Home Page

new post

सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

तुलसी के स्वास्थ्यवर्धक गुण


तुलसी के स्वास्थ्यवर्धक गुण


तुलसी एक उपयोगी वनस्पति है । भारत सहित विश्व के कई  देशों में तुलसी को पूजनीय तथा शुभ माना जाता है ।  यदि तुलसी के साथ प्राकृतिक चिकित्सा की कुछ पद्यतियां जोड़ दी जायें तो प्राण घातक और असाध्य रोगों  को भी नियंत्रित किया जा सकता है । तुलसी शारीरिक व्याधियों को दूर करने के साथ-साथ मनुष्यों के आंतरिक शोधन में भी उपयोगी है । प्रदूषित वायु के शुद्धिकरण में तुलसी का विलक्षण योगदान है । तुलसी की पत्ती, फूल, फल , तना, जड़ आदि सभी भाग उपयोगी होते हैं ।

तुलसी पौधे का परिचय-

तुलसी का वनस्पतिक नाम ऑसीमम सैक्टम है । यह एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय झाड़ी है। इसकी ऊँचाई 1 से 3 फिट तक होती है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी रंग की होती जो हल्के रोएं से ढकी रहती है । पुष्प कोमल और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है।

तुलसी की प्रजातियां-

ऐसे तो तुलसी की कई प्रजातियां हैं किन्तु मुख्य रूप से 4 प्रजातियां पाई जाती है-

1. रामा तुलसी (OCIMUM SANCTUM)

-रामा तुलसी भारत के लगभग हर घर में पूजी जाने वाली  एक पवित्र पौधा है । इस पौधे के पत्तियां हरी होती हैं । इसे प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती है ।

2. श्यामा तुलसी (OCIMUM TENUIFLORUM)--

इस पौधे की पत्तियां बैंगनी रंग की होती है ।  जिसमें छोटे-छोटे रोएं पाये जाते हैं । अन्य प्रजातियों की तुलना में इसमें औषधीय गुण अधिक होते हैं ।

3- अमुता तुलसी (OCIMUM TENUIFLORUM)-

यह आम तौर पर कम उगने वाली, सुगंधित और पवित्र प्रजाति का पौधा है ।

4. वन तुलसी (OCIMUM GRATISSUM)-

यह भारत में पाये जाने वाली सुगंधित और पवित्र प्रजाति है । अपेक्षाकुत इनकी ऊँचाई अधिक होती है । तना भाग अधिक होता है, इसलिये इसे वन तुलसी कहते हैं 


धार्मिक महत्व-

1. भगवान विष्णु की पूजा  तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता ।  भगवान को नैवैद्य समर्पित करते समय तुलसी भेट किया जाता है ।
2. तुलसी के तनों को दानों के रूप में गूँथ कर माला बनाया जाता है, इस माले का उपयोग मंत्र  जाप में करते हैं ।
3. मरणासन्न व्यक्ति को तुलसी पत्ती जल में मिला कर पिलाया जाता है ।
4. दाह संस्कार में तुलसी के तनों का प्रयोग किया जाता है ।
5. भारतीय संस्कृति में तुलसी विहन घर को पवित्र नहीं माना जाता ।

 रासायनिक संगठन-

तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। तुलसी में उड़नशिल तेल पाया जाता है । जिसका औषधिय उपयोग होता है ।  कुछ समय रखे रहने पर यह स्फिटिक की तरह जम जाता है । इसे तुलसी कपूर भी कहते हैं ।  इसमें कीनोल तथा एल्केलाइड भी पाये जाते हैं ।  एस्कार्बिक एसिड़ और केरोटिन भी पाया जाता है ।


व्यवसायिक खेती-

तुलसी अत्यधिक औषधीय उपयोग का पौधा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग तो होता ही रहा है वर्तमान में इससे अनेकों खाँसी की दवाएँ साबुन, हेयर शैम्पू आदि बनाए जाने लगे हैं। जिससे तुलसी के उत्पाद की मांग काफी बढ़ गई है। अतः मांग की पूर्ति बिना खेती के संभव नहीं हैं।
इसकी खेती, कम उपजाऊ जमीन में भी की जा सकती है । इसके लिये बलूई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती हैं। इसके लिए उष्ण कटिबंध एवं कटिबंधीय दोनों तरह जलवायु उपयुक्त होती है।
इसकी खेती रोपाई विधि से करना चाहिये । बादल या हल्की वर्षा वाले दिन इसकी रोपाई के लिए बहुत उपयुक्त होते हैं। रोपाई के बाद खेत को सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए।
रोपाई के 10-12 सप्ताह के बाद यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसके फसल की औसत पैदावार 20 - 25 टन प्रति हेक्टेयर तथा तेल का पैदावार 80-100 किग्रा. हेक्टेयर तक होता है।

तुलसी के महत्वपूर्ण औषधीय उपयोग-

1. वजन कम करने में- तुलसी की पत्तियों को दही या छाछ के साथ सेवन करने से वजन कम होता होता है ।  शरीर की चर्बी कम होती है । शरीर सुड़ौल बनता है ।

2. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में - प्रतिदिन तुलसी के 4-5 ताजे पत्ते के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होता है ।

3. तनाव दूर करने में -तुलसी के नियमित उपयोग से इसमें एंटीआक्तिडेंट गुण पाये जाने के कारण यह कार्टिसोल हार्मोन को संतुलित करती है, जिससे तनाव दूर होता है ।

4. ज्वर में- तुलसी की पत्ती और काली मिर्च का काढ़ा पीने से ज्वर का शमन होता है ।

5. मुँहासे में- तुलसी एवं नीबू के रस बराबर मात्रा में लेकर मुँहासे में लगाने पर लाभ होता है ।

6. खाज-खुजली में- तुलसी की पत्ति एवं नीम की पत्ति बराबर मात्रा में लेप बनाकर लगाने पर लाभ होता है ।  साथ ही बराबर मात्रा में तुलसी पत्ति एवं नीम पत्ति चबाने पर षीघ्रता से लाभ होता है ।

7. पौरूष शक्ति बढ़ाने में- तुलसी के बीज अथवा जड़ के 3 मि.ग्रा. चूर्ण को पुराने गुड़ के साथ प्रतिदिन गाय के दूध के साथ लेने पर पौरूष शक्ति में वृद्धि होता है ।

8. स्वप्न दोष में-तुलसी बीज का चूर्ण पानी के साथ खाने पर स्वप्न दोष ठीक होता है ।

9. मूत्र रोग में- 250 मिली पानी, 250 मिली दूध में 20 मिली तुलसी पत्ति का रस मिलाकर पीने से मूत्र दाह में लाभ होता है ।

10. अनियमित पीरियड्स की समस्या में-तुलसी के बीज अथवा पत्ति के नियमित सेवन से महिलाओं को पीरियड्स में अनियमितता से छूटकारा मिलता है ।

11. रक्त प्रदर में-तुलसी बीज के चूर्ण को अषोक पत्ति के रस के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है ।

12. अपच में- तुलसी मंजरी और काला नमक मिलाकर खाने पर अजीर्ण रोग में लाभ होता है ।

13. केश रोग में-तुलसी पत्ति, भृंगराज पत्र एवं आवला को समान रूप  में लेकर लेपबना कर बालों में लगाने पर बालों का झड़ना बंद हो जाता है । बाल काले हो जाते हैं ।

14. दस्त होने पर- तुलसी के पत्तों को जीरे के साथ मिलाकर पीस कर दिन में 3-4 बार सेवन करने दस्त में लाभ होता है ।

15. चोट लग जाने पर- तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है ।

16. शुगर नियंत्रण में- तुलसी पत्ती के नियमित सेवन से शुगर नियंत्रित होता है । तुलसी में फ्लेवोनोइड्स, ट्राइटरपेन व सैपोनिन जैसे कई फाइटोकेमिकल्स होते हैं, जो हाइपोग्लाइसेमिक के तौर पर काम करते हैं। इससे शुगर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है ।

17. हृदय रोग में- तुलसी की पत्तियां खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाती हैं इसमें विटामिन-सी व एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो ह्रदय को फ्री रेडिकल्स से बचाकर रखते हैं।

18. किडनी रोग में- तुलसी यूरिक एसिड को कम करती है, और इसमें मूत्रवर्धक गुण पाये जातें हैं जिससे किडनी की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है ।

19. सिर दर्द में- सिर दर्द होने पर तुलसी पत्ति के चाय पीने से लाभ होता है ।

20. डैंड्रफ में- तुलसी तेल की कुछ बूँदे अपने हेयर आयल मिला कर लगाने से डैंड्रफ से मुक्ति मिलती है ।


तुलसी प्रयोग की सीमाएं-

आयुर्वेद कहता है कि हर चीज का सेवन सेहत व परिस्थितियों के अनुसार और सीमित मात्रा में ही करना चाहिए, तभी उसका फायदा होता है। इस लिहाज से तुलसी की भी कुछ सीमाएं हैं । गर्भवती महिला, स्तनपान कराने वाली महिला, निम्न रक्तचाप वाले व्यक्तियों को तुलसी के सेवन से परहेज करना चाहिये ।

इसप्रकार तुलसी का महत्व स्पष्ट हो जाता है । इसकी महत्ता न सिर्फ धार्मिक आधार पर है, बल्कि वैज्ञानिक मापदंडों पर भी इसके चिकित्सीय लाभों को प्रमाणित किया जा रहा है। इसलिये अपने घर-आँगन में में कम से कम एक तुलसी का पौधा जरूर लगा कर रखें और उसका नियमित सेवन करें ।

x

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट