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सत्‍य ही शाश्‍वत सत्‍य है

   मानव जीवन में सच्चाई क्या है? मानव जीवन में सच्चाई क्या है?  हमारा शरीर या हमारी आत्मा।  हम जो दृश्य अपनी आँखों से देखते हैं, जो आवा...

गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बदलते हुये जीवन के लिये लक्ष्‍य का निर्धारण कैसे करें और उसे कैसे प्राप्‍त करें

बदलते हुये जीवन के लिये  लक्ष्‍य का निर्धारण कैसे करें और उसे कैसे प्राप्‍त करेंHow to set Goal  and achieve them for changing liefदोस्‍तों, जीवन में तो हर कोई Success होना चाहता है किन्‍तु  सभी Success नही हो पाते । जीवन में सफलता प्राप्‍त करना एक art होने के साथ-साथ एक well planed process भी है । यदि हमको जीवन में Success होना है तो...

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

वैदिक ज्‍योतिष-एक मूल्‍यांकन

वैदिक संस्‍कृति- चित्र गुगल से साभारभारतीय संस्‍कृति को वैदिक संस्‍कृति भी कहते हैं क्‍योंकि प्राय: हर बातों का संबंध किसी न किसी रूप में वेदों से जुड़ा होता है । यही कारण है कि कुछ विद्वान यह मानते हैं कि विश्‍व में जो भी ज्ञान है या भविष्‍य में जो भी ज्ञान होने वाला वह सभी ज्ञान वेदों पर ही अवलंबित है अवलंबित रहेंगे । ज्‍योतिष को भी वेदों का ही अंग...

शनिवार, 11 जुलाई 2020

वार्णिक एवं मात्रिक छंद कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियम

कविताओं के लिये वर्ण एवं मात्रा के गिनती के नियमवर्ण‘‘मुख से उच्चारित ध्वनि के संकेतों, उनके लिपि में लिखित प्रतिक को ही वर्ण कहते हैं ।’’हिन्दी वर्णमाला में 53 वर्णो को तीन भागों में भाटा गया हैः1. स्वर-अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ. अनुस्वार-अं. अनुनासिक-अँ. विसर्ग-अः2. व्यंजनःक,ख,ग,घ,ङ, च,छ,ज,झ,ञ. ट,ठ,ड,ढ,ण,ड़,ढ़, त,थ,द,ध,न, प,फ,ब,भ,म, य,र,ल,व,श,ष,स,ह,3. संयुक्त...

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियम एवं प्रकार

घनाक्षरी एक सनातन छंद की विधा होने के बाद भी आज काव्य मंचों में सर्वाधिक पढ़े जाने वाली विधा है । शायद ऐसा कोई काव्य मंच नहीं होगा जिसमें कोई न कोई कवि घनाक्षरी ना पढ़े । हिंदी साहित्य के स्वर्णिम युग जिसे एक प्रकार से छंद का युग भी कह सकते हैं, में घनाक्षरी विशेष रूप से प्रचलित रहा है । इस घनाक्षरी छंद की परिभाषा इसके मूलभूत नियम एवं इनके प्रकार पर आज पर चर्चा करेंगे। साथ ही वर्णों की गिनती किस प्रकार की जाती है ? और लघु गुरु का निर्धारण कैसे...

मंगलवार, 26 मई 2020

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता है

नदी नालों को ही बचाकर जल को बचाया जा सकता हैभूमि की सतह और भूमि के अंदर जल स्रोतों में अंतर संबंध होते हैं ।जब भूख सतह पर जल अधिक होगा तो स्वाभाविक रूप से भूगर्भ जल का स्तर भी अधिक होगा । भू सतह पर वर्षा के जल नदी नालों में संचित होता है यदि नदी नालों की सुरक्षा ना की जाए तो आने वाला समय अत्यंत विकट हो सकता है । नदी नालों पर तीन स्तर से आक्रमण हो...

शुक्रवार, 22 मई 2020

दीर्घायु जीवन का रहस्य

दीर्घायु जीवन का रहस्यइस जगत ऐसा कौन नहीं होगा जो लंबी आयु, सुखी जीवन न चाहता हो । प्रत्येक व्यक्ति की कामना होती है कि वह सुखी रहे, जीवन आनंद से व्यतित हो और वह पूर्ण आयु को निरोगी रहते हुये व्यतित करे । मृत्यु तो अटल सत्य है किंतु असमायिक मृत्यु को टालना चाहिये क्योंकि अथर्ववेद में कहा गया है-‘‘मा पुरा जरसो मृथा’ अर्थात बुढ़ापा के पहले मत मरो । बुढ़ापा...

शनिवार, 16 मई 2020

स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में आत्माभिमान की रक्षा करना प्राणों की रक्षा करने से भी श्रेष्ठ कहा गया है । कई ग्रन्थों में यहाँ तक भी कहाँ गया है कि यदि प्राणोत्सर्ग करने से स्वाभिमान की रक्षा हो सके तो सहजता से प्राणोत्सर्ग कर देना चाहिये । स्वाभिमान के पुष्पित पल्लवित वृक्ष पर ही आत्मनिर्भरता का फल लगता है । आत्मनिर्भर किसे कहते हैं ? वह व्यक्ति...

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

गैस्ट्रिक का घरेलू उपचार

गैस्ट्रिक का घरेलू उपचार आज के व्यवस्तम काम-काजी परिवेश में लोगों को कई छोटे-बड़े रोग हो रहे है । अब कुछ रोगों का होना जैसे सामान्य बात हो गई है । डाइबिटिज, ब्लड़ प्रेसर जैसे प्रचलित रोगों सा एक रोग गैस्ट्रिक भी है इस रोग में वायु आवश्यकता से अधिक बनता है । यह अनियमित खान-पान के कारण अपच की स्थिति बनने के कारण उत्पन्न होता है ।  कई लोग ऐसे अनुभव...

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

तुलसी के स्वास्थ्यवर्धक गुण

तुलसी के स्वास्थ्यवर्धक गुण तुलसी एक उपयोगी वनस्पति है । भारत सहित विश्व के कई  देशों में तुलसी को पूजनीय तथा शुभ माना जाता है ।  यदि तुलसी के साथ प्राकृतिक चिकित्सा की कुछ पद्यतियां जोड़ दी जायें तो प्राण घातक और असाध्य रोगों  को भी नियंत्रित किया जा सकता है । तुलसी शारीरिक व्याधियों को दूर करने के साथ-साथ मनुष्यों के आंतरिक...

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

भोजन विज्ञान

आरोग्य और आहार विज्ञान नीरोग उन्हीं मनुष्यों को कहा जा सकता जिनके शुद्ध शरीर में शुद्ध मन का वास होता है । मनुष्य केवल शरीर ही तो नहीं है ।  शरीर तो उसके रहने की जगह है । शरीर, मन और इंद्रियों का ऐसा घना संबंध है कि इनमें किसी एक के बिगड़ने पर बाकी के बिगड़ने  में जरा भी देर नहीं लगती । जीव मात्र देहधारी है और सबके शरीर की आकृति प्रकृति...

सोमवार, 2 मार्च 2020

‘‘छत्तीसगढ़ी ल अपन पढ़ईया चाही’’

छत्तीसगढ़ी के व्याकरण के किताब जब हिन्दी ले पहिली के आये ह त ये हा ये बात ला प्रमाणित करे बर अपन आप मा पर्याप्त हे के छत्त्तीसगढ़ी अपन आप मा कतका सक्षम हे । कोनो भी भाखा ला एक भाशा के रूप मा तभे जाने जाही  जब ओ भाशा के बोलईया, लिखईया अउ पढईया मन के संख्या एक बरोबर होवय । छत्तीसगढी़ बोलईया मन के तइहा ले के आज तक के कोनो कमी नई होय हे । आज के छत्तीसगढ़...

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