घनाक्षरी एक सनातन छंद की विधा होने के बाद भी आज काव्य मंचों में सर्वाधिक पढ़े जाने वाली विधा है । शायद ऐसा कोई काव्य मंच नहीं होगा जिसमें कोई न कोई कवि घनाक्षरी ना पढ़े ।
हिंदी साहित्य के स्वर्णिम युग जिसे एक प्रकार से छंद का युग भी कह सकते हैं, में घनाक्षरी विशेष रूप से प्रचलित रहा है । इस घनाक्षरी छंद की परिभाषा इसके मूलभूत नियम एवं इनके प्रकार पर आज पर चर्चा करेंगे। साथ ही वर्णों की गिनती किस प्रकार की जाती है ? और लघु गुरु का निर्धारण कैसे होता है ? इस पर भी चर्चा करेंगे ।
घनाक्षरी छंद की परिभाषा-
"घनाक्षरी छंद, चार चरणों की एक वर्णिक छंद होता है जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है ।" इसे कवित्त भी कहा जाता है और कहीं कहीं पर इसे मुक्तक की भी संज्ञा दी गई है ।
घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियम-
1. घनाक्षरी में चार चरण या चार पद होता है।
2. प्रत्येक पद स्वयं चार भागों में बंटे होते हैं इसे यति कहा जाता है ।
3. प्रत्येक चरण के पहले 3 यति पर 8,8,8 वर्ण निश्चित रूप से होते हैं ।
4. चौथे चरण पर 7, 8, या 9 वर्ण हो सकते हैं । इन्हीं वर्णों के अंतर से घनाक्षरी का भेद बनता है ।
5. इस प्रकार घनाक्षरी के प्रत्येक पद में कूल 31,32, या 33 वर्ण होते हैं जो 8,8,8,7 या 8,8,8,8 या 8,8,8,9 वर्ण क्रम में होते हैं ।
6. प्रत्येक पद के चौथे चरण में वर्णों की संख्या और अंत में लघु गुरु के भेद से इसके प्रकार का निर्माण होता है ।
7.इसलिए घनाक्षरी लिखने से पहले घनाक्षरी के भेद और उनकी लघु गुरु के नियम को समझना होगा ।
घनाक्षरी छंद के प्रकार-
घनाक्षरी छंद मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं जिसके चौथे चरण में वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है ।
- जिसके चौथे चरण में 7 वर्ण हो-
जैसे कि ऊपर देख चुके हैं कि घनाक्षरी छंद में चार चरण होते हैं जिसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण निश्चित रूप से होते हैैं । किंतु चौथे चरण में वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न होती है । जब चौथे चरण में 7 वर्ण आवे तो निम्न प्रकार से घनाक्षरी छंद का निर्माण होता है-
- मनहरण घनाक्षरी-
- मनहरण घनाक्षरी सर्वाधिक प्रयोग में आई जाने वाली घनाक्षरी है । इसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण निश्चित रूप से होते हैं और सातवें चरण में 7 वर्ण होता है । प्रत्येक चौथे चरण का अंत एक गुरु से होना अनिवार्य होता है । इसके साथ ही चारों चरण में सम तुकांत शब्द आनी चाहिए । यदि प्रत्येक चरण का अंत लघु गुरु से हो तो गेयता की दृष्टिकोण से अच्छी मानी जाती है।
- जनहरण घनाक्षरी-
- जनहरण घनाक्षरी बिल्कुल मनहरण घनाक्षरी जैसा ही है इसके भी पहले तीन चरण में 8,8,8 और चौथे चरण में 7 वर्ण होते हैं और इसका भी अंत एक गुरु से होता है । अंतर केवल इतना ही है के चरण के अंत के गुरु को छोड़ बाकी सभी वर्ण निश्चित रूप से लघु होते हैं । इस प्रकार घनाक्षरी के प्रत्येक चरण में 30 लघु के बाद एक गुरु हो तो जनहरण घनाक्षरी का निर्माण होता है।
- कलाधर घनाक्षरी-
- कलाधर घनाक्षरी भी मनहरण एवं जनहरण घनाक्षरी के समान ही होता है जिसके पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण एवं अंतिम चौथे चरण में 7 वर्ण होते हैं तथा जिसका अंत भी गुरु से ही होता है । अंतर केवल इसमें इतना ही है की यह गुरु से शुरू होकर एकांतर क्रम पर गुरु लघु गुरु लघु गुरु लघु क्रमवार आता है । अर्थात इसमें गुरु लघु की 15 बार आवृत्ति होती है और अंत में गुरु आता है ।
2.जिस के चौथे चरण में 8 वर्ण होते हैं-
सभी घनाक्षरी के पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण ही होते हैं यदि चौथे चरण में भी 8 वर्ण हो तो निम्न प्रकार के घनाक्षरी छंद बनते हैं-
- रूप घनाक्षरी-रूप घनाक्षरी के चारों चरण में 8,8,8,8 व निश्चित रूप से होते हैं तथा जिसका प्रत्येक चरण का अंत निश्चित रूप से लघु से होता है साथ ही चारों चरण के अंत में समतुकांत शब्द होते हैं ।
- जलहरण घनाक्षरी-जल हरण घनाक्षरी बिल्कुल रूप घनाक्षरी जैसे ही होता है इसके भी चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण होते हैं और अंतिम भी लघु से होता है ।अंतर केवल इतना होता है कि प्रत्येक चरण के अंतिम लघु से पहले एक और लघु होता है अर्थात प्रत्येक चरण का अंत दो लघु (लघु लघु) से हो तब जलहरण घनाक्षरी बनता है ।
- डमरु घनाक्षरी-डमरु घनाक्षरी भी जलहरण घनाक्षरी और रूप घनाक्षरी के समान ही होता है जिसके चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण र्होते हैं तथा अंत भी लघु से होता है । अंतर केवल इतना ही होता है की डमरु घनाक्षरी के सभी वर्ण लघु होते हैं । इस प्रकार जब 8,8,8,8 क्रम के सभी वर्ण लघु लघु में हो तो डमरू छंद बनता है ।
- किरपान घनाक्षरी छंद-इसके चारों चरण में 8,8,8,8 वर्ण होने के बाद भी यह पूर्ण रूप से रूपघनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी से भिन्न होता है । इसके प्रत्येक 8 वर्ण में सानुप्रास आना चाहिए अर्थात प्रत्येक यति में 2 शब्द समतुकांत शब्द होनी चाहिए । प्रत्येक चरण का अंत गुरु लघु से होता है
- इसे इस उदाहरण से समझ लेते हैं-"बसु वरण वरण, धरी चरण चरण, कर समर बरण, गल धरि किरपान ।यहां वरण वरण, चरण चरण और समर बरन में सानुप्रास है ।
- विजया घनाक्षरी छंद-विजया घनाक्षरी छंद के प्रत्येक चरण में 8, 8,8,8 वर्ण होते हैं । प्रत्येक यति में अर्थात सभी 8 8 वर्ण का अंत नगण (लघु लघु लघु) या लघु गुरु से होना चाहिए ।
3. जिसके चौथे चरण में 9 वर्ण हो-
इस प्रकार के घनाक्षरी छंद के पहले तीन चरण में 8,8,8 वर्ण एवं चौथे चरण में 9 वर्ण होते हैं ।
- देव घनाक्षरी छंद-छंद में 8,8,8,9 वर्णक्रम होते हैं और प्रत्येक चरण का अंत नगण (लघु लघु लघु) अर्थात तीन बार लघु से होता है ।
- हिंदी वर्णमाला के सभी वर्ण चाहे वह स्वर हो, व्यंजन हो, संयुक्त वर्ण हो, लघु मात्रिक हो या दीर्घ मात्रिक सबके सब एक वर्ण के होते हैं ।
- अर्ध वर्ण की कोई गिनती नहीं होती ।
उदाहरण-
रमेश=र+मे+श=3 वर्ण
सत्य=सत्+य=2 वर्ण (यहां आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=4वर्ण (यहां भी आधे वर्ण की गिनती नहीं की गई है)
लघु गुरु निर्धारण के नियम-
- हिंदी वर्णमाला के तीन स्वर अ, इ, उ, लघु होते हैं और इस मात्रा से बनने वाले व्यंजन भी लघू होते हैं
- इन लघु स्वरों को छोड़कर शेष स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ और इन से बनने वाले व्यंजन सभी गुरु होती हैं ।
- चंद्रबिंदु और ऋ की मात्रा जिस पर आवे वह लघु होता है ।
- अर्ध वर्ण का स्वयं में कोई भार नहीं होता । इसलिए अर्ध वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्द में मात्रा के दृष्टिकोण से भी अर्ध वर्ण को छोड़ दिया जाता है ।
- किंतु यदिअर्ध वर्ण, शब्द के मध्य या अंत में आवे तो यह उस वर्ण को गुरु कर देता है जिस पर इसका उच्चारण भार आवे । या पराया अपनी पाई और के वर्ण को गुरु करता है ।केवल "ह"वर्ण के पहले कोई अर्ध वर्ण आवे तो 'ह' गुरु हो जाता है ।
- यदि जिस वर्ण पर अर्ध वर्ण का भार पड़ रहा हो वह पहले से गुरु है तो वह गुरु ही रहेगा ।
उदाहरण-
रमेश=र+म+श=लघु+गुरु+लघु
सत्य=सत्+य=गुरु+लघु
तुम्हारा=तु+म्हा+रा=लघु+गुरु+गुरू
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=गुरु+गुरु+लघु+लघु
लघु का मात्रा भार एक एवं गुरु का मात्रा भार-2 होता है ।
वर्णिक एवं मात्रिक में अंतर-
जब लघु गुरु में भेद किए बिना ही वर्णों की गिनती की जाती है तो इसे वार्णिक कहते हैं । किंतु जब इसमें लघु एवं गुरु के मात्र का भार क्रम से एक और दो के आधार पर गिनती की जाती है तो इसे मात्रिक कहते हैं ।
उदाहरण
रमेश=र+म+श=लघु+गुरु+लघु=1+2+1=3 3 मात्रा किंतु इसमें तीन वर्ण है ।
सत्य=सत्+य=गुरु+लघु=2+1=3 मात्रा किंतु दो वर्ण
तुम्हारा=तु+म्हा+रा=लघु+गुरु+लघु=1+2+1=4 मात्रा किंग 3 वर्ण
कंप्यूटर=कंम्प्+यू+ट+र=गुरु+गुरु+लघु+लघु=2+2+1+1=6 मात्रा किंतु चार वर्ण ।
घनाक्षरी छंद के उदाहरण-
रखिये चरण चार, चार बार यति धर
तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ ।
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण वर्ण गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ ।
गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।
आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ सानुप्रास, ‘कृपाण’ नाम करण ।।
यदि प्रति यति अंत, रखे नगण-नगण
हो ‘विजया’ घनाक्षरी, सुजश मन भरण ।
आठ-आठ आठ-नव, अंत तीन लघु रख
नाम देवघनाक्षरी, गहिये वर्ण शरण ।।
वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमन
नियम-धियम आप, धैर्य धर जानिए ।।
आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रख
चार बार यति कर, चार पद तानिए ।।
गति यति लय भर, चरणांत गुरु धर
साधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।
सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम,
चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए ।।
-रमेश चौहान
आशा ही नहीं विश्वास है आप घनाक्षरी छंद को अच्छे से समझ पाए होंगे ।