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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

हमर लोकगीत-ददरिया

ददरिया हमर छत्तीसगढ़ प्राकृतिक छटा ले जतका भरे-पूरे हे ओतके अपन लोकगीत ले घला अटे परे हे हर उत्सव के गीत हे इहां जन्म के बेरा सोहर, बिहाव के बेरा भड़ौनी अउ बिदाई गीत ।  भोजली, सेवा, बांसगीत, करमा गीत ददरिया गीत अउ ना जाने का का !  ददरिया गीत आखिर कोन छत्तीसगढि़या नई सुने हे ।  ददरिया ला हमर छत्तीसगढ़ के गीत मन के रानी घला कहे जाथे ।  ददरिया सुने पढ़े मा घाते मजा आथे ।  ददरिया मूल रूप ले गोड़ी गीत आवय अउ अपन मीठास ले पूरा...

छंद सीखव जी-4

पाछू पाठ मा मात्रा गिने के तरीका छंद के प्रकार मा चर्चा करेन । अब अपन चर्चा ला कोनो छंद विशेष मा केंद्रित करथन । सबले प्रचलित छंद ‘दोहा‘ हे । दोहा के बारे मा चर्चा करे के पहिली कुछ दोहा ला ध्यान से देखथन - श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि ।बरनउ रघुबर विमल जस, जो दायक फल चारि ।।-संत तुलसी दासजीआवत गारी एक है, उलटत होत अनेक ।कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक के एक ।।- संत कबीर दासजीमुहमद बाजी पैम के, ज्यौं भावै त्यों खेल ।।तिल फूलहिं के संग...

छंद सीखव जी-3

जय जोहार, संगी हो, हमन पाछू के दू पाठ मा मातरा गिने के तरीका अउ ‘कल‘ पहिचाने के तरीका के बारे मा जाने हन । ये दरी के पाठ मा हम ‘गण‘ के बारे मा चरचा करबो । ‘गण‘ सब्द अपन आप मा एक समूह ला बतावत हे । काखर समूह ला जान जव मातरा के समूह ला । ‘‘जब मातरा के समूह कोनो विसेस क्रम मा आवय ता, वो हर ‘गण‘ बनाथे ।‘ आप जानथव मातरा दू परकार के होथे गुरू अउ लघु । तीन-तीन मातरा के जतका विसेस क्रम बन सकत हे, उही हा गण कहाथे ।जइसे -लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू,...

छंद सीखव जी-2

छंद के बारेे मा आघू बढे के पहिली पाछू के पाठ याद कर ली- आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान ।बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना ।व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।।व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर ।आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।। आज हमन ‘कल‘ के बारे मा जाने के कोसिस करबो । सबले पहिली देखी - ‘कल‘ काला कथे-कोनो सब्द मा मातरा के कुल भार ला ‘कल‘ कहिथे, ओखरे हिसाब से ऐखर नाम एकल,...

छंद सीखवजी -1

छंद सीखवजी -1 आपमन ला जान के खुशी होही के छंद हर हमर छत्तीसगढ़ मा जनमे हवय । हमर छत्तीसगढ़ मा आदिकवि महर्षि बालमिकी के आश्रम रहिस, एक दिन ओ हर सारस चिरई के जोडा ला प्रेम अलाप करत देखिस ओखर देखते देखत एक झन सिकारी हा ओमा के नर सारस ला मार दिस, तेखर दुख मा मादा सारस हा रोय लगिस ओला रोवत देख के बालमिकी के मुॅह ले अपने अपन निकल गे- मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥' जेला दुनिया के पहिली छंद ‘अनुष्टुप...

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