बर काम करे के जरूरत हवे ।
जम्मो जीव जन्तु अउ  वनस्पती के जीवनयापन पानी के बिना सम्भव नई हे। प्रकृति तभे तो भुईंया मा पानी के अथाह मात्रा दे हवय । भुईंया मा पानी के मात्रा लगभग 75 प्रतिषत हवय । मात्रा के आधार मा भुईंया के पानी करीब 160 करोड़ घन कि0मी0 उपलब्ध हे। लगभग 97.5 प्रतिशत पानी नमकीन हे। केवल 2.5 प्रतिशत पानी ताजा जल के रूप मा उपलब्ध हवय फेर येही पानी बर्फीली क्षेत्र मा बर्फ के रूप मा होय के कारण सिर्फ 0.26 प्रतिशत पानी हा नदियां, झील, मा  मनखे के उपयोग बर उपलब्ध है। 0.26 प्रतिशत जल ला कहूं मात्रा मा देखी ता दुनिया के आबादी करीब 700 करोड़ के आधार मा प्रति व्यक्ति 6,00,000 घन मी0 पानी उपलब्ध हे। पानी के अतका मात्रा ला कहू एक आदमी हा कूद-कूद के  नहाय-धोय, पीये-खाये बर उपयोग करय तभो पानी बच जही । त ये पानी के संकट काबर ?
पानी के उपलब्धता दू प्रकार ले होथे पहिली भुईंया के ऊपर (भूतलीय जल) अउ दूसर भुईंया के भीतर (भू-गर्भी जल) । जब ये उपलब्धता मा कमी आही या के उलब्ध जल उपयोग के लइक नई रहिही ता जल संकट होबे करही । पानी के संग्रहण अउ संरक्षण मा कमी होय ले जल संकट होबे करही ।  प्राकृतिक जल प्रकृति के जीव जंतु के जीवन बर पर्याप्त हे ।  पानी के कमी तब जनावत हे जब येखर उपयोग औद्योगिक रूप ले अउ कृशि मा आवश्यकता ले जादा होय लगीस ।
धंधा मा जइसे आय-व्यय के लेखा-जोखा करे जाथे ओइसने येखर उलब्धता अउ उपयोग ला समझे ला परही । उपलब्धता भूतलीय अउ भूगर्भी हे । भुईंया के ऊपर मा पानी संरक्षित रहे ले भुईंया भीतर के जल स्तर संरक्षित रहिथे । भुईंया के ऊपर के पानी सागर, नदिया, नरवा, तरिया, कुंआ, पोखर, बावली अउ बांध ले होथे जेन हा वर्षा के जल ला संरक्षित करथे । लइका लइका जानथे वर्षा के पानी ला कहू नई रोकबे ता बोहा के सागर मा जाही जेन हमर काम के नई हे । पानी के उपयोग जीव जंतु के जीवन यापन के संगे संग अब औद्योगिक रूप ले अउ उन्नत कृषि मा होत हे ।
एक अनुमान के अनुसार औद्योग अउ कृषि हा 70 प्रतिशत भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करे लग गे हे । मनखे मन घला आज कल पानी बर भूतलीय जल ले जादा भूगर्भी जल मा निर्भर हे, घर-घर बोर, पानी मोटर ले भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करत हें । वैज्ञानिक मन बार-बार चेतावत हे भुईंया के भीतर के पानी के स्तर लगातार गिरत हे । जल स्तर गिरत काबर हे, येखर कारण मा जाबे ता पाबे भुईंया के ऊपर के पानी अउ भुईया के भीतर के पानी मा असंतुलन हे । भुईया के भीतर के पानी के स्तर हा भुईंया के ऊपर के पानी के स्तर मा निर्भर करथे, भुईंया के ऊपर के पानी के स्तर निर्भर करथे नदिया नरवा तरिया अउ बांध के पानी मा, वर्षा जल के संरक्षण मा । अपन चारो कोती देख लव ये जल स्रोत के का हाल-चाल हे । एक तो पहिली ले ये जल स्रोत हाल बेहाल रहिस ऊपर ले ये साल वर्षा घला कम होइस दुबर ला दू अषाढ़ पानी के त्राही त्राही मचे हे ।
ये प्रकार जल संकट के जर-मूल, भुईंया के ऊपर के पानी के स्रोत के संरक्षण नई होना हेे, अउ आवष्यकता ले जादा भुईंया के भीतर के पानी के दोहन करे ले भुईंया के भीतर के पानी स्तर मा गिरावट आवय । हमला कहूं जल संकट ला जर-मूल ले मिटाना हे त जल स्रोत ला संरक्षित करेच ला परही । भुईंया के भीतर के पानी के दोहन कम करे ला परही ।
ये समस्या के मूल कारण मनखे मन के बेपरवाह अउ लालची होना हे ।  मनखे मन नदिया, नरवा, तरिया बांध मा बेजा कब्जा करके कोनो खेती करत हे ता कोनो कोनो घर-कुरिया बनाये बइठे हे ।  सोचव अइसन करे ले कतका कन हमर भूतलीय जल स्तर खतम होगे । बाचे-खुचे नदिया, नरवा तरिया मा मनखे मन कचरा ला फेक-फेक के घुरूवा बना डारे हे । औद्योग के गंदा पानी ला नदिया, नरवा, तरिया मा रिको-रिको के सत्यानाष कर डरे हें । जब जम्मो झन प्रकृति के सत्यानाष करबो ता का ओ हर हमर सत्यानाष नई करही ।
‘पानी बचाओ‘ के नारा ला हमन गलत ढंग ले समझे हन कहूं हमला एक हउला पानी मिलय ता ओमा एक लोटा पानी बचा ली । अइसनहा करे मा का होही । पानी तभे बाचही जब येखर संरक्षण होही, ये तभे संभव हे जब प्रकृति के नदिया, नरवा भरे-भरे अउ साफ-सुथरा रहिही । हमर पुरखा मन ये बात ला जानत रहिन तभे तरिया, कुंआ खनवाना ला पुण्य मान के करत रहिन ।  आस्था मा गिरावट आय ले आज हम तरिया कुंआ ला पाटत हन । बिना बीजा बोय, धान लुये कस बोर ले पानी खीचत हन । ये समस्या के निदान वैज्ञानिक ढंग ले कम अउ नैतिक रूप ले जादा होही । मनखे-मनखे अपन नैतिक जिम्मेदारी ला मानही तभे प्रकृति हा ओला संग देही । आम तौर मा हम मान लेथन ये सब बुता सरकार के आय हमला का करे ला हे । ये सोच जबतक जींदा रहिही तब ये संकट हा बने रहिही । संकट के निदान करना हे ता हर आदमी ला गिलहरी कस अपन सहयोग दे ला परही ।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

जनकवि कोदूराम ‘दलित‘


        साहित्यकार के एक अच्छा परिचय उन्खर साहित्य ले ही होथे ।  रचनाकार के व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव अउ दृष्टिकोण सबो उन्खर कृति ले दरपन मा बने परछाई कस दिखथे । स्व. कोदूराम ला जब जनकवि कहे गे हे ता ऐखरे ले स्पष्ट हे इंखर रचना मा आमजन के पीरा के आंसू छलकत हे, ऐही पीरा के सेती तब ले अब तक आम जन मन घला आप ला जानत हे । फेर अइसे लगते हे आप ला ओतका मान नई मिल माईस जेखर आप अधिकारी रहेंव ।
इॅंखर जनम तब के मध्यप्रदेश अउ आज के छत्तीसगढ़ मा, दुरूग जिला के ‘टिकरी‘ गांव (अर्जुन्दा) मा 5 मार्च 1910 के श्री रामभरोस के घर होइस । रामभरोसाजी एक साधारण किसान रहिस, ऐ पायके दलितजी के बचपना हा किसान अउ बनिहार मन के बीच मा बीतिस ।  अर्जुन्दा मा इंखर प्राथमिक षिक्षा-दीक्षा होइस । पाछू नार्मल स्कूल बिलासपुर अउ नार्मल स्कूल रायपुर ले षिक्षा ग्रहण करीन ।   सन् 1931 ले 1967 तक आर्य कन्या गुरूकुल दुरूग मा षिक्षक रहिन । खुदे लिखथें -
‘लइका पढ़ई के सुघर, करत हववं मैं काम,
कोदूराम दलित हवय, मोर गवंइहा नाम ।
मोर गवंइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया
जन हित खातिर गढ़े हववं मैं ये कुण्डलिया,
शउक मुहू ला घलो हवय कविता गढ़ई के
करथवं काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के’ ।।

ग्राम अर्जुंदा के आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी ले इन्हला काव्य-प्रेरणा मिलीस ।  वर्ष 1926 ले इन मन कविता लिखे बर शुरू करीन । 1926 ले जीवन पर्यन्त अपन जीवन ला साहित्य साधन मा अर्पित करिन । पायजामा, गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता उन्खर पहचान रहिस । हँसमुख अउ मिलनसार होय के सेती सबो उम्र अउ वर्ग के मनखेमन आप ले हिलमिल जात रहिन हे ।  इनमन अपन बात ला बेबाकी से रखत रहेंय । कविता के संबंध मा इंखर मानन हे के कविता करई हा प्राकृतिक गुण होथे । ‘दलित‘जी कहिथें -

“कवि पैदा होकर आता है,
होती कवियों की खान नहीं
कविता करना आसान नहीं ।“

रचना क्षमता प्रकृति प्रदत्त गुण होय के कारण दलित जी के रचना संसार अतका व्यापक है कि ओमा  केवल छत्तीसगढ़ी ना होके हिन्दी साहित्य के सबो विधा मा रचना मिलथे ।  कवि के आत्मा रखे के बाद घला ओमन बहुत अकन कहानी निबंध, एकांकी, प्रहसन, पहेलियाँ, बाल गीत अउ मंचस्थ करे के लइक क्रिया-गीत (एक्शन सांग) लिखे हें । दलित जी के अधिकांश कविता हा छंद शैली मा लिखे गे हे । इनमन अपन जीवन के अनुषासन कस अपन रचना मा घला अनुषासन रखिंन ते पायके छंद हा इंखर आधार विधा रहे हे । इनमन हास्य-व्यंग्य के कुशल चितेरा रहिन । व्यंग्य अउ विनोद ले लतफत उन्खर कविता चुनाव के टिक्कस हा देखते बनथे -

बड़का चुनाव अब लकठाइस,
टिक्कस के धूम गजब छाइस ।
टिक्कस बर सब मुँह फारत हें
टिक्कस बर हाथ पसारत हें
टिक्कस बिन कुछु सुहाय नहीं
भोजन कोती मन जाय नहीं
टिक्कस बिन निदरा आय नहीं
डौकी-लइका तक भाय नहीं
टिक्कस हर बिकट जुलुम ढाइस
बड़का चुनाव अब लकठाइस “

दलितजी गांधीवादी विचार ले प्रेरित रहिन स्वाधीनता के पहले के नेता अउ आज काल के नेता मा तुलना करत आप लिखथव-

“ तब के नेता जन हितकारी ।
अब के नेता पदवीधारी ।।
तब के नेता किये कमाल ।
अब के नित पहिने जयमाल ।।
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चैथी फेल ।।
तब के नेता गिट्टी फोड़े ।
अब के नेता कुर्सी तोड़े ।।
तब के नेता डण्डे खाये ।
अब के नेता अण्डे खाये ।।
तब के नेता लिये सुराज ।
अब के पूरा भोगैं राज ।।
तब के नेता को हम माने ।
अब के नेता को पहिचाने ।।
बापू का मारग अपनावें ।
गिरे जनों को ऊपर लावें ।।

दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा घला प्रस्तुत करके नाव बटोरे हे । वो अपन समय मा कवि-सम्मेलन मन मा बहुत ‘हिट’ कवि रहिस । तत्कालीन मंचीय कवि पतिराम साव, शिशुपाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त, दानेश्वर शर्मा आदि रहिन । दलित जी ला आकाशवाणी नागपुर, इंदौर अउ भोपाल केंद्र मा आमंत्रित करे जात रहिस । शराब बंदी मा लिखे कविता म.प्र.शासन द्वारा पुरस्कृत होय हे ।

दलित जी एक साहित्यकार होय के संगे संग एक योग्य अध्यापक, समाज सुधारक अउ संस्कृत निष्ठ व्यक्ति रहिन ।  वो हर भारत सेवक समाज अउ आर्य समाज के सक्रिय सदस्य रहिन ।  जिला सहकारी बैंक के संचालक अउ म्युनिस्पल कर्मचारी सभा के दू बार मंत्री अउ सरपंच घला रहिन । आप जुझारू मनखे रहेंव । 1947 मा आजादी के बाद शिक्षक संघ के प्रांतीय आंदोलन मा कूद पड़ेंव । आप ला अउ पतिराम साव जी सहित कई आंदोलनकारी मन ला गिरफ्तार करके 15 दिन बर नागपुर जेल मा बंद कर दे गे रहिस । जेल ले छूटे के बाद इन मन ला प्रधानाध्यापक पद ले ‘रिवर्ट’ कर दे गिस । देष बर जान गंवाय शहिद मन श्रद्धाजंली देत इनमन लिखे हें -

आइस सुग्घर परव सुरहुती अऊ देवारी
चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो
जउन सिपाही जी-परान होमिस स्वदेश बर
पहिली ऊँकर आज आरती हम उतारबो ।।

दलित जी की रचनामन के प्रकाशन देश के कई ठन पत्र-पत्रिका मन मा होत रहिस । नागपुर से-नागपुर टाइम्स, नया खून, लोक मित्र,नव प्रभात ,जबलपुर से दृप्रहरी, ग्वालियर से ग्राम-सुधार, नव राष्ट्र, बिलासपुर से पराक्रम, चिंगारी के फूल, छत्तीसगढ़ सहकारी संदेश , दुर्ग से- साहू संदेश, जिंदगी, ज्वालामुखी , चेतावनी, छत्तीसगढ़ सहयोगी, राजनांदगाँव से जनतंत्र आदि पत्रिकामन मा आपके कविता छपत रहिस ।

दलित जी के जीवन हा बहुत संघर्षमय अउ अभावग्रस्त मा बितीस । एही कारण रहिस के  हजारों रचना लिखे के बाद खुद खुदे के किताब नई छपा पाईन । सन् 1965 में पतिराम साव ,मंत्री हिंदी साहित्य समिति , दुर्ग के सहयोग ले एक मात्र काव्य-संकलन “सियानी-गोठ” के प्रकाशन उन्खर जीवन काल मा होय पाईस । बाद मा ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छनक-छनक पैरी बाजे‘ के परकासन कराय गे हे ।  “सियानीगोठ” काव्य संकलन कुण्डली शैली मा लिखे गे हे जेमा 27 कुण्डलियां के समावेश हे । उल्लेखनीय है कि कुण्डलियां के कवि मन पाचवइया लाइन मा अपन नाम जरूर डालथे फेर दलित जी हा अपन नाम नई डारिस । ते पाय के ऐखर लाभ उठात समय-समय मा कोनो-कोनो दलित जी के रचना मा अपन अधिकार जतात दिखीन ।  ये संकलन विविध विषय मा आधारित हे, ऐमा आध्यात्मपरक रचना “पथरा” देखे के लइक हे -

“ भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आयँ
कोन्हों खूँदे जायँ नित, कोन्हों पूजे जायँ ”

ये संकलन मा हास्य रस, मानवीय सम्वेदना, राष्ट्र-प्रेम, विज्ञान सबो विशय मा छाप दिखथे विज्ञान विषय मा ये रचना देखव-
तार मनन मा ताम के, बिजली रेंगत जाय
बुगुर बुगुर सुग्घर बरय,सब लट्टू मा आय
सब लट्टू मा आय ,चलावय इनजन मन ला
रंग-रंग के दे अँजोर ये हर सब झन ला
लेवय प्रान लगय झटका,जब एकर तन मा
बिजली रेंगत जाय, ताम के तार मनन मा ।।
उन्खर रचना पद्य मा हमर देस, कनवा समधी, दू मितान, प्रकृति वर्णन, बाल कविता अउ कृष्णजन्म । गद्य मा अलहन, कथा-कहानी । प्रषंसनीय हवय । आपके द्वारा लिखे दोहा आज घला पहटिया मन द्वारा राउत नाचा मा दोहा पारे जाथे -

गौरी के गणपति भये, अंजनी के हनुमान रे
कालिका के भैरव भये, कौशिल्या के राम. रे

गांधी जी के छेरी भइया दिन भर में नारियाय रे
ओखर दूध ला पी के भइया, बुधुवा जवान हो जाय रे

जैसे के मालिक! देहौ-लेहौ, तैसे के देबो असीस
चांउर-दार करौ सस्ती, फिर- जीयौ लाख बरीस.

छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढि़या के दषा अउ दिषा मा डांड खिंचत दलितजी कहें हे -

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार,
हवयँ लोग मन इहाँ के, सिधवा अऊ उदार
सिधवा अऊ उदार हवयँ दिनरात कमावयँ
दे दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ
ठगथयँ ये बपुरा मन ला बंचक मन अड़बड़
पिछड़े हवय अतेक, इही कारण छत्तीसगढ़ ।

दलितजी अपन रचना मा प्रतीक के माध्यम ले जीवन सत्व ला उजागर करे हें उन्खर व्यंग अइसन तीक्ष्ण हे के उन्हला अपन जमाना के आन कवि मन ले अलग कर देथे -

मूषक वाहन बड़हर मन, हम ला
चपके हें मुसुवा साहीं
चूसीं रसा हमार अउर अब
हाड़ा -गोड़ा ला खाहीं द्य
हे गजानन ! दू गज भुइयाँ
नइ हे हमर करा
भुइयाँ देबो-देबो कहिथे हमला
कतको झन मिठलबरा

अइसने दबे कुचले संघर्ष करत मनखे मन के पीरा ला अपन अवाज देवत-देवत, खुदे संघर्ष करत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के ये दुनिया छोड़ के सदा-सदा बर चल दिहिन । अपन पाछू मा काव्य-रचना संसार के संगे-संग अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ के गें हे । उन्खर सपूत श्री अरूण कुमार निगम, अपन ददा के पद चिन्ह मा चलत आज छंद विधा मा छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी छंद के आधार स्तंभ हें । दलितजी के दामांद श्री लक्ष्माण मस्तुरिया आज छत्तीसगढ़ के पहिचान हवय ।
स्वर्गीय कोदूराम दलित के रचना हा आज घलो ओतके महत्व के हे जतका अपन जमाना मा रहिस उन्खर रचना ला फेर आम जन तक पहुॅचाय के परयास करे करे के जरूरत हवे । ऐही उदीम मा आजकाल इंटरनेट के जमाना मा भाई संजीव तिवारी दुर्ग हा ‘गुरतुर-गोठ‘ वेब पत्रिका अउ ब्लाब-‘आरंभ‘ मा कोदूराम ‘दलित‘ जइसे अउ हमर धरोहर कवि मन ला सहेजे बर सार्थक परयास करत हवें । इंखर परयास मा हमू मन गिलहरी कस सहयोग देके उदिम करी ।

आलेख स्रोत- कविता-कोश वेब साइट अउ आरंभ

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

//कमरछठ या खमरछठ या हलषष्ठी//



हर साल भादो महिना के अंधियारी पाख के छठ तिथि के शेषावतार भगवान बलराम के जन्म उत्सव के रूप मा मनाय जाथे । ये दिन मथुरा सहित देश के सबो बलराम/बलदाउ/हलधर के मंदिर मा पूजा पाठ करके ओखर जनम दिन मनाये जाथे ।

छत्तीसगढ मा घला ये पर्व के रूप मा मनाय जाथे । ये दिन संतान के सुख समृद्धि अउ दीर्घायु बर माता  मन उपास रहिथे ये दिन नागर चले जगह मा रेंगना वर्जित होथे । नागर के द्वारा उपजे अन्न अउ गाय के दूध के सेवन के आज मनाही होथे ।  आज के दिन बिना नागर चले उपजे पसहर चाउर अउ भाजी, भइसी दूध के सेवन करे जाथे ।

आज के दिन सगरी बना के ओखर पूजा करे जाथे, ये सगरी लाा हलषष्ठी दाई के रूप माने जाथे, जेन वास्तव मा पार्वती के एक रूप आवय । हलषश्ठी ला संतान के देवी माने जाथे । सगरी ला शंकरजी के परिवार सहित प्रतिक मान के पूजा करके ये कामना करे जाथें के आपके परिवार कस हमरो परिवार खुश रहय । जइसे आपके लइका बच्चा योग्य हे ओइसने हमरो लइका मन योग्य बनय ।

ये व्रत के संबंध में अइसे मान्यता हे कि जब कंस हा देवकी के छै लइका ला मार डरिस ता देवकी ला बहुत चिंता होगे के आखिर मोर एको लइका बाचही के नही कहिके, ओही बखत नारद हा देवकी ला सला देइस के तै मां पार्वती (हलषष्ठी) के व्रत कर ओखर कृपा ले तोर संतान मन ला आयु एवं समृद्धि जरूर मिलही । देवकी हा कंस के कारागार मा परे परे ये व्रत ला करिस । ये व्रत के ये प्रभाव होइस के ओखर गर्भ मा जेन लइका संचरत रहय, ओखर गर्भ परिवर्तन होगे, अर्थात व्रत के परभाव ले देवकी के गर्भ रोहणी के गर्भ मा प्रतिस्थापित होगे ।  रोहणी के गर्भ ले जेन शिशु के जन्म होइस ओही हा बलराम आय, ऐती देवकी के गर्भपात होगे कहिके कंस ला बता दे गीस । ये परकार ले जेखर लगातार छै लइका मारे गे रहिस ओचार सातवइया लइका बांच गे । जेन दिन बलराम के जनम होइस ओ दिन भादो बदि छठ रहिस, ते पाइके हर साल ऐही दिन खमरछठ मनायेे जाथे ।

-रमेश चौहान

मंगलवार, 26 मई 2015

‘कला परम्परा‘ के सरजक -माननीय डी.पी. देशमुख


             हमर छत्तीसगढ़ के माटी मा तइहा ले आज तक नाना परकार के परम्परा अउ संस्कृति रचे बसे हवय जेमा के बहुत अकन परम्परा काल के गाल मा समावत हे, ये परम्परा मन नंदावत जात हे, फेर ऐला बहुत हद तक हमर कलाकार अउ कलमकार मन साधे रखें हे ।  हमर छत्तीसगढ मा कला अउ साहित्य के नाना विधा के साधक मन भरे परे हे, चाहे वो संगीत के लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत या सुगम संगीत होय, नाच मा लोक नाचा, शास्त्रीय नृत्य, होय आनी-बानी साज के वादक होय, मझे सुर साधक होय।  साहित्य के लोक साहित्य ला आगे बढ़इहा, छत्तीसगढ़ी भासा ला समरथ बनइया, हिन्दी, उर्दू के गजलकार, गीतकार होय ।   हर क्षेत्र मा हमर राज्य के कलाकार कलमकार संघर्ष करत अपन दायित्व के निर्वहन करत आत हे, ये कलाकार कलमकार म के जादा ले जादा मन हा गुमनामी ले डुबे हे, ओला कोनो नई जानय, ओ मन अपन परिचय के मोहताज हे । ओखर काम हा ओखरे तक सीमट के रहिगे हे ।  ये दुनिया मा जिहां एक कोति हर आदमी अपन सुवारथ ले सब काम करथें, दू पइसा जिहां ले मिलही उहीं मेरा काम करथे, अइसन समय मा ये संघर्ष करत सरसती के लइका मन बर संगी बन के आदरणीय डी.पी. देशमुख जी आघू आइन, रिफ्रेक्टरीज प्लांट के जन सम्पर्क अधिकारी डी.पी.देशमुख अपन कर्मठता अउ जिवंतता के परिचय देत एक दुर्लभ अउ दुस्कर काम ला अपन हाथम लेइन । वो मन बिना कोई सुवारथ के बिना कोई लाग लपेट के हर परकार के कलाकार कलमकार मन ला समेटत ऊंखर पहिचान बर ‘कला परम्परा‘ पत्रिका के श्रृंखला चलावत हे । आदरणीयदेशमुख जी अपन माटी के करजा चुकावत सरलग ‘कला-परम्परा‘ परकासित करत हे जेमा छत्तीसगढ के परम्परा-संसकृति अउ ऐखर संरक्षक लोककलाकार कलमकार मन ला पहिचान दे के अथक परयास करके सफल होत दिखत हे ।
श्री देशमुखजी हा ‘कला परम्परा‘ के शुरूवात ले छत्तीसगढ के कला अउ परम्परा, हमर संस्कृति, हमर पहिचान ला देश दुनिया मा बगराय के बिड़ा उठायें हें । ऐखर दूसर अंक ला लोककला, साहित्य अउ संस्कृति ला समरपित करत 175 रचनाकार मन के साहित्यक योगदान ला डाडी खिंच के बतायें हे । ‘कला परम्परा‘ के तीसर अंक ला लोककलाकार मन ला समरपित करत लगभग 800 लोककलाकार मन के छायात्रित जीवन परिचय लोककला के क्षेत्र मा ऊंखर योगदान ला दुनिया मा बगराये हें । ‘कला परम्परा‘ के चउथा अंक ला छत्तीसगढ के पर्यटन तीरथ धाम ला समरपित करत अपन जिवटता के परिचय दिईन । ये अंक मा एक गाइड के रूप मा काम करत हमर राज्य के घूमे के लइक ठउर के रोचक फोटु सहित जानकारी उपलब्ध कराये हें । ये अंक मा प्राकृतिक सौंदर्य के ठउर, सबो धरम के धार्मिक ठउर, उहां जाइके के रद्दा रूके के ठउर के संबंध मा सुंदर जानकारी परोसे गे हे जेखर ले सैलानी मन ला कोनो तकलीफ झन होवय, हमर राज्य के गौरव ला देष परदेश मा बगराय जा सकय । ‘जेन काम ला छत्तीसगढ के पर्यटन विभाग ला करना रहिस ओ काम ला श्री देशमुख हा अपन सीमित संसाधन ले कर देखाइन‘- अइसन उद्गार ये अंक के विमोचन बखत हमर राज्य के माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह हा कहे रहिस ।
‘कला परम्परा‘ के पांचवा अंक साहित्य बिरादरी ला समर्पित हे जेमा, 1001 साहित्कारमन के नाम, पता संपर्क, साहित्यीक उपलब्धि जम्मो परकार जानकारी ऐमा दे गे हे । एखर संगे-संग 175 मूर्धन्य साहित्यकारमन के जीवनवृत्त ला ऐमा समेटे गे हे । ये अंक साहित्य बिरादरी मन के परिचय ग्रन्थ आय । ये परिचय ग्रन्थ ले साहित्यकार मन जिहां एक दूसर के परिचय प्राप्त करत हे ऊंहे दूसर कोती साहित्य प्रेमी मन अपन रूचि के साहित्यकार ला जान सकत हे ।  साहित्य बिरादरी के अंक मा सबो झन के संपर्क नम्बर हे जेखर ले एक-दूसर साहित्यीक बंधु मन साहित्यीक अभिरूची के चरचा कर सकत हे, या एक-दूसर ले व्यक्ति गत सुख-दुख बांट सकते हे । ये एक ठन किताब हा गुमनामी मा खोय साहित्यकार मन के नाम ला दुनिया मा बगराय के काम करत हे । ये बुता हा कोनो छोटे बुता नो हय, बहुते बड़े काम आय ।   अतका झन साहित्कार ला एक किताब मा समेटना ।
‘कला परम्परा‘ के अवइया छठवा अंक ला छत्तीसगढ के तीज तिहार ला समरपित करे गे हे, जेमा हमर बिसरत परम्परा ला सकेले के काम होही ।
ये परकार हम देखी ता ‘कला परम्परा‘ के संपादक श्री डी.पी. देशमुख अउ ऊंखर पूरा टीम बधाई के पात्र हे, सुवागत के पात्र हे, वंदन के पात्र हे । ‘कला परम्परा‘ के पहिली ले लेके पाचवां अंक तक सबो हा पूरा छत्तीसगढ़, पूरा देश अउ दुनिया बर उपयोगी हे ।  ये उपयोगी हे आम जनता बर जेन अपन संस्कृति ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी हे ऊंखर बर जेन छत्तीसगढ़ ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी उन लइका मन बर जउन मन नाना परकार प्रतियोगी परीक्षा देवावत हें, ये उपयोगी हे उन कलाकार बर जेन मन गुमनामी मा जिये बर मजबूर हें, ये उपयोगी उन साहित्कार मन बर जेला कोनो नइ जानत हे । ‘कला परम्परा‘ हर परकार ले हर परकार के आदमी मन बर उपयोगी हे ।
आदरणीय डी.पी. देशमुख अउ ओखर सहयोगी ‘कला परम्परा‘ के संरक्षक श्री कैलाष धर दीवान, प्रधान संपादक श्री मनोज अग्रवाल, सहित श्री सहदेव देश्‍ामुख, श्री अशोक सेमसन, श्रीमती पूनम अग्रवाल, डॉ. आरती दीवान, श्रीमती नीता देशमुख, डॉ. राजेन्द्र हरमुख, चेमन हरमुख आदि मन के ये मेहनत हा आदर के योग्य हे । हम जम्मो झन आपमन के ये परयास के दिल ले प्रसंसा करत हन अउ ईश्वर ले प्रार्थना करत हन के आप के पांव मा कांटा झन गड़य, आपके रद्दा के हर बाधा दूर होवय अउ आप मन अपन लक्ष्य ला पाके क्षितिज मा चमकव ।
-रमेश कुमार चैहान,
       मिश्रापारा, नवागढ़,
     
 जिला-बेमेतरा, मो. 09977069545

शनिवार, 23 मई 2015

हमर छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामील करायके परयास

         छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूचची मा सामिल कराय के परयास के संबंध मा चरचा करे के पहिली हमला ये  जानेे ल परही के ये आठवी अनुसूची आय का अउ ऐखर ले का फायदा नुकसान हवय ।  आठवी अनुसूची  हमर भारतीय संविधान के अइसे अनुसूची आय जेमा भारत मा प्र्रचलित भासा ला संवैधानिक दर्जा दे जाथे ।  भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ 35 (भासा) मा कहे गे हे भारतीय संघ के जम्मो कार्यपालिका अउ न्यायपालिका के भासा अंग्रेजी, हिन्दी अउ आठवी अनुसूची मा मान्यतता प्राप्त  क्षेत्रीय भासा होही । भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ अनुच्छेद 351 के अनुसार आठवी अनुसूची मा सामिल भासा के विकास अउ ओखर परचार के जिम्मा केन्द्र सरकार के होही । ये संबंध मा केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिसा निर्देस राज्य सरकार बर बंधनकारी होही । अभी तक ये अनुसूची मा 22 भासा ला सामिल करे गे हे ।
छत्तीसगढ़ी के आठवीं अनुसूची मा सामिल होय ले फायदे फायदा हे, सबले जादा फायदा हमर छत्तीसगढि़या नवजवान साथी मन ला हो ही संघ लोक सेवा आयोग अउ राज्य लोक सेवा आयोग के परीक्षा मा ऐ एक भासा के रूप मा मान्य होही । आठवी अनुसूूची मा सामिल होेय के बाद  हमर छत्तीसगढ़ी राजभासा आयाोग ला मानव संसाधन विभाग द्वारा योजना राषि दे जाहीं, संगे संग भासा विकास प्राधिकरण द्वारा आर्थिक सहयोग दे जाही । भारत सरकार के गजट के परकासन छत्तीसगढ़ी मा घला होही । राष्ट्रपति के अभिभासन ला छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करके आकाषवाणी अउ दूरदरसन ले परसारित कराय जाही । ये जम्मो फायदा कोनो भी छत्तीसगढ़ी भासी संगी ला होही चाहे वो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी होय, चाहे आने राज्य या देस के ।
अब सवाल उठते आखीर कोनो भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय बर का करे ला परते ।  कोन हा कोन भासा ला ये सूची मा जोड़ सकते हे । भारतीय संविधान के आठवी अनुसूची में भासा ला जोड़े के अधिकार केंद्र सरकार ला हे कोन भासा ला जोड़े जाय ये संबंध मा कोनो इसपस्ट उल्लेख नइ हे।
आठवी अनुसूची मा पहिली 14 भासा -असमिया, बंग्ला, गुजराती, हिन्दी कन्नड, कशमीरी, मराठी मलयालम, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगू अउ उर्दू रहिस । 1967 मा 21वां संविधान संशोधन करके कोंकणी अउ मणीपुरी ला, 1992 मा 71वां संविधन संषोधन करके नेपाली ला अउ 2003 मा 91वं संशोधन करके बोडो, डोगरी, संथाली अउ मैथली ला सामिल करे गे हे । ऐखर ले इस्पस्ट हे छत्तीसगढी ला ऐमा सामिल करे बर फेर संविधान संशोधन करे ला परही ।
             अनुच्छेद 345 अउ 346 हा राज्य ला भासा के संबंध मा छूट दे रखे हे । जेखर अधिन छत्तीसगढ के राज भासा हिन्दी के गे संग छत्तीसगढी ला बनाय गे हे । अनुच्छेद 347 के अनुसार कोनो राज्य मा कहू कोनो भासा के बोलइया मन के संख्या जादा होय ता उंहा के राज्य सरकार हा, ये सबंध मा राष्ट्रपति ला अभिज्ञात दे सकत हे, जेखर आधार मा राष्ट्रपति अभिज्ञा देते अउ वो भासा ला आठवी सूची मा सामिल करे के रद्दा खुल जाथे ।
छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची मा सामिल करे के मांग ऐखर राज भासा बने के संगे संग षुरू होगे हे ।  छत्तीसगढी राजभासा आयोग ये दिशा मा अपन पहिली सम्मेलन ‘राजभासा कुंभ‘ 2013 ले कर दे हवय । ये सम्मेलन के समापन समारोह मा खुदे ये संबंध हमर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह हा ये भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय के आस्वासन दे हवय । ‘छत्तीसगढी ला  जन भासा बनाय के जरूरत नइ हे ये खुदे एक जनभासा बने हवय । हमर राज्य के पढ़े-लिखे संगी मन आज तक ये भासा ला उपेक्षा ले देखत रहिन ।  जेन मनखे के परिवार नानपन ले घर मा छत्तीसगढ़ी बोलत रहिन ओ मन दू आखर पढ-लिख के ये भासा ला बोले ला बंद कर दिहीन । छत्तसगढ़ी मा बोलइया मन ला देहाती अउ गवार कहे लगीन । अइसन धारणा ला मिटाय बर ‘छत्तीसगढ़ी बर सकलाव‘ के नारा देत राजभासा आयोग हा अपन दूसर सम्मेलन 2014 मा छत्तीसगढ़ी ला पढ़े-लिखे मन के भासा बनाय के पुर जोर कोसिस करीन ।  राजभासा अपन तीसर प्रांतीय अधिवेष्न 2015 ला तो ‘आठवी अनुसूची मा छत्तीसगढ़ी‘ ला समर्पित करे रहिस ।
अइसनो बात नइ हे के एकेल्ला राजभासा ऐ दिसा मा कोसिस करत हे । बहुत अकन साहित्यिक संस्था मन घला ये दिसा मा परयासरत हे । छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2009 मा कवरधा मा अपन प्रांतीय अधिवेसन कराइन जेमा छत्तीसगढ़ के पहिली अध्यक्ष पंडित ष्यामलाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार डाँ विनय पाठक मन सिरकत करीन । ये सम्मेलन के मुख्य विषय रहिस ”छत्तीसगढ़ी भाखा अउ आठवीं अनुसूची”।
ये विसय मा घात दिन ले गोष्ठी, सम्मेलन, चरचा-परिचरचा चलत हवय फेर येमा अभी तक सफलता नइ मिले हे । ऐखर कारण मा जाहू ता ऐकेठन कारन दिखही, इच्छा शक्ति के कमी । नेता के अउ आम जनता के ।  आठवी सूची के विसय सब्बो ढंग ले एक राजनीतिक इच्छा शक्ति मा निरभर हे ।  राजनीतिक इच्छाशक्ति के उदय जन दबाव मा निरभर करथे ।
छत्तीसगढी ला ‘जनभासा‘ ले राजभासा अउ ‘राजभासा‘ ले आठवी अनुसूची के भासा बनाय पर ‘छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ के गठन करे गे हे ।  जेखर संयोजक श्री नंदकिशोर शुक्ल हे, जेमा जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा, सुधीर शर्मा, जयप्रकाश शर्मा, चेतन भारती, सुशील भोले, वैभव पाण्डेय, संजीव साहू अउ राकेश चैहान मन सदस्य हें ।  छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ हा छत्तीसगढी ला आठवी अनुसूची मा सामिल कराये बर जनजागरण करे बर एक ठन अलग समिति के गठन करे हे, जेन हा घर-घर जाके दस्तक देही । ये समिति हा हमर राज्य के संसद, विधायक अउ जनप्रतिनिधि मन के दस्खत ले के एक ज्ञापन बनाही जेला महामहिम राश्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष अउ संसदीय कार्यमंत्री ला दे जाही । ऐमा हमर राज के पंच विभूति पद्मश्री डाॅ सुरेन्द्र दुबे, डांॅ महादेव प्रसाद पाण्डे, डाॅ जे.एम. नेल्सन, श्री अनुज शर्मा अउ भारती बंधुमन घला सामिल होही ।
अब तक के परयास ला देखे मा हम पाथन के ये दिसा मा साहित्यकार मन पूरा जोर जगा दें हे, जगह-जगह ये विसय मा चरचा-गोष्ठी करावत हवे अउ आम जनता ला जगावत हवे ।  ऐखर सकारात्म परिणाम घला देखे मा आवत हे । छत्तीसगढ़ी ला हे के दृश्टि ले देखइया मन के संख्या मा दिनो दिन कमी आवत हे ।
मोर सोच हे हमार राज्य के गांव-देहात मा बसे जनता मन छत्तीसगढी ला अपन दिनचरया के भासा पहिली ले बना रखे हे ।  समस्या तो सहर अउ सहरीकरण के परभाव मा आये लोगन के हे जेन मन पति-पत्नि छत्तीसगढी मा गोढियाते अउ अपने लइका मेर हिन्दी झाड़थे ।  बहुत झन अइसे वक्ता, नेता हे जेन हा छत्तीसगढ़ी बर मंच मा छत्तीसगढ़ी मा तगड़ा भाशण देथें अउ मंच के घालहे मा हिन्दी अंग्रेजी मा सोर मचाथे । ऐखरो एक ठन कारण हे छत्तीसगढी पहिली ले जनभासा रहिस हे, पढे-लिखे मन अपन ला उंखर ले अलग दिखे बर उन्ला गंवार अउ छत्तीसगढी ला गंवार मन के भासा देखाय के प्रपंच कर डारिन फेर छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी के राज भासा बने  ले सोच मा फरक परे हे अउ ये सोच जेन दिन मर जाही अउ ये भासा बर अपन पन के भाव जेन दिन जाग जाग जाही, उही दिन हमर भासा आठवीं अनुसूची मा सामिल हो जाही ।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

गांव होवय के देश सबो के आय

मनखे जनम जात एक ठन सामाजिक प्राणी आवय । ऐखर गुजारा चार झन के बीचे मा हो सकथे । एक्केला मा दूये परकार के मनखे रहि सकथे एक तन मन ले सच्चा तपस्वी अउ दूसर मा बइहा भूतहा जेखर मानसिक संतुलन डोल गे हे । सामाजिक प्राणी के सबले छोटे इकाई घर परिवार होथे, जिहां जम्मोझन जुर मिल के एक दूसर के तन मन ले संग देथें अपने स्वार्थ भर ला नई देखंय कहू कोनो एको झन अपन स्वार्थ ला अपन अहम ला जादा महत्व दे लगिन ता ओ परिवार के पाया ह डोले लगथें अउ ओ धसक जाथे । परिवार ला बचाय रखे मा छोटे ले लेके बड़े तक के सहयोग होथे । ओही रकम गांव अउ देष सबो आय एक झन के बलबूता मा ना गांव बनय ना देष । लोकतंत्र मा देष के राजा आम जनता हा होथे अउ नेता मन हमर चुने प्रतिनिधि । जइसे पहिली गौटिया मन मुकतियार राखय अउ अपन बगरे काम के जिम्मेदारी ला देवंय ओइसने नेता मन जनता के मुकतियार होथे अउ अधिकारी करमचारी मन जनता के नौकर । फेर एक बात देखे मा आथे के हमन सोचथन गांव अउ देष तो सरकार अउ ओखर मातहत करमचारी मन के ये हमला का करे ला हे । सोच के देखव भला गांव, देष आखिर आय काखर तोरे रे भई ये देष के मालिक तही हस । ये देष हा तोर ऐ, मोर ऐ, ऐखर ऐ, ओखर ऐ अरे भई सबो के ऐ ।
ऐमा का अड़चन हे के देष हा सबो के ऐ ता । जइसे अपन परिवार मा 8-10 मनखे रहिथन ता घर के खेत-खार, धन-दौलत सबो झन के आय के नही । जम्मा झन ऐखर देख-रेख करथन के नही । अपन-अपन ताकत के पूर्ति लइका अउ सियान अपन पिरवार के देख-रेख करथन । ओइसने भइया अपन देष के अपन गांव के देख-रेख करना हे । वास्तव म मनखे परानी कोनो चीज ला अपन मान लेथे तभे ओखरे बर मया करथे अउ ओखर देख-रेख करथे जइसे कोनो किसनहा अपन खेत मा धसे गाय-गरूवा ला खेदथे दूसर के खेत के ला नई खेदय । कोनो मनखे दूसर मनखे के रिष्तेदार के मरे मा नइ रोवय अपनेच बर रोथे ।
अपन मान ले तैं कहूं, तोरे ओ हर आय ।
पर के माने तै कहूं, सबो उजड़ तो जाय ।।
ये मोहल्ला हा, ये पारा हा, ये गांव हा, ये देश हा तोरे तो आय । दिल ले मान ऐला अपन घर परिवार कस जान अउ ओइसने ऐखरो देख भाल कर । अपन मुह के कौरा ला लइका ल देथस नही ओइसने छेके परिया ला गाय गरूवा बर छोड़, गली ला सकेले चैरा बनाय हस तेला, सबके रेंगे बर फोर । गांव के गली मा कचरा छन कर, छन कर तरिया नदिया के घठौंदा ला तैं गंदा, तरिया नरवा पार मा झन बना अपन बसेरा । गांव ला साफ सुथरा चातर रख, अपन अंगना कस । अइसन कहू हमर सबके सोच होय ता हमर गांव सुधरही, हमर देष सुधरही । ऐ एक झन के बुता नो हय सबो छन के जुरमिल के परयास करे मा ये काम सवरही काबर के गांव होवय के देश सबो के आय ।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
मिश्रापारा नवागढ,
जिला-बेमेतरा
मो 9977069545

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