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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

छंद सीखव जी-3


जय जोहार, संगी हो,
हमन पाछू के दू पाठ मा मातरा गिने के तरीका अउ ‘कल‘ पहिचाने के तरीका के बारे मा जाने हन । ये दरी के पाठ मा हम ‘गण‘ के बारे मा चरचा करबो ।
‘गण‘ सब्द अपन आप मा एक समूह ला बतावत हे । काखर समूह ला जान जव मातरा के समूह ला । ‘‘जब मातरा के समूह कोनो विसेस क्रम मा आवय ता, वो हर ‘गण‘ बनाथे ।‘ आप जानथव मातरा दू परकार के होथे गुरू अउ लघु । तीन-तीन मातरा के जतका विसेस क्रम बन सकत हे, उही हा गण कहाथे ।
जइसे -
लघु-लघु-लघु, गुरू-गुरू-गुरू, लघु-गुरू-गुरू, गुरू-लघु-लघु आदि ।
अइसन कुल क्रमचय के संख्या आठ होथे, जेखर अलग-अलग नाम रखे गे हे । ये नाम मन ला अउ ओखर स्वरूप मातरा ला याद रखे बर विद्ववान मान एक सूत्र कहे हे -
‘‘सूत्र - य मा ता रा ज भा न स ल गा‘‘
ये सूत्र मा लाईन से तीन-तीन वर्ण ले से गण बनत जाथे -
1."य मा ता" रा ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘यगण‘ जेखर रूप ‘यमाता‘ अर्थात लघु-गुरू-गुरू अर्थात 1-2-2 हे ।
जइसे-बनाबो, बिसाबो, गवारी, समोसा, कुवारी आदि ।
2.य "मा ता रा" ज भा न स ल गा-
गण के नाव ‘मगण‘ जेखर रूप ‘मातारा‘ अर्थात गुरू-गुरू-गुरू अर्थात 2-2-2 हे ।
जइसे- कंछेटा, धर्मात्मा, खेते-मा आदि ।
3.य मा "ता रा ज" भा न स ल गा-
गण के नाव ‘तगण‘ जेखर रूप ‘ताराज‘ अर्थात गुरू-गुरू-लघु अर्थात 2-2-1 हे ।
जइसे-राकेष, सोम्मार, बादाम कोठार आदि
4..य मा ता "रा ज भा" न स ल गा-
गण के नाव ‘रगण‘ जेखर रूप ‘राजभा‘ अर्थात गुरू-लघु-गुरू अर्थात 2-1-2 हे ।
जइसे-रांध-तो, छोकरा, रेमटा,नाचबे, रोगहा आदि ।
5.य मा ता रा "ज भा न" स ल गा-
गण के नाव ‘जगण‘ जेखर रूप ‘जभान‘ अर्थात लघु-गुरू-लघु अर्थात 1-2-1 हे ।
जइसे-गणेष, मकान, पलंग, किसान आदि ।
6.य मा ता रा ज "भा न स" ल गा-
गण के नाव ‘भगण‘ जेखर रूप ‘भानस- अर्थात गुरू-लघु-लघु अर्थात 2-1-1 हे ।
जइसे-आवन, जावन, नाचत, घूमत आदि ।
7. य मा ता रा ज भा "न स ल" गा-
गण के नाव ‘नगण‘ जेखर रूप ‘नसल‘ अर्थात ‘लघु-लघु-लघु अर्थात 1-1-1 हे ।
जइसे-कसर, कुसुम, नगद,भनक आदि ।
8..य मा ता रा ज भा न "स ल गा"-
गण के नाव ‘सगण‘ जेखर रूप ‘सलगा‘ अर्थात लघु-लघु-गुरू अर्थात 1-1-2 हे ।
जइसे-कखरो, कतको, धनहा, किसाने आदि ।
गण के उपयोगिता -
गणित असन ये सुत्र ले देख के सोचत होहू आखिर ऐखर करबो का ता गण के का उपयोग हे ऐला जानी ।
छंद हा दू परकार के होथे-1. मात्रिक छंद 2. वार्णिक छंद
1.मात्रिक छंद- नाव देख के स्पश्ट हे जेन छंद मातरा मा निरभर होथे, ओला मात्रिक छंद कहे जाथे ।
जइसे-24 मातरा के दोहा, 32 मातरा के त्रिभंगी, 16 मातरा के चौपाई आदि ।
2.वार्णिक छंद-नाव ले स्पष्ट हे जेन छंद मा मातरा के गिनती नई करके वर्ण के गिनती करे जाथे ओला वार्णिक छंद कहे जाथे । ये वर्ण के रूप ला लघु गुरू के रूप मा देखे जाथे । ऊपर के आठो गण मन ला ले कई परकार के वर्णवृत्त बनथे ।
जइसे- रगण-रगण-रगण-रगण, सात घा भगण
अइसने वर्णवृत्त ले बने छंद ला वार्णिक छंद कहिथें ।
जइसे- नाना परकार के वर्णवृत्त ले बने नाना परकार के सवैया, चार यगण ले बने भुज्रंगप्रयात छंद आदि ।
ये परकार ले हम कहि सकत हन के गण के उपयोग वार्णिक छंद के निर्माण मा होथे । ये वर्णव़त्त के चरचा सवैया पाठ मा पूरा करबो ।
फेर आघू पाठ मा अउ चरचा करबो ।
जयजोहार ।

छंद सीखव जी-2


छंद के बारेे मा आघू बढे के पहिली पाछू के पाठ याद कर ली-
आखर के दू भेद हे, स्वर व्यंजन हे नाम ।
‘अ‘, ‘इ‘, ‘उ‘ कहाथे हास्व स्वर, बाकी ल गुरू जान ।
बाकी ल गुरू जान, भार लघु के हे दुगना ।
व्यंजन हास्व कहाय, लगे जेमा लघु स्वर ना ।।
व्यंजन गुरू कहाय, गुरू स्वर ले हो साचर ।
आघू के ला गुरू, बनाथे आधा आखर ।।
आज हमन ‘कल‘ के बारे मा जाने के कोसिस करबो । सबले पहिली देखी - ‘कल‘ काला कथे-कोनो सब्द मा मातरा के कुल भार ला ‘कल‘ कहिथे, ओखरे हिसाब से ऐखर नाम एकल, द्विकल, त्रिकल चौकल, पंचकल,षटकल होथे । ये बात ला हम ये परकार लेे समझ सकत हन -
1.. ‘र‘ मा 1 मातरा होय मा ये एकल कहाही । अइसने अ, उ, इ, क, ख, ग, घ, च, छ आदि मन घला एकल होही ।
2. ‘रा‘ मा 2 मातरा होेय के कारण ये द्विकल होही । अइसने ‘चल‘ सब्द मा ‘च‘ के 1 मातरा ‘ल‘ केे 1 मातरा कुल 2 मातरा होय मा ‘चल‘ हा द्विकल कहाही ।
अब आप देख सकत हव -खा, जा, गा, हट, फट, मर जइसन सब्द मन हा द्विकल होही ।
3. ‘राम‘ मा ‘रा‘ के 2 मातरा अउ ‘म‘ के 1 मातरा कुल 3 मातरा हे, तेखर सेती ये त्रिकल कहाही । अब ‘चलव‘ सब्द ला देखी ऐमा च+ल+व के 1+1+1 कुुल 3 मातरा हेे ऐखर सेती ये त्रिकल होही । अइसनेे ‘रेंग‘ के ‘रें‘ के 2 अउ ‘ग‘ के कुल 3 मातरा होही जेन त्रिकल बनाथे ।
अब आप देख सकत हव- धूम, घूम, गिरय, भरय, चुकय, अमर, खबर, झांक, भाग, रोय, हंन, गन्न आदि सब्द मन त्रिकल हवय ।
4. ‘रामा‘ के ‘रा‘ मा 2 मातरा अउ ‘मा‘ मा 2 मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा हे, ऐखर सेती ये चौकल होही । ‘छमछम‘ मा ‘छ+म+छ+म‘ मा चारो वर्ण के एक-एक मातरा हे कुल मिला के 4 मातरा होय मा ये चौकल होही । ‘काखर‘ सब्द मा ‘का‘ के 2 मातरा अउ ‘खर‘ के 2 मातरा कुल 4 मातरा होय ले चौकल होही ।
अब आप देख सकत हव- बड़बड़, आजा, बिरबल, देखा, रमजा, चम्चा, गन्ना, मुन्ना, जब्बर, आदि सब्द मन चौकल होही ।
उम्मीद हे अब आप पंचकल,षटकल पहिचान सकत हव -
पंचकल - जोहार, जैैराम, आपके, कतीबर, जात हस, बतातो आदि ।
षटटकल- राम-राम, गजब कहे, बरा-चिला, कति जाबो, आदि ।
छंद मा ‘कल‘ के उपयोेगिता -
‘कल‘ हा छंद ला एक लय मा बांधे रखते ओला भटकन नई दय । द्विकल, चौैकल अउ षटकल ला सम मात्रिक अउ एकल, त्रिकल, पंचकल ला विसम मात्रिक कहे जाथे । छंद हमेसा सम मात्रिक बने रहे मा लय अउ गति मा बंधे रहिथे । छंद ला हमेसा सम मात्रिक मा रखे बर अइसन उपाय करे जाथे -
1. सम मात्रिक कल के तुरते पाछू विसम कल नई रखना चाही । सम मात्रिक कल के पाछू सम मात्रिक कल ही आना चाही ।
2. विसम मात्रिक कल के तुरते पाछू सम मात्रिक कल नई रखना चाही । विसम मात्रिक कल के पाछू विसम मात्रिक कल ही आना चाही ।
ये बात ला तुलसी दासजी के ये दोहा ले समझे के कोसिस करथन -
मुखिया मुख सो चाहिये, खान पान को एक ।
पालय पोषय सकल अॅंग, तुलसी सहित विवेक ।।
1. ‘मुखिया‘ चौकल सम मात्रिक कल के पाछू ‘मुख‘ द्विकल सम मात्रिक कल रखे गे हे ।
2. ‘खान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल के पाछू ‘पान‘ त्रिकल विसम मात्रिक कल रखे गे हे ।
3. ‘तुुलसी सहित विवके‘ मा ‘सहित‘ त्रिकल पाछू ‘विवके‘ चौकल रखेे गे हे, ऐ मेेरा ध्यान देहू- विवेक‘ मा ‘विवे+क‘‘ हे, ‘विवे‘ के पहिली ‘सहित‘ आयेे हे दुनो मिल के षटकल बना लेथे ।
आप सब जानथव हमर संत मन कहें हें --
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान ।
रसरी आवत जात ही, शिल पर परत निसाान ।।
.......आघूू पाठ मा अउ गोठ बात करबो.....
जय जोेहार

छंद सीखवजी -1

छंद सीखवजी -1
आपमन ला जान के खुशी होही के छंद हर हमर छत्तीसगढ़ मा जनमे हवय । हमर छत्तीसगढ़ मा आदिकवि महर्षि बालमिकी के आश्रम रहिस, एक दिन ओ हर सारस चिरई के जोडा ला प्रेम अलाप करत देखिस ओखर देखते देखत एक झन सिकारी हा ओमा के नर सारस ला मार दिस, तेखर दुख मा मादा सारस हा रोय लगिस ओला रोवत देख के बालमिकी के मुॅह ले अपने अपन निकल गे-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥'
जेला दुनिया के पहिली छंद ‘अनुष्टुप छंद‘ कहे गिस । ये परकार छंद हमर छत्तीसगढ के देन आय ।
फेर दुख ये बात के हे के येही छत्तीसगढ़ मा छंद मा लिखईया मन के संख्या न के बराबर हे । संगी हो छंद मा लिखना कोनो बड़े बात नई हे, आप सब छंद मा अपन रचना लिख सकत हव जरूरत हे, केवल आपके इच्छा शक्ति के, आपके लगन के ।
छंद सीखे के पहिली हमला जाने ला परही आखिर छंद कथे काला । ‘कविता के अनुसासन ला छंद कहे जाथे ।‘ मातरा, आखर के रचना, विराम गति के नियम अउ एके जइसे पदांत जेन कविता मा पाय जाथे ओला छन्द कथें ।
छंद सीखे बर सबले पहिली मातरा गिने बर आना चाही । त संगी हो आवव ये पहिली पाठ मा मातरा गिने बर सिखी -
हिन्दी वर्णमाला के दू भाग होथे -स्वर अउ व्यंजन
स्वर- अ, आ, इ, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ औ, अं अउ अः
व्यंजन- क, ख, ग, घ, ङ
च, छ, ज, झ ´
ट, ठ, ड, ढ, ण
त, थ, द, ध, न
प, फ, ब, य, र
ल, व, ष, श, स ह
संयुक्त व्यंजन- क्ष, त्र, ज्ञ, ढ़,:-! 
येही स्वर अउ व्यंजन के उच्चारण मा जेन बेरा लगथे तेला मातरा कहे जाथे । जेमा एक चुटकी बजाय के बेरा लगथेे ओला लघु कहे जाथे अउ ऐखर दुगन समय लगे मा ऐला गुरू कहे जाथे ।
स्वर मा ‘अ‘, ‘इ‘, अउ ‘उ‘ लघु होथे बाकी स्वर मन गुरू कहाथे । लघु के एक मातरा अउ गुरू के दु मातरा गिने जाथे ।
व्यंजन मन कोनो ना कोनो स्वर के भार लगे रहिथे ओही भार के अनुसार व्यंजन के मातरा तय करे जाथे । जइसे सबो व्यंजन मा स्वाभाविक रूप ले ‘अ‘ के भार आरोपित रहिथे ते पाके सबो व्यंजन लघु होथे जेखर मातरा एक होथे । व्यंजन मा ‘इ‘ अउ ‘उ‘ के मातरा लगे मा घला ये मन लघु रहिथे । कहूं व्यंजन मा गुरू स्वर लगे रहय ता ओ हर गुरू माने जाथे । जइसे -‘का‘ ‘खी‘, ‘गू‘, ‘घे‘, ‘पै‘, ‘नो‘, ‘मौ‘, ‘गं‘ ।
अब हम कुछ आखर लेके ओखर मातरा गिने के अम्यास करी-
राम - रा+म ऐमा ‘रा‘ गुरू हे जेखर भार 2 अउ ‘म‘ ह लघु हे जेखर भार 1 ये परकार ‘राम‘ के 3 मातरा होइस ।
राम - राम+म =2+1=3
गणेष- ग+णे+ष = 1+2+1 = 4
हगरू- ह+ग+रू =1+1+2 = 4
कुंवरिया- कुं+व+रि+या = 2+1+1+2 = 6
अइसने अइसने कोनो आखर ले के पहिली अभ्यास कर लव ।
अब मातरा गिने के दूसर नियम ला देखी आधा आखर वाले सब्द के
जइसे -‘प्यार‘, ‘रक्सा‘ जइसन ।
आधा आखर आय मा दु बात आथे -
1. पूरा वर्ण के आघू मा आय मा जइसे -‘प्यार‘ अइसन होय मा ये आध वर्ण ‘प्‘ के कोनो गिनती नइ होवय ।
2. पूरा वर्ण के पाछू मा आय मा लइसे‘ ‘रक्सा‘ ध्यान रखिहव ऐमर ‘क्‘ हा ‘र‘ के पाछू मा हे ना कि ‘सा‘ के आघू मा । जब आधा वर्ण पाछू मा आथे ता अपन आघू वाले लघु व्यंजन या स्वर ला गुरू बना देथे । जइसे ऐमेरा -‘रक्सा‘ मा ‘क्‘ ह लघु ‘र‘ ला गुरू बना दे थे ये परकार ‘रक्सा‘ मा ‘रक्‘ के 2 मातरा अउ ‘सा‘ के 2 मातरा होइस।
3. आधा आखर के आय मा एक बात ध्यान रखे ला परथे के आधा आखर के उच्चारण के भार आघू वर्ण संग के पाछू वर्ण संग ।
जइसे-‘रक्सा‘ के उच्चारण ‘रक्$सा‘ होही ना कि ‘र$क्सा‘
फेर ‘कन्हैया‘ के उच्चारण ‘क$न्हैया‘ होथे ना कि ‘कन्$हैया
अइसन स्थिति मा आधा के भार ओखरे संग होथे जेखर संग ओखर उच्चारण होथे ।
अब कुछ अभ्यास करके देखी-
प्यार- प्या+र = 2+1 = 3
पप्पू- पप्‍ + पू = 2+2 = 4
अइसने-अइसने आप खुद अभ्यास करके देखव कुछ तकलीफ आही ता पूछ सकत हव ।
अतका अभ्यास करे के बाद आघू दिन अवइया पाठ मा अउ गोठ बात करबो ।
जय जोहार ।
-रमेश चौहान

सोमवार, 28 सितंबर 2015

जनकवि कोदूराम ‘दलित‘


        साहित्यकार के एक अच्छा परिचय उन्खर साहित्य ले ही होथे ।  रचनाकार के व्यक्तित्व, चरित्र, स्वभाव अउ दृष्टिकोण सबो उन्खर कृति ले दरपन मा बने परछाई कस दिखथे । स्व. कोदूराम ला जब जनकवि कहे गे हे ता ऐखरे ले स्पष्ट हे इंखर रचना मा आमजन के पीरा के आंसू छलकत हे, ऐही पीरा के सेती तब ले अब तक आम जन मन घला आप ला जानत हे । फेर अइसे लगते हे आप ला ओतका मान नई मिल माईस जेखर आप अधिकारी रहेंव ।
इॅंखर जनम तब के मध्यप्रदेश अउ आज के छत्तीसगढ़ मा, दुरूग जिला के ‘टिकरी‘ गांव (अर्जुन्दा) मा 5 मार्च 1910 के श्री रामभरोस के घर होइस । रामभरोसाजी एक साधारण किसान रहिस, ऐ पायके दलितजी के बचपना हा किसान अउ बनिहार मन के बीच मा बीतिस ।  अर्जुन्दा मा इंखर प्राथमिक षिक्षा-दीक्षा होइस । पाछू नार्मल स्कूल बिलासपुर अउ नार्मल स्कूल रायपुर ले षिक्षा ग्रहण करीन ।   सन् 1931 ले 1967 तक आर्य कन्या गुरूकुल दुरूग मा षिक्षक रहिन । खुदे लिखथें -
‘लइका पढ़ई के सुघर, करत हववं मैं काम,
कोदूराम दलित हवय, मोर गवंइहा नाम ।
मोर गवंइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया
जन हित खातिर गढ़े हववं मैं ये कुण्डलिया,
शउक मुहू ला घलो हवय कविता गढ़ई के
करथवं काम दुरूग मा मैं लइका पढ़ई के’ ।।

ग्राम अर्जुंदा के आशु कवि श्री पीला लाल चिनोरिया जी ले इन्हला काव्य-प्रेरणा मिलीस ।  वर्ष 1926 ले इन मन कविता लिखे बर शुरू करीन । 1926 ले जीवन पर्यन्त अपन जीवन ला साहित्य साधन मा अर्पित करिन । पायजामा, गाँधी टोपी अउ हाथ मा छाता उन्खर पहचान रहिस । हँसमुख अउ मिलनसार होय के सेती सबो उम्र अउ वर्ग के मनखेमन आप ले हिलमिल जात रहिन हे ।  इनमन अपन बात ला बेबाकी से रखत रहेंय । कविता के संबंध मा इंखर मानन हे के कविता करई हा प्राकृतिक गुण होथे । ‘दलित‘जी कहिथें -

“कवि पैदा होकर आता है,
होती कवियों की खान नहीं
कविता करना आसान नहीं ।“

रचना क्षमता प्रकृति प्रदत्त गुण होय के कारण दलित जी के रचना संसार अतका व्यापक है कि ओमा  केवल छत्तीसगढ़ी ना होके हिन्दी साहित्य के सबो विधा मा रचना मिलथे ।  कवि के आत्मा रखे के बाद घला ओमन बहुत अकन कहानी निबंध, एकांकी, प्रहसन, पहेलियाँ, बाल गीत अउ मंचस्थ करे के लइक क्रिया-गीत (एक्शन सांग) लिखे हें । दलित जी के अधिकांश कविता हा छंद शैली मा लिखे गे हे । इनमन अपन जीवन के अनुषासन कस अपन रचना मा घला अनुषासन रखिंन ते पायके छंद हा इंखर आधार विधा रहे हे । इनमन हास्य-व्यंग्य के कुशल चितेरा रहिन । व्यंग्य अउ विनोद ले लतफत उन्खर कविता चुनाव के टिक्कस हा देखते बनथे -

बड़का चुनाव अब लकठाइस,
टिक्कस के धूम गजब छाइस ।
टिक्कस बर सब मुँह फारत हें
टिक्कस बर हाथ पसारत हें
टिक्कस बिन कुछु सुहाय नहीं
भोजन कोती मन जाय नहीं
टिक्कस बिन निदरा आय नहीं
डौकी-लइका तक भाय नहीं
टिक्कस हर बिकट जुलुम ढाइस
बड़का चुनाव अब लकठाइस “

दलितजी गांधीवादी विचार ले प्रेरित रहिन स्वाधीनता के पहले के नेता अउ आज काल के नेता मा तुलना करत आप लिखथव-

“ तब के नेता जन हितकारी ।
अब के नेता पदवीधारी ।।
तब के नेता किये कमाल ।
अब के नित पहिने जयमाल ।।
तब के नेता काटे जेल ।
अब के नेता चैथी फेल ।।
तब के नेता गिट्टी फोड़े ।
अब के नेता कुर्सी तोड़े ।।
तब के नेता डण्डे खाये ।
अब के नेता अण्डे खाये ।।
तब के नेता लिये सुराज ।
अब के पूरा भोगैं राज ।।
तब के नेता को हम माने ।
अब के नेता को पहिचाने ।।
बापू का मारग अपनावें ।
गिरे जनों को ऊपर लावें ।।

दलित जी अपन काव्य-कौशल ला केवल लिख के हे नहीं वरन् मंच मा घला प्रस्तुत करके नाव बटोरे हे । वो अपन समय मा कवि-सम्मेलन मन मा बहुत ‘हिट’ कवि रहिस । तत्कालीन मंचीय कवि पतिराम साव, शिशुपाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त, दानेश्वर शर्मा आदि रहिन । दलित जी ला आकाशवाणी नागपुर, इंदौर अउ भोपाल केंद्र मा आमंत्रित करे जात रहिस । शराब बंदी मा लिखे कविता म.प्र.शासन द्वारा पुरस्कृत होय हे ।

दलित जी एक साहित्यकार होय के संगे संग एक योग्य अध्यापक, समाज सुधारक अउ संस्कृत निष्ठ व्यक्ति रहिन ।  वो हर भारत सेवक समाज अउ आर्य समाज के सक्रिय सदस्य रहिन ।  जिला सहकारी बैंक के संचालक अउ म्युनिस्पल कर्मचारी सभा के दू बार मंत्री अउ सरपंच घला रहिन । आप जुझारू मनखे रहेंव । 1947 मा आजादी के बाद शिक्षक संघ के प्रांतीय आंदोलन मा कूद पड़ेंव । आप ला अउ पतिराम साव जी सहित कई आंदोलनकारी मन ला गिरफ्तार करके 15 दिन बर नागपुर जेल मा बंद कर दे गे रहिस । जेल ले छूटे के बाद इन मन ला प्रधानाध्यापक पद ले ‘रिवर्ट’ कर दे गिस । देष बर जान गंवाय शहिद मन श्रद्धाजंली देत इनमन लिखे हें -

आइस सुग्घर परव सुरहुती अऊ देवारी
चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो
जउन सिपाही जी-परान होमिस स्वदेश बर
पहिली ऊँकर आज आरती हम उतारबो ।।

दलित जी की रचनामन के प्रकाशन देश के कई ठन पत्र-पत्रिका मन मा होत रहिस । नागपुर से-नागपुर टाइम्स, नया खून, लोक मित्र,नव प्रभात ,जबलपुर से दृप्रहरी, ग्वालियर से ग्राम-सुधार, नव राष्ट्र, बिलासपुर से पराक्रम, चिंगारी के फूल, छत्तीसगढ़ सहकारी संदेश , दुर्ग से- साहू संदेश, जिंदगी, ज्वालामुखी , चेतावनी, छत्तीसगढ़ सहयोगी, राजनांदगाँव से जनतंत्र आदि पत्रिकामन मा आपके कविता छपत रहिस ।

दलित जी के जीवन हा बहुत संघर्षमय अउ अभावग्रस्त मा बितीस । एही कारण रहिस के  हजारों रचना लिखे के बाद खुद खुदे के किताब नई छपा पाईन । सन् 1965 में पतिराम साव ,मंत्री हिंदी साहित्य समिति , दुर्ग के सहयोग ले एक मात्र काव्य-संकलन “सियानी-गोठ” के प्रकाशन उन्खर जीवन काल मा होय पाईस । बाद मा ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय‘ अउ ‘छनक-छनक पैरी बाजे‘ के परकासन कराय गे हे ।  “सियानीगोठ” काव्य संकलन कुण्डली शैली मा लिखे गे हे जेमा 27 कुण्डलियां के समावेश हे । उल्लेखनीय है कि कुण्डलियां के कवि मन पाचवइया लाइन मा अपन नाम जरूर डालथे फेर दलित जी हा अपन नाम नई डारिस । ते पाय के ऐखर लाभ उठात समय-समय मा कोनो-कोनो दलित जी के रचना मा अपन अधिकार जतात दिखीन ।  ये संकलन विविध विषय मा आधारित हे, ऐमा आध्यात्मपरक रचना “पथरा” देखे के लइक हे -

“ भाई एक खदान के, सब्बो पथरा आयँ
कोन्हों खूँदे जायँ नित, कोन्हों पूजे जायँ ”

ये संकलन मा हास्य रस, मानवीय सम्वेदना, राष्ट्र-प्रेम, विज्ञान सबो विशय मा छाप दिखथे विज्ञान विषय मा ये रचना देखव-
तार मनन मा ताम के, बिजली रेंगत जाय
बुगुर बुगुर सुग्घर बरय,सब लट्टू मा आय
सब लट्टू मा आय ,चलावय इनजन मन ला
रंग-रंग के दे अँजोर ये हर सब झन ला
लेवय प्रान लगय झटका,जब एकर तन मा
बिजली रेंगत जाय, ताम के तार मनन मा ।।
उन्खर रचना पद्य मा हमर देस, कनवा समधी, दू मितान, प्रकृति वर्णन, बाल कविता अउ कृष्णजन्म । गद्य मा अलहन, कथा-कहानी । प्रषंसनीय हवय । आपके द्वारा लिखे दोहा आज घला पहटिया मन द्वारा राउत नाचा मा दोहा पारे जाथे -

गौरी के गणपति भये, अंजनी के हनुमान रे
कालिका के भैरव भये, कौशिल्या के राम. रे

गांधी जी के छेरी भइया दिन भर में नारियाय रे
ओखर दूध ला पी के भइया, बुधुवा जवान हो जाय रे

जैसे के मालिक! देहौ-लेहौ, तैसे के देबो असीस
चांउर-दार करौ सस्ती, फिर- जीयौ लाख बरीस.

छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढि़या के दषा अउ दिषा मा डांड खिंचत दलितजी कहें हे -

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अड़बड़ चाँउर दार,
हवयँ लोग मन इहाँ के, सिधवा अऊ उदार
सिधवा अऊ उदार हवयँ दिनरात कमावयँ
दे दूसर ला मान, अपन मन बासी खावयँ
ठगथयँ ये बपुरा मन ला बंचक मन अड़बड़
पिछड़े हवय अतेक, इही कारण छत्तीसगढ़ ।

दलितजी अपन रचना मा प्रतीक के माध्यम ले जीवन सत्व ला उजागर करे हें उन्खर व्यंग अइसन तीक्ष्ण हे के उन्हला अपन जमाना के आन कवि मन ले अलग कर देथे -

मूषक वाहन बड़हर मन, हम ला
चपके हें मुसुवा साहीं
चूसीं रसा हमार अउर अब
हाड़ा -गोड़ा ला खाहीं द्य
हे गजानन ! दू गज भुइयाँ
नइ हे हमर करा
भुइयाँ देबो-देबो कहिथे हमला
कतको झन मिठलबरा

अइसने दबे कुचले संघर्ष करत मनखे मन के पीरा ला अपन अवाज देवत-देवत, खुदे संघर्ष करत दलितजी 28 सितम्बर 1967 के ये दुनिया छोड़ के सदा-सदा बर चल दिहिन । अपन पाछू मा काव्य-रचना संसार के संगे-संग अपना भरा-पूरा परिवार छोड़ के गें हे । उन्खर सपूत श्री अरूण कुमार निगम, अपन ददा के पद चिन्ह मा चलत आज छंद विधा मा छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी छंद के आधार स्तंभ हें । दलितजी के दामांद श्री लक्ष्माण मस्तुरिया आज छत्तीसगढ़ के पहिचान हवय ।
स्वर्गीय कोदूराम दलित के रचना हा आज घलो ओतके महत्व के हे जतका अपन जमाना मा रहिस उन्खर रचना ला फेर आम जन तक पहुॅचाय के परयास करे करे के जरूरत हवे । ऐही उदीम मा आजकाल इंटरनेट के जमाना मा भाई संजीव तिवारी दुर्ग हा ‘गुरतुर-गोठ‘ वेब पत्रिका अउ ब्लाब-‘आरंभ‘ मा कोदूराम ‘दलित‘ जइसे अउ हमर धरोहर कवि मन ला सहेजे बर सार्थक परयास करत हवें । इंखर परयास मा हमू मन गिलहरी कस सहयोग देके उदिम करी ।

आलेख स्रोत- कविता-कोश वेब साइट अउ आरंभ

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

//कमरछठ या खमरछठ या हलषष्ठी//



हर साल भादो महिना के अंधियारी पाख के छठ तिथि के शेषावतार भगवान बलराम के जन्म उत्सव के रूप मा मनाय जाथे । ये दिन मथुरा सहित देश के सबो बलराम/बलदाउ/हलधर के मंदिर मा पूजा पाठ करके ओखर जनम दिन मनाये जाथे ।

छत्तीसगढ मा घला ये पर्व के रूप मा मनाय जाथे । ये दिन संतान के सुख समृद्धि अउ दीर्घायु बर माता  मन उपास रहिथे ये दिन नागर चले जगह मा रेंगना वर्जित होथे । नागर के द्वारा उपजे अन्न अउ गाय के दूध के सेवन के आज मनाही होथे ।  आज के दिन बिना नागर चले उपजे पसहर चाउर अउ भाजी, भइसी दूध के सेवन करे जाथे ।

आज के दिन सगरी बना के ओखर पूजा करे जाथे, ये सगरी लाा हलषष्ठी दाई के रूप माने जाथे, जेन वास्तव मा पार्वती के एक रूप आवय । हलषश्ठी ला संतान के देवी माने जाथे । सगरी ला शंकरजी के परिवार सहित प्रतिक मान के पूजा करके ये कामना करे जाथें के आपके परिवार कस हमरो परिवार खुश रहय । जइसे आपके लइका बच्चा योग्य हे ओइसने हमरो लइका मन योग्य बनय ।

ये व्रत के संबंध में अइसे मान्यता हे कि जब कंस हा देवकी के छै लइका ला मार डरिस ता देवकी ला बहुत चिंता होगे के आखिर मोर एको लइका बाचही के नही कहिके, ओही बखत नारद हा देवकी ला सला देइस के तै मां पार्वती (हलषष्ठी) के व्रत कर ओखर कृपा ले तोर संतान मन ला आयु एवं समृद्धि जरूर मिलही । देवकी हा कंस के कारागार मा परे परे ये व्रत ला करिस । ये व्रत के ये प्रभाव होइस के ओखर गर्भ मा जेन लइका संचरत रहय, ओखर गर्भ परिवर्तन होगे, अर्थात व्रत के परभाव ले देवकी के गर्भ रोहणी के गर्भ मा प्रतिस्थापित होगे ।  रोहणी के गर्भ ले जेन शिशु के जन्म होइस ओही हा बलराम आय, ऐती देवकी के गर्भपात होगे कहिके कंस ला बता दे गीस । ये परकार ले जेखर लगातार छै लइका मारे गे रहिस ओचार सातवइया लइका बांच गे । जेन दिन बलराम के जनम होइस ओ दिन भादो बदि छठ रहिस, ते पाइके हर साल ऐही दिन खमरछठ मनायेे जाथे ।

-रमेश चौहान

मंगलवार, 26 मई 2015

‘कला परम्परा‘ के सरजक -माननीय डी.पी. देशमुख


             हमर छत्तीसगढ़ के माटी मा तइहा ले आज तक नाना परकार के परम्परा अउ संस्कृति रचे बसे हवय जेमा के बहुत अकन परम्परा काल के गाल मा समावत हे, ये परम्परा मन नंदावत जात हे, फेर ऐला बहुत हद तक हमर कलाकार अउ कलमकार मन साधे रखें हे ।  हमर छत्तीसगढ मा कला अउ साहित्य के नाना विधा के साधक मन भरे परे हे, चाहे वो संगीत के लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत या सुगम संगीत होय, नाच मा लोक नाचा, शास्त्रीय नृत्य, होय आनी-बानी साज के वादक होय, मझे सुर साधक होय।  साहित्य के लोक साहित्य ला आगे बढ़इहा, छत्तीसगढ़ी भासा ला समरथ बनइया, हिन्दी, उर्दू के गजलकार, गीतकार होय ।   हर क्षेत्र मा हमर राज्य के कलाकार कलमकार संघर्ष करत अपन दायित्व के निर्वहन करत आत हे, ये कलाकार कलमकार म के जादा ले जादा मन हा गुमनामी ले डुबे हे, ओला कोनो नई जानय, ओ मन अपन परिचय के मोहताज हे । ओखर काम हा ओखरे तक सीमट के रहिगे हे ।  ये दुनिया मा जिहां एक कोति हर आदमी अपन सुवारथ ले सब काम करथें, दू पइसा जिहां ले मिलही उहीं मेरा काम करथे, अइसन समय मा ये संघर्ष करत सरसती के लइका मन बर संगी बन के आदरणीय डी.पी. देशमुख जी आघू आइन, रिफ्रेक्टरीज प्लांट के जन सम्पर्क अधिकारी डी.पी.देशमुख अपन कर्मठता अउ जिवंतता के परिचय देत एक दुर्लभ अउ दुस्कर काम ला अपन हाथम लेइन । वो मन बिना कोई सुवारथ के बिना कोई लाग लपेट के हर परकार के कलाकार कलमकार मन ला समेटत ऊंखर पहिचान बर ‘कला परम्परा‘ पत्रिका के श्रृंखला चलावत हे । आदरणीयदेशमुख जी अपन माटी के करजा चुकावत सरलग ‘कला-परम्परा‘ परकासित करत हे जेमा छत्तीसगढ के परम्परा-संसकृति अउ ऐखर संरक्षक लोककलाकार कलमकार मन ला पहिचान दे के अथक परयास करके सफल होत दिखत हे ।
श्री देशमुखजी हा ‘कला परम्परा‘ के शुरूवात ले छत्तीसगढ के कला अउ परम्परा, हमर संस्कृति, हमर पहिचान ला देश दुनिया मा बगराय के बिड़ा उठायें हें । ऐखर दूसर अंक ला लोककला, साहित्य अउ संस्कृति ला समरपित करत 175 रचनाकार मन के साहित्यक योगदान ला डाडी खिंच के बतायें हे । ‘कला परम्परा‘ के तीसर अंक ला लोककलाकार मन ला समरपित करत लगभग 800 लोककलाकार मन के छायात्रित जीवन परिचय लोककला के क्षेत्र मा ऊंखर योगदान ला दुनिया मा बगराये हें । ‘कला परम्परा‘ के चउथा अंक ला छत्तीसगढ के पर्यटन तीरथ धाम ला समरपित करत अपन जिवटता के परिचय दिईन । ये अंक मा एक गाइड के रूप मा काम करत हमर राज्य के घूमे के लइक ठउर के रोचक फोटु सहित जानकारी उपलब्ध कराये हें । ये अंक मा प्राकृतिक सौंदर्य के ठउर, सबो धरम के धार्मिक ठउर, उहां जाइके के रद्दा रूके के ठउर के संबंध मा सुंदर जानकारी परोसे गे हे जेखर ले सैलानी मन ला कोनो तकलीफ झन होवय, हमर राज्य के गौरव ला देष परदेश मा बगराय जा सकय । ‘जेन काम ला छत्तीसगढ के पर्यटन विभाग ला करना रहिस ओ काम ला श्री देशमुख हा अपन सीमित संसाधन ले कर देखाइन‘- अइसन उद्गार ये अंक के विमोचन बखत हमर राज्य के माननीय मुख्यमंत्री रमन सिंह हा कहे रहिस ।
‘कला परम्परा‘ के पांचवा अंक साहित्य बिरादरी ला समर्पित हे जेमा, 1001 साहित्कारमन के नाम, पता संपर्क, साहित्यीक उपलब्धि जम्मो परकार जानकारी ऐमा दे गे हे । एखर संगे-संग 175 मूर्धन्य साहित्यकारमन के जीवनवृत्त ला ऐमा समेटे गे हे । ये अंक साहित्य बिरादरी मन के परिचय ग्रन्थ आय । ये परिचय ग्रन्थ ले साहित्यकार मन जिहां एक दूसर के परिचय प्राप्त करत हे ऊंहे दूसर कोती साहित्य प्रेमी मन अपन रूचि के साहित्यकार ला जान सकत हे ।  साहित्य बिरादरी के अंक मा सबो झन के संपर्क नम्बर हे जेखर ले एक-दूसर साहित्यीक बंधु मन साहित्यीक अभिरूची के चरचा कर सकत हे, या एक-दूसर ले व्यक्ति गत सुख-दुख बांट सकते हे । ये एक ठन किताब हा गुमनामी मा खोय साहित्यकार मन के नाम ला दुनिया मा बगराय के काम करत हे । ये बुता हा कोनो छोटे बुता नो हय, बहुते बड़े काम आय ।   अतका झन साहित्कार ला एक किताब मा समेटना ।
‘कला परम्परा‘ के अवइया छठवा अंक ला छत्तीसगढ के तीज तिहार ला समरपित करे गे हे, जेमा हमर बिसरत परम्परा ला सकेले के काम होही ।
ये परकार हम देखी ता ‘कला परम्परा‘ के संपादक श्री डी.पी. देशमुख अउ ऊंखर पूरा टीम बधाई के पात्र हे, सुवागत के पात्र हे, वंदन के पात्र हे । ‘कला परम्परा‘ के पहिली ले लेके पाचवां अंक तक सबो हा पूरा छत्तीसगढ़, पूरा देश अउ दुनिया बर उपयोगी हे ।  ये उपयोगी हे आम जनता बर जेन अपन संस्कृति ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी हे ऊंखर बर जेन छत्तीसगढ़ ला जानना चाहते हे, ये उपयोगी उन लइका मन बर जउन मन नाना परकार प्रतियोगी परीक्षा देवावत हें, ये उपयोगी हे उन कलाकार बर जेन मन गुमनामी मा जिये बर मजबूर हें, ये उपयोगी उन साहित्कार मन बर जेला कोनो नइ जानत हे । ‘कला परम्परा‘ हर परकार ले हर परकार के आदमी मन बर उपयोगी हे ।
आदरणीय डी.पी. देशमुख अउ ओखर सहयोगी ‘कला परम्परा‘ के संरक्षक श्री कैलाष धर दीवान, प्रधान संपादक श्री मनोज अग्रवाल, सहित श्री सहदेव देश्‍ामुख, श्री अशोक सेमसन, श्रीमती पूनम अग्रवाल, डॉ. आरती दीवान, श्रीमती नीता देशमुख, डॉ. राजेन्द्र हरमुख, चेमन हरमुख आदि मन के ये मेहनत हा आदर के योग्य हे । हम जम्मो झन आपमन के ये परयास के दिल ले प्रसंसा करत हन अउ ईश्वर ले प्रार्थना करत हन के आप के पांव मा कांटा झन गड़य, आपके रद्दा के हर बाधा दूर होवय अउ आप मन अपन लक्ष्य ला पाके क्षितिज मा चमकव ।
-रमेश कुमार चैहान,
       मिश्रापारा, नवागढ़,
     
 जिला-बेमेतरा, मो. 09977069545

शनिवार, 23 मई 2015

हमर छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामील करायके परयास

         छत्तीसगढ़ी भासा ला आठवीं अनुसूचची मा सामिल कराय के परयास के संबंध मा चरचा करे के पहिली हमला ये  जानेे ल परही के ये आठवी अनुसूची आय का अउ ऐखर ले का फायदा नुकसान हवय ।  आठवी अनुसूची  हमर भारतीय संविधान के अइसे अनुसूची आय जेमा भारत मा प्र्रचलित भासा ला संवैधानिक दर्जा दे जाथे ।  भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ 35 (भासा) मा कहे गे हे भारतीय संघ के जम्मो कार्यपालिका अउ न्यायपालिका के भासा अंग्रेजी, हिन्दी अउ आठवी अनुसूची मा मान्यतता प्राप्त  क्षेत्रीय भासा होही । भारतीय अनुच्छेद 344(1) अउ अनुच्छेद 351 के अनुसार आठवी अनुसूची मा सामिल भासा के विकास अउ ओखर परचार के जिम्मा केन्द्र सरकार के होही । ये संबंध मा केन्द्र सरकार द्वारा जारी दिसा निर्देस राज्य सरकार बर बंधनकारी होही । अभी तक ये अनुसूची मा 22 भासा ला सामिल करे गे हे ।
छत्तीसगढ़ी के आठवीं अनुसूची मा सामिल होय ले फायदे फायदा हे, सबले जादा फायदा हमर छत्तीसगढि़या नवजवान साथी मन ला हो ही संघ लोक सेवा आयोग अउ राज्य लोक सेवा आयोग के परीक्षा मा ऐ एक भासा के रूप मा मान्य होही । आठवी अनुसूूची मा सामिल होेय के बाद  हमर छत्तीसगढ़ी राजभासा आयाोग ला मानव संसाधन विभाग द्वारा योजना राषि दे जाहीं, संगे संग भासा विकास प्राधिकरण द्वारा आर्थिक सहयोग दे जाही । भारत सरकार के गजट के परकासन छत्तीसगढ़ी मा घला होही । राष्ट्रपति के अभिभासन ला छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करके आकाषवाणी अउ दूरदरसन ले परसारित कराय जाही । ये जम्मो फायदा कोनो भी छत्तीसगढ़ी भासी संगी ला होही चाहे वो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी होय, चाहे आने राज्य या देस के ।
अब सवाल उठते आखीर कोनो भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय बर का करे ला परते ।  कोन हा कोन भासा ला ये सूची मा जोड़ सकते हे । भारतीय संविधान के आठवी अनुसूची में भासा ला जोड़े के अधिकार केंद्र सरकार ला हे कोन भासा ला जोड़े जाय ये संबंध मा कोनो इसपस्ट उल्लेख नइ हे।
आठवी अनुसूची मा पहिली 14 भासा -असमिया, बंग्ला, गुजराती, हिन्दी कन्नड, कशमीरी, मराठी मलयालम, उडिया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगू अउ उर्दू रहिस । 1967 मा 21वां संविधान संशोधन करके कोंकणी अउ मणीपुरी ला, 1992 मा 71वां संविधन संषोधन करके नेपाली ला अउ 2003 मा 91वं संशोधन करके बोडो, डोगरी, संथाली अउ मैथली ला सामिल करे गे हे । ऐखर ले इस्पस्ट हे छत्तीसगढी ला ऐमा सामिल करे बर फेर संविधान संशोधन करे ला परही ।
             अनुच्छेद 345 अउ 346 हा राज्य ला भासा के संबंध मा छूट दे रखे हे । जेखर अधिन छत्तीसगढ के राज भासा हिन्दी के गे संग छत्तीसगढी ला बनाय गे हे । अनुच्छेद 347 के अनुसार कोनो राज्य मा कहू कोनो भासा के बोलइया मन के संख्या जादा होय ता उंहा के राज्य सरकार हा, ये सबंध मा राष्ट्रपति ला अभिज्ञात दे सकत हे, जेखर आधार मा राष्ट्रपति अभिज्ञा देते अउ वो भासा ला आठवी सूची मा सामिल करे के रद्दा खुल जाथे ।
छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची मा सामिल करे के मांग ऐखर राज भासा बने के संगे संग षुरू होगे हे ।  छत्तीसगढी राजभासा आयोग ये दिशा मा अपन पहिली सम्मेलन ‘राजभासा कुंभ‘ 2013 ले कर दे हवय । ये सम्मेलन के समापन समारोह मा खुदे ये संबंध हमर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह हा ये भासा ला आठवीं अनुसूची मा सामिल कराय के आस्वासन दे हवय । ‘छत्तीसगढी ला  जन भासा बनाय के जरूरत नइ हे ये खुदे एक जनभासा बने हवय । हमर राज्य के पढ़े-लिखे संगी मन आज तक ये भासा ला उपेक्षा ले देखत रहिन ।  जेन मनखे के परिवार नानपन ले घर मा छत्तीसगढ़ी बोलत रहिन ओ मन दू आखर पढ-लिख के ये भासा ला बोले ला बंद कर दिहीन । छत्तसगढ़ी मा बोलइया मन ला देहाती अउ गवार कहे लगीन । अइसन धारणा ला मिटाय बर ‘छत्तीसगढ़ी बर सकलाव‘ के नारा देत राजभासा आयोग हा अपन दूसर सम्मेलन 2014 मा छत्तीसगढ़ी ला पढ़े-लिखे मन के भासा बनाय के पुर जोर कोसिस करीन ।  राजभासा अपन तीसर प्रांतीय अधिवेष्न 2015 ला तो ‘आठवी अनुसूची मा छत्तीसगढ़ी‘ ला समर्पित करे रहिस ।
अइसनो बात नइ हे के एकेल्ला राजभासा ऐ दिसा मा कोसिस करत हे । बहुत अकन साहित्यिक संस्था मन घला ये दिसा मा परयासरत हे । छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति रायपुर 2009 मा कवरधा मा अपन प्रांतीय अधिवेसन कराइन जेमा छत्तीसगढ़ के पहिली अध्यक्ष पंडित ष्यामलाल चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार डाँ विनय पाठक मन सिरकत करीन । ये सम्मेलन के मुख्य विषय रहिस ”छत्तीसगढ़ी भाखा अउ आठवीं अनुसूची”।
ये विसय मा घात दिन ले गोष्ठी, सम्मेलन, चरचा-परिचरचा चलत हवय फेर येमा अभी तक सफलता नइ मिले हे । ऐखर कारण मा जाहू ता ऐकेठन कारन दिखही, इच्छा शक्ति के कमी । नेता के अउ आम जनता के ।  आठवी सूची के विसय सब्बो ढंग ले एक राजनीतिक इच्छा शक्ति मा निरभर हे ।  राजनीतिक इच्छाशक्ति के उदय जन दबाव मा निरभर करथे ।
छत्तीसगढी ला ‘जनभासा‘ ले राजभासा अउ ‘राजभासा‘ ले आठवी अनुसूची के भासा बनाय पर ‘छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ के गठन करे गे हे ।  जेखर संयोजक श्री नंदकिशोर शुक्ल हे, जेमा जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा, सुधीर शर्मा, जयप्रकाश शर्मा, चेतन भारती, सुशील भोले, वैभव पाण्डेय, संजीव साहू अउ राकेश चैहान मन सदस्य हें ।  छत्तीसगढ़ी राजभासा मंच‘ हा छत्तीसगढी ला आठवी अनुसूची मा सामिल कराये बर जनजागरण करे बर एक ठन अलग समिति के गठन करे हे, जेन हा घर-घर जाके दस्तक देही । ये समिति हा हमर राज्य के संसद, विधायक अउ जनप्रतिनिधि मन के दस्खत ले के एक ज्ञापन बनाही जेला महामहिम राश्ट्रपति, माननीय प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष अउ संसदीय कार्यमंत्री ला दे जाही । ऐमा हमर राज के पंच विभूति पद्मश्री डाॅ सुरेन्द्र दुबे, डांॅ महादेव प्रसाद पाण्डे, डाॅ जे.एम. नेल्सन, श्री अनुज शर्मा अउ भारती बंधुमन घला सामिल होही ।
अब तक के परयास ला देखे मा हम पाथन के ये दिसा मा साहित्यकार मन पूरा जोर जगा दें हे, जगह-जगह ये विसय मा चरचा-गोष्ठी करावत हवे अउ आम जनता ला जगावत हवे ।  ऐखर सकारात्म परिणाम घला देखे मा आवत हे । छत्तीसगढ़ी ला हे के दृश्टि ले देखइया मन के संख्या मा दिनो दिन कमी आवत हे ।
मोर सोच हे हमार राज्य के गांव-देहात मा बसे जनता मन छत्तीसगढी ला अपन दिनचरया के भासा पहिली ले बना रखे हे ।  समस्या तो सहर अउ सहरीकरण के परभाव मा आये लोगन के हे जेन मन पति-पत्नि छत्तीसगढी मा गोढियाते अउ अपने लइका मेर हिन्दी झाड़थे ।  बहुत झन अइसे वक्ता, नेता हे जेन हा छत्तीसगढ़ी बर मंच मा छत्तीसगढ़ी मा तगड़ा भाशण देथें अउ मंच के घालहे मा हिन्दी अंग्रेजी मा सोर मचाथे । ऐखरो एक ठन कारण हे छत्तीसगढी पहिली ले जनभासा रहिस हे, पढे-लिखे मन अपन ला उंखर ले अलग दिखे बर उन्ला गंवार अउ छत्तीसगढी ला गंवार मन के भासा देखाय के प्रपंच कर डारिन फेर छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढी के राज भासा बने  ले सोच मा फरक परे हे अउ ये सोच जेन दिन मर जाही अउ ये भासा बर अपन पन के भाव जेन दिन जाग जाग जाही, उही दिन हमर भासा आठवीं अनुसूची मा सामिल हो जाही ।

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