ठेठरी का महत्व रेसिपी सहित
यहाँ की खान-पान की विविधता इतनी है कि चारों दिशाओं में खान-पान में भिन्नता है । यहाँ खाने-पीने के असंख्य व्यंजन, कलेवा प्रचलित है । इस विभिन्नता में से ही एक ऐसा व्यंजन के संबंध चर्चा करेंगे जो एक व्यंजन होने के साथ-साथ् एक औषधि के काम आता है इस व्यंजन को ठेठरी कहते है । यह एक मुलायम, कुरकुरे लाजवाब स्वाद वाला स्नैक्स है ।
ठेठरी मध्य भारत विशेषकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख व्यंजन है जिसे तिज-त्योहार पर कलेवा के रूप में बनाया जाता है । ठेठरी को कलेवा के रूप में छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार हरिततालिका-पोला जिसे स्थानीय भाषा में ’’तिजा-पोरा’’ कहत हैैं, में बनाया जाता है । इसलिये ठेठरी को छत्तीसगढ़िया कलेवा के नाम से जाना जाता है ।
‘तिजा-पोरा- छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा त्यौहार जिसमें विवाहित बेटियां त्यौहार मनाने अपने मायका आती है, इस अवसर पर प्रायः हर घर में ठेठरी बनाया जाता है । इसलिये ठेठरी छत्तीसगढ़ का प्रमुख कलेंवा है । यह एक कुकुरी लाजवाब स्वाद वाला स्नैक्स है ।
ठेठरी को बेसन से बनाया जाता है, इसमें अंजवाइन मिलाते हैं और ये दोनों स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद है । शुद्ध बेसन से बना कोई भी व्यंजन लाभकारी हो सकता है जो तेलीय न हो । चूँकि छत्तीसगढ़ में चने की खेती पर्याप्त मात्रा में होती है इसलिये ठेठरी में शुद्ध बेसन का प्रयोग होता है । अंजवाइन भी एक आयुर्वेदिक औषधि है । ठेठरी सूखा व्यंजन होता है इसलिये यह व्यंजन होने के साथ-साथ एक औषधि का भी कार्य करता है ।
यह एक पाचक के रूप में पाचन क्रिया को बेहतर करने, नियमित करने में उपयोगी है, विशेषकर ऐसे व्यक्तियों के लिये जो अंजवाइन चूर्ण को अकेले नहीं ले पाते वे इस ठेठरी का सेवन कर इसका लाभ उठा सकते हैं ।
ठेठरी की रेसेपी
आवश्यक सामाग्री-
- 1 किलो बेसन
- 50 ग्राम अंजवाइन
- स्वादानुसार नमक
- आवश्यकतानुसार तेल
अन्य स्वैच्छिक सामाग्री-
- 100 ग्राम तिल
- 125 ग्राम घी
- आवश्यकतानुसार खाने का सोड़ा
बनाने की विधि-
- सबसे पहले बेसन पर अंजवाइन मिला कर अच्छे से मिलाकर मिक्स कर ले फिर इसमें मोवन के रूप में तेल मिलाकर आवश्यकतानुसार पानी डाल कर उसी प्रकार गुंदे जिस प्रकार रोटी बनाने के लिये आटा गुथते हैं । यहां बेसन गुथते समय बार-बार हाथों में तेल लगा लेते हैं जिससे बेसन हाथ में न चिपके ।
- आप चाहे तो स्वाद के लिये इसमें तिल मिला सकते और मोवन के लिये तेल के स्थान पर घी का प्रयोग कर सकते हैं । यदि आप इसे अधिक कुरकुरे बनाना चाहते हैं तो इसमें आवश्यकतानुसार खाने का सोड़ा मिला सकते है । ऐसे यह चरण आवश्यक नहीं स्वैच्छिक है ।
- मुलायम के होते तक गुथने के पश्चात आधे घंटे के लिये छोड़ दें ।
- आधे घंटे पश्चात सख्त तख्त पर रख कर हथेलियों की सहायता से इस प्रकार बेलते हैं कि अंगुली जितनी मोटी रस्सीनुमा लगभग 6 इंच लंबी बट्टी बन जाये ।
- इस बट्टी को इच्छानुसार आकृति में ढाल लेते हैं । ऐसे पारंपरिक रूप में बट्टी को दोहरा करके दोनों सीरों को आपस में जोड़ देते हैं । सीरों को आपस इस मिलाये जिससे वह तलते समय खुले न । इसे ठेठरी बेलना कहा जाता है ।
- जब गुथे हुये पूरे बेसन से ठेठरी बेल लेते हैं तब इसकी सेकाई किया जाता है ।
- इसकी सेकाई के लिये कड़ाही पर आवश्यकतानुसार तेल गर्म करके कुछ उसी प्रकार तलते जैसे पुड़ी तला जाता है । इसे तब तक तलते हैं जब तक ठेठरी के दोनों ओर ब्राउन न हो जाये ।
- तलने के बाद इसे छिद्रयुक्त पात्र अथवा पेपर पर रख लेते हैं जिससे इसे तलते समय जो साथ में तेल आया है वह दूर हो जाये ।
- इस प्रकार ठेठरी बनकर तैयार है
- इसे दो माह तक खाया जा सकता है ।
खाने का तरीका
- खाना तो अपने रूचि अनुसार ही करते हैं फिर भी ठेठरी को पारंपरिक रूप से निम्न प्रकार से खाया जाता है-
- ठेठरी को बिना किसी सहायक सामाग्री के अकेले अच्छे से चबा-चबा खाया जाता है ।
- कुछ लोग इसे हरी मिर्च के साथ चबा कर खाते हैं ।
- कुछ लोग इसे भोजन करते समय पापड़ जैसे बीच-बीच में खाते हैं ।
- बूढ़े लोग ठेठरी को चूर्ण बना कर फाँका मारते हैं ।
- आप चाहें तो इसे आचार, चटनी के साथ भी खा सकते हैं ।
ठेठरी का विशेष उपयोग-
- ठेठरी को दो माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है इसकारण इसे लंबे यात्रा में भोजन के रूप प्रयोग किया जाता है ।
- चूँकि यह पाचक होता, पेट संबंधी रोग को दूर कर सकता है इसलिये औषधि के रूप में नियमित स्वाल्पाहार के रूप में या भोजन के साथ लिया जा सकता है ।
इस प्रकार ठेठरी एक स्वादिष्ट व्यंजन होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये फायदेमंद भी है ।
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