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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

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मंगलवार, 26 मई 2020

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता है

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता है




भूमि की सतह और भूमि के अंदर जल स्रोतों में अंतर संबंध होते हैं ।जब भूख सतह पर जल अधिक होगा तो स्वाभाविक रूप से भूगर्भ जल का स्तर भी अधिक होगा ।
भू सतह पर वर्षा के जल नदी नालों में संचित होता है यदि नदी नालों की सुरक्षा ना की जाए तो आने वाला समय अत्यंत विकट हो सकता है ।
नदी नालों पर तीन स्तर से आक्रमण हो रहा है-
1. नदी नालों के किनारों पर भूमि अतिक्रमण से नदी नालों की चौड़ाई दिनों दिन कम हो रही है, गहराई भी प्रभावित हो रही है जिससे इसमें जल संचय की क्षमता घट रही है। स्थिति यहां तक निर्मित है कि कई छोटे नदी नाले विलुप्त के कगार पर हैं ।
2. नदी नालों पर गांव, शहर, कारखानों की गंदे पानी गिराए जा रहे हैं ।  जिससे इनके जल विषैले हो रहे हैं जिससे इनके जल जनउपयोगी नहीं होने के कारण लोग इन पर ध्यान नहीं देते और इनका अस्तित्व खतरे में लगातार बना हुआ है ।
3. लोगों में नैतिकता का अभाव भी इसका एक बड़ा कारण है । भारतीय संस्कृति में नदी नालों की पूजा की जाती है जल देवता मानकर उनकी आराधना की जाती है किंतु इनकी सुरक्षा उनके बचाव कि कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं लेते।

पूरे देश में नदी नालों की स्थिति का आकलन मैं सिर्फ अपने गांव और आसपास को देखकर लगा सकता हूं जिस नदी नाले  में हम बचपन  में तैरा करते थे वहां आज पानी का एक बूंद भी नहीं है ।
नदी तट पर जहां हम खेला करते थे वहां आज कुछ झोपड़ी तो कुछ महल खड़े हो गए हैं ।

कुछ इसी प्रकार की स्थिति गांव और शहर के तालाबों का हो गया है तालाब केवल कूड़ा दान प्रतीत हो रहा है ।
जल स्रोत बचाएं पानी बचाएं ।

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